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Friday, 29 March, 2024
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ADC संशोधन विधेयक पर मणिपुर आदिवासी छात्र संघ ने कहा, ‘सरकार की ओर से कोई ठोस आश्वासन नहीं’

आदिवासी छात्र संघ ने एडीसी संशोधन विधेयक की मांग को लेकर रविवार को मणिपुर सरकार से मुलाकात की. यह विधेयक राज्य विधानसभा में पहाड़ी इलाकों को अधिक वित्तीय, प्रशासनिक स्वायत्तता की मांग करता है.

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गुवाहाटी: राज्य सरकार ने दो अगस्त को विवादास्पद मणिपुर (पहाड़ी क्षेत्र) जिला परिषदों के 6वें और 7वें संशोधन विधेयक को विधानसभा में पेश किया था. उसके बाद से मणिपुर उबाल पर है.

मणिपुर सरकार ने बिलों के खिलाफ राज्य के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन के बाद शनिवार को राज्य में इंटरनेट सेवाओं को पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया.

शनिवार के विरोध प्रदर्शन में दर्जनों छात्रों और दो पुलिसकर्मियों के घायल होने की खबर है. विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करने वाले ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने राज्य के जनजातीय मामलों और हिल्स मंत्री लेतपाओ हाओकिप से अपनी मांगों पर चर्चा करने के लिए रविवार को मुलाकात की. मंत्री ने विधानसभा में संशोधन बिल पेश किया था.

हाओकिप ने बैठक से पहले एटीएसयूएम की मांगों के बारे में दिप्रिंट से कहा था, ‘हमारे पास पहाड़ी क्षेत्रों के लिए एक अलग मुख्य सचिव और घाटी के लिए एक अलग मुख्य सचिव नहीं हो सकता…. यह एक राज्य के अंदर राज्य बनाने जैसा है.’

आदिवासी छात्र संघ स्वायत्त जिला परिषद (एडीसी) संशोधन विधेयक 2021 को राज्य विधानसभा में पेश करने की अपनी मांग को लेकर आंदोलन कर रहा है. एडीसी विधेयक पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता की मांग करता है ताकि इंफाल पर्वतीय क्षेत्र, घाटी क्षेत्र के समान विकास कर सके.

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इस सप्ताह की शुरुआत में एडीसी विधेयक को पेश करने के बजाय भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य विधानसभा में संशोधन विधेयक पेश किया और छठा संशोधन विधेयक शुक्रवार को पारित कर दिया गया.

दिप्रिंट से एक्सक्लूसिव बात करते हुए एटीएसयूएम के वित्त सचिव काकाई सिंगसिट ने कहा, ‘उन्होंने हमें बताया कि संशोधनों के साथ वाला बिल, एडीसी संशोधन विधेयक 2021 से ज्यादा अलग नहीं हैं. वहां से बस कुछ विवादास्पद प्वाइंट को हटाया गया है. वो कमोबेश वैसा ही है.’ वह सरकार के साथ हुई बैठक में मौजूद थे.

उन्होंने कहा कि सरकार ने उन्हें इस पर कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया है.

सिंगसिट ने कहा, ‘ज्यादातर समस्याओं का समाधान कर दिया गया है’, ‘कुछ विरोधाभासी प्वाइंट हैं. हम जल्द ही फिर से सरकार के साथ बैठेंगे. इससे पहले नेतागण भी एक मीटिंग करेंगे.’


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आर्थिक नाकेबंदी, सांप्रदायिक तनाव

शनिवार के विरोध प्रदर्शन में छात्र प्रदर्शनकारियों और पुलिस कर्मियों के बीच इंफाल के पश्चिम जिले में झड़प हुई थी. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रदर्शनकारी एटीएसयूएम के पांच कार्यकारी सदस्यों की रिहाई की मांग कर रहे थे. छात्र संगठन के पहाड़ी जिलों में 24 घंटे के बंद के आह्वान के बाद उन्हें मंगलवार को गिरफ्तार किया गया था.

राज्य के एक उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘राष्ट्रीय राजमार्ग 2 और राष्ट्रीय राजमार्ग 37 पर आर्थिक नाकाबंदी (एटीएसयूएम के कहने पर) जारी है और माल ट्रकों को आगे बढ़ने की अनुमति नहीं है.’

मीटिंग के बाद सिंगसिट ने दिप्रिंट को बताया, ‘राज्य सरकार ने हमसे नाकाबंदी रोक देने का अनुरोध किया और कहा कि वे नेताओं को रिहा कर देंगे. हमारा तर्क था कि मुद्दे की जड़ यह नहीं है, बल्कि यह (संशोधन) बिल है. उसी को लेकर खींचतान चल रही है.’

मणिपुर सरकार ने पांच दिनों के लिए इंटरनेट सेवाओं को बंद करने का आदेश इंफाल के पास बिष्णुपुर जिले में हुई एक घटना के मद्देनजर लिया था. इसमें ‘ तीन-चार युवकों ने एक वैन में आग लगा दी गई थी. इन युवकों का संबंध एक ही समुदाय से होने का संदेह है.’ दिप्रिंट के पास आदेश की एक प्रति है. इसमें लिखा है ‘ इस अपराध ने राज्य में तनावपूर्ण सांप्रदायिक स्थिति और अस्थिर कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा कर दी है.’

सिंगसिट ने दावा किया कि घाटी में प्रमुख जातीय समूह, मेइतेई समूह ने दो दिन पहले इम्फाल में एटीएसयूएम कार्यालय को ‘घेरने’ के बाद ‘लॉक’ कर दिया था. उन्होंने कहा, ‘हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं. इंफाल मणिपुर की राजधानी है, यह एक समुदाय से संबंधित नहीं है.’

एक और आदिवासी छात्र इकाई ऑल नागा स्टूडेंट्स एसोसिएशन मणिपुर (ANSAM) भी संशोधनों के खिलाफ आंदोलन कर रहा है. उसके महासचिव ए.सी. थोट्सो ने दावा किया कि घाटी स्थित संगठन, मेइतेई लीपुन, ‘इस मुद्दे को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश कर रहा है.’ उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हम सिर्फ अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं, किसी समुदाय के खिलाफ नहीं हैं.’

विरोध क्यों

मणिपुर (पहाड़ी क्षेत्र) जिला परिषद अधिनियम को 1971 में पारित किया गया था. इसमें राज्य के आदिवासी आबादी वाले पहाड़ी जिलों में स्वायत्त जिला परिषदों के निर्माण का प्रावधान शामिल हैं.

पहाड़ी इलाकों में बड़े पैमाने पर बसे नागा और कुकी जैसे आदिवासी समूह दशकों से आरोप लगाते आए हे कि उनके विकास की उपेक्षा की गई है, खासकर मेइतेई-आबादी वाले इंफाल घाटी की तुलना में. पिछले साल पहाड़ी जिलों के 18 विधायकों वाली हिल एरिया कमेटी ने एडीसी संशोधन विधेयक 2021 का प्रस्ताव रखा था.

नए बिल एडीसी संशोधन विधेयक के कुछ प्रस्तावों से अलग हैं, जो राज्य सरकार को जिला परिषदों और परिसीमन आयोग के लिए नियुक्तियों और एडीसी द्वारा निर्धारित वार्षिक ‘आय और व्यय’ के समय अधिक अधिकार देते हैं.

दिप्रिंट ने अपनी एक पूर्व रिपोर्ट में बताया था कि छात्र निकायों ने संशोधन विधेयकों की आलोचना की है क्योंकि उनका मानना है कि राज्य सरकार, ‘स्वायत्त जिला परिषद की शक्ति और कामकाज की निगरानी करेगी.’

सिंगसिट ने कहा, ‘हमने राज्य सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे कि एडीसी संशोधन विधेयक 2021 को अगले राज्य विधानसभा सत्र में लाया जाएगा… सरकार अपनी प्रतिबद्धता से पीछे हट रही है.’

हाओकिप का कहना है, ‘प्रमुख कानून (1971) को पूरी तरह से निरस्त करना हिल एरिया कमेटी के दायरे में नहीं है क्योंकि यह संघ सूची में आता है… इसके अलावा छात्र निकाय जिला परिषद को एक स्वायत्त जिला परिषद का नाम देने की मांग कर रहे हैं. लेकिन आप ऐसा तब तक नहीं कर सकते जब तक आपको छठी अनुसूची का दर्जा नहीं दिया जाता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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