प्रयागराज: महाकुंभ में 29 जनवरी को हुई भगदड़ के बाद से लापता लोगों की तलाश तीसरे दिन भी जारी है, परिवार के सदस्य शवगृहों में पहुंच रहे हैं.
मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (एमएलएनएमसी) का शवगृह एक साधारण इमारत है. इसके गेट आम लोगों और मीडिया के लिए बंद हैं.
एक दर्जन पुलिस अधिकारी अंदर पहरा दे रहे हैं, जो केवल मृतकों के रिश्तेदारों को ही जाने की अनुमति दे रहे हैं, जो शवों की पहचान करने आए हैं.
22-वर्षीय अभिनंदन गुप्ता बिहार के सीतामढ़ी से महाकुंभ मेले में आए 10 लोगों के ग्रुप का हिस्सा थे.
29 जनवरी की सुबह संगम क्षेत्र में हुई भगदड़ में उनकी दादी का निधन हो गया.
वे सबसे पहले संगम में स्थापित खोया-पाया केंद्रों में गए.
वहां, उन्हें उन स्थानों की सूची दी गई, जहां वे जांच कर सकते थे — स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल, तेज बहादुर सप्रू अस्पताल और एमएलएनएमसी.
गुप्ता ने पहले दो अस्पतालों की जांच की, लेकिन पाया कि उनकी दादी का नाम किसी भी लिस्ट में नहीं था.
गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया, “मैंने मेले के सेक्टर-21 में एफआईआर दर्ज करने की भी कोशिश की. उन्होंने बस रजिस्टर में कुछ लिख दिया और मुझे कोई कागज़ नहीं दिखाया.”
शुरू में उन्हें शवगृह के अंदर भी नहीं जाने दिया गया, ताकि वे पहचान सकें कि कथित 15 शवों में से कोई उनकी दादी का है या नहीं.
तब तक, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक वकील ने हस्तक्षेप किया.
भगदड़ की खबर सुनने के बाद गोविंद जी राय ने खुद शवगृह जाने का फैसला किया. उन्होंने मामले को अपने हाथों में ले लिया और ड्यूटी पर मौजूद पुलिस को गुप्ता को अंदर जाने के लिए मना लिया.
राय ने पुलिस अधिकारियों से कहा, “जो कुछ भी हुआ, सो हुआ. हमें इस समय एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए. उनके पास उनका आधार कार्ड है, उन्हें अंदर जाने दीजिए, ताकि वह शवों की पहचान कर सके.”
पुलिस ने भ्रम के लिए माफी मांगी, पर गुप्ता को शवगृह में अपनी दादी नहीं मिलीं.
लापता लोगों के रिश्तेदार प्रयागराज पहुंचे
झारखंड के बिक्रम कुमार अपनी मां की तलाश में 31 जनवरी को प्रयागराज पहुंचे.
कुमार ने कहा, “वे 29 जनवरी को सुबह 3 बजे अपने साथ के लोगों से अलग हो गई थीं. लोगों ने उनकी तलाश की, लेकिन फिर झारखंड वापस चले गए, इसलिए मैं आज सुबह आया.”
कुमार प्रयागराज जंक्शन रेलवे स्टेशन के बाहर एक पुलिस कैंप गए और गुमशुदगी का आवेदन दायर किया.
उन्होंने एक मेडिकल सेंटर का भी दौरा किया, जहां लापता लोगों की 14 तस्वीरें लगी थीं — उनकी मां उनमें शामिल नहीं थीं.
कुमार ने दिप्रिंट को बताया, “पुलिस ने मुझे जानकारी देने और मेरा साथ दिया. एक पत्रकार उन्हें ढूंढने में मदद करने के लिए मेरे साथ 15 किलोमीटर पैदल भी चले.”
शवगृह से निकलते समय कुमार स्पष्ट रूप से परेशान दिखे. वह उन दर्जनों लोगों में से थे, जो 31 जनवरी को दोपहर 1 से 3 बजे के बीच एमएलएनएमसी शवगृह पहुंचे थे.
स्थानीय लोग तलाश में शामिल
प्रयागराज के स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में 30-वर्षीय स्थानीय राहुल सोनकर एक लापता व्यक्ति के बारे में जानकारी के लिए रिसेप्शन डेस्क पर इंतज़ार कर रहे थे.
सोनकर ने दिप्रिंट को बताया, “असम की एक महिला ने अपनी मां को खो दिया. वे मेरे घर के पास से गुज़र रहीं थीं और संगम का रास्ता पूछ रही थीं.”
सोनकर ने महिला से कहा कि भगदड़ के कारण संगम की ओर जाने वाला रास्ता बंद कर दिया गया है और तभी उन्हें पता चला कि वे अपनी खोई हुई मां को ढूंढ रही हैं.
सोनकर ने कहा, “मैंने उनसे कहा कि वे मेरे घर पर आराम कर सकती हैं और मैं उनकी मां को ढूंढने के लिए बाहर जा रहा हूं.”
सोनकर ने मेले में सेक्टर 16 और 18 सहित सभी प्रमुख स्थानीय अस्पतालों का दौरा किया, जहां अस्थायी अस्पताल बनाए गए हैं.
उन्होंने आगे झूसी जाने की योजना बनाई, जो 29 जनवरी को संगम में पहली भगदड़ के कुछ घंटों बाद हुई एक और भगदड़ का स्थान है.
सोनकर ने कहा, “मैंने अन्य क्षेत्रों जैसे पुण्या (पश्चिम बंगाल), आगरा, कानपुर (उत्तर प्रदेश) और जम्मू के परिवारों की भी मदद की है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: कुंभ में भगदड़ के 2 दिन बाद भी श्रद्धालु अपनों की तलाश में, संगम क्षेत्र के आसपास सुरक्षा बढ़ी