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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशलखनऊ की ब्राउनी तो घर जा रही लेकिन तमाम भारतीय अपने पालतू कुत्तों को सड़क, पुलों पर बांधकर छोड़ रहे हैं

लखनऊ की ब्राउनी तो घर जा रही लेकिन तमाम भारतीय अपने पालतू कुत्तों को सड़क, पुलों पर बांधकर छोड़ रहे हैं

लखनऊ और यहां तक कि दिल्ली-एनसीआर में भी इन जानवरों को पालने वाले उन पर बढ़ते खर्च और बच्चों की जान को खतरा जैसे कारण गिनाकर अपने पालतू जानवरों को छोड़ देना जायज ठहरा रहे हैं.

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अपने नए ठिकाने में आराम फरमा रहा पांच वर्षीय मैक्सिमस उसकी फोटो लेने के लिए लगातार चमक रहे सेल फोन कैमरा देखकर हैरान है. इस पालतू सफेद लैब्राडोर के मालिकों ने तो उसे लखनऊ की वृंदावन योजना कॉलोनी के पास छोड़ दिया था लेकिन एक पशु प्रेमी की मेहरबानी से वह कृष्णा नगर स्थित एक एनजीओ के शेल्टर में पहुंच गया.

शहरी जंगल में बंधे पाए गए दो वर्षीय एक ब्राउन लैब्राडोर ब्रूस पाया और तीन महीने की मिया, एक क्रीम-यलो लैब्राडोर, के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. उनके मालिक उन्हें अपने पास नहीं रखना चाहते थे और उन्होंने इन लैब्राडोर्स—जिन्हें अपेक्षाकृत शांत स्वभाव वाला और लोगों के साथ काफी घुल-मिलकर रहने वाली नस्ल माना जाता है—को उनके भाग्य के सहारे छोड़ दिया. हालांकि, वे किसी तरह पॉसम फाउंडेशन संचालित शेल्टर में पहुंच गए.

लखनऊ में वृंदावन योजना कॉलोनी के पास छोड़ी गई 3 माह की लैब्राडोर मिया | शिखा सलारिया | दिप्रिंट

 

लखनऊ के हसनगंज स्थित जीव बसेरा में पिंजरे के अंदर बैठा जर्मन शेपर्ड उसकी निजता में दखल दे रहे आगंतुकों पर गुस्से से गुर्राने लगता है.

चार साल का ये कुत्ता अपने दाहिने कान में संक्रमण से जूझ रहा है और इसे लखनऊ में इंटीग्रल यूनिवर्सिटी के पास टेढ़ी पुलिया क्षेत्र से कुछ ही किलोमीटर दूर पाया गया था. करीब आठ दिन पहले उसे किसी नेक इंसान ने वहां देखा और पशु अस्पताल और शेल्टर में पहुंचा दिया.

शेल्टर के एक केयरटेकर राहुल कृष्णा ने बताया, ‘वह तभी गुर्राता है जब कोई उसके करीब आने की कोशिश करता है या फिर उस कुछ खाने को देता है. जब हम उसे इलाज के लिए बाहर ले जाते हैं तो वह शांत हो जाता है और आसानी से इंजेक्शन लगवा लेता है. मुझे लगता है कि उसे किसी तरह की यातना सहनी पड़ी है.’

जीव बसेरा की फाउंडर-प्रेसीडेंट राखी किशोर ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें कुत्ते के मालिकों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. साथ ही बताया कि जबसे लखनऊ के कैसरबाग इलाके में एक मादा पिट बुल ब्राउनी द्वारा अपनी 82 वर्षीय मालकिन सुशीला त्रिपाठी पर हमला कर देने की घटना हुई है, तमाम पालतू जानवरों के मालिक अपने फ्रैंडली ब्रीड वाले कुत्तों को भी यहां-वहां छोड़ दे रहे हैं. कुत्ते के हमले में सुशीला त्रिपाठी की मौत ने पालतू जानवरों की नस्लों और उनके व्यवहार के बारे में सवाल खड़े कर दिए थे.


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मालिकों ने विदेशी नस्लों से पीछा छुड़ाया

जीव बसेरा से लगभग 11 किलोमीटर दूर कैसरबाग इलाके में बंगाली टोला है जहां ब्राउनी ने 12 जुलाई को अपने घर में मालिक अमित त्रिपाठी की मां पर जानलेवा हमला किया था. घटना के तुरंत बाद, मादा पिट बुल को नगर निगम को सौंप दिया गया जिसने उसे डॉग स्टरलाइजेशन सेंटर पहुंचा दिया.

चौदह दिनों के बाद ब्राउनी जिसे अभी 21 दिनों की ट्रेनिंग दी जा रही है स्थायी रूप से बंगाली टोला में अपने मालिक के घर जा सकती है.

हालांकि, इस घटना के अप्रत्याशित तौर पर काफी सुर्खियों में रहने के बीच खासकर उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में कई लोगों ने अपने पालतू कुत्तों को छोड़ दिया है.

तमाम पिट बुल, रॉटवीलर, जर्मन शेफर्ड और अमेरिकन बुलीज अचानक अपने मालिकों की चिंता और संदेह का कारण बन गए.

2 वर्षीय ब्रूस लखनऊ के इंदिरा नगर में एक जंगल में लावारिस पाया गया | शिखा सलारिया | दिप्रिंट

दिप्रिंट ने जब तमाम एनिमल सेंटर से बात की तो पता चला कि अचानक से पिट बुल कुत्तों को छोड़ने की घटनाओं में तेजी आई है और उनके मालिक अपने पालतू कुत्तों से छुटकारा पाना चाहते हैं.

दिल्ली और गुरुग्राम में दो शेल्टर वाले सबसे पुराने पशु आश्रयस्थल और अस्पतालों में से एक, फ्रेंडिकोज को लखनऊ की घटना के बाद से अपने सेंटर में पांच पिट बुल मिले हैं जिन्हें उनके मालिकों ने छोड़ दिया है.

फ्रेंडिकोज में एडॉप्शन प्रोग्राम की प्रमुख तंद्राली कुली ने कहा कि यह घटना एनसीआर में कुत्तों को छोड़ने के बढ़ते चलने को ही दर्शाती है.

उन्होंने कहा, ‘लखनऊ की घटना के बाद से हमारे पास कम से कम पांच ऐसे पिट बुल आए हैं, जिन्हें उनके मालिकों ने विभिन्न कारणों से छोड़ दिया है. सभी पिट बुल पालतू जानवर हैं और उनमें से कोई भी आवारा नहीं है. इसमें से एक को नारायणा फ्लाईओवर पर छोड़ा गया था. एक प्रगति मैदान पर भैरो मंदिर के पास एक सड़क पर मिला जिसका पैर किसी वाहन के नीचे आकर कुचल गया था. पहले वाले को एक जागरूक नागरिक ने नारायणा फ्लाईओवर के पास से उठाया था. यह ट्रेंड खतरनाक होता जा रहा है, क्योंकि हम न तो इतने सारे कुत्तों को आश्रय देने की स्थिति में हैं और न ही हमारे पास इतने संसाधन हैं.’

गौरतलब है कि दिल्ली के तैमूर नगर में नाला रोड पर बैठे एक लावारिस पिट बुल का वीडियो सोमवार को वायरल हो गया था.

कुली ने बताया, ‘आम तौर पर व्यवहार संबंधी मुद्दों और स्किन प्रॉब्लम के कारण पिट बुल को छोड़ दिए जाने के मामले लखनऊ वाली घटना से पहले भी सामने आते रहे हैं. पहले भी इस नस्ल के कुछ कुत्ते हमारे शेल्टर में पहुंचाए गए थे.’

जून में, एक पिट बुल को फ्रेंडिकोज दिल्ली शेल्टर के बाहर उसके गले में एक पत्र बांधकर छोड़ दिया गया था.

पत्र में लिखा था, ‘हम इसके इलाज का महंगा खर्च उठाने में सक्षम नहीं है. हमारी मां भी अस्पताल में हैं. कृपया इसका ख्याल रखें.’


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तमाम तरह के कारण बता रहे

पशु कार्यकर्ता कावेरी राणा, जो नोएडा के गौतमबुद्ध नगर की वन्यजीव और गौशाला समिति की सदस्य भी हैं, ने बताया कि लखनऊ की घटना के बाद से उन्हें एनसीआर और पश्चिमी यूपी से करीब 40-45 लोगों के कॉल आए हैं, जो अपने पिट बुल, रॉटवीलर, जर्मन शेफर्ड, लैब्राडोर, बीगल आदि को छोड़ना चाहते हैं.

उन्होंने बताया कि अलीगढ़ का एक परिवार अपने डेढ़ साल के रॉटवीलर से छुटकारा पाना चाहता था, जिसे वे तब घर लाए थे जब वह सिर्फ 40 दिन का था.

उन्होंने बताया, ‘जब मैंने कारण पूछा, तो उनका कहना था कि उन्हें अपनी आठ माह की बेटी की सुरक्षा की चिंता सता रही है. खासकर लखनऊ की घटना के बाद पालतू जानवरों के मालिकों में दहशत है. मैं बस इन पालतू जानवरों के मालिकों को सलाह दे रही हूं कि वे अपने जानवरों को छोड़ें नहीं और इन पालतू जानवरों को फिर से घर लाने की कोशिश करें.’

करीब दो हफ्ते पहले नोएडा के सेक्टर 44 में एक और पिट बुल लावारिस पाया गया था.

सेक्टर 54 नोएडा में पशु औषधालय हाउस ऑफ स्ट्रे एनिमल्स के संस्थापक संजय महापात्रा ने कहा कि लखनऊ की घटना के बाद से उनके पास पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक और यहां तक कि केरल जैसे विभिन्न राज्यों से कुत्तों के मालिकों से 50 ऐसे कॉल आए हैं.

उन्होंने कहा, ‘पहले भी लोग कोविड के दौरान अपने लैब्राडोर, जर्मन शेपर्ड, साइबेरियन हस्की आदि छोड़ना चाहते थे, लेकिन लखनऊ की घटना के बाद संख्या काफी बढ़ गई है. मेरी डिस्पेंसरी में ऐसे सात लावारिस कुत्ते हैं जिनमें दो पिट बुल, एक जीएसडी, एक लैब्राडोर, एक पोमेरेनियन और एक भूटिया शामिल है.’

एडवाइजरी ने चिंता बढ़ाई?

सुशीला त्रिपाठी की मृत्यु के तुरंत बाद लखनऊ नगर निगम ने ‘आक्रामक’ और ‘खतरनाक नस्ल’ के कुत्तों को पालने के खिलाफ एक एडवाइजरी जारी की, जिसके बारे में पशुओं की देखभाल करने वालों का कहना है कि यही पिट बुल और अन्य स्ट्रांग ब्रीड वाले कुत्तों को लेकर आशंकाओं की एक बड़ी वजह बन गई है.

सोसायटी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (एसपीसीए) की मौजूदा सदस्य और भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (एडब्ल्यूबीआई) की पूर्व सदस्य कामना पांडे कहती हैं, ‘नगर निगम ने एक एडवाइजरी जारी की है लेकिन क्या अधिकारियों के पास लखनऊ में ऐसे पालतू जानवरों के रखरखाव, देखभाल, उपचार और उन्हें शेल्टर देने की कोई योजना है, जिन्हें मालिक अब डर के मारे छोड़ना चाहते हैं?’

बहरहाल, निगम का कहना है कि एडवाइजरी गलत नहीं थी.

नगर निगम में पशु चिकित्सक डॉ. अभिनव वर्मा ने कहा, ‘एडवाइजरी में उपयुक्त शब्दों का इस्तेमाल करते हुए आक्रामक नस्लों के बारे में लिखा गया था. (हालांकि) घटना के बाद पिट बुल को लेकर ऐसी धारणा बन गई क्योंकि इसका शारीरिक संरचना और जबड़े मजबूत किस्म के होते हैं.’


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ब्राउनी के लिए उम्मीद बरकरार

हालांकि, अपने आसपास की घटनाओं से बेखबर ब्राउनी को 21 दिनों के व्यवहार प्रशिक्षण के बाद अपने मालिक अमित त्रिपाठी को स्थायी रूप से सौंपने के लिए जल्द ही ‘फिट’ घोषित किया जा सकता है.

नगर निगम के अपनी वैन में उसे ले जाने और जरहरा स्थित ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल (एचएसआई) संचालित डॉग स्टरलाइजेशन सेंटर लाए जाने के 14 दिन बाद गुरुवार को इसे अमित त्रिपाठी को सौंप दिया गया और आधिकारिक तौर पर जारी निर्देशों के तहत फिलहाल एक व्यवहार विशेषज्ञ उसे ट्रेनिंग दे रहा है.

दिप्रिंट से बातचीत में लखनऊ के नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा कि एक हलफनामा देने के बाद ब्राउनी को उसके मूल मालिक को सौंपने के लिए फिट माना जाएगा क्योंकि इस मामले में कोई कानूनी मामला या प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है.

उन्होंने कहा, ‘वह बिल्कुल सामान्य व्यवहार कर रही है, लेकिन उस दिन उसके व्यवहार के संभावित कारण के बारे में सवाल बने हुए हैं.’

मालिक अमित त्रिपाठी ने रविवार को दिप्रिंट को बताया कि वह पशु आश्रयों और डॉग लवर्स की तरफ इस कुत्ते को गोद लेने के लिए कई कॉल आने के बावजूद ब्राउनी को अपने पास ही रखना चाहते हैं—तमाम चिंताओं और हमले के कारण ब्राउनी की छवि बनी है, उसकी कोई परवाह न करते हुए.

उन्होंने कहा, ‘मुझे पशु आश्रयों और तमाम डॉग लवर्स से कॉल आ रहे हैं जो ब्राउनी को अपनाना चाहते हैं लेकिन मैं ऐसे कॉल करने वालों पर भरोसा नहीं कर सकता.’

डॉ. वर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि ब्राउनी शेल्टर में रहने के दौरान पूरी तरह से सामान्य थी और अपने केयरटेकर के साथ मित्रवत व्यवहार कर रही थी.

उन्होंने कहा, ‘उसे अपनी सीमाएं पता थीं और शायद यह महसूस कर रही थी कि यह उसका नया ठिकाना है. गुरुवार को जब उसके मालिक अमित त्रिपाठी ने उसे कार बूट में डाल दिया तो वह दुखी नजर आई. वह अपने मालिक के साथ वापस जा सकती है लेकिन यह एक व्यवहार विशेषज्ञ की ट्रेनिंग के बाद ही संभव होगा.’

उसके व्यवहार के बारे में पूछे जाने पर वर्मा ने कहा कि वह आम तौर पर आक्रामक नहीं थीं और इस घटना ने कई सवालों को अनुत्तरित छोड़ दिया है.

विशेषज्ञों का मानना है कि कुत्ते को टहलने के लिए बाहर न निकालना ब्राउनी के आक्रामक व्यवहार का कारण हो सकता है.

तंद्राली कुली ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि ब्राउनी तमाम एक्सरसाइज और बाहरी सामाजिक जीवन से वंचित थी, जो कुत्ते के स्वास्थ्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. अगर कुत्ते को सैर के लिए नहीं ले जाया जाता है, तो 21 दिन का प्रशिक्षण कोई मदद नहीं करेगा.’

काउंसलिंग का सहारा ले रहे एनिमल शेल्टर

एनिमल शेल्टर का कहना है कि उन्हें इस खबर से कोई राहत मिलने की संभावना नहीं है क्योंकि तमाम मालिक अपने पालतू जानवरों को छोड़ते रहते हैं.

जयपाल खेड़ा में एक शेल्टर होम के मालिक अनुराग मिश्रा ने कहा, ‘मुझे पालतू जानवरों के मालिकों से 10-12 कॉल आए, जो अपने रॉटवीलर, जर्मन शेफर्ड को छोड़ना चाहते हैं लेकिन मैं उन्हें सलाह देने की कोशिश कर रहा हूं और अपने पालतू जानवरों को छोड़ने के बारे में सोचने से पहले उन्हें ट्रेनिंग तकनीक अपनाने को कह रहा हूं.’

मिश्रा ने कहा कि हालांकि अधिकांश को परामर्श दिया जा सकता, फिर भी कुछ अभी भी अपने पालतू जानवरों को छोड़ना चाहते हैं. उन्होंने कहा, ‘हम ऐसे मालिकों को लौटा रहे हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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