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Saturday, 28 December, 2024
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अंसल बंधुओं की अपील पर 15 मई तक सुनवाई पूरी करे निचली अदालत : उच्च न्यायालय

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नयी दिल्ली, दो मार्च (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को उपहार अग्निकांड के सबूतों से छेड़छाड़ मामले में रियल एस्टेट कारोबारी सुशील और गोपाल अंसल की दोषसिद्धि के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के लिए यहां की एक निचली अदालत को 15 मई तक का समय दिया।

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद, जिन्होंने पहले एक महीने का समय दिया था, ने स्पष्ट किया कि समयसीमा के भीतर कार्यवाही पूरी न होने की सूरत में निचली अदालत उच्च न्यायालय तक जा सकती है। उन्होंने निचली अदालत को याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला सुनाने का निर्देश दिया।

न्यायाधीश ने कहा कि यायिकाएं न्यायिक रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ से संबंधित हैं, लिहाजा यह सुनिश्चित करने के लिए इन पर जल्द से जल्द सुनवाई की जानी चाहिए कि न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास कम न हो और दोषियों पर लगा न्याय के मंदिर को अपवित्र करने का कलंक लंबे समय तक बरकरार न रहे।

यह आदेश सुशील अंसल द्वारा दायर उस याचिका पर विचार करते समय पारित किया गया, जिसमें अंसल बंधुओं की ओर से उनकी सात साल की सजा को निलंबित करने की अर्जी पर 16 फरवरी को जारी फैसले में उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित एक महीने की समयसीमा को बढ़ाने की मांग की गई थी।

सुशील अंसल की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गीता लूथरा ने बड़े रिकॉर्ड का हवाला देते हुए अदालत से अपील की तैयारी और बहस के लिए चार महीने का समय देने का आग्रह किया।

अदालत ने कहा, “न्याय के हित में, यह अदालत इसे उचित मानती है कि याचिका पर सुनवाई 15 मई से पहले खत्म हो जाए और निष्कर्षों के आधार पर जितना जल्दी हो सके, फैसला सुनाया जाए।”

उच्च न्यायालय ने कहा, “यह कहने की जरूरत नहीं है कि याचिकाओं पर सुनवाई पूरी न होने की सूरत में अपीलीय अदालत के लिए यह विकल्प हमेशा खुला रहता है कि वह समयसीमा को और बढ़ाने के लिए इस न्यायालय से संपर्क करे। यह स्पष्ट किया जाता है कि पक्षों द्वारा किसी तरह के गैरजरूरी स्थगन की मांग नहीं की जाएगी।”

अदालत ने कहा, “चूंकि, याचिका न्यायिक रिकॉर्ड से छेड़छाड़ के मामले से संबंधित है, इस अदालत की राय (16 फरवरी के आदेश में) थी कि इस पर जल्द सुनवाई की जानी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास न घटे। साथ ही, दस्तावेजों से छेड़छाड़ करके न्याय के मंदिर को अपवित्र करने का कलंक याचिकाकर्ताओं पर लंबे समय तक नहीं लगा रहे।”

गोपाल अंसल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रमोद कुमार दुबे ने निचली अदालत में सुनवाई पूरी करने के लिए चार महीने का समय देने के अनुरोध पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि अदालत आज से 30 दिन का समय दे सकती है।

दुबे ने यह भी कहा कि हालांकि, उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में एक अपील दायर की गई थी, जिसे वापस ले लिया जाएगा।

विशेष लोक अभियोजक दयान कृष्णन ने भी सुनवाई पूरी करने के लिए अतिरिक्त समय देने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि अदालत ने याचिका पर जल्द सुनवाई के लिए एक समयसीमा तय की है, क्योंकि मामला न्यायपालिका से संबंधित है।

16 फरवरी को अदालत ने अंसल बंधुओं को दी गई सात साल की जेल की सजा को निलंबित करने से इनकार कर दिया था। उसने कहा था कि अंसल बंधुओं को न्यायिक रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ करने के अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है, जो बेहद गंभीर है और निलंबन की उनकी याचिका को स्वीकार करना ‘न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को खत्म करने के समान है।’

अदालत ने यह भी कहा था कि मौजूदा मामले जैसे मामलों की जल्द से जल्द सुनवाई होनी चाहिए और अगर दोषी व्यक्ति अंततः निर्दोष पाए जाते हैं तो उन पर लगे कलंक को जल्द से जल्द हटाया जाना चाहिए।

अदालत ने कहा था कि लिहाजा संबंधित अपीलीय अदालत से अनुरोध किया जाता है कि यदि आवश्यक हो तो रोजाना सुनवाई करके एक महीने के भीतर याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर की गई याचिकाओं को निपटाया जाए।

पिछले साल अंसल बंधुओं और अदालत के पूर्व कर्मचारी दिनेश चंद शर्मा व दो अन्य-पीपी बत्रा और अनूप सिंह करायत को एक मजिस्ट्रेट अदालत ने सात साल की जेल की सजा सुनाई थी। बाद में सत्र अदालत ने सजा को निलंबित करने और उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश देने से इनकार कर दिया था।

अंसल बंधुओं द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष सजा को स्थगित करने की याचिका का दिल्ली पुलिस और उपहार त्रासदी के पीड़ितों के संघ (एवीयूटी) ने विरोध किया था, जिसका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अअधिवक्ता विकास पाहवा ने किया था।

20 जुलाई 2002 को पहली बार न्यायिक रिकॉर्ड से छेड़छाड़ का पता चला था और मजिस्ट्रेट अदालत ने मामले में अंसल बंधुओं को सात साल की सजा सुनाने के अलावा उनमें से प्रत्येक पर 2.25 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया था।

यह मामला एवीयूटी की अध्यक्ष नीलम कृष्णमूर्ति की एक याचिका पर सुनवाई करते समय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देश पर दर्ज किया गया था।

भाषा पारुल उमा

उमा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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