नई दिल्ली: एक ओर जहां घरेलू हिंसा को लेकर कानून कठोर किए जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ महिलाएं पतियों द्वारा किसी विशेष परिस्थिति में पीटे जाने को सही मान रही हैं.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-5) द्वारा हाल ही में जारी एक सर्वे से पता चला है कि बिहार की 37 प्रतिशत महिलाओं ने किसी विशेष परिस्थिति में पति द्वारा मारे-पीटे जाने को सही बताया है.
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में महिलाएं सशक्त हुईं हैं. वह न केवल बाहर कमाने निकल रही हैं बल्कि परिवार के लिए किए जा रहे निर्णयों में बराबर की हिस्सेदार भी हैं.
बिहार की 71 फीसदी महिलाएं न केवल घर के लिए, लिए जा रहे निर्णयों में बराबर की भूमिका निभा रही हैं बल्कि उन्हें अपने स्वास्थ्य और परिवार के लिए क्या निर्णय लेना है वह उनकी मन मर्जी पर निर्भर है. ऐसे में घरेलू हिंसा को लेकर आए ये आंकड़ें चौंकाते हैं.
हालांकि, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे देश के 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में किया गया और इसमें पूछा गया कि आपकी राय में क्या पति का पत्नी को मारना- पीटना सही है.
सर्वे में शामिल राज्यों में से तेलंगाना की 83.8 फीसदी और हिमाचल प्रदेश की 14.8 फीसदी महिलाओं ने इसे सही ठहराया है.
सर्वे में महिलाओं से मार पीट के सात कारणों को उनके सामने रखा गया जिनमें, पति को बिना बताए बाहर जाना, घर और बच्चों को संभालने में लापरवाही बरतना, पति से बहस करना, शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना, सही तरीके से खाना न बनाना, धोखा देना या सास-ससुर का सम्मान नहीं करना शामिल हैं.
आखिर क्यों सही मान रहीं हैं पीटा जाना
बिहार में महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा और यौन हिंसा के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. एनएफएचएस-5 के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 18-49 वर्ष की 39 प्रतिशत महिलाओं ने कभी न कभी शारीरिक हिंसा और 8 प्रतिशत ने यौन हिंसा का सामना किया है. वहीं 40 प्रतिशत ने शारीरिक और यौन दोनों में से कोई न कोई हिंसा का सामना किया है वहीं 7 प्रतिशत महिलाएं दोनों हिंसा का शिकार हुई हैं.
बिहार की 23 प्रतिशत महिलाएं मानती हैं कि सास-ससुर का अनादर करने पर पतियों द्वारा पीटा जाना जायज है. वहीं पतियों से बहस करने, घर और बच्चों की अनदेखी करने पर पीटे जाने को 21 प्रतिशत और 19 प्रतिशत महिलाएं सही मानती हैं.
करीब 26 प्रतिशत महिलाएं और 24 प्रतिशत पुरुष, जिन्होंने लगभग 12 साल तक स्कूल में पढ़ाई की है, उनका भी मानना है कि कुछ निश्चित कारणों पर पतियों का पत्नियों को मारना सही है.
बिहार में 18-49 वर्ष के बीच शादी-शुदा महिलाओं की 42 प्रतिशत आबादी को शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करना पड़ा है. गर्भावस्था के दौरान भी महिलाएं हिंसा का शिकार हो रही हैं.
बिहार सरकार में आईएएस अधिकारी संजय कुमार ने एनएफएचएस-5 के आंकड़ों का हवाला देते हुए महिलाओं के साथ हिंसा को घिनौना बताया.
violence,in any form,is abhorrent.more so intimate partner violence.yet 37 % of women have been conditioned to agree that husband is justified in beating her & 34 % men agree it’s justified under certain circumstances.even an argument may invite retribution. #nfhs5 bihar data ? pic.twitter.com/ALdgfdOICi
— Sanjay Kumar (@sanjayjavin) December 1, 2021
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फैमिली प्लानिंग के तरीकों की तरफ ज्यादा ध्यान दे रही हैं महिलाएं
एनएफएचएस-5 के आंकड़े इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि बिहार में महिलाओं में गर्भनिरोधक के बारे में जानकारी बढ़ रही है और फैमिली प्लानिंग के तरीकों की तरफ वो ज्यादा ध्यान दे रही हैं.
फिलहाल राज्य में सिर्फ 19 प्रतिशत शादीशुदा महिलाएं फीमेल कंडोम (निरोध) के बारे में जानती हैं और 46 प्रतिशत इमरजेंसी कांट्रासेप्शन के बारे में.
बिहार में मॉडर्न फैमिली प्लानिंग के तरीकों का इस्तेमाल बढ़कर 44 प्रतिशत पर पहुंच गया है जो कि एनएफएचएस-4 में 23 प्रतिशत था.
बिहार के शहरी क्षेत्रों (62%) में निरोधक का इस्तेमाल ज्यादा होता है वहीं ग्रामीण इलाकों (55%) में यह कम है.
एनएफएचएस-5 के आंकड़ों से एक और चौंकाने वाली बात पता चलती है कि बिहार में 15-49 वर्ष के पुरुषों की आधी आबादी मानती हैं कि गर्भनिरोधक महिलाओं का मुद्दा है, इससे पुरुषों को कोई लेना-देना नहीं है.
एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के अनुसार कई सूचकांकों में बिहार का प्रदर्शन एनएफएचएस-4 से बेहतर हुआ है.
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प्रजनन दर में आई कमी
एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में प्रजनन दर में भी कमी आई है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 3 और 4 में प्रजनन दर 4.0 और 3.4 थी जो एनएफएचएस-5 में 3.0 है. यानि की राज्य में प्रत्येक महिला 3 बच्चों को जन्म देती है.
शहरी इलाकों में प्रजनन दर प्रत्येक महिला 2.4 है वहीं ग्रामीण इलाकों में यह दर 3.1 है. देखा गया है कि जिन महिलाओं ने स्कूल में पढ़ाई की है उनमें प्रजनन दर कम है.
एनएफएचएस-5 के अनुसार बिहार में जिन महिलाओं ने स्कूल में पढ़ाई नहीं की है वो 3.8 बच्चों को जन्म देती है वहीं जिन्होंने 5 साल से कम स्कूल में पढ़ाई की है, वो अपने जीवन काल में 3.5 बच्चों को जन्म देती है. इसी तरह 5-9 साल स्कूल में पढ़ने वाली महिलाएं 3 बच्चे, 10-11 साल पढ़ने वाली महिलाएं 2.4 और 12 या उससे ज्यादा साल तक स्कूल में पढ़ने वाली महिलाएं 2.2 बच्चों को जन्म देती है.
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