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Thursday, 28 March, 2024
होमहेल्थओमीक्रॉन के खिलाफ कितनी असरदार हो सकती है कोवैक्सीन, जानिए इस पर क्या कहते हैं ICMR के अधिकारी

ओमीक्रॉन के खिलाफ कितनी असरदार हो सकती है कोवैक्सीन, जानिए इस पर क्या कहते हैं ICMR के अधिकारी

सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में पाए गए वायरस के नए वैरिएंट ओमीक्रॉन को अब तक का सबसे म्यूटेटेड रूप माना जा रहा है.

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नई दिल्ली: आईसीएमआर के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि सार्स-कोव-2 वायरस के ओमीक्रॉन वैरिएंट के व्यवहार के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी तो उपलब्ध नहीं है लेकिन हो सकता है कि अन्य वैक्सीन की तुलना में एक संपूर्ण विरिअन (एक पूरे वायरस पार्टिकल वाली) वैक्सीन के तौर पर कोवैक्सीन इसके खिलाफ ज्यादा प्रभावी साबित हो, जो ज्यादा व्यापक तौर पर लक्षित होती है.

सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में पाए गए वायरस के नए वैरिएंट ओमीक्रॉन को अब तक का सबसे म्यूटेटेड रूप माना जा रहा है.

आईसीएमआर में महामारी विज्ञान और संक्रामक रोग विभाग के प्रमुख डॉ. समीरन पांडा ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम टीकों और नए वैरिएंट के बारे में अभी जो कुछ कह रहे हैं, वह अनुमानों पर आधारित है. हम वायरस और वैक्सीन के स्ट्रक्चर फंक्शन रिलेशन के बारे में बहुत सारे अनुमान लगा रहे हैं. लेकिन यह अनुमान थोड़ा ठोस लगता है कि इस वायरस के अन्य लक्षित टीकों की तुलना में कोवैक्सीन द्वारा प्रदान की जाने वाली प्रतिरक्षा से बचने की संभावना कम हो सकती है, जिनमें मुख्य तौर पर स्पाइक प्रोटीन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है.’

फाइजर और मॉडर्ना जैसी एमआरएनए वैक्सीन को एमआरएनए के एक हिस्से में निहित कोड को ट्रांसक्राइब करके सेल के अंदर स्पाइक प्रोटीन के एक हिस्से का उत्पादन करने के लिए डिजाइन किया गया है. इससे शरीर अपने उस हिस्से का उपयोग करके वायरस को पहचानता है. हालांकि, ओमीक्रॉन में लगभग 50 म्यूटेशन हो चुके हैं, उनमें से कई स्पाइक प्रोटीन और इसके रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन (आरबीडी) पर होते हैं.

पांडा ने कहा, ‘डेल्टा वैरिएंट में आरडीडी में दो म्यूटेशन थे और यहां 10 हैं. ऐसे में सवाल यह है कि जब डोमेन का स्ट्रक्चर बदलता रहता है तो अन्य वैक्सीन की ताले-चाबी जैसी व्यवस्था कारगर तरीके से कैसे काम करेगी. कोवैक्सीन के मामले में यह ब्रूस ली के वार की तरह है, जिसमें एक ही समय में तीन अलग-अलग और संभावित घातक साइट को निशाना बनाया जाता है.’

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हालांकि, उन्होंने स्वीकारा कि एमआरएनए वैक्सीन का एक फायदा यह है कि वैरिएंट के अनुरूप बनाने के लिए उनमें बहुत जल्द बदलाव किया जा सकता है. भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की तरफ से कोविशील्ड के नाम से निर्मित की जाने वाली एस्ट्राजेनेका वैक्सीन भी शरीर को सार्स-कोव-2 एंटीजन की पहचान कराने के लिए वायरस के स्पाइक प्रोटीन निर्माण के लिए आनुवांशिक निर्देशों का उपयोग करती है.


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‘अधिक संक्रामक होने के आसार नजर आते हैं’

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि हालांकि अभी तक स्पष्ट यह नहीं है कि ओमीक्रॉन अधिक संक्रामक है या नहीं. लेकिन पांडा का कहना है कि दक्षिण अफ्रीका में मामले तेजी से बढ़ने को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह अधिक संक्रामक हो सकता है.

उन्होंने कहा, ‘आपको यह समझना होगा कि हमारे सभी टीके बीमारी को बदलने वाले हैं न कि इसकी रोकथाम करने वाले. मैं दक्षिण अफ्रीका में अपने सहयोगियों से बात कर रहा हूं और हमें यह पता चला है कि ओमीक्रॉन से संक्रमित लोगों में भी बीमारी के लक्षण हल्के ही होते हैं. हालांकि, दक्षिण अफ्रीका में मामले कितनी तेजी से बढ़े हैं, उससे ऐसा लगता है कि हम अधिक संक्रामक वैरिएंट का सामना कर रहे हैं.’

एक अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, जो कोविड-19 (एनईजीवीएसी) के खिलाफ वैक्सीन पर राष्ट्रीय एक्सपर्ट ग्रुप के सदस्य भी हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि ‘यह संभव है’ कि एक संपूर्ण विरिअन वैक्सीन होने की वजह से कोवैक्सीन इस नए वैरिएंट के खिलाफ बेहतर ढंग से असरदार हो. उन्होंने कहा, ‘हमें ओमीक्रॉन के पूरे लक्षणों का पता लगने का इंतजार करना चाहिए और यह बात लैब में सुनिश्चित होने की भी जरूरत है.’


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वैरिएंट को ध्यान में रखकर ही कोवैक्सीन को मिली थी मंजूरी

इस साल जनवरी में जब भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को पहली बार ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) की तरफ से अनुमोदित किया गया था, इसका प्रभावकारिता संबंधी डेटा उपलब्ध नहीं था. हालांकि, इस बात ने इसको मंजूरी देने के फैसले में अहम भूमिका निभाई थी कि पूरी तौर पर विरिअन वैक्सीन होने की वजह से यह बदलते वैरिएंट के खिलाफ बेहतर काम करेगी.

आईसीएमआर के डीजी डॉ. बलराम भार्गव ने उस समय कहा था, ‘हम जानते हैं कि वायरस में म्यूटेशन हुए हैं जिसमें स्पाइक प्रोटीन भी शामिल है. फाइजर ने कहा है कि वैक्सीन में बदलाव के लिए उन्हें छह हफ्ते का समय लगेगा. लेकिन चूंकि कोवैक्सीन मूल रूप से एक पूरा मृत वायरस हैं, इसलिए इसके म्यूटेंट स्ट्रेन के खिलाफ भी काम करने की अधिक संभावना है. सीधे शब्दों में कहें तो अगर किसी टीके में 1,000 प्वाइंट हैं, जिनमें से दो म्यूटेट हो गए हैं तो भी इसमें (वैक्सीन में) किसी प्रतिक्रिया के लिए 998 प्वाइंट बचे हैं, एमआरएनए टीके की तरह नहीं जो खास क्षेत्र को लक्षित करने की क्षमता रखता है और जब उसमें म्यूटेशन हो जाता है तो वे बेअसर साबित होते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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