जालंधर: जालंधर जिले में बाम्बियांवाल के जगदीश सिंह, हर साल छह एकड़ के अपने फार्म पर पानी का इस्तेमाल कम कर रहे हैं. वो बड़ी लगन से हिसाब लगाकर रखते हैं कि उनके खेतों को वास्तव में कितने पानी की जरूरत है. वो कहते हैं कि पहले के मुकाबले, 2018 के बाद से वो काफी कम पानी इस्तेमाल कर रहे हैं.
जगदीश का कहना है कि उनके तरीके में ये बदलाव तब आया, जब वो पंजाब सरकार की 2018 की स्कीम ‘पानी बचाओ-पैसे कमाओ ’ में शामिल हुए. स्कीम का उद्देश्य ये है कि किसानों को कम बिजली और उसके नतीजे में कम पानी के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित किया जाए, जिसके लिए उन्हें बचाई गई बिजली पर 4 रुपए प्रति यूनिट की दर से भुगतान किया जाता है.
ये स्कीम बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि पंजाब में भूमिगत जल का स्तर 47 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की खतरनाक दर से गिर रहा है. राज्य में भूजल का इस्तेमाल रिचार्ज रेट का 165 प्रतिशत है- वो दर जिससे पानी रिसकर नीचे जाता है- इसलिए स्कीम का उद्देश्य पानी का विवेकपूर्ण उपयोग और फसलों के विविधीकरण को बढ़ावा देना है.
स्कीम की क्रियान्वयन एजेंसी पंजाब स्टेट पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (पीएसपीसीएल) के एक सूत्र ने बताया, ‘हमारे पास कृषि के लिए अलग फीडर हैं जिनकी हम निगरानी करते हैं. पहले बिजली की बहुत बर्बादी होती थी, क्योंकि किसान अपने मोटर चलते हुए छोड़ देते थे, इसलिए इस स्कीम के जरिए हम उन्हें बिजली और उसके नतीजे में पानी बचाने का प्रोत्साहन दे रहे हैं’. इस स्कीम के तहत पंजीकृत किसानों को दिन के दौरान दो घंटे की अतिरिक्त बिजली सप्लाई भी दी जाती है.
लेकिन 12 जिलों में कुल बिजली उपभोक्ताओं में से केवल 4.69 प्रतिशत ने स्कीम में पंजीकरण कराया हुआ है- कुल मिलाकर, 200 गांवों में से 2,430 उपभोक्ता- जहां ये स्कीम शुरू की गई है. जगदीश जैसे किसानों की ये भी शिकायत है कि पिछले एक साल में उन्हें वादा किए गए फायदे हासिल नहीं हुए हैं. स्कीम के बारे में किसानों के बीच जानकारी भी अधूरी है.
पीएसपीसीएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक वेणु प्रसाद ने दिप्रिंट को बताया कि सब्सिडी का कुछ भुगतान बकाया है. उन्होंने कहा, ‘लेकिन हम उसका भुगतान करने की प्रक्रिया में हैं’. उन्होंने आगे कहा कि पंजीकरण की प्रक्रिया किसान आंदोलन नहीं, बल्कि कोविड महामारी के चलते बाधित हुई है.
प्रसाद ने कहा, ‘ये स्कीम स्वैच्छिक है, इसलिए पंजीकरण में किसान आंदोलन के कारण समस्या नहीं आई है. ये सिर्फ कोविड के कारण है कि हमारे जमीनी कार्यकर्ता किसानों तक नहीं पहुंच पाए हैं’.
जमीनी स्तर पर फसलों का विविधीकरण न होने के बारे में पूछे जाने पर अध्यक्ष ने कहा कि पीएसपीसीएल का उद्देश्य किसानों को चावल और गेहूं की खेती से हटने के लिए प्रोत्साहित करना है.
उन्होंने आगे कहा, ‘जब हम किसानों को उनकी फसलों के विविधाकरण के लिए राजी नहीं कर पाते, तो फिर हम उन्हें बताते हैं कि मौजूदा फसलें, कम पानी का इस्तेमाल करके कैसे उगाई जा सकती हैं. इस काम के लिए कृषि विभाग गांवों में बैठकें करता है’.
बिजली विभाग खुद मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के पास है, जिसके अंतर्गत ये स्कीम चलाई जा रही है. उनकी टिप्पणी लेने के लिए शनिवार को एक अधिकारी के जरिए सीएमओ को भेजे गए एक ई-मेल का कोई जवाब नहीं आया.
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स्कीम कैसे काम करती है
‘पानी बचाओ, पैसे कमाओ ’ स्कीम में हर ग्राहक के ट्यूबवेल पर अलग से एक मीटर लगाया जाता है और ट्यूबवेल की क्षमता के हिसाब से उपभोग की जाने वाली यूनिट्स की संख्या तय कर दी जाती है.
रबी और खरीफ सीजन के लिए अलग-अलग यूनिट्स तय की जाती हैं. जब किसान अपने तय कोटा से बिजली बचाता है, तो सब्सिडी के तौर पर उसे 4 रुपए प्रति यूनिट दिए जाते हैं. इस तरह, अगर किसी किसान का कोटा 100 यूनिट निर्धारित है और वो केवल 90 यूनिट इस्तेमाल करता है, तो बचाई गईं 10 यूनिट्स पर उसे 40 रुपए का फायदा होता है. सब्सिडी का ये पैसा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिए सीधे ग्राहक के बैंक खाते में पहुंच जाता है.
लेकिन ये लाभ उतना नहीं है जो किसानों को गेहूं और धान की खेती से विमुख कर सके, जिन्हें पानी बहुत चाहिए होता है. मसलन, जगदीश को अपने पानी के इस्तेमाल का ध्यान तो रहता है लेकिन उन्होंने धान को छोड़कर कोई और फसल उगानी शुरू नहीं की है.
उन्होंने कहा, ‘अगर मैं कोई दूसरी फसल बोता हूं, तो उसके अच्छे दाम नहीं मिलेंगे. एमएसपी सिर्फ गेहूं और चावल पर मिलता है, तो फिर मैं कोई दूसरी फसल क्यों उगाउंगा? इसके अलावा दूसरी फसलों के भाव भी बहुत ऊपर-नीचे होते हैं. कौन जानें, अगर इस सीजन में आलू की सप्लाई ज्यादा हो जाती है, तो मुझे उसके लिए सिर्फ 10 रुपए प्रति किलो ही मिल पाएगा’.
किसानों ने दिप्रिंट को ये भी बताया कि हर महीने करीब 2,000-5,000 हज़ार रुपए तक का फायदा हो जाता है, जो उनकी बचाई हुई यूनिट्स की संख्या पर निर्भर करता है. लेकिन, पिछले छह महीने से एक साल के बीच ये लाभ उनके पास नहीं पहुंचा है.
कूकड़ गांव के एक किसान तरनजीत सिंह ने कहा, ‘मुझे पिछले छह महीने में कोई पैसा नहीं मिला है. उन्होंने जो मीटर लगाया था वो खराब हो गया है और शिकायत करने के बाद भी कोई उसे देखने नहीं आया है’.
जगदीश के विपरीत, तरनजीत ने कहा कि वो पानी बचाने को लेकर उतने जागरूक नहीं रहे हैं. उन्होंने कहा कि ज्यादा सब्सिडी देने से काम नहीं चलेगा, बल्कि किसानों को बिजली की बिलिंग करने से चल सकता है. उन्होंने कहा, ‘हमें अपने मोटर चलाने के लिए चार्ज कीजिए. जब किसानों के पास मोटे बिल पहुंचने शुरू होंगे, तो वो अपने आप ही बिजली का इस्तेमाल विवेकपूर्ण ढंग से करने लगेंगे. जब तक हमें केवल गेहूं और धान की फसलों पर गारंटी की एमएसपी मिलती रहेगी, तब तक कोई उन्हें बोना बंद नहीं करेगा’.
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कम पंजीकरण, जागरूकता की कमी
स्कीम के तहत 4.69 प्रतिशत की नीची पंजीकरण दर के कारण हैं, पानी बचाने की चिंता न होना, जागरूकता की कमी, और कम सब्सीडी.
एक पीएसपीसीएल अधिकारी ने कहा कि कोविड महामारी और किसान आंदोलन की वजह से, पानी बचाओ पैसा कमाओ स्कीम की प्रगति रुक गई है, क्योंकि इस दौरान बहुत कम संख्या में जमीनी वर्कर्स, किसानों के साथ बैठकर बातचीत कर पाए हैं. पीएसपीसीएल के वर्कर्स हड़ताल पर भी रहे हैं, जो जून में शुरू हुई थी और अब अपने दूसरे चरण में है.
रघुवीर सिंह जो बाम्बियांवाल गांव में पट्टे की जमीन पर खेती करते हैं, कहते हैं कि वो अभी तक स्कीम के साथ नहीं जुड़े हैं, क्योंकि इससे उन्हें कोई फायदा नहीं पहुंचेगा. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने ऐसे जमीदारों से 12 एकड़ जमीन पट्टे पर ली है, जो अब गांवों में नहीं रहते. चूंकि मुझे जमीन के एक बड़े टुकड़े की देखभाल करनी होती है, इसलिए इस स्कीम में शामिल होने का कोई मतलब नहीं बनता, क्योंकि मैं बिजली नहीं बचा पाता’. वो पूछते हैं, ‘1,500 से 2,000 रुपए अपने खाते में लाने के लिए मैं इतनी सरदर्दी क्यों मोल लूंगा?’
संगरूर और पटियाला जिलों में दिप्रिंट ने पाया कि स्कीम के बारे में लोगों में जानकारी की भी कमी है. पटियाला के दौन कलां और शंकरपुर गावों और संगरूर के उब्बावल गांव में सरपंचों तक को इसकी मौजूदगी के बारे में कुछ पता नहीं था.
उब्बावल के सरपंच बलदेव सिंह ने कहा, ‘बिजली बोर्ड से किसी ने यहां आकर, हमें ऐसी किसी स्कीम के बारे में नहीं बताया है, जो अच्छी मालूम पड़ती है जिससे किसानों को फायदा पहुंचेगा. अगर हमें इसके बारे में पता होता, तो हम इसमें जरूर शामिल हुए होते’.
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स्कीम की प्रगति
ये स्कीम 2018 में एक पायलट परियोजना के तौर पर पंजाब में दोआबा और मालवा क्षेत्र के जालंधर, होशियारपुर और फतेहगढ़ साहब में शुरू की गई थी.
ऊपर हवाला दिए गए पीएसपीसीएल सूत्र के जरिए, दिप्रिंट द्वारा देखे गए डेटा के अनुसार, स्कीम में पंजाब के तीन क्षेत्रों के 12 जिलों के ग्राहक पंजीकृत हैं. इस डेटा के अनुसार, इन जिलों में पीएसपीसीएल के कुल उपभोक्ताओं में से केवल 4.69 प्रतिशत ही स्कीम में पंजीकृत हैं.
ये स्कीम छह पावर फीडर्स (पावर लाइनें जिनके जरिए बिजली को वितरण बिंदुओं तक भेजा जाता है) पर शुरू हुई थी, लेकिन अब ये राज्य के 5,900 ग्रामीण पावर फीडर्स में से 259 पर उपलब्ध है. सूत्र ने आगे कहा, ‘हमारे पास सूबे के हर गांव के लिए लगभग एक कृषि फीडर पंप मौजूद है, जिसका मतलब है कि स्कीम में करीब 200 गांवों को कवर किया गया है’.
अक्टूबर 2021 तक, कुल 2,430 उपभोक्ता स्कीम का हिस्सा बन चुके हैं. सितंबर 2020 में कुल ग्राहकों की संख्या 2,091 थी, जिसका अर्थ है कि इस साल केवल 339 किसान इस स्कीम में शामिल हुए हैं.
फरवरी और जून 2021 के बीच की अवधि में किए गए भुगतान का कोई डेटा उपलब्ध नहीं था, जिसके लिए किसानों ने दावा किया था कि उन्हें इस साल कोई भुगतान नहीं हुए हैं.
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बिजली की भारी बचत
स्कीम का एक सकारात्मक पहलू ये है कि बिजली की बचत काफी बढ़ गई है. जून 2018 से फरवरी 2019 के बीच, किसानों को 8.65 लाख रुपए की सब्सिडी मिली और 2.16 लाख यूनिट बिजली की बचत हुई. फरवरी 2019 से फरवरी 2020 के बीच सब्सिडी के रूप में किसानों को 43 लाख रुपए मिले, 10.98 लाख यूनिट बिजली की बचत हुई. 2020-21 में इसी अवधि में 1.9 करोड़ रुपए सब्सिडी में दिए गए, जबकि 49 लाख यूनिट बिजली बचाई गई. इस साल फरवरी और जून के बीच (जिसके लिए आंकड़े उपलब्ध हैं), कुल देय सब्सिडी 20 लाख रुपए थी, जबकि 5 लाख यूनिट बिजली बचाई गई.
20 जून 2018 के बाद से कुल देय सब्सिडी की रकम करीब 2 करोड़ 74 लाख रुपए है लेकिन उपभोक्ताओं के खातों में कुल 2 करोड़ 32 लाख रुपए ही ट्रांसफर किए गए. 42 लाख रुपए की सब्सिडी राशि अभी अदा की जानी है.
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