नाम-कृष्ण, उम्र-55 साल, पेशा-बिजनेसमैन,
नाम-अमोग, उम्र-30 साल, पेशा- एक्सपोर्ट इंपोर्ट में मार्केटिंग का काम देखना
नाम- विनीत शर्मा- उम्र-35 साल, पेशा- नोएडा की एक कपड़ा फैक्ट्री में क्वालिटी देखते थे.
नाम- क्षितिज, उम्र-36 साल, पेशा-चार्टर्ड एकाउंटेंट
नाम- महेंद्र शर्मा, उम्र-38 साल, मैकडोनल्ड्स में मैनेजर…
ये कुछ नाम है जो कोरोना के शिकार हुए हैं. या तो इन लोगों की कोविड की वजह से नौकरी चली गई, बिजनेस ठप हो गया या फिर सैलरी बहुत ज्यादा कट हो गई और परिवार चलाना मुश्किल हो गया. लेकिन इन लोगों ने हार नहीं मानीं इनके पास जो भी ट्रेवल का साधन था उसे उन्होंने अपनी जीविका का साधन बना लिया.
यहां बात हो रही है ऊबर, ओला और रैपिडो कैब की. कोरोना से बढ़ी बेरोजगारी के दौरान इन एप्स ने बड़ी शहरी आबादी को रोजगार दिया है.
इस कोरोना में कोई ऐसा वर्ग नहीं था जो इससे प्रभावित न हुआ हो..
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घर बैठना हो रहा था मुश्किल
कृष्ण, गांधी नगर में पिछले 18 साल से जींस पैंट का बिजनेस कर रहे थे. वह कहते हैं कि ‘2020 के लॉकडाउन में तो हमारे पास सेविंग्स थी लेकिन 2021 में जब लॉकडाउन लगा तो हमारे हालात खराब होते चले गए..’
‘क्योंकि 20 के लॉकडाउन में हम अपने वर्करों को उनकी सैलरी देते रहे. हमारा सामान जिनके पास गया था उन्होंने पैसे नहीं भेजे.’
45 मिनट के सफर के दौरान उन्होंने कोविड काल के कई वाक्ये भी शेयर किए. उन्होंने कहा, ‘कोविड काल में हमें खाने पीने की कमी नहीं थी लेकिन अब घर पर बैठना मुश्किल हो रहा था.’
कृष्ण के दो बच्चे हैं बेटी मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं और बेटा जर्मन लैंग्वेज की पढ़ाई कर रहा है.
लेकिन इससे इतर गाजियाबाद के जनकपुरी इलाके में रहने वाले विनीत शर्मा के हालात कोविड में नौकरी जाने से बिगड़ते ही चले गए. विनीत शर्मा के दो बच्चे हैं. नौकरी जाने से उनके खाने-पीने को लेकर भी मुश्किलें आने लगीं तो उन्होंने खुद को ओला और ऊबर कैब से जोड़ा और वो दिन के 700-800 रुपये कमाने लगे. विनीत ओला-ऊबर की गाड़ियां चलाने से पहले नोएडा सेक्टर -3 के एक्सपोर्ट हाउस में काम करते थे.
महेंद्र शर्मा गाजियाबाद के इंदिरापुरम के मेकडोनल्ड्स में मैनेजर थे. कोविड के कारण उनके आस-पास के काम करने वाले कई साथियों की नौकरियां चली गईं. फूड चेन के कई ब्रांच भी बंद हो गए.
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पेट्रोल के बढ़ते दाम ने ला दिया भूचाल
महेंद्र, एक यात्रा के दौरान बताते हैं कि आस-पास साथियों की नौकरी जा रही थी. ‘हमारी सैलरी भी कट हो रही थी. घर का खर्च और बीमारियों ने हमें तोड़ के रख दिया था. 10 घंटे रेस्टोरेंट में काम करने के बाद मैं दो-तीन घंटे बाइक चलाकर घर के अपने खर्च को पूरा कर रहा हूं.’
ऐसा नहीं है कि सिर्फ ये मार सिर्फ नौकरीपेशा या छोटे-मोटे बिजनेस मैन को मिली है. पिछले दिनों बैंकों में पैसा जमा करने वाली कंपनी एसआईएस के विक्रमजीत वर्मा अपनी आपबीती सुनाते हुए दिप्रिंट को बताया, ‘अभी कोरोना से ठीक से उबर भी नहीं पाए थे कि ये 105 रुपये लीटर के पेट्रोल ने हमारी जिंदगी में भूचाल ला दिया है.’
विक्रम समय मिलते ही और घर आते जाते ओला ऊबर कैब का सहारा लेते हैं और अपनी कमाई को पूरा करने की कोशिश करते हैं.
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‘जब चाहूं तब ले सकता हूं छुट्टी, डांट भी नहीं सुननी पड़ती’
लक्ष्मीनगर में काम करने वाले अभिषेक यादव ने बताया कि वो मार्केटिंग का काम करते थे. लेकिन जब से उन्होंने ओला, ऊबर और पोर्टर की बाईक चलानी शुरू की है ..नौकरी के बारे में सोचना ही बंद कर दिया है.
यादव ने बताया,’ 25000 रुपये सैलरी मिलती थी.. 12 घंटे की ड्यूटी में बॉस की गाली, सैलरी कट और अपने ही पैसे पर यहां से वहां दौड़ना पड़ता था…लेकिन अब मैं खुश हूं..दिन के 1000 से 1500 रुपये तक कमाता हूं. जब मन करता है छुट्टियां लेता हूं..कोई डांटने वाला नहीं..समय पर पहुंचने की जल्दी भी नहीं.’
बढ़ती बेरोजगारी को देखते हुए भारत सरकार ने माना है कि जून 2021 में कोविड की दूसरी लहर के बाद शहरी इलाकों में बेरोजगारी बढ़ी थी. इससे 2020 में जो रोजगार की स्थिति सुधर रही थी वो फिर से बिगड़ गई है.
क्या कहती है एसोचैम और CMIE रिपोर्ट
ऐसी स्थिति में जब कुछ ही पसंदीदा नौकरियां बची हैं और अस्थाई व गैर-संगठित क्षेत्र की नौकरियों में ही बढ़ोत्तरी हो रही है. एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एसोचैम) के मुताबिक सालाना 17 फीसदी की सीएजीआर (कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट) ग्रोथ के साथ ऐसी नौकरियां साल 2023 तक बढ़कर 455 बिलियन डॉलर पहुंच जाएंगी.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) ने साल की शुरुआत में जारी रिपोर्ट में कहा था कि भारत में दिसंबर 2021 तक भारत में बेरोजगार लोगों की संख्या 5.3 करोड़ थी. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक महामारी से पहले वैश्विक स्तर पर रोजगार मिलने की दर 58% थी, लेकिन कोविड के बाद 2020 में दुनिया भर में 55% लोगों को रोजगार मिल पा रहा था. दूसरी ओर भारत में सिर्फ 43 फीसदी लोग ही रोजगार पाने में सफल हो रहे थे. सीएमआईई के हिसाब से भारत में रोजगार मिलने की दर और कम है. CMIE का मानना है कि भारत में सिर्फ 38 फीसदी लोगों को ही रोजगार मिल पा रहा है.
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