नयी दिल्ली, 23 नवंबर (भाषा) भ्रष्टाचार-रोधी लोकपाल के कामकाज संबंधी कानून में ‘‘विवेकाधिकार की किसी भी गुंजाइश को रोकने’’ और इसके उचित प्रवर्तन को सुनिश्चित करने के लिए संशोधन की आवश्यकता है। सूत्रों ने रविवार को यह जानकारी दी।
सूत्रों ने कहा कि सरकार के कुछ वर्गों में यह ‘‘प्रबल भावना’’ है कि एक दशक पहले बनाए गए कानून के कुछ प्रावधानों पर अब पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 को एक जनवरी, 2014 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद लागू किया गया। हालांकि, इसने अपने अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के बाद 27 मार्च, 2019 को कार्य करना शुरू किया।
लोकपाल की अगुवाई एक अध्यक्ष करता है, जो वर्तमान में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय माणिकराव खानविलकर हैं, और इसमें आठ सदस्य हो सकते हैं, जिनमें चार न्यायिक और चार गैर-न्यायिक सदस्य होते हैं।
एक सूत्र ने कहा, ‘‘सरकार के कुछ वर्गों में यह प्रबल भावना है कि अब लोकपाल अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए, ताकि विवेकाधिकार की किसी भी गुंजाइश को रोका जा सके और इसका उचित प्रवर्तन सुनिश्चित किया जा सके।’’
एक उदाहरण देते हुए, सूत्र ने बताया कि वर्तमान अध्यक्ष ने मामलों की सुनवाई करते समय सभी सदस्यों वाली और स्वयं की अध्यक्षता वाली एकल पीठ के माध्यम से काम करने का विकल्प चुना है।
सूत्रों ने बताया कि कानून में भ्रष्टाचार की शिकायतों पर निर्णय लेने के लिए दो या अधिक न्यायिक और गैर-न्यायिक सदस्यों वाली विभिन्न पीठों के काम करने की अनुमति देने का प्रावधान है।
एक अन्य सूत्र ने बताया कि लोकपाल के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) पिनाकी चंद्र घोष ने भ्रष्टाचार की शिकायतों पर फैसला लेने के लिए पीठों का गठन किया था।
सूत्र ने कहा, ‘‘जबकि, वर्तमान लोकपाल अध्यक्ष ने पीठों का गठन करने से परहेज किया है, जिससे भ्रष्टाचार की शिकायतों का शीघ्र निपटारा प्रभावित हुआ है।’’
सूत्रों ने लोकपाल अधिनियम की धारा 20 के प्रावधानों के विवेकाधिकार उपयोग का भी हवाला दिया, जो ‘‘प्रारंभिक जांच और अनुसंधान से संबंधित प्रक्रिया’’ से संबंधित है।
सूत्रों ने कहा कि कानून लोकपाल को शिकायत प्राप्त होने के तुरंत बाद आरोपी की जांच करने की अनुमति देता है।
हालांकि, सूत्रों ने बताया कि देश की प्रमुख एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) प्रारंभिक पड़ताल के चरण में किसी व्यक्ति की जांच नहीं करते हैं।
सूत्रों ने कहा कि ये एजेंसियां आमतौर पर पहले अपनी विवेकपूर्ण जांच करती हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी मामले की विस्तृत जांच के लिए प्रथम दृष्टया पर्याप्त आधार मौजूद हैं।
सूत्रों ने बताया कि लोकपाल द्वारा इसका पालन नहीं किया जा रहा है, जिससे व्यक्तियों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचने का खतरा है।
भाषा शफीक सुरेश
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