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Friday, 22 November, 2024
होमदेशबंद दरवाजे, जगह-जगह जमी काई और झाड़ियां: कैसे कोविड ने महाराष्ट्र के पहले औद्योगिक क्षेत्र को प्रभावित किया

बंद दरवाजे, जगह-जगह जमी काई और झाड़ियां: कैसे कोविड ने महाराष्ट्र के पहले औद्योगिक क्षेत्र को प्रभावित किया

ठाणे स्थित वागले एस्टेट महाराष्ट्र का पहला ऐसा औद्योगिक क्षेत्र था जिसे एमआईडीसी ने 1961 में सबसे पहले विकसित करने के लिए चुना था. महामारी ने यहां तमाम औद्योगिक इकाइयों को बंदी के लिए विवश कर दिया है.

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ठाणे: ठाणे के वागले एस्टेट- जो इंजीनियरिंग कंपनियों के वर्चस्व वाला एक औद्योगिक क्षेत्र और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) का हब है- स्थित एक अस्थायी कैबिन से एक चौकीदार बाहर निकलता है और दो कप कटिंग चाय लेकर लौटता है.

यहां पर वह और उसका एक अन्य साथी ही मौजूद है. बाईं ओर नीले औद्योगिक ड्रम का ढेर लगा है और परिसर में अन्य जगहों पर जहां-तहां झाड़ियां उगी हुई हैं.

सुनसान पड़ी इस बड़ी औद्योगिक इकाई में कुछ समय पहले तक ऑटोमोबाइल क्षेत्र और सहायक उद्योगों से जुड़े विभिन्न उत्पादों का निर्माण होता था.

चौकीदार कहता है, ‘यहां अब कोई नहीं है.’ अगस्त में यह यूनिट बंद हो गई और मालिकों ने सब कुछ दूसरी फैक्ट्री में ट्रांसफर कर दिया.

परिसर में चौकीदार के अलावा मौजूद एकमात्र कंपनी कर्मचारी ने दिप्रिंट को बताया कि ‘वित्तीय मुद्दों’ के कारण कंपनी ने अपनी ठाणे इकाई को बंद कर दिया था और सब कुछ यहां से पुणे जिले के अलंदी स्थित अपने एक अन्य विनिर्माण स्थल पर ट्रांसफर कर दिया.

वागले एस्टेट में हर तरफ नजारा कुछ ऐसा ही नजर आता है जहां जगह-जगह औद्योगिक परिसर खाली पड़े हैं, गेट बाहर से बंद हैं और जर्जर दीवारों पर काई जमी हुई है.

ठाणे का वागले एस्टेट पहला ऐसा औद्योगिक क्षेत्र था जिसे महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (एमआईडीसी) ने 1961 में विकसित करने के लिए लिया था, इसका प्रमुख कारण यह था कि ये मुंबई शहर की सीमा से सटा हुआ है. इसी तरह के इंडस्ट्रियल एस्टेट अगले कुछ सालों में भिवंडी, डोंबिवली, बदलापुर और नवी मुंबई जैसे आसपास के स्थानों में विकसित किए गए.

वागले एस्टेट में अधिकांश कंपनियां इंजीनियरिंग यूनिट हैं लेकिन यहां और इसके आसपास के क्षेत्रों में केमिकल इंजीनियरिंग, खाद्य उत्पाद, उपभोक्ता वस्तुओं, कागज और प्लास्टिक आदि से जुड़ी औद्योगिक इकाइयां भी हैं.

कंपनी प्रतिनिधियों ने दिप्रिंट को बताया कि पिछले दो सालों में कच्चे माल, खासकर स्टील की कीमतों में वृद्धि, मांग में जबर्दस्त गिरावट और इसके कारण ऑर्डर में गिरावट ने कभी काफी समृद्ध रहे इस इंडस्ट्रियल एस्टेट को बहुत नुकसान पहुंचाया है.

फार्मास्युटिकल क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां तो काफी फल-फूल रही हैं लेकिन प्रोजेक्ट इंजीनियरिंग और उपभोक्ता वस्तुओं से जुड़ी कंपनियों की हालत खराब हो चुकी है.


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‘सबसे बड़ा ग्राहक गंवाया, स्टील की कीमतों ने मुनाफा घटाया’

आसपास वीरान पड़ी तमाम इकाइयों के विपरीत यहां स्थित एस्जय इंडस्ट्रीज की एकमात्र निर्माण इकाई में कामकाज चालू है, जो धातु निर्माण से जुड़ी इकाई है.

कंपनी के प्रबंधक प्रमोद कुलकर्णी ने दिप्रिंट को बताया, ‘लॉकडाउन का कर्मचारियों के साथ-साथ नियोक्ताओं पर भी खासा प्रतिकूल असर पड़ा है. हमारी इकाई फैब्रिकेशन से जुड़ी है. हमारा कच्चा माल स्टील और अन्य धातु हैं. इसकी कीमतें बढ़ गई हैं लेकिन हम ग्राहकों के लिए दरें एक सीमा से ज्यादा नहीं बढ़ा सकते हैं. नतीजतन, हमारे मुनाफे का अंतर घट गया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘ऑर्डर में कम से कम 30 प्रतिशत की कमी आई है. हमारा एक बहुत बड़ा ग्राहक था और हमारे ऑर्डर का एक बड़ा हिस्सा उसका ही होता था. लेकिन महामारी के दौरान उसके ऑर्डर बंद हो गए. यह बहुत मुश्किल समय रहा है. हमारी तरफ से कर्मचारियों की संख्या घटाना भी स्वाभाविक ही था. हम एक प्वाइंट के बाद ज्यादा कुछ नहीं कर सकते.’

स्टील रिसर्च एंड एनालिसिस फर्म स्टीलमिंट के आंकड़ों के मुताबिक, हॉट रोल्ड कॉइल्स की कीमत जून 2020 और जून 2021 के बीच 33,100 रुपये प्रति टन बढ़ी थी, जबकि इसी अवधि में कोल्ड रोल्ड कॉइल्स की कीमत में 44,600 रुपये प्रति टन की वृद्धि हुई. यह ट्रेंड अंतरराष्ट्रीय बाजार के अनुसार रहा है, जिसने उपलब्धता में गिरावट के कारण स्टील की कीमतों में तेजी देखी है.

ठाणे स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (टीएसएसआईए) के कमेटी मेंबर और चैंबर ऑफ स्मॉल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (सीओएसआईए) के महासचिव निनाद जयवंत ने दिप्रिंट को बताया, ‘केंद्र ने बढ़े जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) राजस्व का हवाला देते हुए दावा किया है कि महामारी के कारण उद्योग बहुत बुरी तरह प्रभावित नहीं हुए हैं लेकिन सच्चाई यह है कि जीएसटी संग्रह कच्चे माल की ऊंची कीमतों के कारण बढ़ा है. इसका कोई अन्य कारण नहीं है.’

जयवंत ने बताया कि सूक्ष्म उद्योग, जो ऑर्डर के लिए छोटी या मध्यम आकार की इंजीनियरिंग कंपनियों पर निर्भर हैं, सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि इस बारे में कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं है कि इन एस्टेट में विभिन्न श्रेणियों वाली कुल कितनी इकाइयां हैं और वे किस हद तक प्रभावित हुई हैं.

अपने परिवार के साथ ठाणे में रहने वाला सिराजुद्दीन खान वागले एस्टेट में ऐसी ही एक छोटी पाइप कटिंग यूनिट में काम करता है. 2016 से ही सिराजुद्दीन खान इस यूनिट का एकमात्र कर्मचारी हैं. खान ने बताया कि उसके मालिक ने 2020 में पहले लॉकडाउन के दौरान दो महीने उनका भुगतान नहीं किया और मुंबई छोड़कर अपने गृहनगर चले गए थे.

खान ने बताया, ‘जून 2020 में उन्होंने मुझसे कहा था कि वह फिलहाल वापस नहीं लौटने वाले हैं. लेकिन मैं दुकान खोल सकता हूं. उस समय कोविड नियमों के कारण हमें इसे खोलने की अनुमति नहीं थी, लेकिन फिर भी मैं दुकान खोलता था. जब भी पुलिस आती तो मैं शटर गिराकर भाग जाता. किसी तरह हम काम करते रहे. घर की चटनी रोटी चालू थी.’

आखिरकार मालिक मुंबई लौट आए और अब सिराजुद्दीन खान के पूरे वेतन का भुगतान कर रहे हैं.

खान ने बताया कि जब उन्होंने इस यूनिट के साथ काम करना शुरू किया तो बहुत व्यस्त रहते थे. ‘मुझे काम से फुरसत ही नहीं मिलती थी. लेकिन जबसे लॉकडाउन हुआ, काम ठंडा हो गया है.’

उन्होंने कहा, ‘मैं ज्यादातर दिनभर खाली बैठा रहता हूं. सेठ हमेशा तनाव में रहते हैं. हमारा बकाया भुगतान कई जगहों पर अटका है. कच्चे माल की लागत इतनी बढ़ गई है कि कोई ग्राहक आता भी है तो कीमत आदि पूछकर चला जाता है. केवल वही लोग हमारा उत्पाद खरीद रहे हैं जिन्हें बहुत जरूरी काम होता है.’


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सरकारी सहायता की कई योजनाएं, लेकिन कर्ज मिलना मुश्किल

डिहाइड्रेटेड खाद्य उत्पादों का निर्माण करने वाली कंपनी डिवाइन क्लिक प्राइवेट लिमिटेड की संस्थापक माया वैनगंकर को महामारी की मार से दो साल पहले ही निजी कारणों से अपना कारोबार बंद करना पड़ा था.

मई 2021 में यह स्पष्ट होने के बाद कि दूसरी लहर खत्म हो रही है, वैनगंकर ने अपना कारोबार फिर से जमाने की कोशिश की, जिसे उन्होंने पहली बार 2017 में भिवंडी में लॉन्च किया था लेकिन बाजार महामारी के पहले के दिनों से काफी अलग था.

उनके मुख्य ग्राहक, जो वैनगंकर के व्यवसाय का एक बड़ा खरीददार है, को महामारी के दौरान बड़े झटके का सामना करना पड़ा है.

वैनगंकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं जिस ग्राहक के लिए मैन्यूफैक्चरिंग कराती हूं, उस ग्राहक का अपना उत्पाद भी काफी प्रभावित हुआ है. उसकी यूनिट बंद भी हो गई थी. इस साल मई में जब उसने उस उत्पाद को फिर से बाजार में लाने की कोशिश की, तो उसकी उतनी मांग ही नहीं रह गई थी. उसका कारोबार महामारी से पहले के दिनों की तुलना में 20 प्रतिशत तक घट गया है और इसने मेरे व्यवसाय को भी खासा नुकसान पहुंचाया है.’

उन्होंने कहा कि कच्चे माल की लागत में वृद्धि और श्रम लागत बढ़ जाने की वजह से उनके लिए अपने पैर फिर से जमाना काफी मुश्किल हो रहा है.

वैनगंकर ने केंद्र सरकार की मुद्रा योजना के तहत कर्ज के लिए एक राष्ट्रीयकृत बैंक का रुख किया, जिसमें गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि लघु और सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख रुपये तक का ऋण मिलता है.

वैनगंकर ने बताया, ‘मैंने पहले भी मुद्रा योजना के तहत ऋण लिया था और 2019 में अपनी इकाई बंद करने से पहले बकाया चुकाकर खाता बंद कर दिया था. लेकिन, मेरे लिए काफी हैरत की बात यह थी कि इस बार मुझे यह कहते हुए कर्ज देने से मना कर दिया गया कि मेरी इकाई दो सालों से बंद थी. जबकि उन्हें इन दो सालों पर ध्यान नहीं देना चाहिए था जब मैंने अपना सारा हिसाब-किताब क्लियर कर दिया था.’

टीएसएसआईए के जयवंत ने कहा कि सरकारी योजनाओं ने ‘कुछ हद तक मदद की है.’ लेकिन ज्यादातर जमीन स्तर पर खरी नहीं उतरती और कई बैंक छोटे और सूक्ष्म उद्यमों के लिए कर्ज को मंजूरी देने से हिचकिचाते हैं.

उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा बहुत सारे सूक्ष्म उद्योग अपनी बैंकिंग के लिए सहकारी बैंकों पर निर्भर हैं और ये केंद्रीय योजनाओं के दायरे में आते नहीं हैं. केंद्र का मानना है कि सहकारी बैंक या तो बैंकिंग के तौर-तरीके नहीं जानते हैं या फिर राजनेताओं द्वारा नियंत्रित होते हैं.’

जयवंत का फैशन लेदर गुड्स का अपना व्यवसाय कंगारू लेदर प्राइवेट लिमिटेड भी इस महामारी के कारण ठप हो गया.

जयवंत ने बताया, ‘मेरी दो इकाइयां थीं— एक नवी मुंबई में और एक भिवंडी में. नवी मुंबई वाली यूनिट किराये की जगह पर लगी थी. मैंने इसे एक साल तक चलाने की हरसंभव कोशिश की. अपने कर्मचारियों को उनका आधा वेतन दिया लेकिन आखिरकार हालात मेरे नियंत्रण से बाहर हो गए और मुझे इस साल अगस्त में इसे बंद करना पड़ा.’

उन्होंने कहा कि यह एक चेन रिएक्शन था. वह अपने उत्पादों की आपूर्ति कई बड़े ब्रांड को करते थे, जिनके व्यवसाय को नुकसान हुआ तो नतीजतन उनके व्यापार को भी नुकसान पहुंचा और उनके व्यवसाय पर निर्भर धारावी और गोवंडी की कई छोटी चमड़ा प्रोसेस करने वाली कंपनियों का काम भी इससे प्रभावित हुआ.

उन्होंने सवाल उठाया, ‘आपने लेडीज पर्स खरीदे होंगे. लेकिन पिछले डेढ़ सालों में क्या आपने कुछ खरीदा है? महामारी के कारण उपभोक्ताओं की भावनाएं प्रभावित होने से भी कई समस्याएं उपजी हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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