नई दिल्ली: गुजरात-राजस्थान सीमा पर बसे 70 परिवार वाले रतनपुर गांव के लिए लॉकडाउन शांति की सौगात लेकर आया है. सामान्य तौर पर ये गांव गुजरात से शराब की खोज में आने वाले लोगों का केंद्र हुआ करता था. आने वाले लोग कथित तौर पर महिलाओं के साथ बदसलूकी और शोषण करते थे, उनकी इजाजत के बिना तस्वीरें खींचते थे और परेशानी खड़ी करते थे.
लेकिन लॉकडाउन के कारण सभी स्थानीय बार बंद हो गए हैं. जरूरी सेवाओं के अलावा सभी चीजों पर पाबंदियां लग गई है जिससे रतनपुर गांव के लोग खुश नहीं हो सकते हैं.
इस गांव में रहने वाली एक महिला पानु दामा ने कहा, ‘यह शांतिपूर्ण है- हमें शराबियों द्वारा परेशान नहीं किया गया. यह बड़ी राहत है’.
चीमन दामा ने बताया, ‘अभी के समय नदी सूखी है लेकिन मानसून के समय लोग इसमें नग्न होकर तैरते हैं’. उन्होंने कहा, ‘इन शराब की दुकानों को बंद किया जाना चाहिए. हमारा विरोध कोई सुनता ही नहीं लेकिन ये लॉकडाउन ने दिखा दिया कि शांति से रहना किसे कहते हैं वो भी बिना अपनी सुरक्षा की चिंता किए बिना’.
‘कोई भी स्थानीय बार से जुड़ा नहीं है’
1960 में हुई गुजरात की स्थापना से पहले ही राज्य में महात्मा गांधी को ध्यान में रखते हुए यहां शराब पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. गांधी शराब पीने के खिलाफ थे.
हालांकि शराब पीने वाले लोग गुजरात सीमा को पार कर उन राज्यों में जाते हैं जहां इस तरह के कोई प्रतिबंध नहीं है. इस कारण सीमा वाले क्षेत्र में शराब की दुकानें और बार काफी खुल गए हैं. ऐसा ही एक गांव रतनपुर है जो कि राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर स्थित है जो कि अरावली की गोद में बसा है.
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ये गुजरात की राजधानी गांधीनगर से करीब 125 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
रतनपुर एक खेती करने वाले लोगों का गांव है जहां 2011 की जनगणना के अनुसार सभी लोग अनुसूचित जनजाति से संबंध रखते हैं. घर अरावली के ऊपर स्थित हैं, जो राजमार्ग के किनारे हैं, और खेत उनकी तलहटी में बसे हैं.
गेहूं, सरसों, बाजरे के खेत के कुछ दूर आगे ही चार-पांच बार हैं जो हाईवे के किनारे स्थित हैं.
गांव वालों के मुताबिक लॉकडाउन से पहले हर रोज़ शाम को गुजरात से करीब 200 कारें रतनपुर आती थीं और जिससे दुकानों पर भीड़ लग जाती थी.
गांववालों ने कहा कि दुकानों और खेतों के बीच निकटता का मतलब है कि लोगों में बातचीत तो होगी ही.
उनका दावा है कि स्थिति ऐसी हो गई थी कि पुरुषों को महिलाओं की सुरक्षा करनी पड़ती थी.
चीमन ने कहा, ‘या तो हमने उन्हें वहां जाने नहीं दिया या हम उनके साथ रहे. जब कभी हमने उन्हें हमारे गांव नहीं आने को कहा तो भीड़ हिंसक हो जाती थी’.
चीमन की पड़ोसी नर्मदा दामा ने कहा कि वे लोग शोषण करते थे लेकिन कुछ तो हद ही पार कर देते थे. उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति तो उनके घर पर भी चढ़ गया था.
उन्होंने कहा, ‘नशे की हालत में, कोई व्यक्ति हाईवे से पहाड़ी पर चला गया और हमारे घर आया. उसने कहा कि लॉकडाउन एक राहत थी. पहली बार, यह सब हफ्तों के लिए पूरी तरह से बंद हो गया है.’
रतनपुर शराब का अड्डा होने के बावजूद, सरपंच बाबूलाल अहारी गपुंजवाड़ा ने कहा, ‘गांव के 350 निवासियों में से 10 प्रतिशत से भी कम शराब पीते हैं और किसी को भी बार से वित्तीय लाभ नहीं हुआ है’.
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उन्होंने कहा, ‘हमने बार को बंद करवाने के लिए एमपी और एमएलए को भी लिखा. उन्होंने किसी भी स्थिति में हमारी मदद नहीं की और हमारे काम को प्रभावित किया. यहां रहने वाले सभी लोग जीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं और यहां कोई भी बार में काम नहीं करता.’
नई समस्या
गांववालों का कहना है कि लॉकडाउन एक समस्या लेकर भी आया है जो कि राशन मिलने में दिक्कत है.
61 वर्षीय नरसिंह दामा अपने नजदीक के घर को दिखाते हुए कहते हैं, ‘वह घर गुजरात में पड़ता है और उन्हें उनका राशन समय से मिलता है. हमें सिर्फ गेहूं मिलता है लेकिन उन्हें पर्याप्त मात्रा में सबकुछ मिलता है’.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम कानून के तहत राजस्थान में इसके तहत आने वाले परिवार को प्रत्येक महीने दो रुपए के दर पर पांच किलो गेहूं या चावल दिया जाता है. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत जिस राहत पैकेज की घोषणा प्रधानमंत्री मोदी ने मार्च में की थी, उसके तहत जून तक प्रत्येक परिवार को एक किलो दाल दिया जाएगा जिससे लॉकडाउन में लोगों को राहत मिल सके. लेकिन रतनपुर के रहने वाले लोगों का कहना है कि उन्हें अभी तक इसका इंतजार है.
अन्य चीजों के साथ तेल, चावल और दाल की आपूर्ति कम हो गई है और उन्होंने कहा कि उन्हें अप्रैल का राशन भी नहीं मिला है.
नर्मदा ने कहा, ‘दुकानों में दाल 50 से 70 रुपए प्रति किलो के दर पर मिल रही है. इसलिए हम इसे खरीद नहीं पा रहे हैं. उन्हें लॉकडाउन में राशन के साथ दाल भी देना चाहिए क्योंकि ये हमारी पहुंच से दूर हो चली है.’
शिकायतों के बारे में पूछे जाने पर, डूंगरपुर के जिला मजिस्ट्रेट काना राम, जिसके तहत रत्नापुर पड़ता है, ने कहा कि ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सभी लाभार्थियों को अप्रैल महीने के लिए राशन दिया गया है.’
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उन्होंने कहा, ‘जो लाभार्थी नहीं हैं और अगर उन्हें जरूरत है तो खाने के पैकेट दिए जा रहे हैं. हमने ग्राम पंचायत स्तर पर फूड बैंक भी बनाया है. प्रधानमंत्री ग्रामीण कल्याण योजना के तहत लाभ अगले कुछ दिनों में मिलेगा.’
रतनपुर की स्थिति उनके सीमा पार के पड़ोसियों से काफी अलग है. गुजरात के पहाड़ी गांव में एक परिवार ने कहा कि उन्हें 20 किलो गेहूं, 10 किलो चावल, एक किलो दाल और 2.5 किलो चीनी मिली है. सभी लाभार्थी गुजरात से संबंध रखते हैं.
लेकिन यहां के रहने वाले अलग तरह की परेशानी का दावा करते हैं. पहाड़ी गांव के रहने वाले खटकल हीराभाई ने कहा, ‘हमें राशन तो मिल रहा है लेकिन सात लोगों के परिवार को खिलाना पड़ रहा है. हमें अपने ढाबे के बिजनेस को बंद करना पड़ा….ऐसे में अभी हम कुछ कमा नहीं रहे हैं. हम कोशिश करेंगे कि ये राशन हमारे लिए अंतिम हो.’
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