नई दिल्ली: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का कहना है कि यह धारणा कि कुंभ मेले के कारण कोविड की दूसरी लहर आई राष्ट्र-विरोधी और हिंदुत्व-विरोधी है. ज्ञात हो कि हिंदू धर्म के इस महाउत्सव का आयोजन तीरथ सिंह रावत की देखरेख में हीं किया गया था.
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री ने गुरुवार को दिप्रिंट को दिए एक विशेष साक्षात्कार में कहा, अगर कुंभ एक सुपर स्प्रेडर इवेंट था, तो फिर केरल, महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली-एनसीआर में इतने सारे कोविड के मामले क्यों आये थे? वहां तो कोई कुंभ नहीं था.
रावत, जिन्होंने इस महीने की शुरुआत में मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया था, ने कहा कि कुंभ को कोविड के साथ जोड़ना कुछ लोगों द्वारा रची गई साजिश थी और ये वही लोग हैं जो शुरू से ही इस देश के खिलाफ और हिंदुत्व के खिलाफ रहे हैं.
रावत ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि यह कुंभ मेले को बुरा-भला कहने और इसे बदनाम करने की एक योजना थी. हालांकि, एक सर्वेक्षण से पता चला है कि उत्तराखंड में दो-तिहाई (68 प्रतिशत) लोगों ने कुंभ के आयोजन को गलत और गैर-जिम्मेदाराना माना है.
रावत ने कहा, कुंभ की दूसरी लहर के चरम पर भी हरिद्वार में कोविड के मामले देहरादून और राज्य के अन्य स्थानों की तुलना में बहुत कम थे. यहां, मामले तभी बढ़े जब प्रवासियों ने राज्य में वापस आना शुरू किया.
उन्होंने यह भी दावा किया कि उत्तराखंड में ऑक्सीजन की कमी के कारण कोई भी मौत नहीं हुई. हालांकि राज्य के एक निजी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के कारण पांच कोविड रोगियों की मौत हो गई थी.
मई माह के मध्य तक राज्य ने आधिकारिक रूप से 2.64 लाख से भी अधिक सक्रिय कोविड मामलों की सूचना दी. हालांकि इस बारे में रावत का कहना है कि उनके राज्य ने राष्ट्रीय राजधानी से भी बेहतर प्रदर्शन किया है.
उन्होंने कहा, उत्तराखंड से दिल्ली में ऑक्सीजन ले जाई गई थी. केजरीवाल ने हमसे ऑक्सीजन मांगी थी. राज्य में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं थी.
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सीएम पुष्कर धामी मेरे छोटे भाई की तरह हैं
हाल ही में एक संवैधानिक संकट के कारण रावत को उनकी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा मुख्यमंत्री के रूप में पदोन्नत किए जाने के केवल चार महीने बाद, 2 जुलाई को, सीएम पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. उसके दो दिन बाद 4 जुलाई को पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड का नया सीएम बनाया गया. 45 साल की उम्र वाले धामी उत्तराखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं.
रावत ने यह इस्तीफा इसलिए दिया क्योंकि वह राज्य में निर्वाचित विधायक नहीं थे. संविधान के अनुच्छेद 164 (ए) के तहत, कोई भी गैर-विधायक व्यक्ति केवल छह महीने के लिए मुख्यमंत्री के पद सहित मंत्रिपरिषद में किसी भी पद पर बना रह सकता है. यदि वह इस अवधि के भीतर विधिवत निर्वाचित नहीं होता है, तो संविधान के अनुसार है कि वह ‘मंत्री नहीं बना रह सकता है’.
इस बार में पूछे जाने पर कि आपने अपने मुख्यमंत्री पद को बरकरार रखने के लिए विधानसभा में चुने जाने का प्रयास क्यों नहीं किया, रावत ने कहा कि कोविड -19 महामारी के कारण चुनाव नहीं हो सके, अन्यथा वह अपने पद पर कायम रहते.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, कई विधायकों ने मुझे पत्र लिखकर कहा था कि वे मेरे लिए अपनी सीट छोड़ने को तैयार है अगले साल की शुरुआत में होने वाले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के सन्दर्भ में पूर्व सीएम ने कहा कि वह ‘मुख्यमंत्री के चेहरे/उम्मीदवार’ के रूप में केंद्रीय भाजपा नेतृत्व द्वारा चुने गए ‘किसी भी विकल्प’ से खुश होंगे.
अपने उत्तराधिकारी पुष्कर धामी के बारे में रावत ने कहा, धामी मेरे छोटे भाई की तरह और काफी मेहनती हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि उनके नेतृत्व में उत्तराखंड नई ऊंचाइयों को छुएगा.’
पार्टी में अंदरूनी कलह की खबरों – जिसे मुख्यमंत्री पद से उन्हें हटाए जाने का एक और कारण माना जाता है- पर रावत ने कहा कि इस तरह की खबरों में ‘कोई सच्चाई नहीं’ है, और इस बात पर जोर दिया कि ‘सब ठीक है’.
जहां तक पेगासस हैकिंग पर चले रहे ताजा विवाद की बात है, भाजपा के इस वरिष्ठ नेता ने आरोप लगाया कि यह सब कुछ ‘कांग्रेस पार्टी का किया-धरा है’ क्योंकि इसे लोगों ने खारिज कर दिया था और अब यह ‘लड़ने के लिए’ सिर्फ एक मुद्दा चाहती है.
उन्होंने कहा, कांग्रेस का न केवल उत्तराखंड में बल्कि वास्तव में कहीं भी कोई अस्तित्व नहीं है. वे अब इस मुद्दे (पेगासस) के साथ आने की कोशिश कर रहे हैं. यह कोई मुद्दा नहीं है, इसका कोई सबूत हीं नहीं है. इस पर जांच की कोई आवश्यकता भी नहीं है. यह यह सिर्फ खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे वाला मामला है.’
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