नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के गेट के बाहर खड़ी कम-से-कम 10 मीडिया की कारों ने पार्किंग की सारी जगह जाम कर दी हैं और पत्रकार तथा कैमरापर्सन इधर-उधर घूम रहे हैं. हर कुछ घंटों में एक बार, उनमें से एक कैंपस में ‘तनावपूर्ण’ माहौल के बारे में अपडेट देने के लिए ‘ऑन एयर’ होता है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े छात्र अपने हाथों में पट्टियां बांधे हुए हर रिपोर्टर के पास जाकर साउंड बाईट के रूप में अपना बयान सुना रहे हैं.
लेकिन छात्रों के समूहों के बीच रविवार शाम की हिंसा के बाद तनाव के नैरेटिव के बावजूद परिसर के भीतर इस घटना के एक दिन बाद जीवन फिर से चल पड़ा है, मगर सतर्कता के एहसास के साथ. यह हिंसा कथित तौर पर रामनवमी के दिन एक छात्रावास की मेस में मांसाहारी भोजन परोसे जाने पर या अगर एबीवीपी के कहें पर जाएं तो पूजा में व्यवधान की वजह से, हुई थी.
सूर्यास्त के समय के साथ जैसे ही चिलचिलाती गर्मी ख़त्म होती है, छात्रों को परिसर में कई सारे खाने पीने की जगहों इकट्ठा होते देखा जा सकता है. वे छोटे-छोटे समूहों में बैठकर पढ़ते हैं या आपस में बातचीत करते हैं या फिर अपनी शाम की चाय का आनंद लेते दिखते हैं. एक त्वरित सर्वेक्षण से पता चलता है कि वामपंथी और दक्षिणपंथी समूहों के छात्र, साथ ही वे भी जो किसी भी पार्टी के साथ नहीं हैं, सभी इस मिश्रित समूह में शामिल हैं.
पास ही में चलते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन से संबद्ध ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) के एक वरिष्ठ नेता ने बातचीत के दौरान बताया कि वह इस हिंसा के बारे में आधिकारिक रूप से अपनी शिकायत दर्ज करवाने के लिए वसंत कुंज नार्थ पुलिस स्टेशन जा रहे हैं.
बड़ी सादगी के साथ वे कहते हैं, ‘आप जानते हैं कि हम संख्या में बहुत अधिक हैं – कल्पना कीजिए कि अगर हमने इन एबीवीपी लोगों के साथ हिंसा की होती तो क्या हुआ होता?’
पास की एक मेज पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बैठे हैं, जो उस जगह की खोज खबरे लेने आए हैं, जिसे वह अपना एल्मा मेटर कहते हैं.
अपना नाम गुप्त रखने की चाहत के साथ वे कहते हैं, ‘आप जानते हैं, जब वह टुकडे-टुकड़े गैंग वाली घटना हुई थी तो मैं यहीं का एक छात्र था. अब मैं इस सोच में पड़ा हूं कि इस बार क्या राजनीति चल रही है .’टुकड़े-टुकड़े गैंग’ शब्द को वामपंथी झुकाव वाले उन जेएनयू छात्रों के लिए प्रयोग किये जाने वाले अपमानजनक शब्द के रूप में लोकप्रिय किया गया था, जिन्होंने साल 2016 में कश्मीरी अलगाववादी अफजल गुरु की तीन साल पहले हुई फांसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था.
प्रशासन के सूत्रों के अनुसार कावेरी छात्रावास में एबीवीपी द्वारा आयोजित पूजा के लिए किसी तरह की कोई औपचारिक अनुमति नहीं ली गई थी.
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बेचैनी की भावना
फ़िलहाल यहां के छात्र बहुत सतर्क हैं. एक तरफ जहां कुछ छात्र मीडिया को ‘साउंड बाईट’ देने में व्यस्त हैं, वहीं कई अन्य छात्र उस अस्पताल का चक्कर लगा रहे हैं, जहां कई घायल छात्रों को ले जाया गया था.
छह महीने से कुछ ही अधिक समय पहले इस कैंपस में आये छात्र सिद्धार्थ झा कहते हैं, ‘आप जानते हैं कि हमने हमेशा जेएनयू में छात्र समूहों के बीच झड़पों के बारे में पढ़ा था, लेकिन यह पहली बार है जब मैंने इसे स्वयं होते देखा है. मैंने देखा कि हिंसा किस तरह से एकतरफा थी. मैंने यह भी देखा कि मीडिया में इस ‘झड़प’ के बारे में कैसी कहानियां बनाई जा रही हैं.’
इतिहास विभाग के इस छात्र का कहना है कि वह अब देख सकता है कि समय के साथ जेएनयू की हिंसक छवि कैसे बनती जा रही है और यह सच्चाई से कितनी दूर है.
दूर बैठी एक अन्य छात्रा अपनी पहचान नहीं बताना चाहती क्योंकि वह एबीवीपी के साथ है, लेकिन जब उससे कैंपस के सामान्य मन-मिजाज के बारे में पूछा जाता है, तो उसने जवाब दिया, ‘क्या सब कुछ वैसा ही नहीं दिखता जैसा वह पहले था? कुछ भी तो नहीं बदला है. हर कोई अपना जीवन वैसे ही जी रहा है जैसे वे पहले जीते थे.’
पुलिस ने दर्ज की क्रॉस एफआईआर
हालांकि, परिसर में एक खामोशी सी थी, लेकिन दिल्ली पुलिस मुख्यालय के सामने सोमवार को लगभग 70 आइसा छात्रों का एक समूह इकट्ठा हुआ जो पिछले दिन पुलिस की कथित निष्क्रियता के विरोध में प्रदर्शन करते देखा गया. लेकिन विरोध प्रदर्शन के शुरू होने के चंद मिनटों बाद ही सभी छात्रों को हिरासत में ले लिया गया. उन्हें विभिन्न पुलिस थानों में ले जाया गया और पूरे दिन के दौरान किसी समय पर रिहा कर दिया गया.
हालांकि आइसा से जुड़े कई छात्र वसंत कुंज नार्थ पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज कराने गए थे, मगर एबीवीपी ने अपनी शिकायत पहले से दर्ज करा दी थी. उसके बाद से पुलिस ने एबीवीपी के साथ-साथ जेएनयू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) और वामपंथी समूहों से जुड़े अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ क्रॉस एफआईआर दर्ज की है.
इन दो एफआईआर में लगाए गए आरोपों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323 (स्वेच्छा से किसी को चोट पहुंचाने के लिए सजा), 341 (गलत तरीके से बंधक बनाना) 509 (किसी महिला के शील का अपमान करने के इरादे से प्रयुक्त शब्द, इशारा या कृत्य), 506 (आपराधिक धमकी) और 34 (सामान्य मंशा के साथ आगे बढ़ाने के लिए कई व्यक्तियों द्वारा मिलकर किए गए कृत्य) शामिल हैं.
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