विशाखापत्तनम, पांच सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने शुक्रवार को यहां एक विधि महाविद्यालय के स्नातकों को सलाह दी कि वे अपनी रुचियों और जुनून को विकसित होने दें।
दामोदरम संजीवय्या राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (डीएसएनएलयू) के छात्रों के कई बैच के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि विकसित होती रुचियों और जुनून को भ्रम के रूप में नहीं बल्कि विकास के संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘सच तो यह है कि बहुत कम पेशेवर — वकील हों या कोई और — रातोंरात इसे समझ लेते हैं। आपकी रुचियां और जुनून विकसित होंगे, और जैसे-जैसे वे विकसित होंगे, आपके उद्देश्य की भावना भी बदलेगी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आज, आपके मन में यह विचार हो सकता है कि आप कहां जाना चाहते हैं, और कल यह दृष्टिकोण बदल सकता है। खुद को विकसित होने और अनुकूलन की अनुमति दें, क्योंकि विकास कभी भी सीधी रेखा में नहीं होता।’’
कानून के पेशे पर विचार करते हुए, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि कुछ लोगों को वकालत में, कुछ को कॉरपोरेट जगत में और कुछ को शिक्षण, सार्वजनिक सेवा या पूरी तरह से अप्रत्याशित रास्तों में अपना जुनून मिल सकता है।
न्यायाधीश ने विधि स्नातकों से कहा कि वे अनिश्चितता से न डरें, बल्कि उसे स्वीकार करें और खुद से यह पूछने का साहस करें कि ‘‘वास्तव में मुझे किस चीज से खुशी मिलती है?’’
यह उल्लेख करते हुए कि जीवन ‘फॉर्मूला 1 ग्रां प्री’ के समान है, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने ‘रेस ट्रैक’ पर ‘पैडोक क्रू’ की महत्वपूर्ण भूमिका की तुलना उस समर्थन और मार्गदर्शन से की, जो जीवन में किसी की यात्रा को आकार देता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, यह रेस उन रेस से थोड़ी अलग है जो आप ऑनलाइन देखते हैं। आपके जीवन के इस ग्रां प्री में, आपका लक्ष्य बाकी सभी से तेज़ी से रेस पूरी करना नहीं होता। लक्ष्य अपनी रेस की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना होता है।’’
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