नयी दिल्ली, 11 अप्रैल (भाषा) सेना के वरिष्ठ अधिकारियों और सैन्य इतिहासकारों ने तिब्बत क्षेत्र में कई ऐतिहासिक अभियानों का नेतृत्व करने वाले जनरल जोरावर सिंह को शुक्रवार को “रणनीतिक प्रतिभा’ वाला एक साहसी योद्धा और ‘अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में युद्ध का मास्टर” बताया।
इस अवसर पर यह भी घोषणा की गई कि दिल्ली में स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज (सीएलएडब्ल्यूएस) में उनके सम्मान में एक ‘उत्कृष्टता पीठ’ की स्थापना की गई है।
इस ‘उत्कृष्टता पीठ’ की स्थापना जम्मू-कश्मीर राइफल्स रेजिमेंट ने की है। जम्मू-कश्मीर राइफल्स रेजिमेंट और सीएलएडब्ल्यूएस ने दिल्ली छावनी के मानेकशॉ सेंटर में महान सैन्य जनरल जोरावर सिंह के जीवन और विरासत पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया।
कार्यक्रम की शुरुआत जम्मू-कश्मीर राइफल्स और लद्दाख स्काउट्स के ‘कर्नल ऑफ द रेजिमेंट’ लेफ्टिनेंट जनरल एम पी सिंह के मुख्य भाषण के साथ हुई, जिसके बाद वक्ताओं ने कार्यक्रम को संबोधित किया।
सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने अपने मुख्य भाषण में कहा कि जनरल जोरावर का उत्थान ‘पूरी तरह से योग्यता पर आधारित’ था।
अधिकारी ने कहा कि वह एक ‘प्रतिभावान सैन्य अधिकारी’ थे, जो ‘अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में होने वाले युद्ध’ में अपनी नेतृत्व क्षमता के लिए जाने जाते थे।
उन्होंने कहा कि जनरल जोरावर की गाथा साहस और ‘रणनीतिक प्रतिभा’ के किस्सों से भरपूर है।
सैन्य विशेषज्ञों ने सभा को संबोधित करते हुए 19वीं शताब्दी में तिब्बत में जोरावर के अभियानों को इतिहास के सबसे ‘साहसिक व महत्वाकांक्षी’ सैन्य अभियानों में से एक बताया।
संगोष्ठी में कहा गया कि जनरल जोरावर ‘अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में होने वाले युद्ध के मास्टर थे।”
सैन्य जनरल का जन्म 1786 में बिलासपुर के केहलूर में हुआ था, जो आज के हिमाचल प्रदेश में आता है।
तिब्बत में 19वीं सदी के पहले भाग में उन्होंने कई सैन्य अभियानों में हिस्सा लिया।
सीएलएडब्ल्यूएस के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल दुष्यंत सिंह (सेवानिवृत्त) ने ‘उत्कृष्टता पीठ’ की स्थापना के बारे में बात की।
उन्होंने जनरल जोरावर को एक ‘चतुर रणनीतिकार’ बताया, जो ‘किसी भी कीमत पर जीत हासिल करने की अटूट इच्छाशक्ति’ रखा था।
भाषा जोहेब नरेश
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