चेन्नई: तमिलनाडु मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सत्ता में 100 दिन पूरे कर लिए हैं, और वो कई मानदंडों पर पूरे उतरे हैं, जिसमें उनके राजनीतिक हनीमून के दौरान विपक्ष की ओर से भी कुछ प्रशंसा मिली है.
एमके स्टालिन ने 7 मई को तमिलनाडु CM का पद संभाला था, जब DMK की अगुवाई में उनका गठबंधन राज्य की 234 में से 159 सीटें जीतकर, धमाकेदार तरीक़े से सत्ता में आया था. 20 अगस्त को उन्होंने 100 दिन पूरे कर लिए.
मुख्यमंत्री को पहले दिन से ही काम में जुट जाना पड़ा, क्योंकि उनके कुर्सी संभालते ही कोविड की दूसरी आक्रामक लहर ने, तमिलनाडु को अपनी चपेट में ले लिया.
औचक निरीक्षणों से लेकर रात 12 बजे की फोन कॉल्स, विधायकों और मंत्रियों को उनके चुनाव क्षेत्रों में भेजने, यहां तक की पिछली एआईएडीएमके सरकार के स्वास्थ्य मंत्री को भी अपने साथ लेने तक, मुख्यमंत्री ने कई ऐसे क़दम उठाए जिनसे उनकी सराहना हुई.
कोविड स्थिति के स्थिर होने के बाद, उनकी सरकार ने कई स्कीमें और नीतिगत पहलक़दमियां भी शुरू कीं.
डीएमके सरकार के पहले 100 दिन में महिलाओं, दिव्यांगों, और ट्रांसजेंडर लोगों को बसों में मुफ्त यात्रा मिली; मंदिरों में पूजा और तमिल तथा संस्कृत में अर्चनाएं कराने के लिए, ग़ैर-ब्रह्मण पुरोहित नियुक्त किए गए; प्रोफेशनल कोर्सेज़ में सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए 7.5 प्रतिशत कोटा तय किया गया; और अन्य चीज़ों के अलावा, कृषि के लिए अलग बजट रखा गया.
अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर डीएमके की अगुवाई वाली सरकार ने, एक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया, और 17,000 करोड़ रुपए के निवेश के लिए क़रार किए. सरकार ने एक आर्थिक सलाहकार परिषद का भी गठन किया, जिसमें नोबल पुरस्कार विजेता एस्थर डफ्लो, पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन, केंद्र सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रामण्यन, विकास अर्थशास्त्री प्रोफेसर ज्यां द्रेज़, और पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव एस नारायण शामिल हैं.
विपक्षी एआईएडीएमके की आईटी विंग के पूर्व प्रमुख एस्पायर स्वामीनाथन ने कहा, ‘स्टालिन कैसे होंगे इस बारे में लोगों ने जो सोचा था, और बतौर सीएम स्टालिन कैसे हैं, इन दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर है’.
सरकार सही बातें भी उठा रही है.
वाहवाही के साथ आलोचना भी सुनने को तैयार वित्त मंत्री पी तियागा राजन ने, खुले तौर पर कहा कि राज्य में अंतिम जवाबदेही राजनीतिक नेतृत्व की बनती है, सिविल सर्वेंट्स की नहीं.
निवेशक सम्मेलन में स्टालिन ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि तमिलनाडु दक्षिण एशिया में सबसे उत्तम प्रांत बने. हमारी सरकार का लक्ष्य तमिलनाडु को, एक खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना है’.
सभी जातियों के पुरोहितों को अनुमति देने जैसी बहुत सी स्कीमों की जड़ें, द्रविड़ियन आंदोलन के इतिहास में हैं, जिनका डीएमके समय समय पर आह्वान करती रहती है. ऐसी ही एक पहल महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा है.
तियागा राजन ने पहले के एक इंटरव्यू में दिप्रिंट को बताया था, कि राज्य को ऐसा विकास नहीं चाहिए, जो अरबपतियों को ग़रीब लोगों से अलग करता हो.
‘समावेशी शैली की राजनीति’
तमिलनाडु मुख्यमंत्री जिनका नाम सोवियत लीडर जोज़फ स्टालिन के नाम पर है, राजनीति की दुनिया में नए नहीं हैं.
इमरजेंसी के दौरान स्टालिन छात्र नेता हुआ करते थे, वो चेन्नई के मेयर रहे हैं, और जब उनके पिता करुणानिधि मुख्यमंत्री थे, तो उनके डिप्टी भी रहे हैं.
मुख्यमंत्री की एक समय ठगों के जैसी छवि हुआ करती थी, लेकिन अब सभी वर्गों में एक आमराय है, कि चाहे अधिकारी हों, पार्टी नेता हों या विपक्ष भी हो, उन्होंने काम करने की एक ‘समावेशी शैली’ अपनाई है.
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चेन्नई के प्रेज़िडेंसी कॉलेज में राजनीतिक विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर पी मुत्थूकुमार ने कहा, कि स्टालिन में अब एक ऐसी परिपक्वता नज़र आती है, जो पहले दिखाई नहीं पड़ती थी.
मुत्थूकुमार ने कहा कि स्टालिन ने कुछ चीज़ें ऐसी की हैं, जो तमिलनाडु के किसी भी मुख्यमंत्री के लिए अभूतपूर्व हैं, जैसे कि पूर्व डिप्टी सीएम और एआईएडीएमके नेता पनीरसेल्मव के साथ एक ही मेज़ पर बैठना, और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री विजयभास्कर को बहु-दलीय कोविड पैनल में शामिल करना.
मुत्थूकुमार ने कहा, ‘जयललिता, करुणानिधि, या एमजीआर के समय में भी ऐसी संस्कृति नहीं थी. ये संस्कृति ग़ायब थी और इसका ताल्लुक़ अन्नादुराई के दौर से है. बतौर सीएम ये स्टालिन की परिपक्वता को दिखाता है, जिससे तमिलनाडु के लोगों को बहुत फायदा पहुंचेगा’.
राज्य के एक वरिष्ठ सिविल सर्वेंट जी प्रकाश ने कहा कि स्टालिन बहुत हिसाब से काम कर रहे हैं.
प्रकाश ने कहा, ‘हर चीज़ को एक बड़े नज़रिए से देखा जाता है. उनके दिमाग़ में एक अच्छा रोडमैप है’. उन्होंने आगे कहा, ‘ख़ुद एक नौकरशाह होने के नाते मैं जानता हूं, कि उन्होंने अधिकारियों के साथ अच्छे से काम किया है. इस बार मुख्यमंत्री के नाते वो अलग अलग हितधारकों की बात सुन रहे हैं’.
डीएमके विधायक कार्तिकेयन शिवसेनापति ने कहा, कि मुख्यमंत्री अब ख़ुद को एक पार्टी के नेता नहीं, बल्कि प्रदेश के नेता के तौर पर देखते हैं. उन्होंने कहा, ‘वो इस तरह से काम कर रहे हैं, जिसमें सबको शामिल किया जाता है, यहां तक कि उन लोगों को भी जिन्होंने उन्हें वोट नहीं दिया, जिससे अगली बार उनका वोट सुनिश्चित हो जाए’.
उन्होंने आगे कहा, ‘प्रचार के दौरान हर दिन की समाप्ति पर, थलाइवर का फोन मुझे ज़रूर आता था, ये पूछने के लिए कि प्रचार कैसा था और मेरा दिन कैसा बीता. सीएम बनने के बाद भी काम के बोझ के बावजूद, वो उतना ही समय और तवज्जो देते हैं. अपने चुनाव क्षेत्र में एक यूनिवर्सिटी का नाम बदलने के सिलसिले में, हाल ही में मैं उनसे मिला था, और उन्होंने बड़े धैर्य के साथ सभी हितधारकों की बात सुनी थी’.
मुख्यमंत्री की टीम के एक नेता ने कहा, कि इस नई सरकार और स्टालिन की शासन शैली की जो सबसे बड़ी पहचान है, वो है धार्मिक सहिष्णुता और धर्मनिर्पेक्षता.
इसी को आगे बढ़ाते हुए हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के मंत्री पी सेकर बाबू ने समझाया, कि सर्व-जातीय अर्चका सिस्टम को लागू करना स्टालिन की एक शीर्ष प्राथमिकता थी.
बाबू ने समझाया, ‘तमिल अर्चनाएं और सर्व-जातीय अर्चका सिस्टम दोनों, काफी लंबे समय से पाइपलाइन में थीं. और ये एक मुख्य प्राथमिकता थी. ये किसी एक भाषा के ऊपर दूसरी भाषा, या एक जाति पर दूसरी जाति का पक्ष लेना नहीं है. बल्कि इसका उद्देश्य एक समान और समावेशी समाज सुनिश्चित करना है’.
लेकिन हर कोई उत्साहित नहीं है.
वरिष्ठ एआईएडीएमके नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री डी जयकुमार का मानना है, कि स्टालिन अपने पिता के मुक़ाबले कुछ नहीं हैं, और वो केवल अपनी मंत्री परिषद या अधिकारियों की सलाह पर काम कर रहे हैं.
जयकुमार ने कहा, ‘उनकी अपनी कोई मानसिक शक्ति नहीं है; वो कलईन्यार की तरह सक्रिय नहीं हैं. वो केवल अपनी मंत्री परिषद या अधिकारियों की सलाह सुनते हैं’.
राज्य के वरिष्ठ बीजेपी नेता जे जॉनसन ने कहा कि डीएमके अपनी किसी वायदे पर पूरी नहीं उतरी है.
जॉनसन ने कहा, ‘हर जगह सिर्फ परिवार के फोटो हैं- करुणानिधि, स्टालिन और उदयनिधि. वो 1,000 रुपए कहां हैं जिसका उन्होंने परिवारों की महिला मुखियाओं के लिए वादा किया था? अब वो बहाने बना रहे हैं कि पिछली एआईएडीएमके सरकार ने, उनके लिए कोई पैसा नहीं छोड़ा है’.
‘जी हज़ूरी को ना’
जहां विपक्ष ने मुख्यमंत्री की शासन शैली को लेकर उनकी आलोचना की है, वहीं काम सौंपने के तरीक़े को लेकर उनकी सराहना भी हुई है.
एआईएडीएमके की आईटी विंग के पूर्व प्रमुख स्वामिनाथन ने कहा, ‘आमतौर पर जो सरकार भी सत्ता में आती है, वो अहम पदों पर जी हज़ूरी वाले मंत्रियों और अधिकारियों को बिठा देती है, लेकिन स्टालिन द्वारा नियुक्त किए गए सभी नौकरशाहों का पिछला रिकॉर्ड बिल्कुल बेदाग़ रहा है’.
स्वामीनाथन ने कहा कि स्टालिन ने ख़ुद से ऐसे सिविल सर्वेंट्स को चुना है, जो काम कर सकते हैं, और उन्होंने पिछली उपलब्धियों के आधार पर ही लोगों का चयन किया है.
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