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गुरूवार, 24 अप्रैल, 2025
होमदेशगैर अंग्रेजी वालों के लिए दूर की कौड़ी बन रहा UPSC- महज 5% IAS, IFS ही हिंदी में देते हैं सिविल सेवा परीक्षा

गैर अंग्रेजी वालों के लिए दूर की कौड़ी बन रहा UPSC- महज 5% IAS, IFS ही हिंदी में देते हैं सिविल सेवा परीक्षा

लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के डेटा ने कई बार यह रेखांकित किया है कि सिविल सेवा परीक्षा गैर-अंग्रेजी भाषी अधिकांश उम्मीदवारों की पहूंच से दूर है.

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नई दिल्लीः 2019 में लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन (एलबीएसएनए) में फाउंडेशन कोर्स करने वाले 326 सिविल सेवकों में से केवल 8 ने सिविल सेवा परीक्षा के लिए हिंदी को चुना. जबकि 315 उम्मीदवारों ने अंग्रेजी में परीक्षा दी. वहीं यह बार-बार तर्क से रेखांकित किया है कि सिविल सेवा परीक्षा गैर-अंग्रेजी बोलने वाले ज्यादातर उम्मीदवारों की पहुंच से दूर है.

यह फाउंडेशन पाठ्यक्रम नए चयनित सिविल सेवकों-भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के लिए एलबीएसएनएए द्वारा संचालित एक आरंभिक होता है. जबकि पिछले वर्ष तक केवल भारतीय प्रशासनिक सेवा और आईएफएस के लिए ही पाठ्यक्रम अनिवार्य था, सरकार ने अब इसे सभी नए भर्ती सिविल सेवकों के लिए अनिवार्य कर दिया है.

2018 में दिप्रिंट ने एलबीएसएनएए के आंकड़ों को खंगाला, जिनमें पाठ्यक्रम लेने वाले 370 अधिकारी प्रशिक्षार्थियों में से सिर्फ 8 ने हिंदी में परीक्षा दी जबकि 357 ने अंग्रेजी में.

2016 में 377 अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों में से, 13 ने हिंदी में और 350 ने अंग्रेजी में परीक्षा दी थी. 2015 में 350 प्रशिक्षार्थियों में से 15 ने हिन्दी में और 329 ने अंग्रेजी में परीक्षा दी थी.

2014 में, कुल 284 अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों में से, हिंदी में परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों की संख्या 6 थी, जबकि अंग्रेजी में परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों की संख्या 272 थी.

बाकी हर साल प्रशिक्षुओं ने मराठी, गुजराती, पंजाबी आदि प्रादेशिक भाषाओं को परीक्षा के लिए चुना.

उदाहरणार्थ, 2019 बैच में आठ अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों ने मराठी में, तीन तमिल में, 2 गुजराती में और एक ने तेलुगु में परीक्षा दी.

नाम न जाहिर करने की शर्त पर 2012 बैच के आईएएस अधिकारी ने कहा कि यह आपको भारत की शीर्ष नौकरशाही में प्रतिनिधित्व की भारी कमी के बारे में बताता है.’ ‘सिस्टम, औपचारिक रूप से बोलना, क्षेत्रीय और भाषायी प्रतिनिधित्व में सक्षम बनाता है- इसी कारण आपके पास परीक्षा को अलग-अलग भाषाओं में देने का विकल्प होता है- लेकिन जब यह वास्तव में इसे सक्षम करने में कमतर साबित होता है, तो गैर-अंग्रेजी भाषी उम्मीदवार खुद को भारी नुकसान में पाते हैं.


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न केवल परीक्षा

बहुभाषी प्रतिनिधित्व कम अन्य मापदंडों में प्रकट होती है और न कि केवल यूपीएससी परीक्षा के माध्यम में.

इस पर विचार करेंः 2019 में जबकि 326 अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों में से केवल 22 की स्कूल में शिक्षा का माध्यम हिंदी थी, 298 के लिए अंग्रेजी. जिन प्रशिक्षार्थियों के लिए स्कूल में शिक्षा का माध्यम बांग्ला, गुजराती, कन्नड़ और तमिल थी, उनकी संख्या एक-एक थी. दो प्रशिक्षुओं ने तेलुगु में परीक्षा दी थी.

इसके अलावा, विश्वविद्यालय स्तर पर जिन प्रशिक्षणार्थियों के शिक्षा का माध्यम हिंदी, तेलुगु या कन्नड़ थी, क्रमशः छह, दो और एक थी. इस बीच, शेष 317 अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों के लिए विश्वविद्यालय में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी थी.

वर्ष 2018 में अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों की संख्या जिनके स्कूल और विश्वविद्यालय में शिक्षा का माध्यम क्रमशः 30 और हिंदी 5 थी. ठीक इसके उलट, शिक्षण के माध्यम के रूप में अंग्रेजी वाले अधिकारी प्रशिक्षुओं आंकड़ा क्रमशः 328 और 363 था.

यही पैटर्न पहले के सालों में भी देखा गया.

गत वर्ष, सरकार ने संसद में कहा कि 2019 में यूपीएससी द्वारा चुने गए 812 उम्मीदवारों में 485 ने अपनी मातृभाषा हिंदी को चुना. इसी तरह, 2017 में, आयोग द्वारा चुने गए 1,056 उम्मीदवारों में से 633 ने हिंदी को चुना था.

हालांकि, यह एक ‘झूठी तस्वीर’ को दिखाता है, एक भारतीय वन सेवा अधिकारी ने कहा. ‘प्रत्येक भारतीय मातृभाषा क्षेत्रीय भाषा होगी, किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि उन्हें उच्च कोटि की अंग्रेजी शिक्षा नहीं मिली है… मातृभाषा का आंकड़ा असंगत है क्योंकि यह अभ्यर्थी के उतना सामाजिक स्टेटस को नहीं दिखाता जितना विद्यालय और महाविद्यालय में शिक्षा का माध्यम में यह झलकता है.

अधिकारी ने तर्क दिया: ‘इसका क्या अर्थ है कि भारतीय नौकरशाही का एक बड़ा हिस्सा बहुत ही विशेषाधिकार प्राप्त पृष्ठभूमि से आता है… बुलंदशहर के हिंदी माध्यम स्कूल के एक बच्चे के लिए दिल्ली के अंग्रेजी माध्यम के स्कूल से बच्चे के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए यह बेहद भयभीत करने वाला होता है- और यह एक समस्या है जिस पर काबू पाने में हम असमर्थ रहे हैं.’

आईपीएस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, प्रत्येक वर्ष हिंदी माध्यम में टॉप करने वालों की रैंक अक्सर 300 या उससे कम होती है. उन्होंने कहा, ऐसा हर साल होता है. 2019 के परिणाम के बारे में गौर फरमाएं… हिंदी के टॉपर ने 317 रैंक हासिल की…और ऐसा ही हर साल होता है.’

उन्होंने कहा कि स्थिति काफी खराब है, बेहतर हो कि जो अंग्रेजी में अच्छा नहीं है वह एक साल के लिए कोचिंग ले, बजाय हिंदी में परीक्षा देने के… अंग्रेजी में बहुत बुरा होने पर भी मैंने यही किया.’ यदि आप अंग्रजी माध्यम के विद्यार्थी नहीं हैं, तो आप संघ लोक सेवा आयोग के लिए तैयारी नहीं कर सकते.

वर्ष 2011 में केंद्र ने सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों की समझ, संवाद और निर्णय कौशल का मूल्यांकन करने के लिए सिविल सेवा एप्टीच्यूट टेस्ट (सीएसएटी) शुरू किया है.

परीक्षा में अभ्यर्थियों के अंग्रेजी बोलने के कौशल का टेस्ट और सरकार द्वारा 2015 में इसे ‘क्वालीफाइंग’ बनाए जाने पर देशभर में बड़े पैमाने पर विरोध किया गया था. इसमें परीक्षा को न्यूनतम 33 प्रतिशत के साथ उत्तीर्ण करना आवश्यक है, जबकि इसके अंक अंतिम यूपीएससी अंकों में नहीं जोड़े जाने थे.

भारतीय वन सेवा अधिकारी ने तर्क दिया कि हालांकि, प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के मामले में यह जीती गई लड़ाई का महज एक हिस्सा था, उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर उम्मीदवार जो अंग्रेजी में अच्छी तरह से बातचीत नहीं कर सकते, अभी भी नुकसान में है.’

भारतीय वन सेवा में, जो कि बाकि सभी सिविल सेवाओं से अलग होती है, लिहाजा समस्या और ज्यादा बढ़ जाती है. परीक्षा को अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषा में देने का कोई विकल्प नहीं है और उम्मीदवारों के अंतिम अंकों में अंग्रेजी के लिए अलग से अंक जोड़े जाते हैं.

फिर भी एक ‘शाही’ सेवा बनी हुई है

यह प्रवृत्ति भारतीय नौकरशाही की नाकामी को दिखाता है जो इसकी शाही इतिहास से आई है.

अधिकारी ने कहा, ‘भारतीय वन सेवा अधिकारी दूर दराज के इलाकों में काम करते हैं और आदिम जातियों आदि के साथ बातचीत करते हैं. उन्हें अंग्रेजी जानने की जरूरत क्यों है? सच तो यह है कि हमारी सोच औपनिवेशिक काल की सिविल सर्विस की अवधारणा से अभी तक निकल नहीं पाई हैं.’

आरएसएस से जुड़े विचार-विनमय केंद्र के अनुसंधान निदेशक और आरएसएस पर दो किताबें लिखने वाले अरुण आनंद ने इससे सहमति व्यक्त की. उन्होंने कहा कि समस्या यह है कि भारत में नौकरशाही का चरित्र तब भी नहीं बदला है जब वह औपचारिक रूप से शाही सिविल सर्विस नहीं रही. उन्होंने आगे कहा, ‘भारतीय नौकरशाही के साथ राजा बना प्रजा का सिंड्रोम प्रकट होता है.’

आनंद ने, जिन्होंने सरकार में मीडिया सलाहकार के रूप में काम किया है, कहा कि उन्हें मालूम हैं कि नौकरशाही किस तरह जनता के लिए इलीट है और लोगों से कटी हुई है.

उन्होंने कहा, समस्या यह भी है कि संघ लोक सेवा आयोग- जिसका अर्थ भावी अधिकारियों की भर्ती करना है- सेवानिवृत्त अधिकारियों द्वारा संचालित किया जाना. ‘आप ऐसी प्रणाली की अभिजात संरचना को कैसे बदल सकते हैं जिसके प्रवेश द्वार अंदर के लोगों की निगरानी में रहते हैं? संघ लोक सेवा आयोग में शायद ही कभी शिक्षाविद रहे हों जो शीर्ष पर हों. वे अपने ही तरह के लोगों की तलाश में रहते हैं.’

आनंद ने आगे कहा कि यह उन लोगों की गहरी जटिलताओं से भरा है जो अंग्रेजी नहीं जानते और क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन करते हैं.

उन्होंने कहा कि भारत में नौकरशाही ‘अंग्रेजी में सोचती है’. ‘तो हम शिकायत करते हैं कि नौकरशाही और आम आदमी के बीच जुड़ाव नहीं है लेकिन पिछले छह वर्षों के दौरान, चीजों में बदलाव आने लगा है.’ आनंद दिप्रिंट के लिए भी लिखते हैं.


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‘दूसरी भाषा में पर्याप्त सामग्री नहीं ‘

एक भूतपूर्व आईएएस अधिकारी ज़फर महमूद, जो कि वंचित समुदायों के मुस्लिम और अन्य अभ्यर्थियों के लिए सिविल सेवा के लिए कोचिंग सेंटर चला रहे हैं, ने कहा, ‘मैंने इस मुद्दे का विस्तार से अध्ययन किया है… बहुत कम उम्मीदवार क्षेत्रीय माध्यम में परीक्षा देने का विकल्प चुनते हैं.’ उन्होंने कहा, ‘कुछ साल पहले यूपीएससी ने इसकी परीक्षा के लिए एक विकल्प के रूप में अरबी और फारसी पर रोक लगा दी.’ ‘जब मैंने आंकड़ो का अध्ययन किया, तब महसूस किया कि इसे लेने वाला कोई नहीं था… और यही सभी प्रादेशिक भाषाओं के लिए सच है.

एक और मुद्दा भी है, महमूद ने तर्क दिया. ‘सिविल सेवाओं के लिए अधिकांश सामग्री अंग्रेजी में है. क्षेत्रीय भाषाओं में बड़ी मुश्किल से ही कोई पुस्तक, मॉक परीक्षा आदि मौजूद है. इस लेवल पर नुकसान शुरू होता है.’

एक भूतपूर्व संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, जो नाम न बताने की शर्त पर बातचीत के लिए सहमत हुए.

उन्होंने कहा, ‘आपको समस्या की जड़ तक जाना होगा, और अफसोस है कि संघ लोक सेवा आयोग इस समस्या की जड़ नहीं है.’ ‘भारत जैसे देश में शिक्षा, प्रशिक्षण और तैयारी सदैव कुछ विशेषाधिकार प्राफ्त को फायदा पहुंचाएगा… यदि आप आज के अफसरशाही की तुलना 60 और 70 के दशक के अफसरशाही से करें, तो आप देखेंगे कि काफी अधिक प्रतिनिधत्व बढ़ा है.’

उन्होंने कहा कि परिवर्तन आ रहा है परंतु नौकरशाही में परिवर्तन देश की जनसांख्यिकी के परिवर्तन से अधिक तेजी से नहीं हो सकता.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़े के लिए यहां क्लिक करें)

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17 टिप्पणी

  1. Agr ashe hi hota rha to hmari rastriye bashya ka astitv hi khtm hojaega… Aaj hmare desh me agr English pdhai jati h to sirf ishiye kuki angrejo ne aapni language kbhi nhi chodi ya tk ki india me aakr bi nhi lakin hum h ki mne hi desh me aapni rartryie language hindi nhi bpl rhe… Hme asha kam krna chaiye ki hum nhi blki dusre desh Vale hmari national language sikhe

  2. Baki desho me agr unki bhasha sarvshresth h aur un bhasa ko prathmikta di jati h na ki hindi ko to hindustan me bhi hindi ko first priority deni hogi then english ko then other languages ko taki hmare india ko bhi log bole ki vaaha ki bhasa hindi h aisa krna hoga ni to aaj bhi hm angrejo se piche hi rh jaenge unki trh english to sikh lenge lekin apni hindi bhasha se bahut door ho jaenge jo ki thk ni h so plz request h ki hindi ko prathmikta de app sb kisi v sector me

  3. गरीबों की भाषा हिंदी होता है क्योंकि हिंदी मातृभाषा है मात्री भाषा और मातृभूमि को आत्मनिर्भर होकर सेवा करना चाहिए,

  4. हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है ये सबको सरकार को समझना चाहिए नही तो हमारा देश बहुत पीछे चला जाएगा…….. और फिर सरकार ही तो बोलती है स्‍वदेशी अपनाओ फिर हम हिन्दी मीडियम वालो के साथ भेदभाव क्यो

  5. हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है ये सबको सरकार को समझना चाहिए नही तो हमारा देश बहुत पीछे चला जाएगा…….. और फिर सरकार ही तो बोलती है स्‍वदेशी अपनाओ फिर हम हिन्दी मीडियम वालो के साथ भेदभाव क्यो

  6. I’m from Hindi medium..now I’m preparing myself for English medium.
    Iska matlb ye nhi h ki hum Hindi language chhod de.Hindi me exam dene Ka adhikar Kabhi bnd nhi hona chahiye. Agr aisa hi chalta rha to wo din bhi durr nhi jb India se Hindi gayab ho jayegi.

  7. I’m from Hindi medium..now I’m preparing myself for English medium.
    Iska matlb ye nhi h ki hum Hindi language chhod de, Hindi me exam dene Ka adhikar Kabhi bnd nhi hona chahiye. Agr aisa hi chalta rha to wo din bhi durr nhi jb India se Hindi gayab ho jayegi.

  8. हमारे देश की राष्ट्रीय भाषा हिंदी है भारत में लगभग 70% ग्रामीण आबादी निवास करती है कई राज्यों में गांव के लोग हिंदी बोलते हैं और समझते हैं और हिंदी में पढ़ाई करते हैं तो प्रशासनिक अधिकारी को गांव में हिंदी में बात करने में कोई तकलीफ नहीं होती है और गांव के लोग हिंदी में अपने विचार व्यक्त करसमझ सकते हैं जबकि ग्रामीण लोग अंग्रेजी बहुत कम जानते हैं तो फिर हिंदी से इतनी परेशानी क्या है कि लोग अंग्रेजी के पीछे पड़े हुए हैं हिंदुस्तान में हिंदी भाषा को बढ़ावा देना चाहिए यदि इंग्लिश वालों को प्रशासनिक अधिकारी बनने में कोई परेशान नहीं होती है लेकिन हिंदी माध्यम वालों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है ऐसा चलता रहा तो आने वाला वक्त में हिंदी माध्यम में परीक्षा परीक्षार्थी कभी भी प्रशासनिक अधिकारी नहीं बन पाएंगे इसलिए यूपीएससी को और सरकार को हिंदी वालों के बारे में भी सोचना चाहिए जो ग्रामीण आबादी से गरीब परिवार से लोग आते हैं वह भी इस ओर आगे बढ़ सके

  9. हिन्दी को बढ़ाना है तो हिन्दी को अविष्कार, रोज़गार, साहित्य की भाषा बनाना होगा वरना अभी जिस हाल में हैं हिन्दी उससे तो यही लगता है कि हम आख़िरी पीढ़ी है जो हिन्दी लिखते और पड़ते हैं, तीस साल बाद तो हिन्दी भाषा सिर्फ बोली बन के रह जाएगी।

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