नई दिल्ली: ‘बिना किसी बाधा निजी वार्ता’ के लिए विशेष तौर पर लैंडलाइन फोन उपलब्ध होना, पैसों का लेन-देन, बाहर का खाना, जेल की कोठरी के बाहर बिताने के लिए असीमित समय और पेन ड्राइव, व्यावसायिक दस्तावेजों और जेल के अंदर से नगदी का निरंतर आदान-प्रदान—ये सब वो सुविधाएं हैं जो घर खरीदने वालों को धोखा देने और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में जेल में बंद यूनिटेक के प्रोमोटर संजय चंद्रा और अजय चंद्रा ने कथित तौर पर पिछले साल तिहाड़ जेल में बंद रहने के दौरान हासिल की थीं. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई हैं.
राष्ट्रीय राजधानी स्थित तिहाड़ जेल के अंदर सांठगांठ को लेकर यह खुलासा दिल्ली पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना की तरफ से की गई जांच का हिस्सा है.
यह जांच तब कराई गई जब प्रवर्तन निदेशालय ने 16 अगस्त की दायर स्टेटस रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चंद्रा दक्षिण दिल्ली में जेल के अंदर से एक ‘अंडरग्राउंड’ दफ्तर चला रहे थे, और ‘मामले में गवाहों को प्रभावित किया जा रहा है और इस अपराध में जारी जांच को पटरी से उतारने की कोशिश की जा रही है. सूत्रों ने कहा कि उनके पिता रमेश चंद्र, जिन्हें अक्टूबर की शुरुआत में गिरफ्तार किया गया था, बाहर से यह सारा काम करने में उनकी मदद कर रहे थे.
शीर्ष अदालत ने 26 अगस्त को दिल्ली पुलिस आयुक्त को तिहाड़ जेल के अधिकारियों के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से जांच करने का आदेश दिया था और चंद्रा बंधुओं को मुंबई की तलोजा जेल ट्रांसफर करने का भी निर्देश दिया था.
मामले की जांच करने वाले अस्थाना ने 28 सितंबर को एक सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपी थी, जिसमें चंद्रा की मदद करने वाले जेल अधिकारियों की भूमिका का ब्योरा दिया गया था.
रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने तिहाड़ जेल के 32 अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है.
सूत्रों के मुताबिक, तिहाड़ की जेल संख्या-7 के अंदर काम कर रहे 32 अधिकारियों के कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) के विश्लेषण से पुलिस को ये पता चला कि वे चंद्रा के एक कर्मचारी रविंदर के साथ फोन कॉल और व्हाट्सएप चैट के माध्यम से लगातार संपर्क में थे और चंद्रा की ‘अनुचित ढंग से मदद’ करने के बदले में उन्होंने पैसे लिए.
सीडीआर रिकॉर्ड और व्हाट्सएप चैट अदालत को सौंपी गई रिपोर्ट का हिस्सा हैं.
सूत्रों ने बताया कि जेल स्टाफ ने भी स्वीकार किया है कि उन्होंने रविंदर से पैसे लिए थे.
जेल स्टाफ के फोन से हजारों की संख्या में निजी कॉल की गईं
सूत्रों के मुताबिक, चंद्रा परिवार ने निजी कॉल के लिए जेल नंबर-7 के अधीक्षक कार्यालय की आधिकारिक लैंडलाइन का इस्तेमाल किया. अधीक्षक कार्यालय में एक अलग फोन लगा था, जिसे चंद्रा बंधुओं ने ‘बिना किसी बाधा के निजी बातचीत’ के लिए उनके कमरे से ले लिया था.
एक सूत्र ने कहा कि चंद्रा बंधु इस सुविधा का उपयोग करके ‘लगातार बातचीत’ कर रहे थे.
सूत्र ने कहा कि 28 अगस्त 2020 से 16 अगस्त 2021 के बीच चंद्रा बंधुओं ने हजारों कॉल किए. कोर्ट को सौंपी गई रिपोर्ट में इन सब कॉल के बारे में पूरा रिकॉर्ड दिया गया है.
सूत्र ने कहा, ‘अधीक्षक के कार्यालय में एक अलग फोन लगाया गया था, जिसे उनके कमरे के बगल में स्थित पीए के कमरे में ले जाया गया था, जहां निजी बातचीत के लिए समय दिया जाता था.’
सूत्र ने कहा, ‘इस समय का उपयोग चंद्रा बंधु अपने हर तरह के लेन-देन और पैसों से संबंधित बातचीत के लिए किया करते थे. वे पैसों के निवेश के बारे में अपने कर्मचारियों से बातचीत करते थे और उन्हें यह भी बताते थे कि जेल के अंदर और किन दस्तावेजों की जरूरत है. चंद्रा बंधु अपनी पत्नियों के अलावा अन्य परिजनों से भी फोन पर बात करते थे.’
जेल नंबर-7 में तैनात कर्मचारियों के सीडीआर विश्लेषण से पता चला है कि चंद्रा बंधुओं ने जेल अधिकारियों के निजी फोन का इस्तेमाल करके अपने कर्मचारियों और रिश्तेदारों को सैकड़ों निजी कॉल की थीं.
सूत्रों ने बताया, ‘संजय चंद्रा की पत्नी प्रीति चंद्रा को कई फोन किए गए. इसके अलावा, रविंदर और लखबीर को कई कॉल किए गए जो चंद्रा के भरोसेमंद कर्मचारी हैं. ये सभी कॉल अदालत की तरफ से स्वीकृत फोन कॉल के अतिरिक्त थीं.’
संजय चंद्रा और अजय चंद्रा रमेश चंद्रा के बेटे हैं. रमेश और प्रीति को इसी साल अक्टूबर में गिरफ्तार किया गया है और मनी लॉड्रिंग समेत कई आरोपों में ये दोनों भी जेल में हैं.
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‘जेल स्टाफ को दस्तावेज आदि के हर आदान-प्रदान पर 5,000-10,000 रुपये दिए’
सूत्रों के अनुसार, मामले की जांच में पता चला कि जेल नंबर-7 जेल के कर्मचारी चंद्रा परिवार को ‘लाभ’ पहुंचा रहे थे, उन्हें पैसों के लेन-देन, पेन ड्राइव और नकदी से संबंधित व्यावसायिक दस्तावेजों के आदान-प्रदान में पूरी मदद कर रहे थे, जिसके लिए उन्हें ऐसे हर आदान-प्रदान पर पांच से 10 हजार रुपये का तक भुगतान किया जा रहा था.
अगर कैश के साथ ज्यादा दस्तावेज इधर-उधर पहुंचाए जाते तो यह रकम और भी ज्यादा बढ़ जाती थी.
सूत्रों ने कहा कि लखबीर चंद और रविंदर ने चंद्रा के निर्देशों पर काम किया, और जेल कर्मचारियों के साथ मिलकर तिहाड़ के अंदर से इस तरह के आदान-प्रदान की सुविधा मुहैया कराई. सूत्र ने कहा कि रमेश, जिन्हें अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया था, बाहर से ही सारे इंतजाम कर रहे थे.
सूत्र के मुताबिक, ‘जेल कर्मचारी लिफाफों में संदेश लाते थे जिस पर चंद्रा की तरफ से ‘बाई हैंड’ लिखा होता था और उन्हें बाहर रविंदर को दिया जाता था.
सूत्र ने कहा, ‘बदले में रविंदर जेल स्टाफ को लिफाफे देता था जिसमें लिखा होता था ‘बाई हैंड’ और इसे जेल के बाहर रमेश चंद्रा को दिया जाना होता था.’
सूत्र ने बताया, ‘जिस कर्मचारी को लिफाफा लेकर जाना होता था, उसे जेल के अंदर हाथ से लिखी एक पर्ची दी जाती थी, जिसमें लिखा होता था—‘कृपया XXX (स्टाफ का नाम) को 10,000 रुपये दे दें.’ यहां तक कि जेल अधीक्षक को भी इसी तरह पैसे दिए जाते थे. इसके बाद कर्मचारी पैसे लेने के लिए वह पर्ची रविंदर को दिखाते थे.
सूत्र ने बताया कि एक बार जब रविंदर को पर्ची दिखाई जाती, तो वह उसकी एक तस्वीर खींच लेता था और जेल कर्मचारी पर्ची फाड़ देते थे.
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व्हाट्सएप का इस्तेमाल, जेल के बाहर असीमित समय
सूत्रों ने बताया कि व्हाट्सएप के जरिए चंद्रा परिवार के पास कई दस्तावेज भी आए.
ऊपर उद्धृत सूत्र ने बताया, ‘लखबीर अक्सर व्हाट्सएप पर रमेश को दस्तावेज भेजता था. लखबीर ने रमेश चंद्रा, अजय चंद्रा से यह भी कह रखा था कि पैसों के लेन-देन से जुड़े सभी दस्तावेजों को देखने के बाद डिलीट कर दें. उन सभी का रिकॉर्ड एक्सेस किया गया है.’
सूत्रों ने कहा कि चूंकि चंद्रा परिवार के पास जेल के अंदर पैसे पहुंचने की सुविधा थी, इसलिए उन्होंने कई लोगों को भर्ती किया और उनसे अपने लिए तमाम काम कराने के बदले भुगतान किया.
व्यवसायी पोंटी चड्ढा की हत्या के मामले में जमानत पर रिहा हुए सिमरनजीत सिंह नाम के एक आरोपी को अजय और संजय चंद्रा ने छूटने के दौरान कथित तौर पर कंपनी के कुछ दस्तावेज ले जाने का जिम्मा सौंपा था.
ऊपर उद्धृत सूत्रों ने बताया कि जेल के जो नियम सभी पर लागू होते थे, उनका संजय और अजय के लिए कोई मायने नहीं था.
सूत्र ने कहा, ‘उन्हें जेल की कोठरी के बाहर असीमित समय मिलता था. उन्हें अन्य कैदियों की तरह बंद नहीं रखा जाता था. पूछताछ के दौरान, कैदियों ने यह भी खुलासा किया कि उन्हें कभी भी सेल के अंदर रहने के लिए नहीं कहा गया था.’
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