नयी दिल्ली, 29 मार्च (भाषा) उत्तर प्रदेश सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि उसने लखीमपुर खीरी हिंसा के सिलसिले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा की जमानत याचिका का “कड़ा विरोध” किया है। इस हिंसा में चार किसानों सहित आठ लोग मारे गए थे।
जमानत याचिका का प्रभावी तरीके से विरोध नहीं करने के आरोपों से इनकार करते हुए प्रदेश सरकार ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा आशीष मिश्रा को लखीमपुर खीरी हिंसा के संबंध में जमानत देने के फैसले को चुनौती देने का मामला संबंधित प्राधिकारियों के समक्ष विचाराधीन है।
उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ किसानों के परिवार के सदस्यों द्वारा दायर याचिका पर दाखिल अपने जवाबी हलफनामे में प्रदेश सरकार ने यह भी कहा कि जांच से पता चला है कि मामले के एक प्रमुख गवाह दिलजोत सिंह को कथित तौर पर 10 मार्च को एक “अचानक हुए विवाद” के कारण बदमाशों ने पीटा था। दिलजोत उस पर होली के रंग फेंकने के बाद भड़क गया था।
राज्य सरकार ने गवाह द्वारा दायर प्राथमिकी में आरोपों को खारिज करते हुए प्रतिवेदित किया कि हमलावरों ने धमकी दी थी कि अब भाजपा ने उप्र चुनाव जीत लिया है, वे “उसे देखें लेंगे”।
सरकार ने कहा कि 10 मार्च की घटना लखीमपुर खीरी हिंसा से “किसी भी तरह से संबंधित” नहीं है। उसने कहा कि उसे (हमले को) 3 अक्टूबर 2021 की किसान की मौत के साथ जोड़ने करने की मांग की गई है।
राज्य सरकार ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के साथ-साथ उसके जवाबी हलफनामे से यह प्रदर्शित होगा कि उसने मिश्रा की जमानत अर्जी का पुरजोर विरोध किया है।
उसने कहा, “यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि प्रतिवादी नंबर 1 (आशीष मिश्रा) के जमानत आवेदन का राज्य ने कड़ा विरोध किया था, और विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में इसके विपरीत कोई भी कथन पूरी तरह से गलत है और खारिज करने योग्य है। इसके अलावा, 10 फरवरी, 2022 का आक्षेपित आदेश, उसी के खिलाफ सीमा अवधि अभी भी चल रही है, और उसके खिलाफ एसएलपी दायर करने का निर्णय संबंधित अधिकारियों के समक्ष विचाराधीन है।”
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प्रशांत उमा
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