नयी दिल्ली, 30 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि त्वरित एवं समय पर न्याय न मिलना दीर्घकाल में ‘‘कानून का शासन’’ के लिए ‘‘विनाशकारी’’ हो सकता है।
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अदालतों को बिना किसी वैध औचित्य के कार्यवाही में देरी करने के किसी भी प्रयास को शुरूआत में ही रोक देना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि न्याय प्रशासन नागरिकों के विश्वास पर आधारित है और ऐसा कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए, जिससे उस विश्वास को जरा भी ठेस पहुंचे।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि पीड़ित, आरोपी और समाज की यह वैध अपेक्षा है कि उचित समय के भीतर पक्षों को न्याय मिले।
पीठ ने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि त्वरित और समय पर न्याय कानून के शासन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। त्वरित और समय पर न्याय नहीं मिलना लंबे समय में, कानून के शासन के लिए विनाशकारी हो सकता है।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘भले ही किसी मामले में शामिल पक्षकार बिना किसी वैध औचित्य के कार्यवाही में देरी करने का प्रयास करें, अदालतों को सतर्क रहने और ऐसे किसी भी प्रयास को तुरंत रोकने की आवश्यकता है।’’
इसने मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के अप्रैल 2021 के आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें एक मामले में आगे की जांच का आदेश दिया गया था। उस मामले में, मार्च 2013 में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एक व्यक्ति की कथित हत्या के संबंध में शिकायत पर मार्च 2013 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी तथा मामले में अंतिम रिपोर्ट दाखिल की गई थी।
पीठ ने कहा, ‘‘हाल में हमने देखा है कि अपमानजनक और पहली नजर में अविश्वसनीय कथनों के साथ दलीलें/याचिकाएं बिना किसी रोक-टोक के पेश की जाती हैं। विशेष रूप से कुछ पारिवारिक कानून की कार्यवाही में ऐसा होता है, चाहे वह दीवानी हो या आपराधिक।’’
न्ययालय ने कहा कि कथनों को पढ़ने के बाद ‘‘हमें आश्चर्य होता है कि क्या अपीलार्थी अपने हस्ताक्षर करने से पहले इस बात से अवगत थे कि उनकी ओर से कथित तौर पर क्या लिखा गया है।’’
पीठ ने कहा कि इस तरह की चीजें सीधे तौर पर कानून के शासन पर असर डालती हैं, क्योंकि इनसे लंबित मामलों की संख्या बढ़ती है और परिणामस्वरूप न्याय की मांग कर रहे अन्य मामलों के निस्तारण में देरी होती है।
पीठ ने कहा कि इस प्रक्रिया में कानून के पेशे की महत्वपूर्ण भूमिका है और कोई भी कार्यवाही या अर्जी, जिसमें प्रथम दृष्टया गुण-दोष का अभाव है, उसे अदालत में पेश नहीं किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘अब समय आ गया है कि ऐसी तुच्छ और परेशान करने वाली कार्यवाहियों को ऐसे हथकंडे अपनाने से रोकने के लिए अनुकरणीय अदालत खर्च के रूप में उचित दंड दिया जाए।’’
उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील को स्वीकार करते हुए पीठ ने निर्देश दिया कि 2 दिसंबर 2021 के अतिरिक्त आरोपपत्र को रिकॉर्ड पर नहीं लिया जाएगा।
पीठ ने कहा, ‘‘हम निर्देश देते हैं कि पक्षों की दलीलें नए सिरे से सुनने के बाद, मुकदमे को समाप्त किया जाना चाहिए और आज से आठ सप्ताह के भीतर फैसला सुनाया जाए।’’
भाषा सुभाष माधव
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