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Monday, 18 November, 2024
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मेडिकल संस्थानों की कमी छात्रों को विदेश जाने के लिए मजबूर करती है: अदालत

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नयी दिल्ली, 16 मार्च (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि आकांक्षी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण सस्ती शिक्षा प्रदान करने वाले पर्याप्त मेडिकल संस्थानों की कमी के कारण ही वे स्वदेश छोड़ने और विदेशों में अध्ययन करने के लिए मजबूर होते हैं। अदालत ने साथ ही कहा कि यह वास्तविकता ऐसे में चिंता का कारण बन गई है जब यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष के कारण हजारों भारतीय मेडिकल छात्रों को वापस लाया गया है और उन्होंने कॉलेजों में अपनी सीटें गंवा दी हैं।

उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी संतोष मेडिकल कॉलेज में स्नातकोत्तर और स्नातक पाठ्यक्रमों में सीटें बढ़ाने की अनुमति देते हुए की। यह कॉलेज संतोष ट्रस्ट द्वारा संचालित और प्रबंधित किया जा रहा है, जिसे औपचारिक रूप से महाराजी एजुकेशनल ट्रस्ट के रूप में जाना जाता है।

न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने मंगलवार को पारित 41 पृष्ठों के फैसले में कहा, ‘‘मैं इस तथ्य पर गौर किये बिना नहीं रह सकती कि आकांक्षी छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए गुणवत्तापूर्ण सस्ती शिक्षा प्रदान करने वाले चिकित्सा संस्थानों की पर्याप्त संख्या की कमी के कारण, वे अक्सर अपने देश छोड़ने का विकल्प चुनने के लिए मजबूर होते हैं और विदेश में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह वास्तविकता विशेष रूप से ऐसे समय में चिंता का कारण बन गई है जब यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष के कारण, उन कई हजार भारतीय मेडिकल छात्रों ने मेडिकल कॉलेजों में भी अपनी सीटें गंवा दी हैं जो युद्धग्रस्त यूक्रेन में अपनी मेडिकल की पढ़ायी के लिए गए थे और उन्हें निकालकर स्वदेश लाया गया है।’’

अदालत ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अधिकारियों को नियमों के तहत निर्धारित मानकों को कम करने के लिए नहीं कहा जा सकता है। हालांकि साथ ही वर्तमान स्थिति में, जब यह पाया जाता है कि याचिकाकर्ता जैसा संस्थान जो पिछले 20 से अधिक समय से चल रहा है, वर्षों से किसी भी बुनियादी ढांचे की कमी नहीं है और कोविड-19 महामारी के कारण प्रारंभिक निरीक्षण के समय पाई गई कमियों को भी ठीक किया है, यह भी जनहित के खिलाफ होगा कि याचिकाकर्ता को सीट बढ़ाने की अनुमति न दी जाए।

अदालत ने कहा, ‘‘ऐसे समय में जब देश की जनसंख्या के साथ चिकित्सा पेशे का अनुपात बहुत कम है, स्नातकोत्तर और स्नातक सीटों की संख्या में वृद्धि निश्चित रूप से देश के चिकित्सा बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के बड़े लक्ष्य में योगदान देगी।’’

अदालत ने राष्ट्रीय आर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) के दो आदेशों को रद्द कर दिया जिसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता टी सिंहदेव के माध्यम से किया जा रहा था। अदालत ने आयोग और अन्य प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि संस्थान को एमएस (प्रसूति और स्त्री रोग) में सीटों को 4 से बढ़ाकर 7 करने, एमएस (ऑर्थोपेडिक्स) में 3 से 7 और एमबीबीएस कोर्स में 100 से बढ़ाकर 150 करने की अनुमति दी जाए।

अदालत ट्रस्ट की एक याचिका पर विचार कर रही थी, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में मेडिकल, डेंटल, पैरामेडिकल और पैरा-डेंटल कॉलेजों/संस्थानों का एक समूह चलाता है और उसका प्रबंधन करता है। इसमें याचिकाकर्ता भी शामिल है, जो एक मेडिकल एजुकेशनल इंस्टीट्यूट है, जो एमबीबीएस और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम की पेशकश करता है।

याचिका में एनएमसी द्वारा जारी किए गए अस्वीकृति पत्रों को चुनौती दी गई थी, जिसमें बैचलर ऑफ मेडिसिन एंड बैचलर ऑफ सर्जरी (एमबीबीएस) पाठ्यक्रम और एमएस (प्रसूति एवं स्त्री रोग) और एमएस (ऑर्थोपेडिक्स)स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में संस्थान में सीटों की वृद्धि के लिए याचिकाकर्ताओं का अनुरोध खारिज कर दिया गया था।

भाषा अमित अनूप

अनूप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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