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Thursday, 9 May, 2024
होमदेशकोलकाता का 'कम्युनिस्ट डॉक्टर' जो कोविड संक्रमितों समेत सभी मरीजों की डायलिसिस सिर्फ 50 रुपये में कर रहा है

कोलकाता का ‘कम्युनिस्ट डॉक्टर’ जो कोविड संक्रमितों समेत सभी मरीजों की डायलिसिस सिर्फ 50 रुपये में कर रहा है

डॉ. फवाद हलीम की टीम, जो माकपा से संबद्ध नहीं है, ने लॉकडाउन शुरू होने के बाद से अब तक 2,190 डायलिसिस की हैं. मरीजों की नजर में वह फरिश्ते से कम नहीं हैं.

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कोलकाता: कोविड-19 महामारी का प्रसार रोकने के लिए 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन लागू होने के बाद से किडनी और कैंसर जैसी बीमारियों से पीड़ित मरीजों को नियमित उपचार की सुविधा काफी कठिनाई से मिल पा रही है. लेकिन पश्चिम बंगाल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के एक नेता की मात्र 50 रुपये में एक बार डायलिसिस की सुविधा देने के लिए काफी प्रशंसा हो रही है.

सुर्खियों में आए नेता एक 49 वर्षीय मेडिकल डॉक्टर हैं, जो अपने 60 दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मिलकर बनाए गए एनएजी स्वास्थ्य संकल्प के तहत दक्षिण कोलकाता में पार्क स्ट्रीट के पास एक छोटी स्टैंडअलोन डायलिसिस यूनिट चलाते हैं.

तीन डॉक्टरों और चार तकनीशियनों वाली हलीम की टीम ने लॉकडाउन शुरू होने के बाद से अब तक 2,190 डायलिसिस को पूरा किया है. सबसे अहम यह है कि एक तरफ जहां कथित तौर पर तमाम अस्पताल कोविड संक्रमण के डर से रोगियों को लौटा रहे हैं. हलीम की यूनिट सभी मरीजों को ले रही है, चाहे कोविड पॉजीटिव हो या निगेटिव. यह जरूर है कि संक्रमण के लक्षण वाले मरीजों को डायलिसिस के बाद जांच के लिए सरकारी फीवर क्लीनिक में भर्ती होना होगा.

आइडिया और उसके पीछे कौन

फवाद हलीम सत्ता की कमान ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के हाथों में आने पहले 34 साल चले वाममोर्चा शासन के दौरान 1982 से 2011 यानी 29 साल तक पश्चिम बंगाल विधानसभा के स्पीकर के रहे हाशिम अब्दुल हलीम के पुत्र हैं.

हलीम जूनियर ने 2019 का लोकसभा चुनाव माकपा के टिकट पर डायमंड हार्बर से लड़ा और एक लाख से कम वोटों के अंतर से तीसरे स्थान पर रहे, जबकि यहां से जीते मुख्यमंत्री के भतीजे अभिषेक बनर्जी को लगभग आठ लाख वोट मिले.

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फवाद हलीम माकपा की पीपुल्स रिलीफ कमेटी के महासचिव भी हैं, लेकिन 2008 में स्थापित किया गया स्वास्थ्य संकल्प पार्टी से संबद्ध नहीं है.

हलीम कहते हैं कि यह क्षेत्र की पहली स्टैंडअलोन डायलिसिस यूनिट है, क्योंकि वैसे ये आम तौर पर सरकारी और निजी अस्पतालों से जुड़ी होती हैं, जहां मरीजों को कतार में इंतजार करना पड़ता है.

हलीम ने दिप्रिंट को बताया, हम लोगों को सस्ती और मानक डायलिसिस सुविधा देना चाहते थे. जो मरीज किडनी की बीमारी से पीड़ित होते हैं वे एक बड़े वित्तीय तनाव से भी गुजर रहे होते हैं. शारीरिक दिक्कतें झेलने के अलावा इसमें से ज्यादातर मरीज लंबा-चौड़ा खर्च वहन करने की स्थिति में नहीं होते हैं. इसलिए, मैंने स्कूल के समय के कुछ दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मिलकर इस पर कुछ करने का फैसला किया. हमने 2008 में पांच बेड वाली एक यूनिट खोली, इसे मैंने अपने घर पर शुरू किया.

उन्होंने आगे कहा, शुरुआत में हम प्रति डायलिसिस 350 रुपये लेते थे और इसकी दर हमने कभी बढ़ाई नहीं. सरकारी अस्पतालों में डायलिसिस पर खर्च लगभग 900 से 1,200 रुपये तक हो सकता है. स्वास्थ्य साथी (सरकारी स्वास्थ्य योजना) के लाभार्थियों के लिए डायलिसिस निशुल्क होता है.

लेकिन सरकारी अस्पतालों में लंबा इंतजार करना पड़ता है और देखभाल की सुविधा भी अधिकांश समय बहुत अच्छी नहीं होती है. यहां हम पूरे वैज्ञानिक मानकों और हाईजीन का ध्यान रखते हुए डायलिसिस करते हैं.

लॉकडाउन के दौरान शुल्क में कमी

भारत में कोविड-19 के प्रसार की रोकथाम के लिए लॉकडाउन लगाए जाने के बाद फवाद हलीम और उनकी टीम ने डायलिसिस पर एक बार आने वाले खर्च को घटाकर 50 रुपये करने और कोविड पॉजीटिव और निगेटिव दोनों ही तरह के मरीजों के इलाज का फैसला किया.

उन्होंने बताया, हम कोई भेदभाव नहीं करते. ऐसे मरीज हैं जिनका हमने यहां इलाज किया और फिर लक्षणों के आधार पर फीवर क्लीनिक भेज दिया. बाद में वे कोविड पॉजीटिव निकले. वहीं, ऐसे भी मरीज हैं जो टेस्ट का नतीजा निगेटिव आने के बाद हमारे पास आए और हमने उनकी डायलिसिस की. हमारे तकनीशियन और डॉक्टर डायलिसिस प्रक्रिया के दौरान कोविड-19 से जुड़े सारे प्रोटोकॉल और दिशानिर्देशों का पालन करते हैं. अब तक हमारे स्टाफ में से कोई भी संक्रमित नहीं हुआ है.

यह पूछे जाने पर कि डायलिसिस की प्रति प्रक्रिया पर मात्र 50 रुपये शुल्क लेकर उनकी यूनिट कैसे चल रही है, हलीम ने बताया कि इसकी लागत वह और उनके दोस्त वहन करते हैं. हलीम का परिवार आर्थिक रूप से सम्पन्न है. उन्होंने 2019 में चुनाव आयोग को सौंपे हलफनामे में अपनी कुल संपत्ति 3.60 करोड़ रुपये होने का उल्लेख किया था.

उन्होंने बताया, तीन डॉक्टर यहां स्वेच्छा से मुफ्त सेवाएं देते हैं, जबकि तकनीशियनों को हम भुगतान करते हैं. हमारे समूह में लगभग 60 सदस्य, मुख्यतः मित्र और परिजन हैं. हम मिलजुलकर वित्तीय बोझ वहन करते हैं। इस पहल को हम अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के तौर पर देखते हैं।

हलीम की यूनिट में उपकरणों के नौ सेट के साथ प्रतिदिन 35 से 40 डायलिसिस होती हैं. यूनिट में एसी, या मरीजों अथवा परिजनों के लिए वेटिंग एरिया या लिफ्ट नहीं है। हमने ये सुविधाएं न रखकर लागत कम करने की कोशिश की है. वैसे भी इनका इलाज या डायलिसिस प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं है.

मरीजों के लिए फरिश्ता

मरीजों को इस बात की बेहद खुशी है कि इस कठिन समय में हलीम और उनका स्टाफ मदद के लिए उपलब्ध हैं। 26 वर्षीय नुसरत अमीन, जिन्हें हफ्ते तीन बार डायलिसिस की जरूरत होती है, ने दिप्रिंट को बताया, मैं पिछले दो सालों से डायलिसिस पर हूं. मेरा क्रिएटिनिन स्तर असामान्य रूप से बढ़ जाता है और सांस लेना एकदम भारी हो जाता है. मैंने स्थानीय स्तर पर कुछ निजी नर्सिंग होम में कोशिश की थी लेकिन मुझे काफी परेशानी हुई. लेकिन ये (हलीम का सेंटर) पेशेवर ढंग से काम करते हैं.

अमीन ने लगभग चार महीने पहले सांस लेने में तकलीफ होने पर एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती होने के दौरान के अपने अनुभव के बारे में बताया.

मोमिनपुर में रहने वाली एक गृहिणी अमीन ने कहा, उन्होंने प्रति डायलिसिस 1,800 रुपये का शुल्क लिया। लेकिन इस दौरान मेरा रक्तचाप एकदम बढ़ गया जिससे श्वसनतंत्र की समस्या और गंभीर हो गई.

यह पूछने पर कि वह हलीम की यूनिट में क्यों गई थी उसने कहा, मेरा दो साल का एक बच्चा है और मेरे पति एक कॉलसेंटर में काम करते हैं. लॉकडाउन के दौरान उनकी नौकरी को लेकर भी कोई स्थिरता नहीं है. हम महंगा इलाज वहन नहीं कर सकते हैं.

काफी लंबे समय से किडनी की बीमारी से पीड़ित 47 वर्षीय अशफाक अहमद को प्रत्यारोपण की आवश्यकता है लेकिन वह इसका खर्च वहन नहीं कर सकते. इसलिए उन्हें हफ्ते में दो बार डायलिसिस करवानी पड़ती है. अहमद ने कहा, मैंने एक सरकारी अस्पताल में यह प्रक्रिया शुरू कराई थी, मैं जनरल वार्ड में रहा और वहां बहुत ही गंदगी थी. मैं निजी अस्पताल का खर्च नहीं उठा सकता ऐसे में डॉ. हलीम हमारे लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं.

अहमद कोचिंग क्लासेस चलाते थे, लेकिन उनकी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण छात्रों का वहां आना बंद हो गया. उन्होंने बताया, मैं बमुश्किल अपने परिवार का खर्च चला पा रहा हूं. अगर डॉ. हलीम नहीं होते तो मैं अब तक शायद बचता भी नहीं.

हालांकि, अहमद ने हलीम के सेंटर में लिफ्ट न होने की वजह से अपने सामने आ रही मुश्किल का उल्लेख जरूर किया.

अहमद ने कहा, उनके सेंटर में लिफ्ट नहीं है और डायलिसिस यूनिट दूसरी मंजिल पर है. हमारे लिए सीढ़ियां चढ़ना मुश्किल हो जाता है. लेकिन, डॉ. हलीम ने हमें बताया कि वह लिफ्ट नहीं लगा सकते, क्योंकि उन्हें लागत में कटौती करनी है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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