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Friday, 20 December, 2024
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स्नेहल गवारे की लाश उसके ही बेड के बॉक्स में छुपा रखी थी,15 साल बाद भी अनसुलझा है मामला

स्नेहल के दोनों हाथ उसकी पीठ के पीछे बंधे हुए थे और उसके मुंह में सफेद कपड़ा बंधा हुआ था. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक, इस 21 वर्षीय युवती की मौत दम घुटने से हुई थी.

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नई दिल्ली: ‘मैं बॉक्स बेड (दीवान) में उसके पैर देख सकती हूं.’

20 जुलाई, 2007 को सुबह लगभग 5:15 बजे, कल्पना गवारे अपनी बेटी स्नेहल के गायब होने के 12 घंटे से अधिक समय बाद उस के शरीर को अपने ही घर में एक बॉक्स बेड (दीवान) के अंदर ठूंसा हुआ पा कर चीख पड़ीं.

स्नेहल के दोनों हाथ उसकी पीठ के पीछे बंधे हुए थे और उसके मुंह में सफेद कपड़ा बंधा हुआ था. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक, इस 21 वर्षीय युवती की मौत गला दबाने के कारण दम घुटने से हुई थी. फिर पुलिस ने एक हत्या का मामला दर्ज किया – हालांकि 15 साल बाद भी इस मामले की जांच जारी है, मगर पिछले 7 सालों में उन्हें कोई नया सुराग या संदिग्ध नहीं मिला है.

हत्या जब हुई तब स्नेहल मुंबई के अंधेरी में स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग में इंजीनियरिंग की छात्रा थी.

दिप्रिंट द्वारा हासिल किये गए पुलिस दस्तावेजों और अदालती रिकॉर्ड्स (अभिलेखों) के अनुसार, पुलिस ने तब से इस मामले का कई कोणों से पता लगाया और स्नेहल के करीबी कई लोगों, जिसमें उसके माता-पिता और उस समय उसके प्रेमी हिरेन राठौड़ भी शामिल है, से पूछताछ भी की.

उसने इस मामले में कई सारे सुरागों का पीछा भी किया है – स्नेहल के फोन पर उसकी मौत के समय का एक ब्लैंक मैसेज (कोरा एसएमएस), उसका फोन (जो एक स्टेशनरी की दुकान से बरामद किया गया था), एक ब्रेन फिंगरप्रिंटिंग टेस्ट, और एक लापता हाजिरी (अटेंडेंस) रजिस्टर.

पर इनमें से कुछ भी इस मामले को अंतिम परिणति तक न ले जा सका.

राठौड़, जो इस घटना के एक साल बाद अपनी मास्टर डिग्री के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका चला गया था, को तब इस मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था जब वह अप्रैल 2010 में अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए वापस भारत आया था. हालांकि, उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत इकट्ठा करने में असमर्थ रहने के बाद से पुलिस ने दो बार उसके खिलाफ मामले को बंद करने की कोशिश की, मगर अदालत ने हर बार यही कहा कि ‘(मामले की) जांच असंतोषजनक है व आगे और जांच की गुंजाइश है.’

और इसलिए, जिस किसी ने भी स्नेहल को बांधा, उसका मुंह बंद किया, उसके ही घर में दिनदहाड़े उसकी हत्या कर सके शव को दीवान में ठूंस दिया, उसकी तलाश अभी भी जारी है, जिसका कोई अंत नजर नहीं आ रहा है.


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चप्पल, एक गिलास पानी, एक ब्लैंक मैसेज

इस मामले में स्नेहल के पिता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के अनुसार, इस हादसे के समय गवारे परिवार डोंबिवली स्थित निनाद कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी में रहता था. वे एक बेहद ही सुखी परिवार थे – या कम-से-कम सामने तो ऐसा ही दिखता था. पिता, हिंदूराव गवारे, उस समय अभ्युदय सहकारी बैंक में सहायक लेखाकार के पद पर थे और मां, कल्पना गवारे, एक स्कूल शिक्षिका के रूप में काम करती थीं. उनकी बड़ी बेटी शीतल तब लंदन में पढ़ रही थी.

19 जुलाई, 2007 का दिन हिंदूराव के लिए एक सामान्य दिन के रूप में ही शुरू हुआ था. वह पहले अपने काम पर चले गए और आम दिनों की तरह शाम करीब 7 बजे घर लौटे. हालांकि, यही वह क्षण था जब उनकी दुनिया में उथल-पुथल मच गई.

हिंदूराव द्वारा दर्ज कराई गई पुलिस शिकायत के अनुसार, उनकी पत्नी ने तब उन्हें बताया था कि जब वह शाम 6 बजे के आसपास घर लौटीं, तो उन्होंने देखा कि स्नेहल घर पर नहीं थी, लेकिन हॉल के दरवाजे की कुंडी लगी हुई थी, उसकी चप्पलें घर पर ही थीं, और हॉल में पानी से भरा एक गिलास रखा था. मराठी में लिखी गई इस शिकायत के अनुसार, कल्पना ने यह भी दावा किया कि उसे दोपहर 3:28 बजे स्नेहल की तरफ से एक ब्लैंक मैसेज भी मिला था.

हालांकि, जब स्नेहल के माता-पिता उसका पता नहीं लगा सके और उसका फोन स्विच-ऑफ (बंद) ही रहा था, तो उन्होंने उसी दिन लगभग 10:35 बजे डोंबिवली पुलिस स्टेशन में शुरू में एक गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई.

वे सुबह लगभग 2:30 बजे थके-हारे घर लौटे और बाकी की सारी रात जागते ही रहे. मां (कल्पना गवारे) अपने स्कूल की एक अन्य शिक्षिका के साथ बेडरूम में रहीं, जबकि पिता (हिंदूराव गवारे) अपने एक दोस्त के साथ हॉल में बैठे थे.

सुबह लगभग 5:15 बजे, हिंदूराव और उनके दोस्त ने कथित तौर पर बेडरूम से जोर से चीखने की आवाज सुनी- कल्पना ने दीवान के अंदर से स्नेहल के पैरों को नजर आते हुए देखा था. परिवार द्वारा दायर हत्या की शिकायत के अनुसार, पिता ने बिस्तर के गद्दे और प्लाई को हटाते हुए स्नेहल की लाश पाई. दिप्रिंट ने इस शिकायत की एक कॉपी देखी है.

गायब हुआ हाजिरी रजिस्टर

20 जुलाई को पुलिस को मराठी में दिए अपने बयान में राठौड़ ने पुलिस को बताया कि जब स्नेहल को अंधेरी कॉलेज में दाखिला मिला था, तब वो वहां सेकेंड ईयर (द्वितीय वर्ष) की छात्र थी. वे पहली बार सितंबर 2004 में मिले थे, और अगस्त 2005 में उनमें प्यार हो गया था. उसने पुलिस को बताया कि वह अक्सर स्नेहल के घर आता था और उसकी मां को उनके रिश्ते के बारे में पता था.

उसने पुलिस को स्नेहल की मौत से एक हफ्ते पहले उसके साथ हुई लड़ाई, जो उसके एक पार्टी में जाने और एक ऐसे दोस्त से मिलने के कारण हुई थी जो स्नेहल को पसंद नहीं था, के बारे में भी बताया. हालांकि, उनके बीच सुलह हो गई थी, पर जैसा कि राठौड़ ने दावा किया कि उसने स्नेहल से कहा था कि वे एक-दूसरे से एक हफ्ते तक नहीं मिल पाएंगे, क्योंकि वह किसी काम में व्यस्त है.

राठौड़ ने अपने बयान में यह भी दावा किया कि स्नेहल की मौत से दो दिन पहले से उसका (राठौड़ का) फोन ठीक से काम नहीं कर रहा था. हालांकि 19 जुलाई, 2007 वाले दिन उसका फोन उसके ही पास था, मगर उसने दावा किया कि उसने इसे पूरे दिन बंद रखा हुआ था, क्योंकि फोन की बैटरी ठीक से काम नहीं कर रही थी और वह इसे केवल कॉल करने के लिए चालू कर रहा था. उसने दावा किया कि स्नेहल के लापता होने की खबर उसे रात करीब 8:30 बजे तब मिली, जब वह अपने घर लौटा. दिप्रिंट ने उसका यह बयान देखा है.

जैसा कि इसके बाद के एक बयान में बताया गया है, राठौड़ जुलाई 2007 से जुलाई 2008 तक मुंबई में वोल्टास कंपनी में एक मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में काम कर रहा था. दिप्रिंट द्वारा हासिल किये गए पुलिस और अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, राठौड़ ने दावा किया था कि हादसे वाले दिन, सुबह 9 बजे से शाम 5:30 बजे के बीच, वह अपने दोस्तों – जो अन्य मैनेजमेंट ट्रेनी थे – के साथ अपने कार्यस्थल पर ही था. हालांकि, जैसा कि रिकॉर्ड में उल्लेख किया गया है, जांच अधिकारी उस विशेष तिथि के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हाजिरी वाला रजिस्टर कभी भी बरामद नहीं कर सके.

2010 में पुलिस को दिए एक बयान के अनुसार, 30 जुलाई 2008 को, राठौड़ संयुक्त राज्य अमेरिका के साउथ कैरोलिना राज्य स्थित क्लेम्सन यूनिवर्सिटी में 2 साल के मास्टर कार्यक्रम को पूरा करने के लिए अमेरिका चला गया था.

खुशहाल परिवार?

स्नेहल का शव मिलने के कुछ दिनों बाद, 2 अगस्त, 2007 को, उसका फोन पुलिस रिकॉर्ड में मनसुख शिवाजी पाटिल के रूप में पहचाने गए एक व्यक्ति के पास से बरामद किया था. उस समय मुंबई के कांदिवली में स्टेशनरी की दुकान चलाने वाले 33 वर्षीय पाटिल ने पुलिस को बताया था कि 31 जुलाई, 2007 को एक शख्स उसकी दुकान पर आया था और उसे वह मोबाइल फोन बेच दिया था. पूछताछ किये जाने पर उस ‘शख्स’ ने जाहिर तौर पर पाटिल से कहा था कि उसे फोन कहीं गिरा मिला है. पाटिल ने दावा किया कि इसके बाद उन्होंने उस शख्स को उस फोन के लिए 3,500 रुपये दिए थे.

स्नेहल के परिवार को मोबाइल फोन बेचने वाले इस शख्स का स्केच दिखाया गया था और उसका हुलिया भी बताया गया, लेकिन पुलिस के एक दस्तावेज के मुताबिक, परिवार स्केच से इस फोन बेचने वाले की पहचान नहीं कर सका.

इस बीच मामले की जांच ने धीरे-धीरे गवारे परिवार की ‘खुशहाल’ छवि में पड़ी दरारों का भी खुलासा किया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्नेहल की बड़ी बहन शीतल ने इससे पहले अपने ही पिता के खिलाफ उसकी कथित रूप से पिटाई करने के बारे में एक पुलिस शिकायत दर्ज कराई थी. जैसा कि रिपोर्ट में दावा किया गया है, मार्च 2008 में जब हिंदूराव की मनोवैज्ञानिक प्रोफाइलिंग की गई तो यह पाया गया कि उन्हें अपनी पत्नी पर उनके एक रिश्तेदार, अनिल जावलेकर, के साथ विवाहेतर संबंध होने का संदेह था, जिसकी वजह से उनकी शादी में ‘समस्याएं’ भी पैदा हुईं थीं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वह इस बात से भी क्षुब्ध पाए गए कि उनकी दोनों बेटियों और उनकी मां के बीच बड़ी बेटी द्वारा उसके खिलाफ मामला दर्ज करने की साठ-गांठ है.’


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‘भ्रामक व्यव्हार’

प्रोफाइलिंग रिकॉर्ड के अनुसार, 2007 और 2008 के बीच, चार लोगों – हिरेन राठौड़, हिंदूराव गवारे, कल्पना गवारे और अनिल जावलेकर – को मनोवैज्ञानिक प्रोफाइलिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट’ से गुजारा गया था.

रिकार्ड्स में आगे कहा गया है कि राठौड़ को ब्रेन इलेक्ट्रिकल ऑसिलेशन सिग्नेचर प्रोफाइलिंग (बीईओएसपी)- जिसे ब्रेन फिंगरप्रिंटिंग के रूप में भी जाना जाता है – से भी गुजारा गया था. बीईओएसपी पूछताछ की एक विधि है, जिसमें एक कथित अपराध में किसी व्यक्ति की भागीदारी की संभावना की पड़ताल उसके मस्तिष्क की दृश्य या ऑडियो क्लिप से संबंधित प्रतिक्रिया का अध्ययन इस बात को जांचने के साथ की जाती है कि क्या इनसे उसके मस्तिष्क में कोई न्यूरॉन सक्रिय ही रहे हैं. इसके बाद इस परीक्षण के परिणामों का अध्ययन किसी अपराध में अभियुक्त की भागीदारी को निर्धारित करने के लिए किया जाता है.

2 जुलाई, 2008 को कलिना, मुंबई स्थित फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला निदेशालय द्वारा प्रस्तुत रिकॉर्ड में कहा गया है कि राठौड़ को स्नेहल की हत्या में शामिल होने से संबंधित सवालों – जैसी कि जब स्नेहल पर हमला किया गया था, तब क्या वह वहां मौजूद था? क्या उसने स्नेहल का गला घोंट कर मार डाला था? और क्या उसने स्नेहल के शरीर को दीवान के अंदर रख दिया था? – का जवाब ‘नहीं’ में देते समय ‘भ्रामक व्यवहार’ वाला पाया गया था. दिप्रिंट ने इस रिकॉर्ड को भी हासिल किया है.

रिकॉर्ड में कहा गया है कि बीईओएसपी के दौरान, उसे ‘कई महत्वपूर्ण जांचों की अनुभव करने वाली जानकारी थी जो उसके स्नेहल के घर जाने, उस पर हमला करने और उसकी हत्या करने, उसके शरीर को बॉक्स बेड के अंदर रखने और उसकी चेन और मोबाइल फोन ले जाने के बारे में दर्शाते हैं.’ इसलिए, इस टेस्ट द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया कि राठौड़ का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन ‘स्नेहल गवारे की हत्या में उसकी संलिप्तता का संकेतक’ है.

अन्य लोगों बारे में उस रिकॉर्ड में कहा गया है कि जब कल्पना और जावलेकर ने स्नेहल की हत्या में शामिल होने के लिए ‘नहीं’ में जवाब दिया तो उन्हें ‘सच्चा’ पाया गया, जबकि हिंदूराव की प्रतिक्रिया बेनतीजा रही थी. हालांकि, कल्पना के व्यक्तिगत इतिहास ने ‘वैवाहिक कलह’ का खुलासा किया, और यह बात भी उजागर हुई कि रिकॉर्ड दर्ज किए जाने के समय दोनों दंपत्ति अलग-अलग रह रहे थे.

एक गिरफ्तारी

इस मामले में पुलिस ने फरवरी 2010 में एक ‘ए’ समरी (संक्षिप्त) रिपोर्ट दायर की, जिसे कल्याण, महाराष्ट्र की एक अदालत ने स्वीकार कर लिया. एक ‘ए’ समरी रिपोर्ट का मतलब होता है कि मामला ‘वास्तविक’ के रूप में वर्गीकृत हो गया है, लेकिन इसके बारे में पूरी जानकारी का पता नहीं चला है, यानी कि जांच प्रक्रिया ने पर्याप्त संख्या में साक्ष्य जमा करने का काम नहीं किया है. इसके बाद इस मामले को डोंबिवली पुलिस से लेकर कल्याण की अपराध शाखा (क्राइम ब्रांच) को स्थानांतरित कर दिया गया था.

हालांकि, कुछ ही समय बाद जांच उस समय तेजी पकड़ती लग रही थी जब राठौड़ अपने पिता के निधन के बाद 7 अप्रैल, 2010 को भारत लौटा था. जैसा कि अदालत ने सितंबर 2015 के अपने एक आदेश में उल्लेख किया है, इसके बाद वह खुद से कल्याण की अदालत के सामने पेश हुआ और 9 अप्रैल, 2010 को अपना नार्को एनालिसिस टेस्ट कराने के लिए एक आवेदन भी दायर किया.

दिप्रिंट द्वारा हासिल किये गए पुलिसिया और अदालती दस्तावेजों के अनुसार, 20 अप्रैल, 2010 को राठौड़ को गिरफ्तार किया गया और अदालत में पेश किया गया. इसके बाद उसे 27 अप्रैल तक के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया गया था और उसके बाद न्यायिक हिरासत में ले लिया गया था. हालांकि अदालत ने 4 मई को उसका नार्को एनालिसिस करने की अनुमति दी थी, पर उसे 26 मई, 2010 को ही कल्याण की एक अदालत ने जमानत पर रिहा कर दिया था. हालांकि, इससे पहले कि उसका नार्को एनालिसिस किया जा सकता, राठौड़ ने इस टेस्ट के लिए दी गयी अपनी सहमति वापस लेने के लिए अदालत के समक्ष एक आवेदन दायर कर दिया.

कुछ महीने बाद, 24 जनवरी, 2011 को, मामले के जांच अधिकारी ने क्रिमिनल प्रॉसीजर कोड (सीआरपीसी) की धारा 169 (साक्ष्य की कमी होने पर आरोपी की रिहाई) के तहत एक रिपोर्ट दर्ज कराई. दिप्रिंट द्वारा देखी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने राठौड़, उसके दोस्तों और उसके नियोक्ताओं के साथ-साथ स्नेहल के परिवार के सदस्यों और पड़ोसियों से भी पूछताछ की थी. हालांकि, ‘उसके (राठौड़ के) इस अपराध में शामिल होने के बारे में कोई उपयोगी जानकारी नहीं मिली‘. इसके बाद इस रिपोर्ट में कहा गया था कि मामले में मौजूद सबूत उसके खिलाफ चार्जशीट पेश करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं थे, और इसलिए राठौड़ को सीआरपीसी की धारा 169 के तहत रिहा कर दिया जाना चाहिए.

मगर, कल्याण की अदालत ने इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया और 31 जनवरी, 2011 को सीआरपीसी की धारा 156(3), जो मजिस्ट्रेट को पुलिस द्वारा ऐसी जांच का आदेश देने की अनुमति देती है, के तहत आगे की जांच किये जाने का निर्देश दिया.

‘आगे की जांच की गुंजाइश है’

फिर आगे की जांच करने के बाद, जांच अधिकारियों ने एक बार फिर मार्च 2014 में सीआरपीसी की धारा 169 के तहत आरोपी को अपराध से मुक्त करने के लिए एक नई अर्जी दायर की. दिप्रिंट द्वारा भी देखी गई इस अर्जी में कहा गया है कि पुलिस ने राठौड़ की कंपनी से जुलाई 2007 के महीने के लिए प्रयुक्त हाजिरी रजिस्टर को प्राप्त करने के लिए कम-से-कम दो बार कोशिश की – एक बार 3 जुलाई, 2012 को, और फिर 24 सितंबर, 2013 को. हालांकि, जैसा कि आवेदन में दावा किया गया है, पुलिस को बताया गया कि कंपनी ऐसा करने के लिए किये गए तमाम प्रयासों के बावजूद उस महीने के लिए उपयोग में लाये गए हाजिरी रजिस्टर का पता नहीं लगा सकी.

अर्जी में कहा गया है कि पुलिस ने राठौड़ के तीन सह-प्रशिक्षुओं (को–ट्रेनीज) से भी बात की, जिन्होंने दावा किया कि घटना के समय वह उनके साथ था. फिर उसने अपने अपने इसी रुख को दोहराया कि सबूत राठौड़ के खिलाफ चार्जशीट पेश करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं हैं, और इसलिए, उसे रिहा कर दिया जाना चाहिए.

इस दूसरी अर्जी पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने स्नेहल के पिता से अपना जवाब दाखिल करने को कहा था. दिप्रिंट द्वारा देखे गए अदालती आदेश के अनुसार, हिंदूराव गवारे ने शुरू में यह कहते हुए फ़ाइल को बंद करने पर आपत्ति जताई कि वह ‘वास्तविक अपराधी’ का नाम जानने के हकदार है. हालांकि, आदेश में कहा गया था कि वह उस अर्जी पर अपनी विस्तृत आपत्ति दर्ज करने में विफल रहे थे.

30 सितंबर, 2015 के अपने आदेश में, अदालत ने कहा कि स्नेहल की हत्या की तारीख वाले हाजिरी रजिस्टर का बरामद न किया जा सकना, ‘अपराध में अभियुक्तों की संलिप्तता के बारे में संदेह पैदा करता है.’ अदालत ने उसके बीईओएसपी टेस्ट रिपोर्ट के परिणाम पर भी ध्यान दिया. इसके बाद इसने जांच अधिकारी से कथित अपराध में राठौड़ की भूमिका के बारे में और जांच करने को कहा, और फिर टिप्पणी कि ‘इन सभी तथ्यों और परिस्थितियों का समग्र प्रभाव यह है कि मामले की जांच असंतोषजनक है व आगे और भी जांच की गुंजाइश है.’

हालांकि, कल्याण क्राइम ब्रांच के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि तब से, उन्हें इस मामले में न तो कोई नया सुराग मिला है और न हीं कोई नया संदिग्ध सामने आया है. लेकिन मामले से परिचित पुलिस अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की कि स्नेहल के कथित हत्यारे की तलाश अभी भी चल रही है, और अदालत के आदेश के अनुरूप ही जांच की फ़ाइल अभी तक बंद नहीं हुई है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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