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Friday, 11 October, 2024
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‘हमें अपना घर वापस चाहिए’– MP के खरगोन में 8 महीने पहले तोड़ा था मकान, परिवार आज भी जवाब की तलाश में

नवंबर 2021 में पीएमएवाई के तहत बने हसीना फाखरू के घर को अप्रैल में रामनवमी की झड़पों के बाद ध्वस्त कर दिया गया था. जिला प्रशासन का कहना है कि मकान सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके बनाया गया था.

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खरगोन, मध्य प्रदेश: हसीना फखरू और उनके परिवार को खरगोन में अपने घर से बेदखल हुए आठ महीने बीत चुके हैं. खसखसवाड़ी में जहां कभी उनका पक्का घर हुआ करता था, अब वहां चारों ओर कचरा फैला हुआ है. ये जगह अब लैंडफिल में बदल चुकी है.

अपने किराए के मकान में दो बेटों के साथ रहने वाली 60 वर्षीय हसीना के आंसू नहीं रुक पा रहे थे. उन्होंने रोते हुए बताया कि उनका परिवार बिखर गया है. किराए का यह घर काफी छोटा है और परिवार के सभी सात लोग एक साथ नहीं रह पा रहे हैं.

उन्होंने गुहार लगाते हुए कहा, ‘आठ महीने हो गए हैं. हमारी किसी ने नहीं सुनी. सरकार से भी कोई मुआवजा नहीं मिला है. वादा किया गया था कि हमें वहां घर दिया जाएगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ. अब मैं यहां और नहीं रह सकती हूं.’

नवंबर 2021में प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत मिले घरों को अप्रैल में हुई रामनवमी की झड़पों के बाद ‘सजा’ के तौर पर जिला प्रशासन ने ध्वस्त कर दिया था. तब से हसीना बेघर होकर रह रही हैं. इस सारी कार्रवाई में हसीना ने न सिर्फ अपने सिर के ऊपर से छत गवां दी थी, बल्कि उसके साथ-साथ उनका सारा सामान और कागजात भी 11 अप्रैल को मलबे के ढेर में कहीं गुम हो गए थे.

जिला प्रशासन के अधिकारियों ने दावा किया कि उनके इस घर को सरकारी जमीन का अतिक्रमण कर बनाए जाने की वजह से गिराया गया था.

हसीना सरकार से ज्यादा कुछ नहीं चाहती हैं. उन्होंने कहा, सरकार बस उन्हें उनकी वो जगह लौटा दें, जहां वह पिछले 40 सालों से रह रही थी. और उनका घर भी लौटा दे जिसे उन्होंने ‘(अपनी) बिना किसी गलती के’ खो दिया है.

Site of Hasina's demolished home now a landfill | Sukriti Vats | ThePrint
हसीना के ध्वस्त घर की साइट अब एक लैंडफिल | सुकृति वत्स | दिप्रिंट

परिवार को उम्मीद की एक किरण तब नजर आई थी, जब नगर पालिका के अधिकारियों ने 16 अप्रैल को उन्हें राशन दिया, अंगूठे के निशान लिए और पुनर्वास का वादा किया. लेकिन उसके बाद से कुछ नहीं हुआ है.

हसीना ने दिप्रिंट को बताया, ‘वे मुझे एक ऐसी जगह दे रहे थे जो एक आश्रम की तरह थी. यहां मेरा पूरा परिवार नहीं रह सकता था. मैं कहीं और नहीं जाना चाहती हूं. बस, मुझे पहले जैसा अपना एक घर चाहिए.’

उन्होंने जिस ‘आश्रम’ का जिक्र किया है, दरअसल वह इंदिरा नगर में पीएमएवाई स्कीम के अंदर बनाई गई एक बहुमंजिला इमारत है. उन्हें यहां एक कमरे के घर की पेशकश की गई था. अफोर्डेबल हाउसिंग इन पार्टनरशिप (एएचपी) के तहत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों/निजी क्षेत्र की साझेदारी में केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई इस आवासीय परियोजना में 35 प्रतिशत घर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षित हैं. जिले में बिना घर के रह रहे लोगों के पुनर्वास के लिए इन्हें बनाया गया है.


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हसीना के 35 साल के बेटे मोहम्मद अमजद फखरू ने कहा कि अप्रैल में जहां सांप्रदायिक झड़पें हुई थी, उस तालाब चौक से उनका घर लगभग 3 किमी दूर था. उन्होंने दावा किया कि खसखसवाड़ी का कोई भी निवासी हिंसा में शामिल नहीं था.

गौरतलब है कि यहां हिंदू-मुस्लिम के बीच झड़पें एक अफवाह के बाद शुरू हुईं थी. रामनवमी के जुलूस के दौरान ‘दोनों ओर से’ पथराव शुरू हो गया और पुलिस ने कथित तौर पर जुलूस को मुस्लिम बहुल इलाके तालाब चौक में प्रवेश करने से रोक दिया था.

अगले दिन खसखसवाड़ी और आस-पास के इलाकों में बुलडोजर चलाए गए. उन घरों और दुकानों को धराशायी कर दिया गया, जिन पर जिला अधिकारियों को संदेह था कि ये झड़प में शामिल लोगों के हैं. इलाके में गिराए गए लगभग 20 घरों में हसीना का ही एक पक्का घर था.

दिप्रिंट ने उस जगह का दौरा किया,जहां हसीना का घर था. फिलहाल तो यह जगह एक लैंडफिल में बदल गई है. हां, हसीना के घर के ध्वस्त किए कुछ हिस्से वहां अभी भी नजर आ रहे थे.

अमजद ने पूछा, ‘अगर यह अवैध जमीन पर बना था, तो हमें योजना के तहत घर क्यों दिया गया.’ उन्होंने हमें कहा था कि वे गंदगी हटाने आए हैं. अब जमीन देखिए. यह कचरे से भरी हुई है. अगर हम वहां रहते तो कूड़ा करकट नहीं होने देते. उस सरकार के लिए ये कितनी शर्म की बात है, जो भारत को स्वच्छ बनाने की बात करती है.’

Area in Khaskhaswadi where demolition drive was carried out in April | Sukriti Vats | ThePrint
खसखासवाड़ी में वह क्षेत्र जहां अप्रैल में विध्वंस अभियान चलाया गया था सुकृति वत्स | दिप्रिंट

अमजद फिलहाल अपने एक भाई और हसीना के साथ खसखसवाड़ी से दूर आनंद नगर में टीन की छत वाले एक कच्चे-पक्के घर में किराए पर रह रहे हैं, जिसके लिए उन्हें हर महीने 2,000 रुपये देने पड़ते हैं.

उन्होंने कहा, ‘बिजली, पानी आदि का बिल भरने के बाद यह 3,000 रुपये तक पहुंच जाता है. अपना घर बनाने में हमने अपनी सारी बचत लगा दी थी. अब हम किराए पर रहने के लिए आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हैं. अधिकारियों ने वादा किया था कि हमारा घर फिर से बनाया जाएगा. लेकिन कितने महीने बीत गए, ऐसा नहीं हुआ है.’

किराए के घर में तीन लोगों के लिए आराम करने की एकमात्र जगह वहां बिछी खाट है, जिस पर फिलहाल अमजद बैठे हुए थे. उन्होंने बताया कि वह अभी भी अपने ध्वस्त किए घर से जुड़े सभी कागजातों को एक साथ इक्ट्ठा करने की कोशिश करने में लगे हैं. उनके अनुसार, इन दस्तावेजों में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का एक पत्र भी शामिल है जिसमें उन्हें उनके नए घर पर बधाई दी गई थी. इसके अलावा अपनी बात को साबित करने के लिए उनके पास पीएमएवाई की किस्तों की प्राप्ति से संबंधित बैंक विवरण शामिल हैं.

हमें केंद्र प्रायोजित योजना के हिस्से के रूप में तीन किश्तों में 2.5 लाख रुपये मिले थे और उन्होंने अपने इस घर को ‘लाभार्थी-नेतृत्व वाले ‘व्यक्तिगत घर निर्माण या संवर्द्धन (बीएलसी)’ के तहत विस्तार करने के लिए अपने खुद के 1-2 लाख रुपये भी खर्च किए थे.

बीएलसी के लिए जिस व्यक्ति ने आवेदन किया है वह इस योजना के लिए पात्र है या नहीं, इसे जांचने की जिम्मेदारी शहरी स्थानीय निकाय या नगर पालिका की है.

‘मौका मिलने पर लेना चाहिए था ऑफर’

खरगोन के राजस्व अधिकारी (तहसीलदार) योगेंद्र सिंह मौर्य ने इस विध्वंस अभियान का आदेश दिया था उन्होंने कहा कि जिन घरों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, उन्हें ‘प्राइम’ सरकारी जमीन पर बनाया गया था. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि एक आवेदक सिर्फ एक बार PMAY के तहत घर का हकदार है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘उस समय उन्हें घर दिया गया था. अब यह गिरा दिया गया है. उनका पुनर्वास किया जा सकता है या नगर पालिका उन्हें मुआवजा दे सकती है. अब यह उनकी जिम्मेदारी है. हमने सुना है कि उन्हें (हसीना और उनके परिवार को) एक बहुमंजिला इमारत में एक घर दिया गया था, लेकिन उन्होंने सोचा कि उन्हें इससे बेहतर सौदा मिल सकता है और उन्होंने इनकार कर दिया. वह भी उनके हाथ से चला गया और बदले में कुछ नहीं पाया. जब उन्हें मौका मिल रहा था तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए था.

खरगोन की मुख्य नगरपालिका अधिकारी प्रियंका पटेल ने भी यही बात कही. उन्होंने पुष्टि की कि उन्होंने हसीना को पूर्व जिला कलेक्टर अनुग्रहा पी के निर्देश पर एक घर की पेशकश की थी. हिंसक झड़पों के एक महीने से भी कम समय के बाद अनुग्रहा का तबादला कर दिया गया था. उनकी जगह पर आईएएस कुमार पुरुषोत्तम को लाया गया, जिन्होंने मई में पदभार संभाला था.

पटेल ने अप्रैल में आरोप लगाया था कि पीएमएवाई आवास योजना के तहत हसीना के नाम पर एक अलग प्लॉट दिया गया था. लेकिन जब नगर पालिका की एक टीम वहां गई तो पाया कि घर में कोई नहीं रह रहा था और इसका इस्तेमाल अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा रहा था. उन्होंने कहा, ‘हमने उसे नहीं तोड़ा था. तहसीलदार ने इस काम को अंजाम दिया था. हमने तो उसके (अमजद को) फायदे के लिए काम किया है. हमने उन्हें एएचपी हाउस के तहत एक घर भी देने की पेशकश की क्योंकि वे परेशान थे. मैंने महिला (हसीना) से बात की थी और उसने कहा कि वह यहां से जाना नहीं चाहती है. इस तरह के किसी दावों के बारे में मुझे नहीं बताया गया था.’

हालांकि अमजद ने इन दावों का खंडन करते हुए सवाल किया कि उनका परिवार घर बनाने के लिए अनधिकृत जमीन पर अतिक्रमण क्यों करेंगे जबकि उनके पास ‘घर बनाने के लिए कानूनी रूप से जमीन थी.’

हसीना के परिवार के पुनर्वास में जिला प्रशासन की भूमिका के बारे में पूछे जाने पर, खरगोन के जिला कलेक्टर पुरुषोत्तम ने कहा, ‘यह नगर पालिका की जिम्मेदारी है. मैं उस समय वहां नहीं था. आपकी तरह मैंने भी कहीं से इसके बारे में सुना था. असल स्थिति क्या है, मुझे नहीं पता. अगर अमजद अपनी शिकायतें बताना चाहते हैं, तो वह हर मंगलवार को होने वाली जन सुनवाई में शामिल हो सकते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य)

(संपादन: आशा शाह)


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