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Friday, 22 November, 2024
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कैसे हुई कठुआ रेप मामले की सुनवाई, बचाव पक्ष बोला- पीड़िता के समुदाय ने आरोपी को फंसाया

कठुआ में 8 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में फैसला आने से तीन दिन पहले, बचाव पक्ष के वकील ने बताया कि बकरवाल समुदाय द्वारा आरोपितों को फंसाया गया था.

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नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के कठुआ में 8 साल की बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या के मामले की सुनवाई पुरी हो चुकी है और पठानकोट की जिला न्यायालय 10 जून यानी सोमवार को इस मामले की सुनवाई कर सकती है. बता दें, 100 से ज्यादा सुनवाई और 130 से अधिक गवाहों के बयान को सुनने के बाद, पठानकोट की जिला और सेशन कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुनाएगी.

पिछले जून में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर ‘हर दिन कैमरा ट्रायल’ कराने का आदेश दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप क्राइम ब्रांच के अधिकारियों को इस मामले में आरोप पत्र दाखिल करने से रोकने के बाद आया था.
फैसले से कुछ दिन पहले, दिप्रिंट इस मुकदमे पर एक बार फिर से अभियोजन और बचाव पक्ष द्वारा अदालत में की गई दलीलें, और पिछले एक साल से इस केस की सभी गतिविधियों पर प्रकाश डाला है.

दिप्रिंट ने इस मामले में बचाव पक्ष द्वारा डाली गई बुनियादी दलीलों को भी देखा, जो ज्यादातर अभियोजन पक्ष द्वारा दिए गए गवाहों की बहस पर आधारित हैं. बचाव पक्ष के वकील ए.के साहनी  ने दिप्रिंट को बताया कि वह पूरी कार्यवाही में मौजूद थे. और उन्होंने चार प्वाइंट में इस मुद्दे को स्पष्ट किया कि मामले में असली मकसद क्या है.

जनवरी 2018 में क्या हुआ

जनवरी 2018 में कठुआ में आठ साल की बच्ची के साथ बलात्कार और उसकी हत्या ने सांप्रदायिक तनाव पैदा कर दिया था जिससे इलाके में भयंकर विवाद गहराने से ध्रुवीकरण की संभावना बन गई थी. पुलिस के अनुसार, बच्ची का अपहरण और हत्या जम्मू क्षेत्र के रसाना नामक एक गांव से बकरवाल समुदाय के सदस्यों को बाहर निकालने की साजिश का हिस्सा था.

पुलिस के अनुसार, एक पूर्व राजस्व अधिकारी और प्रसिद्ध स्थानीय व्यक्ति सांझी राम ने लड़की के अपहरण, बलात्कार और हत्या की साजिश रची. अन्य आरोपी सांझी राम के भतीजे (एक किशोर), राम के बेटे विशाल जंगोत्रा, एक स्नातक छात्र, विशेष पुलिस अधिकारी दीपक खजुरिया और सुरेंद्र वर्मा, हेड कांस्टेबल तिलक राज, उप-निरीक्षक आनंद दत्ता, और एक अन्य किशोर जोकि नाबालिग का दोस्त, इसमें शामिल थे.

यह मामला 9 अप्रैल 2018 को सुर्खियों में आया जब पुलिस ने कठुआ की अदालत में आरोप पत्र दायर किया. पुलिस को आरोपपत्र दाखिल करने से रोकने के लिए, स्थानीय वकीलों ने हंगामा किया और निचली अदालतों में कानून-व्यवस्था का मखौल बनाते हुए समाप्त किया. जिसके बाद मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप कर इस मुकदमे को पठानकोट में स्थानांतरित करने का आदेश देने के साथ ही प्रत्येक दिनों की कार्रवाई कैमरे के समक्ष करने की बात कही.

किशोर की झूठी स्वीकारोक्ति

वरिष्ठ वकील एस एस भासरा और जिला अटॉर्नी जे सी चोपड़ा द्वारा हुए बहस में यह सामने आया कि मामला आरोप पत्र पर आधारित है जिसमें कहा गया है कि इस मामले में सबसे पहली पूछताछ सांझी राम के भतीजा से हुई जो स्कूल से बाहर हो गया था. वह उस आठ साल की बच्ची से पहली बार पास के जंगल में मिला था.

किशोर के अनुसार, जिस दिन लड़की का अपहरण किया गया था, उसने अपने लापता घोड़ों को खोजने के लिए मदद मांगी थी. उस वक्त उसे जबरन सांझी राम के मवेशी शेड में ले जाया गया और उसके हाथ-पैर बांध दिए गए. उसने आगे बताया कि 16 जनवरी तक उसे बंदी बनाए रखने के बाद, उसने लड़की के साथ बलात्कार करने का प्रयास किया. लेकिन जब आठ साल की नाबालिग ने भेद खोलने की बात कही, तो उसने उसका गला घोंट दिया और सिर पर पत्थर मार दिया.


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बकरवालों को भगाने की साजिश

बकरवाल समुदाय की आठ साल की बच्ची के साथ बलात्कार करने वाले किशोर को बकरवाल समुदाय ने अपने समुदाय की एक लड़की को कथित तौर पर छेड़ने के लिए पहले भी लताड़ लगाई थी. यह सब सांझी राम द्वारा खानाबदोश समुदाय के खिलाफ अपने सहयोगियों में बदले की भावना को उकसाने के लिए इस्तेमाल किया गया था.

हालांकि किशोर ने पूरे अपराध को स्वीकार किया, लेकिन आरोप पत्र में कहा गया है कि किशोर और अन्य आरोपियों से पूछताछ के दौरान ‘पूरी सच्चाई’ सामने आई थी. किशोर की पुन: परीक्षा एक सामाजिक कार्यकर्ता और उसके पिता की उपस्थिति में कराई गई थी. किशोर और अन्य आरोपियों द्वारा दिए गए इनपुट के आधार पर, पुलिस ने कहा कि जनवरी के पहले सप्ताह में कहीं न कहीं सांझी राम ने ‘बकरवाल समुदाय को खदेड़ने की योजना’ बनाने का फैसला किया था.
जांच में पता चला कि सांझी राम रसाना, कूटा और धाम्याल इलाकों में बकरवाल समुदाय के बसाए जाने के खिलाफ था. सांझी राम और उसके साथियों की इस जनजाति के खिलाफ मुख्य शिकायत फसल विनाश और उनके ‘मूल क्षेत्र’ में बढ़ती उपस्थिति थी.

कैद के दिन, बार-बार बलात्कार और गोलियां

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि सांझी राम ने किशोर को समुदाय से बदला लेने के लिए उकसाया, ताकि पिछली मार का बदला लिया जा सके. इसलिए, 10 जनवरी को, जब वे आठ साल की बच्ची को सांझी राम के स्वामित्व वाले ‘देवी-चरण’ (देवी का मंदिर) में ले गए, तो किशोर और एक अन्य दोस्त ने लड़की को मन्नार (एक स्थानीय मादक पेय) की दो बोतलें पिला कर बेहोश कर दिया.

लड़की के साथ बलात्कार किए जाने के बाद, खजुरिया ने लड़की को असहाय और बेहोश रखने की पूरी कोशिश की. उसे एसपीओ द्वारा बलपूर्वक शामक की उच्च खुराक दी गई, जहां वह अपनी उंगलियों का उपयोग करके लड़की के मुंह को खोल कर गोलियां डालने लगा. इसके बाद, वह दवा को प्रभावी बनाने के लिए लड़की के गर्दन की मालिश करता था.
12 जनवरी को, किशोर ने कथित तौर पर अपने दोस्त विशाल जंगोत्रा ​​(सांझी राम के बेटे) को मेरठ से ‘अपनी वासना को शांत ’ करने के लिए बुलाया. किशोर और जंगोत्रा ​​ने उसके साथ छेड़खानी करना जारी रखा और उसके साथ बलात्कार भी किया. एक समय पर आकर किशोर ने सांझी राम को भी बताया कि जंगोत्रा ​​और उसने नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार किया था.

हत्या

देवी-स्थान पर सांझी राम के निर्देशन में, किशोर, उसका दोस्त और विशाल कथित तौर पर लड़की को पास के पुलिया पर ले गया. चार्जशीट के अनुसार, जब सभी उसे मारने के लिए तैयार थे, तो खजुरिया ने उन्हें रोकने के लिए कहा क्योंकि वह ‘उसे मारने से पहले उसका बलात्कार करना चाहता था.’

इसके बाद, खजुरिया और फिर किशोर द्वारा लड़की का फिर से सामूहिक बलात्कार किया गया. इसके बाद, एसपीओ ने लड़की की गर्दन को अपनी जांघ पर रखा और उसे मारने के लिए बल लगाना शुरू कर दिया. जब वह उसे मार नहीं सका, तो किशोर ने अपने घुटनों के बल उसकी पीठ पर तब तक बल लगाया जब तक उसकी मौत नहीं हो गई. यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह मर चुकी है, उसके सिर पर पत्थर से हमला किया गया.

कथित योजना के अनुसार, शव को हीरानगर में नहर में ले जाया जाना था, लेकिन जब कार चालक ने अपनी कार लाने से इनकार कर दिया, उन्होंने शव को पास के जंगल में फेंक दिया.

सबूतों को मिटाना

अभियोजन पक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारियों को लाखों रुपये का भुगतान किया गया था. आनंद दत्ता को लगभग 5 लाख रुपये दिए गए, वहीं हेड कांस्टेबल तिलक राज को सांझी राम की बहन के माध्यम से लगभग 1.5 लाख रुपये का भुगतान किया गया था.

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि दत्ता और सांझी राम ने मिलकर मिट्टी, खून के धब्बे और किसी भी शुक्राणु अवशेष को हटाने का प्रयास किया.

हालांकि, यह गवाह वीणा देवी का बयान था, जो अभियोजन पक्ष के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ. वीणा के इस बयान से इस बात पर पहुंचा जा सकता है कि अभियुक्तों को आठ साल की बच्ची के साथ स्पॉट किया गया था जब उसे लापता होने से पहले अंतिम बार देखा गया.
इसके अलावा, लड़की के दुपट्टे, हेयरबैंड और नेकलेस जैसे सबूतों की जांच नहीं की जा सकती क्योंकि उन्हें नष्ट कर दिया गया.

बचाव पक्ष का तर्क

वरिष्ठ काउंसलर ए.के. साहनी, सुभाष चंदर शर्मा और वकील अंकुर शर्मा कुछ ऐसे वकील हैं जो अभियुक्तों का बचाव कर रहे हैं. साहनी ने दिप्रिंट के साथ इस मामले पर चर्चा की.

दोषपूर्ण जांच – पिता कौन है?

आरोपियों ने अपने बचाव में पहला तर्क यह दिया कि जिस व्यक्ति ने लड़की के पिता होने का दावा किया था, वह वास्तव में उसका पिता नहीं था.
साहनी ने कहा, ‘अभियोजन पक्ष द्वारा इस मामले में कहा गया है कि मृतक लड़की 10 जनवरी को लापता हो गई थी. लेकिन 10 जनवरी को कोई शिकायत नहीं की गई, न ही 11 जनवरी को. यह शिकायत 12 जनवरी को एक व्यक्ति ने कि जो मृतक के पिता होने का दावा करता है.’

‘उसे गोद लेने वाले पिता का भी कोई सवाल नहीं था, क्योंकि इसे प्रमाणित करने के लिए दस्तावेजों कमी थीृ. उन्होंने एफआईआर में केवल ‘मेरी बेटी’ शब्द का इस्तेमाल किया है. जिसका मतलब बेटी है.’

बचाव पक्ष ने कहा कि बहस के दौरान, व्यक्ति ने स्वीकार किया कि वह लड़की का पिता नहीं है, न ही उसके पास यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज है कि उसने लड़की को गोद लिया था.

एके साहनी ने कहा, ‘इसने पुलिस जांच पर सवाल उठाए, जहां इस बात का कभी उल्लेख नहीं किया गया था. इससे पता चला कि जांच दोषपूर्ण थी.’

एफआईआर दर्ज करने में देरी और ‘पुलिस धोखाधड़ी’

बचाव पक्ष ने इस मामले में कहा है कि जब लड़की के ‘पिता ’को गवाह के रूप में अदालत में लाया गया था, तो पुलिस ने चालान में कहा कि पहली प्राथमिकी 11 जनवरी को दर्ज की गई थी, लेकिन कोई भी एफआईआर कॉपी प्रस्तुत नहीं की गई थी.

‘मजिस्ट्रेट को एफआईआर क्यों नहीं सौंपी गई? 11 जनवरी को नाबालिग के ‘ पिता’ द्वारा की गई शिकायत कहां है? यह पुलिस की ओर से धोखाधड़ी को दर्शाता है. यह पुलिस के विरोधाभासी रुख को भी दर्शाता है, और यह अदालत में हमारे मामले की बुनियाद थी.’

उन्होंने कहा, ‘पुलिस को यह मामला दर्ज करने में हो रही देरी को उचित ठहराने के लिए करना पड़ा. हमें यकीन है कि जज इसकी अनदेखी नहीं कर सकते. संदेह का लाभ आरोपी को जाना है.’


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आरोपियों को फंसाने के ‘चार मकसद’

यह मामला मुख्य रूप से उन दलीलों पर टिका हुआ था, जिन्होंने ‘चार उद्देश्यों’ पर जोर दिया था, जिसके कारण अभियुक्तों को कथित रूप से फंसाया गया था.

सबसे पहला था तालिब हुसैन और अन्य लोगों के लिए धन इकट्ठा करना. वकील के अनुसार, हुसैन, जिसने बलात्कार के विरोध में राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया था, उसके खिलाफ पहले से ही दो बलात्कार के मामले हैं.

‘वह बाद में पीडीपी में शामिल हो गया. हमने ऐसे वीडियो भी जारी किए हैं जो बताते हैं कि यह वाक्ये पूरी तरह से हुसैन द्वारा योजनाबद्ध थे. वह मामले में स्टार गवाह था और उसने साजिश रची है. लेकिन उन्हें गवाह के रूप में नहीं बुलाया गया था. मामले में पहले दिन से उनकी भूमिका रही है.’

बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि हुसैन ने लड़की के ‘पिता’ और मोहम्मद रशीद के साथ मिलकर काम किया था. ‘ मोहम्मद रशीद का तालिब से संबंध हैं और हमने इसे बहस में बताया था. मैंने उनसे तालिब के साथ उनके व्यवसाय के बारे में पूछा था. उनका उद्देश्य धन एकत्र करना था और उन्होंने 100 करोड़ रुपये तक धन एकत्र किया.

बचाव पक्ष ने अदालत को प्रस्तुत किया कि दान एकत्र करने के लिए ‘रेबेरा’ नामक एक वेबसाइट बनाई गई.

दूसरा मकसद कथित तौर पर जमीन हड़पना था. बचाव पक्ष के अनुसार, हुसैन गुर्जर समुदाय के नेताओं के साथ काम करते थे, जो नाराज थे कि वन भूमि पर अतिक्रमण नहीं होने दिया जा रहा था.

‘एक समान सरकारी आदेश भी जारी किया गया था जहां यह कहा गया था कि जहां भी गुर्जरों ने जमीन पर कब्जा किया है, उन्हें बेदखल नहीं किया जा सकता. इस अनुचित आदेश के कारण पूरे जम्मू में आंदोलन हुए, लेकिन यह आज तक लागू है. यह इस तर्क को पुख्ता करता है कि उनका मुख्य उद्देश्य जमीन हड़पना था.’

तीसरा मकसद यह था कि कुछ आरोपियों ने बकरवालों को अवैध मवेशियों की तस्करी करने नहीं दिया. वकील ने तर्क दिया, ‘आरोपी, तिलक राज अपने वाहनों को रात में रोकते थे, जब वे मवेशियों की तस्करी कर रहे होंगे. यही कारण है कि वह इस मामले में फंस गए हैं. इसी तरह, आनंद दत्ता को भी इस तरह से चुना गया था. दत्ता केवल एक दिन के लिए एसएचओ थे.’

चौथा मकसद कठुआ में भारी मात्रा में ड्रग डीलिंग के मुद्दे को कानूनी नजर से दूर रखना था. ‘ये पुलिस अधिकारी इस तरह के व्यवहार के बारे में सतर्क थे और यह सुनिश्चित करते थे कि यह जांच में था. उन्होंने अक्सर रात में ऐसे ड्रग से भरे वाहनों को जब्त किया और पूरे जम्मू में एफआईआर दर्ज की.’

बचाव पक्ष ने यह भी तर्क दिया है कि सांझी राम और अन्य के अभियोजन पक्ष के तर्क बकरवाल समुदाय को नापसंद करने का मकसद था, ‘किसी भी सबूत से पुष्ट नहीं किया गया.’

इसके अलावा, बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि ‘यह मामला परिस्थति के समय जो साक्ष्य हैं उस पर आधारित है न कि प्रत्यक्ष प्रमाण पर. इसलिए, सभी तथ्यों को सिद्ध करने की आवश्यकता है.’

‘सांझी राम की बहन पर आरोप था कि उसने तिलक राज को पैसे दिए थे. लेकिन जब न्यायाधीश ने सवाल किया कि उसे अदालत में क्यों पेश नहीं किया गया, तो अभियोजन पक्ष का एकमात्र जवाब था कि ‘उसे खरीद लिया गया है’.
हमने उसे कैसे खरीदा? क्या उन्हें आरोपों की पुष्टि नहीं करनी है?’

वकील ने हालांकि इस बात की पुष्टि की कि अगर 10 जून को फैसला अभियुक्तों के खिलाफ गया, तो बचाव पक्ष पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में अपील दायर करने की तैयारी कर रहा है.

(यह लेख 7 जून 2019 को पहली बार प्रकाशित किया गया था)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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