नई दिल्ली: बंदूक की लड़ाई के मलबे से लेकर, महामारी के दौरान घरों में कैद जीवन की अजीब कशमकश तक, मुहम्मद मनन डार का कैमरा कश्मीर में आतंकवाद के साये में जीवन को व्यस्तता से जी रहा था. वह डेढ़ साल से एक फोटो जर्नलिस्ट के रूप में फ्रीलांसिंग कर रहे थे. द गार्जियन में छपी उनकी एक तस्वीर ने कई लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा था.
लेकिन उनका फोटो खींचने का जोश और जुनून अचानक से 2021 के अंत में रुक गया. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने डार को उनकी कुछ तस्वीरों के चलते गिरफ्तार किया था. कथित तौर पर सुरक्षाकर्मियों और उनकी तैनाती को दिखाते हुए उनके फोन पर कुछ तस्वीरें मिली थी, जो उन्हें संदेह के घेरे में ले आईं.
उस साल 10 अक्टूबर को पुलिस ने डार को श्रीनगर के बटमालू पुलिस स्टेशन में पूछताछ के लिए बुलाया. एनआईए ने उन्हें 22 अक्टूबर को गिरफ्तार किया और उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम या यूएपीए की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए. दिल्ली की तिहाड़ जेल में एक साल से ज्यादा समय बिताने के बाद उन्हें इस साल 2 जनवरी को दिल्ली की एक अदालत ने जमानत दे दी.
एनआईए ने आरोप लगाया था कि डार ‘फोटो जर्नलिस्ट होने की आड़ में सुरक्षा बलों, तैनाती, पिकेट की तस्वीरें’ साझा कर रहे थे. हालांकि डार के वकीलों ने कहा कि एजेंसी के पास उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है. और साथ ही यह भी बताया कि एक फोटो जर्नलिस्ट के रूप में उनके फोन में हमेशा घाटी की दैनिक जीवन की तस्वीरें होना सामान्य बात है.
अपने आदेश में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शैलेंद्र मलिक ने कहा कि ‘आरोपी के खिलाफ आरोप ठोस और सच प्रतीत नहीं होते हैं’. उन्होंने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं थे कि डार वास्तव में किसी व्यक्ति या संगठन के साथ ऐसी तस्वीरें साझा कर रहे थे. आदेश में यह भी कहा गया है कि मोबाइल फोन पर सिर्फ ‘आपत्तिजनक कंटेट’ का होना किसी अभियुक्त को उसके खिलाफ आरोपों से जोड़ने के लिए पर्याप्त नहीं है.
न्यायाधीश ने आगे जोर देकर कहा कि वकील या पत्रकार होने की आड़ में आतंकवादी संगठनों की सहायता करने के आरोपों को साबित करने के लिए ‘ऐसी किसी भी गतिविधि को प्रत्यक्ष साक्ष्य के साथ अदालत में पेश किया जाना चाहिए’.
द गार्जियन में छपी एक तस्वीर
फोटोजर्नलिज्म के साथ आगे बढ़ने की चाह रखने वाले डार घाटी छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने संसाधनों के बिना श्रीनगर के स्थानीय पॉलिटेक्निक कॉलेज में फोटोग्राफी में डिप्लोमा कोर्स करने का विकल्प चुना. उन्होंने 2019 में अपना कोर्स पूरा किया. गिरफ्तार होने से पहले 2021 में श्रीनगर क्लस्टर युनिवर्सिटी (CUS) से पत्रकारिता एवं जनसंचार पाठ्यक्रम के लिए भी उनका सलेक्शन हो चुका था.
16 जुलाई 2021 को डार की खींची गई एक तस्वीर को द गार्जियन ने अपने ‘ट्वेंटी फोटोग्राफ्स ऑफ द वीक’ में छापा था. यह एक कश्मीरी महिला की तस्वीर थी जो अपना मुंह शॉल से ढके हुए थी और लकड़ी के दरवाजे में एक खुले छेद से सीधे कैमरे में देख रही थी. फोटो के कैप्शन में लिखा था, ‘श्रीनगर के दानमार इलाके में आतंकवादियों और भारतीय बलों के बीच संघर्ष के दौरान क्षतिग्रस्त हुए घर के अंदर से झांकती एक कश्मीरी महिला.’
डार की इस तस्वीर ने क्यूबा में विरोध प्रदर्शनों, यूरोप में फ्लैश फ्लड, दक्षिण अफ्रीका में लूटपाट, कैलिफोर्निया में आग और इटली के यूरो 2020 जीतने के बाद रोम में जश्न की तस्वीरों के बीच अपनी जगह बनाई थी. इन चुनिंदा तस्वीरों को उस सप्ताह की ‘दुनिया भर से सबसे आकर्षक तस्वीरों’ के रूप में परिभाषित किया गया था.
गेटी इमेजेज, पैसिफिक प्रेस और जूमा प्रेस सहित अन्य वेबसाइटों पर उनका पोर्टफोलियो कश्मीर में आम लोगों के जीवन को दिखाता नजर आएगा. उनकी तस्वीरों में बच्चों के पढ़ने, प्रार्थना करने और काम करने के शॉट्स शामिल हैं.
इसके अलावा डार की कई तस्वीरें आतंकवादियों और सरकारी बलों के बीच कई मुठभेड़ों की दास्तां को भी बयां करती हैं. इनमें 2 जुलाई 2021 को पुलवामा के राजपोरा, जून 2021 में श्रीनगर के बाहरी इलाके मलूरा, मई 2021 में श्रीनगर के खानमोह, अप्रैल 2021 में सेमथन, अनंतनाग जिले, अप्रैल 2021 में शोपियां जिले के जन मोहल्ला क्षेत्र, अप्रैल 2021 में काकापोरा, पुलवामा और फरवरी 2021 में बडगाम जिले के बीरवाह में हुई झड़प की तस्वीरे शामिल हैं.
गेटी इमेजेज पर उनकी खींची गई ऐसी ही एक तस्वीर भारतीय सेना के वाहनों को श्रीनगर के दानमार इलाके में एक मुठभेड़ स्थल की ओर बढ़ते हुए दिखा रही है. एक अन्य फोटो में एक युवा लड़का, श्रीनगर के मलूरा क्षेत्र में गोलीबारी के दौरान क्षतिग्रस्त हुई दीवार को देख रहा है. जुमा प्रेस पर अपलोड की गई डार की एक अन्य तस्वीर में एक व्यक्ति के चेहरे पर खून लगा हुआ है और उसकी गर्दन पर पुलिस का डंडा है. कैप्शन में लिखा है: ‘धार्मिक नारे लगाते हुए एक कश्मीरी शिया युवक, उसे श्रीनगर में मुहर्रम धार्मिक जुलूस के दौरान भारतीय पुलिसकर्मियों ने गिरफ्तार किया है.’ डार ने अर्धसैनिक बल के जवानों के खड़े होने और श्रीनगर के विभिन्न हिस्सों में कंटीले तारों की कई तस्वीरें भी क्लिक की हैं.
यह भी पढ़ें: इतिहास गवाह है, हमारे देश में सत्ताओं का संरक्षण धर्मों के काम नहीं आता
एनआईए के आरोप
अदालती आदेश में विस्तार से बताया गया कि एनआईए के आरोपों के मुताबिक, डार एक फोटो जर्नलिस्ट की आड़ में काम कर रहा था. लेकिन वास्तव में वह अशांति पैदा करने और आतंक फैलाने के लिए अल्पसंख्यकों, सुरक्षा बलों, राजनीतिक नेताओं और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों की लक्षित हत्याओं जैसे छोटे पैमाने के हमलों को अंजाम देने के लिए ‘हाइब्रिड कैडर’ का एक हिस्सा है.
चार्जशीट की एक कॉपी को दिप्रिंट ने देखा है. उसमें लिखा था कि उन्हें ‘जम्मू और कश्मीर आतंकवाद साजिश मामले’ में गिरफ्तार किया गया है.
मामले में प्राथमिकी 10 अक्टूबर 2021 को दर्ज की गई थी. इसमें आरोप लगाया गया था कि अगस्त 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से कई प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के सदस्य सक्रिय रूप से जम्मू-कश्मीर और दिल्ली सहित देश के अन्य हिस्सों में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने की साजिश रच रहे हैं.
इन संगठनों में कथित तौर पर लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिज्ब-उल-मुजाहिदीन और अल-बद्र के साथ-साथ द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) और पीपल अगेंस्ट फासिस्ट फोर्सेज (PAFF) जैसे संगठनों के सहयोगी शामिल हैं.
मामले में अब तक कुल 32 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जिनमें से पांच छात्र हैं. मामले में चार्जशीट इसी साल अप्रैल में दायर की गई थी. डार के छोटे भाई, कॉलेज के छात्र हनान डार को भी इसी मामले में गिरफ्तार किया गया है. फिलहाल वह दिल्ली की रोहिणी जेल में बंद है.
मुहम्मद मनन डार के खिलाफ सबूत के तौर पर एनआईए ने कुछ आतंकवादी संगठनों की तस्वीरें और वीडियो, बंदूकों के साथ आतंकवादियों की तस्वीरें, साथ ही आतंकवादी संगठनों द्वारा जारी किए गए पोस्टर और बयान पेश किए, जो कथित तौर पर उसके फोन से बरामद किए गए थे.
उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120 (आपराधिक साजिश) और 121A (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश) के साथ-साथ UAPA की धारा 18 (आतंकवादी कृत्य करने या उकसाने आदि की साजिश), 20 (आतंकवादी गिरोह या संगठन का सदस्य होना), 38 (आतंकवादी संगठन की सदस्यता) और 39 (आतंकवादी संगठन को समर्थन देने से संबंधित अपराध) के तहत आरोप लगाए गए हैं.
‘सबूत आतंकवादी गतिविधि का संकेत नहीं देते’
डार ने पिछले साल जनवरी में जमानत के लिए अर्जी दी थी. उनके वकीलों ने दावा किया था कि डार को जम्मू-कश्मीर में किसी भी हिंसा से जोड़ने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया गया था. उन्होंने तर्क दिया कि एनआईए का मामला ‘अनुमान और किसी भी ठोस सबूत के’ बिना दर्ज किया गया था. डार के मामले की अगुवाई अधिवक्ता तारा नरूला, तमन्ना पंकज और प्रिया वत्स ने की.
एनआईए ने फोन पर की गई डार की चैट और अन्य सबूतों को अदालत के सामने पेश किया था. इनकी जांच करते हुए अदालत ने कहा कि ‘चैट से यह संकेत नहीं मिलता है कि इन्हें अभियुक्त ने भेजा था’.
अदालत ने आगे कहा, ‘किसी भी समय, किसी भी व्यक्ति या संगठन के साथ सुरक्षा बलों, तैनाती आदि की ऐसी किसी भी तस्वीर/छवि को साझा करने का कोई सबूत नहीं है.’
न्यायाधीश मलिक ने जोर देकर कहा कि ‘कोई भी सबूत … किसी भी तरह से ‘आतंकवादी गतिविधि’ के किसी भी कार्य को अधिनियम की धारा 15 के तहत किसी भी तरीके से परिभाषित नहीं करता है’. इसलिए अदालत ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक फैसले का हवाला देते हुए उन्हें जमानत दे दी.
शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि एक सदस्य के रूप में एक आतंकवादी संगठन के साथ ‘मात्र संबंध’ या अन्यथा यूएपीए की धारा 38 लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है. संगठन की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए, किसी आतंकी संगठन के लिए सहयोग या समर्थन किसी कार्य को अंजाम देने के इरादे से किया होना चाहिए.
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादनः ऋषभ राज)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: आदिवासी पहचान, ST का दर्जा, राजनीति- छत्तीसगढ़ में किन वजहों से बढ़ रहे ईसाइयों के खिलाफ हमले