नयी दिल्ली, 29 सितंबर (भाषा) सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ अपील दायर करेगा, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के तहत विषय-वस्तु (कंटेंट) हटाने का आदेश जारी करने के सरकारी अधिकारियों के अधिकार को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी गयी थी।
‘एक्स’ ने कहा कि पुलिस अधिकारियों द्वारा ‘सहयोग नामक एक गुप्त ऑनलाइन पोर्टल’ के माध्यम से उसके मंच से मनमाने ढंग से सामग्री हटाने का आदेश भारतीय नागरिकों के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
एलन मस्क के स्वामित्व वाले सोशल मीडिया मंच ने अपने आधिकारिक हैंडल के जरिए सोमवार को कहा, ‘‘एक्स भारतीय कानून का सम्मान करता है और उसका पालन करता है, लेकिन यह आदेश हमारी याचिका में उठाये गये मूल संवैधानिक मुद्दों को हल करने में विफल रहा है तथा मुंबई उच्च न्यायालय के उस हालिया फैसले के साथ असंगत है, जिसमें कहा गया था कि इस तरह की व्यवस्था असंवैधानिक थी।’’
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार को ‘एक्स’ कॉर्प की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत सरकारी अधिकारियों द्वारा सामग्री हटाने के आदेश जारी करने के अधिकार को चुनौती दी गई थी और कहा था कि सोशल मीडिया को विनियमित करने की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोशल मीडिया के नियमन पर जोर दिया, खासकर महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में।
पीठ ने आगे कहा कि भारतीय बाजार को ऐसा मैदान नहीं माना जा सकता, जहां कानूनों की अवहेलना या वैधता की अनदेखी करके सूचना प्रसारित की जा सकती है।
‘एक्स’ ने कहा, ‘‘हम इस विचार से सम्मानपूर्वक असहमति जताते हैं कि विदेशी होने के नाते हमें ये चिंताएं उठाने का कोई अधिकार नहीं है। एक्स भारत में सार्वजनिक संवाद में महत्वपूर्ण योगदान देता है और हमारे उपयोगकर्ताओं की आवाज हमारे मंच के केंद्र में है। हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए इस आदेश के ख़िलाफ़ अपील करेंगे।’’
सोशल मीडिया मंच ने कहा कि वह कर्नाटक की अदालत के हालिया आदेश से बेहद चिंतित है, जो लाखों पुलिस अधिकारियों को ‘सहयोग’ नामक एक गुप्त ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से मनमाने ढंग से सामग्री हटाने के आदेश जारी करने की अनुमति देगा।
‘एक्स’ ने कहा, ‘‘इस नयी व्यवस्था का कानूनी आधार नहीं है, यह आईटी अधिनियम की धारा 69ए का (भी) उल्लंघन करती है, सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का उल्लंघन करती है और भारतीय नागरिकों के भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों का हनन करती है।’’
भाषा सुरेश अविनाश
अविनाश
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