लखनऊ: उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है. एक व्यक्ति की मौत के लगभग 18 महीने बाद उसका शव उनके परिवार के पास घर के एक कमरे में मिला. माता-पिता उसे कोमा में मानकर उसके साथ रहते रहे और रोजाना इस उम्मीद में उसके ऊपर ‘गंगाजल’ छिड़कते रहे कि इससे वह ठीक हो जाएगा.
यह पता लगाने के लिए पुलिस की जांच शुरू हो गई है कि ‘ममी’ की तरह हो चुके इस शव से इतने लंबे समय तक कोई दुर्गंध क्यों नहीं आई और क्यों इसके बारे में पड़ोसियों को पता नहीं चल पाया. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, हो सकता है कि परिवार के सदस्यों ने लाश को संरक्षित करने के लिए रसायनों का इस्तेमाल किया हो. इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
अहमदाबाद में आयकर (आईटी) विभाग के सहायक लेखा अधिकारी विमलेश दीक्षित (35), कानपुर के रावतपुर के कृष्णापुरी के निवासी राम अवतार और राम दुलारी के तीन बेटों में से एक थे. उनके परिवार में उनकी पत्नी और दो बच्चे हैं.
कानपुर नगर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ आलोक रंजन ने शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा, ‘स्वास्थ्य कारणों से कोविड- 19 संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान कानपुर लौटे दीक्षित को 19 अप्रैल 2021 को ‘एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम’ के चलते मोती अस्पताल में भर्ती कराया गया था और 22 अप्रैल को सुबह 4 बजे अचानक कार्डियक अरेस्ट पड़ने से उनकी मौत हो गई.’
रंजन ने बताया कि निधन से पहले दीक्षित का परिवार उन्हें इलाज के लिए लखनऊ और कानपुर के कई अस्पतालों में लेकर गया. पिछले साल अक्टूबर में उनकी मौत के बाद परिवार को मृत्यु प्रमाण पत्र भी जारी कर दिया गया था.
एक पुलिस सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि उनकी मौत के समय भी उनके माता-पिता यह मानने को तैयार नहीं थे कि वह अब जिंदा नहीं रहे. उन्होंने डॉक्टरों की बात पर विश्वास नहीं किया.
सूत्र ने कहा कि दीक्षित की पत्नी जान गई थीं कि उनकी मौत हो चुकी है, लेकिन उनके माता-पिता ऐसा करने के लिए तैयार नहीं थे. वह अपने बेटे के शरीर की देखभाल करते रहे. सूत्र ने आगे कहा, ‘माता-पिता ने शव को एक एसी कमरे में रखा हुआ था. हर दिन वे उसके कपड़े बदलते और उसे साफ करते. विमलेश की पत्नी पिछले छह महीने से परिवार से इस बात की जिद कर रही थी कि वह नहीं रहे, लेकिन माता-पिता के आगे उसकी सारी कोशिश बेकार रहीं.
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‘रसायनों के इस्तेमाल से इंकार नहीं किया जा सकता’
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, दीक्षित की पत्नी ने कथित तौर पर अहमदाबाद में उनके सीनियर अधिकारियों को पत्र लिखकर सूचित किया कि वह ‘कोमा’ में हैं.
लेकिन दीक्षित के बॉस को तब शक होने लगा जब परिवार यह साबित करने के लिए कोई वैध चिकित्सा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में विफल रहा कि वह जिंदा है और कोमा में चले गए हैं. उसके बाद जब उन्होंने कानपुर में अपने समकक्षों को पत्र लिखकर इस मामले की जांच करने के लिए कहा, तो सारी सच्चाई सामने आ गई.
डॉ रंजन ने पुष्टि की कि उन्हें इस संबंध में कानपुर आयकर विभाग से एक पत्र मिला था और इस मामले को देखने के लिए डिप्टी सीएमओ ओपी गौतम के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया गया. रंजन ने दिप्रिंट को बताया कि जब स्वास्थ्य विभाग की टीम शुक्रवार को उनके घर पहुंची, तो उन्हें घटनास्थल पर एक ‘ममीकृत शव’ मिला.
स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने कहा कि अधिकारियों ने जब लाश को अपने कब्जे में लेने की कोशिश की तो दीक्षित के माता-पिता ने विरोध करना शुरू कर दिया. वो यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे कि दिक्षित जिंदा नहीं हैं. स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने कहा कि शव को ईसीजी करने के बाद ही वहां से ले जाया गया था.
हालांकि परिवार के सदस्यों ने कहा किया कि वे उस पर सिर्फ ‘गंगाजल’ छिड़क रहे थे. लेकिन डॉ रंजन ने कहा कि वह ‘इस संभावना से इंकार नहीं कर सकते’ कि दीक्षित की लाश को संरक्षित करने के लिए रसायनों का भी इस्तेमाल किया गया है.
अंधविश्वास या लगाव?
संयुक्त पुलिस आयुक्त (कानून और व्यवस्था) आनंद प्रकाश तिवारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘परिवार के लोगों ने शव को यह सोचकर बिस्तर पर रखा हुआ था कि वह जीवित है. वे अब भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी मौत हो चुकी है. यहां तक कि उनकी मौत के समय भी उन्हें लगा कि अस्पताल से कोई गलती हुई है. परिवार बहुत अंधविश्वासी है.’
उन्होंने कहा, ‘ इस मामले को लेकर एक पहलू ये भी हो सकता है कि वे शायद विमलेश के विभाग को उसके वेतन पाने के लिए गुमराह कर रहे थे, लेकिन प्रथम दृष्टया, ऐसा नहीं लगता है. मगर ज्यादा संभावना इस बात की है कि परिवार उसकी मौत को स्वीकार नहीं कर सका और उसके शरीर के मोह से बाहर नहीं निकल पाया. हम शुक्रवार को परिवार के मानसिक स्वास्थ्य की जांच नहीं कर सके लेकिन उस पहलू पर भी गौर किया जाएगा.’
मामले की जांच के लिए डीसीपी (पश्चिम) विजय ढुल की देखरेख में एक विशेष टीम का गठन किया गया है. इस बात का भी पता लगाया जा रहा है कि क्या परिवार ने लगभग डेढ़ साल तक उसकी लाश का दाह संस्कार करने से इनकार करके उसके कानूनी अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं किया.
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