(पायल बनर्जी)
नयी दिल्ली, 31 मार्च (भाषा) सरकार ने रेबीज रोधी टीके और सर्पदंश की विषरोधी दवा के भंडार की वास्तविक समय की निगरानी और देश भर में लाभार्थियों को इन्हें दिए जाने की जानकारी प्रदान करने के लिए एक डिजिटल मंच ‘जूविन’ विकसित किया है।
यह मंच ‘कोविन’ और ‘यूविन’ की तर्ज पर काम करेगा, जो सूचनाओं को केंद्रीकृत करेगा और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, नगरपालिका अधिकारियों एवं पशु चिकित्सा सेवाओं के बीच सहयोग को बढ़ाएगा।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इसे दिल्ली, मध्य प्रदेश, असम, पुडुचेरी और आंध्र प्रदेश में प्रायोगिक कार्यक्रम के रूप में शुरू किया जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के अनुसार, हर साल रेबीज से दुनिया भर में 60,000 से अधिक लोगों की जान जाती है, जिनमें से लगभग 36 प्रतिशत मौत अकेले भारत में होती हैं। देश में हर साल सांप के काटने से लगभग 50,000 लोगों की मौत होती है।
इस पोर्टल को राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) ने अपने ‘सेंटर फॉर वन हेल्थ’ के माध्यम से यूएनडीपी के तकनीकी सहयोग से विकसित किया है।
रेबीज और सांप के काटने से संबंधित जानकारी तथा उपचार तक पहुंच को और बढ़ाने के लिए एनसीडीसी ने ‘यूएनडीपी इंडिया’ के सहयोग से पिछले साल इन पांच राज्यों में एक समर्पित हेल्पलाइन शुरू की थी।
आधिकारिक सूत्र ने बताया कि ‘जूविन’ मंच इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (ईविन) और यू-विन मंच के डिजिटल ढांचे से काफी मिलता-जुलता है, जो वर्तमान में बच्चों और गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (यूआईपी) के तहत पूरे भारत में काम कर रहे हैं।
आधिकारिक सूत्र ने बताया, ‘‘‘जूविन’ का प्राथमिक उद्देश्य वास्तविक समय पर निगरानी के माध्यम से स्वास्थ्य केंद्रों में रेबीज रोधी टीका (एआरवी), रेबीज रोधी सीरम (एआरएस) और सर्पदंश रोधी दवा (एएसवी) की उपलब्धता सुनिश्चित करना तथा वास्तविक समय पर निगरानी एवं बाद के चिकित्सीय परामर्श के माध्यम से जानवरों एवं सांप के काटने के पीड़ितों को एआरवी, एआरएस और एएसवी की खुराक समय पर दिया जाना सुनिश्चित करना है।’’
यह ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में लोगों को रेबीज रोधी टीके या सांप के काटने पर विषरोधी दवाओं की उपलब्धता वाले स्वास्थ्य केंद्रों का पता लगाने में भी मदद करेगा।
सूत्र ने बताया, ‘‘इसका उद्देश्य रेबीज रोधी टीकाकरण कार्यक्रम का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करना है और यह भी देखना है कि रेबीज के बाद के ‘एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस रेजिमेंट’ की सभी खुराकें समयबद्ध तरीके से दी जाएं।’’
हाल में 28 मार्च को राष्ट्रीय राजधानी में इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के राज्य स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए एक दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया था।
इसके अलावा इसके वास्तविक कार्यान्वयन से पहले आईटी मंच पर राज्य एवं जिला स्तर पर प्रशिक्षण जल्द आयोजित किया जाएगा।
यूएनडीपी ने कहा, ‘‘भारत में अपर्याप्त सार्वजनिक जागरुकता, कुत्तों के लिए टीकाकरण का कम दायरा और सीमित ‘पोस्ट-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस’ केंद्रों ने लगातार रेबीज संकट में योगदान दिया है। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में प्रचलित है जहां आवारा या पालतू कुत्तों के साथ अक्सर मानव संपर्क होता है।’’
पिछले साल, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सर्पदंश से रोकथाम, शिक्षा और प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए ‘‘सर्पदंश रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना’’ (एनएपीएसई) शुरू की थी ताकि ‘‘वन हेल्थ’’ दृष्टिकोण के माध्यम से भारत में 2030 तक सांप के काटने से होने वाली दिव्यांगता तथा मौतों को आधे से कम किया जा सके।
एनएपीएसई के अनुसार भारत में हर साल सर्पदंश के लगभग 30 से 40 लाख मामलों में करीब 50,000 लोगों की मौत हो जाती है। यह आंकड़ा दुनिया भर में सांप के काटने से होने वाली मौतों का लगभग आधा है।
भाषा सुरभि मनीषा
मनीषा
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