नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले महीने निर्णय लिया है कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस एके सीकरी को लंदन स्थित कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल (CSAT) में खाली अध्यक्ष/सदस्य पद के लिए नामित करेगी.
जस्टिस एके सीकरी सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के बाद दूसरे सबसे सीनियर जज हैं. वे सुप्रीम कोर्ट से 6 मार्च को रिटायर हो रहे हैं. इसके बाद वे लंदन में इस ट्रिब्यूनल का पदभार संभालेंगे.
इस प्रतिष्ठित ट्रिब्यूनल में सदस्यों को चार सालों के लिए नियुक्त किया जाता है, जो कि आगे और भी बढ़ाया जा सकता है.
प्रधानमंत्री की अगुआई वाले पैनल ने 8 जनवरी को सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को भ्रष्टाचार के आरोप में पद से हटा दिया था. इसमें जस्टिस सीकरी का वोट निर्णायक साबित हुआ था. वर्मा को हटाए जाने को लेकर सरकार की काफी आलोचना भी हुई. खासकर ऐसे आरोप जिनको लेकर वर्मा के खिलाफ जांच चल रही है.
वर्मा को हटाने वाली उच्च स्तरीय समिति में जस्टिस सीकरी का वोट काफी महत्वपूर्ण था. इस समिति में प्रधानमंत्री, सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे आलोक वर्मा को हटाने के मुद्दे पर एक दूसरे के आमने सामने थे.
सुप्रीम कोर्ट ने वर्मा को हटाने के राजनीति रूप से संवेदनशील मामले पर निर्णय लेने के लिए इस समिति को अधिकृत किया था. जस्टिस सीकरी ने अपना मत सरकार के पक्ष में रखा था, जबकि खड़गे ने वर्मा को हटाने के फैसले का कड़ा विरोध किया था.
उच्च स्तर पर हुआ निर्णय
कॉमनवेल्थ ट्रिब्यूनल 53 देशों के बीच किसी भी विवाद का निपटारा करने वाली न्यायिक संस्था है.
इसमें अध्यक्ष समेत आठ सदस्य होते हैं. इनका चुनाव सदस्य देशों की सरकारें करती हैं. इसमें ऐसे लोगों का चुनाव किया जाता है जो नैतिक रूप से बेहतर छवि के हों, उच्च न्यायिक पदों पर रह चुके हों या फिर कम से कम दस साल तक कानून के क्षेत्र में काम कर चुके हों.
फिलहाल इस ट्रिब्यूनल में एक पद खाली है. भारत इस ट्रिब्यूनल का सदस्य है. सूत्रों का कहना है कि ट्रिब्यूनल में कई सदस्यों का कार्यकाल अगले कुछ महीनों में समाप्त होने वाला है.
सुप्रीम कोर्ट में दिप्रिंट के सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पिछले महीने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को पत्र लिखकर जस्टिस सीकरी को ट्रिब्यूनल के लिए नामित करने संबंधी विदेश मंत्रालय के निर्णय से अवगत कराया है और उनकी सहमति मांगी है.
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सू्त्रों ने बताया कि जस्टिस सीकरी को ट्रिब्यूनल के लिए नामित करने का यह निर्णय उच्च स्तर पर लिया गया है. सूत्रों से यह भी पता चला है कि जस्टिस गोगोई ने जस्टिस सीकरी से बातचीत करने के बाद सरकार को सकारात्मक जवाब भेजा है.
क्या सरकार ने मुख्य न्यायाधीश से इस पद के लिए किसी जज का नाम सुझाने की अपील की थी या सरकार ने एकतरफा निर्णय लिया, इस सवाल सूत्र ने कहा, ‘सरकार ने जब मुख्य न्यायाधीश को इस बारे में लिखा तो यह बात स्पष्ट थी कि सरकार सीकरी को नामित करेगी. हो सकता है कि सरकार में शामिल लोगों में से किसी ने पहले ही उनकी सहमति ले ली थी.’
पिछली मई में कर्नाटक में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. भाजपा सबसे बड़ी पार्टी थी और उसने सरकार बनाने का दावा किया था. राज्यपाल ने भाजपा को राहत देते हुए बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय दिया था. लेकिन जस्टिस सीकरी की अगुआई वाली बेंच ने राज्यपाल के इस आदेश को निरस्त करते हुए तुरंत बहुमत साबित करने का आदेश दिया था. हालांकि, बहुमत साबित करने में नाकाम बीएस येदियुरप्पा सरकार ने इस्तीफा देकर कांग्रेस जेडीएस गठबंधन के लिए रास्ता खाली कर दिया था.
वर्मा को हटाने पर आलोचना
आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाने संबंधी तीन सदस्यीय पैनल के निर्णय की खूब आलोचना हुई. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एके पटनायक ने भी वर्मा को हटाने के निर्णय पर सवाल किया, जिनको सुप्रीम कोर्ट ने वर्मा के खिलाफ केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की जांच की निगरानी के लिए नियुक्त किया था.
जस्टिस पटनायक ने शनिवार को इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि प्रधानमंत्री की अगुआई वाली चयन समिति ने वर्मा को हटाने में ‘बहुत उतावलापन’ दिखाया. जस्टिस पटनायक का कहना है कि ‘वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई सबूत नहीं हैं.’
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सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट सौंपने वाले जज का कहना है कि ‘पूरी जांच (सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश) अस्थाना की शिकायत पर हुई. मैंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मेरी या सीवीसी की रिपोर्ट में कोई तथ्य नहीं मिले हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वर्मा को हटाने का निर्णय उच्च स्तरीय समिति लेगी, लेकिन यह निर्णय बहुत उतावलेपन के साथ लिया गया. हम यहां पर एक संस्थान के संबंध में निर्णय ले रहे हैं. उन्हें अच्छी तरह से सोचना समझना चाहिए था, खासकर तब जब एक सुप्रीम कोर्ट का जज भी वहां मौजूद था. सीवीसी जो भी कहती है, वही बात निर्णायक नहीं हो सकती.’
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