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Friday, 22 November, 2024
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पारसी पादरी और बार से बेंच तक पहुंचने वाले SC के चौथे जज रोहिंटन नरीमन, इस हफ्ते रिटायर होने जा रहे हैं

जस्टिस नरीमन का कार्यकाल 12 अगस्त को पूरा हो रहा है. उन्होंने कई उल्लेखनीय फैसले सुनाए हैं जिसमें कई तो तब लिखे गए जब वह जूनियर जज ही थे.

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नई दिल्ली: जस्टिस रोहिंटन नरीमन कुछ चुनिंदा न्यायाधीशों में शामिल हैं—वे बार से बेंच तक का सफर करने वाले केवल चौथे वरिष्ठ वकील रहे हैं.

उन्हें 7 जुलाई 2014 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किया गया था.

बहरहाल, जस्टिस नरीमन का सात साल तक चला कार्यकाल 12 अगस्त को पूरा होने जा रहा है.

इतिहास, दर्शन, साहित्य और विज्ञान में गहरी रुचि रखने वाले जस्टिस नरीमन ने पिछले कुछ समय में शीर्ष अदालत की तरफ से कई उल्लेखनीय फैसले दिए हैं, जिनमें से कुछ तो तब लिखे गए जब वह एक जूनियर जज ही थे.

कई संविधान पीठों के सदस्य के रूप में कुछ ऐतिहासिक फैसलों में उनका योगदान देश के समृद्ध न्यायिक इतिहास में दर्ज रहेगा.

लेकिन जस्टिस नरीमन का अपने सहयोगियों के बीच लोकप्रिय होने—बार और बेंच दोनों में ही, उनकी उम्र भी इसमें कोई मायने नहीं रखती—का एकमात्र कारण उनका विधि कौशल ही नहीं है.

अदालत के अंदर और बाहर दोनों जगह अपनी सौम्य बातचीत के लिए जाने जाने वाले जस्टिस नरीमन एक पारसी पादरी भी हैं और यही उन्हें एक न्यायाधीश के तौर पर और भी विशिष्ट बनाता है.

विवाह और नवजोत समारोह—जब पारसी परिवार से संबंधित किसी बच्चे को दीक्षा दी जाती है—कराने में निपुण जस्टिस नरीमन को अपने समुदाय के किसी भी अन्य पादरी की तरह ही पवित्र गर्भगृह (पूजास्थल के आंतरिक हिस्से) में प्रवेश की अनुमति होती है.

नरीमन के पिता और प्रख्यात विधिवेत्ता फाली एस. नरीमन ने अपनी किताब में लिखा था कि चूंकि उनका परिवार ‘पादरियों’ से संबंधित था, इसलिए उनकी पत्नी ने सुनिश्चित किया कि बेटे को 12 साल की छोटी उम्र में पादरी के रूप में नियुक्त किया जाए. वरिष्ठ विधिवेत्ता ने आगे यह भी बताया कि मुंबई में अपनी बहन अनहिता की नवजोत रस्म जस्टिस नरीमन ने ही कराई थी.

‘कंपरैटिव कांस्टीट्यूशनल और सिविल लॉ के विशेषज्ञ’

2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के एक महीने बाद जस्टिस नरीमन को पदोन्नत किया गया. उनके नाम की सिफारिश तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आर.एम. लोढ़ा ने की थी.

यह नौ साल बाद था जब सुप्रीम कोर्ट बार के एक वरिष्ठ वकील को शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत किया गया था.

उनसे पहले जस्टिस संतोष हेगड़े (जनवरी 1999-जून 2005), कुलदीप सिंह (1988-1996) और एस.एम. सीकरी (1963-1973) को सीधे यह पद मिला था.

जस्टिस नरीमन ने 1979 में एक वकील के तौर पर अपना नामांकन कराया था. उन्होंने श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स (एसआरसीसी) से वाणिज्य में स्नातक किया था और दिल्ली यूनिवर्सिटी की लॉ फैकल्टी में कानून की पढ़ाई की थी.

बाद में उन्होंने हार्वर्ड लॉ स्कूल से विधि में स्नातकोत्तर किया और अफरमेटिव एक्शन : ए कंपैरिशन बिटवीन द इंडियन एंड यूएस कंस्टीट्यूशनल लॉ पर अपनी थीसिस लिखी.

उन्होंने भारत लौटने से पहले एक साल तक न्यूयॉर्क के हाईट, गार्डनर, पुअर और हैवेंस में एक साल तक मैरीटाइम लॉ की प्रैक्टिस की.

उनकी उम्र महज 37 वर्ष थी जब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त किया. तत्कालीन चीफ जस्टिस वेंकटचलैया ने इतनी कम उम्र में उन्हें वरिष्ठ वकील बनाने के लिए उस समय इसके लिए अनिवार्य 45 वर्ष के नियमों में संशोधन किया.

एक वकील के रूप में जस्टिस नरीमन ने पिछली कांग्रेस सरकार के समय में 2011 में भारत के सॉलिसिटर जनरल के रूप में भी कार्य किया, हालांकि बाद में तत्कालीन कानून मंत्री अश्विनी कुमार के साथ कथित मतभेदों के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

उनके पास 35 साल बार के साथ काम करने का अनुभव है, इस दौरान उन्होंने संविधान पीठ के समक्ष कई मामलों में दलीलें पेश की और 500 से अधिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले उनके खाते हैं.

सुप्रीम कोर्ट में अभ्यास करने वाले युवाओं के लिए उनकी पदोन्नति ‘गर्व का विषय’ रही है.

वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी कहती है, ‘जस्टिस नरीमन एक बेजोड़, विद्वान और विचारशील न्यायाधीश हैं. वह मामलों में दलील देने वाले खासकर युवा वकीलों के प्रति काफी सहयोगात्मक रुख वाले रहे हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ ऐसे केस उनकी विरासत हैं जिन्होंने हमारे संवैधानिक लोकतंत्र में स्वतंत्रता का विस्तार किया—जिनमें के.एस. पुट्टुस्वामी जिसने निजता का अधिकार प्रदान किया, और नवतेज सिंह जौहर जिसने एलजीबीटी भारतीयों के साथ समानता और गैर-भेदभाव सुनिश्चित किया. उन्हें वाणिज्यिक कानून से जुड़े मामलों में निर्णायक फैसलों के लिए भी याद रखा जाएगा जिसमें दिवाला प्रक्रिया के मामलों में कई ग्रे एरिया को स्पष्ट करने वाले बैंकरप्सी कोड संबंधी फैसला भी शामिल है.

सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा की तरफ से अतिरिक्त महाधिवक्ता रुचि कोहली ने भी उनकी बातों से सहमति जताई.

कोहली ने कहा, ‘एक वकील और एक जज के तौर पर कानूनों की इतनी अच्छी समझ रखने के मामले में वह हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं.’

अधिवक्ता सुनील फर्नांडिस ने कहा, ‘अगर आजादी के बाद से शीर्ष कोर्ट के शीर्ष 10 न्यायाधीशों और शीर्ष 10 वकीलों की सूची बनाई जाए तो जस्टिस नरीमन इन दोनों ही सूचियों में शानदार ढंग से शामिल किए जाने वाले एकमात्र व्यक्ति होंगे. यह तय करना मुश्किल है कि वह एक बेहतर वकील है या एक बेहतर जज.’


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ऐसे जज जिनके पास कभी शब्दों की कमी नहीं रही

जस्टिस नरीमन के फैसले इतिहास और साहित्य में उनकी गहरी रुचि को भी प्रदर्शित करते हैं.

नवतेज सिंह जौहर मामले में अपने अलग और सहमति वाले फैसले, जिसमें के दो समलैंगिक वयस्कों के बीच सहमति से यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था, में जस्टिस नरीमन ने ऑस्कर वाइल्ड के जीवन और उनकी यौन रुचि के कारण तत्कालीन ब्रिटिश शासन की तरफ से उनके खिलाफ मुकदमा चलाए जाने के बारे में विस्तार से बताया.

उनके निर्णय मानवाधिकारों को कायम रखने के प्रति उनके दृढ़ विश्वास को दिखाते हैं. 2014 में पांच-न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें जस्टिस नरीमन भी शामिल थे, ने बहुमत का फैसला सुनाया कि मौत की सजा के मामलों में समीक्षा याचिकाओं को खुली अदालत में सुना जाना चाहिए. यह सभी समीक्षा याचिकाओं की चैंबर में सुनवाई की अनुमति देने वाले शीर्ष अदालत के नियमों से हटकर है.

न्यायेतर हत्याओं के मामले में तत्कालीन चीफ जस्टिस आर.एम. लोढ़ा और जस्टिस नरीमन की पीठ ने पुलिस मुठभेड़ों की जांच करते समय 16 दिशानिर्देशों का पालन किए जाने संबंधी एक सेट निर्धारित किया. यही वो फैसला था जो मणिपुर में न्यायेतर हत्याओं पर 2017 के फैसले का आधार बना.

असम में एनआरसी अपडेट ने दिसंबर 2014 में उस समय खासी गति पकड़ी, जब जस्टिस नरीमन की पीठ ने राज्य को एक विशिष्ट समय सीमा के भीतर प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए.

एक संविधान पीठ सदस्य के तौर पर जस्टिस नरीमन ने तीन तलाक प्रथा को गैरकानूनी घोषित करने के बहुमत के फैसले का पक्ष लिया. अपनी और जस्टिस यू.यू. ललित की तरफ से लिखे गए फैसले में उन्होंने कहा कि लैंगिक समानता को धार्मिक स्वतंत्रता से ऊपर रखा जाना चाहिए.

के.एस. पुट्टूस्वामी केस, जिसने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता को मौलिक अधिकार बनाया, जोसेफ शाइन मामला जिसने व्यभिचार से संबंधित आईपीसी की धारा 497 को खारिज करा दिया और सबरीमला फैसले आदि पर जस्टिस नरीमन के विचार विभिन्न धर्मों के बारे में उनकी गहरी समझ को दर्शाते हैं.

न्यायाधीश ने खुद को अल्पमत में पाया जब उन्होंने और जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने सबरीमला फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका खारिज की. उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के आदेशों को लागू कराना सरकार पर एक संवैधानिक दायित्व था, भले ही वह मामले में किसी तरह उनके सामने पक्षकार न हो.

वह संवैधानिक अधिकारों को सर्वोपरि रखने को लेकर अपनी राय पर एकदम स्पष्ट रहे हैं. और इसने उनके कई फैसलों में प्रमुखता से जगह पाई है, जिसमें श्रेया सिंघल मामला भी शामिल है. इस मामले में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 66ए को असंवैधानिक करार दिया गया था.

उनके नेतृत्व वाली एक पीठ ने हाल ही में यूपी के बारे में मीडिया रिपोर्टों का संज्ञान लिया, जिसमें तीसरी कोविड लहर की आशंका के बीच कांवड़ यात्रा की अनुमति दी गई थी.

उन्होंने कहा था, ‘भारत के नागरिकों की सेहत और जीवन का अधिकार सर्वोपरि है, अन्य सभी भावनाएं चाहे वे धार्मिक ही क्यों न हों, इस मूल मौलिक अधिकार के बाद आती हैं. उन्होंने राज्य को इसके इंतजाम वापस लेने को बाध्य भी कर दिया.

एक न्यायाधीश के तौर पर फैसले लिखने के लिए जस्टिस नरीमन के पास कभी शब्दों की कमी नहीं रही. उनकी पीठ ने अयोध्या विध्वंस मामले में आपराधिक मुकदमे में तेजी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.


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विविध रुचियों वाले न्यायाधीश

नरीमन के पिता ने अपनी किताब में जस्टिस नरीमन को एक ‘शानदार वकील’ बताया है, जो अपनी स्मृति और लोगों, घटनाओं आदि के बारे में अपने जबर्दस्त सामान्य ज्ञान के कारण एकदम ‘बेजोड़’ हैं.

सीनियर नरीमन के मुताबिक, ‘इसके अलावा वह हमारे नरीमन परिवार में अकेले समर्पित और ईश्वर से डरने वाले एक पादरी भी हैं.

वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी ने एक व्याख्यान के दौरान जस्टिस नरीमन का परिचय एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दिया, जो ‘आश्चर्यजनक ढंग से विविध रुचियों वाले’ हैं.

और यह उनकी पहली पुस्तक, द इनर फायर: फेथ, चॉइस, एंड मॉडर्न-डे लिविंग इन जोरास्ट्रियनिज्म में स्पष्ट है. यह किताब पारसी धर्म के पवित्र ग्रंथ गाथेस के 238 छंदों का विश्लेषण है.

2016 में अपनी किताब के विमोचन के समय जस्टिस नरीमन ने कहा था कि वह भारत में प्रचलित धार्मिक आस्थाओं के ‘रत्नों’ पर बच्चों के लिए एक किताब लिखना चाहते हैं. उन्होंने लॉन्च के मौके पर खुलासा किया कि उन्होंने एनसीईआरटी को भी इसका प्रस्ताव दिया था लेकिन उसने कोई उत्साह नहीं दिखाया.

दूसरी जो किताब जस्टिस नरीमन लिख रहे हैं वो भारतीय सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में सभी असहमतिपूर्ण फैसलों का एक साथ समेटने, खोजने और उनका विश्लेषण करने से जुड़ी है. पेंगुइन की तरफ से इस किताब को दो खंडों में प्रकाशित किया जाएगा.

पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के बारे में गहरी जानकारी रखने वाले जस्टिस नरीमन नियमित रूप से सुबह की सैर करते हैं और उन्हें अक्सर दिल्ली के लोदी गार्डन में देखा जाता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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