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Saturday, 11 May, 2024
होमदेशजस्टिस अरुण मिश्रा ने अपने अंतिम फैसले में उज्जैन के शिवलिंगम को बचाने को लेकर दिए निर्देश

जस्टिस अरुण मिश्रा ने अपने अंतिम फैसले में उज्जैन के शिवलिंगम को बचाने को लेकर दिए निर्देश

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई, कृष्ण मुरारी और अरूण मिश्रा की बेंच ने मंदिर में शिवलिंगम के क्षरण को रोकने से संबंधित एक मामले में निर्देश जारी किया है.

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नई दिल्ली: सेवानिवृत्त होने से पहले अपने अंतिम फैसले में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने उज्जैन में श्री महाकालेश्वर मंदिर में ‘शिवलिंगम को संरक्षित करने’ के निर्देश दिए हैं.

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस अरूण मिश्रा की बेंच ने मंदिर में शिवलिंगम के क्षरण को रोकने से संबंधित एक मामले में निर्देश जारी किया है.

अन्य बातों के अलावा, न्यायमूर्ति मिश्रा ने अपने निर्णय में कहा, ‘किसी भी भक्त को शिवलिंगम को रगड़ना नहीं चाहिए’. शीर्ष अदालत के न्यायाधीश मिश्रा बुधवार को सेवानिवृत्त होने वाले हैं.

फैसला ‘पुजारी, जनेऊपति, खुटपति, पुरोहितों और उनके अधिकृत प्रतिनिधियों पर सख्ती से यह सुनिश्चित करने के लिए हुआ कि कोई भी आगंतुक या भक्त किसी भी कीमत पर शिवलिंगम को न चलाए.’

अदालत ने मंदिर समिति को यह भी निर्देशित किया कि ‘यह सुनिश्चित करने के लिए कि भस्म आरती के दौरान भस्म का पीएच मान सुधारा जाए और शिवलिंगम को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए सर्वोत्तम पद्धति को लागू किया जाए.’

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आदेश में कहा गया, ‘यदि यह किसी भी भक्त द्वारा किया जाता है तो पुजारी या पुरोहित इसके लिए जिम्मेदार होगा. मंदिर की ओर से पारंपरिक पूजा और अर्चना के अलावा शिवलिंगम को रगड़ा न जाए.’

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि भक्तों द्वारा शिवलिंगम पर ‘दही, घी, शहद का घिसना’ भी क्षरण का एक कारण था. इसने समिति की इस बात को मान लिया कि केवल ‘सीमित मात्रा में शुद्ध दूध डालना चाहिए’. इसके अलावा, समिति को ‘अपने संसाधनों से आगंतुक और भक्तों के लिए शुद्ध दूध’ की व्यवस्था करने के लिए भी कहा गया है.

अदालत ने आदेश दिया कि ‘समिति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिवलिंगम पर कोई भी अशुद्ध या मिलावटी दूध न चढ़ाया जाए और इसे संबंधित पुजारी/ पुरोहित को देखना चाहिए.’

आदेश में कहा गया है कि पूरे दिन 24 घंटे गर्भगृह में होने वाली पूजा की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाए और इसे अगले करीब छह महीने तक संभाल कर रखने को भी कहा गया है. अगर किसी भी पुजारी को नियमों का उल्लंघन करते पाया जाता है तो मंदिर समिति से उनके खिलाफ उचित कार्रवाई करने की उम्मीद की जाती है.

इसके अतिरिक्त, मंदिर की संरचनात्मक स्थिरता पर केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) द्वारा प्रस्तुत एक प्रस्ताव के आधार पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार सीबीआरआई को दिए जाने वाले 41.3 लाख रुपये का खर्च वहन करेगी.


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‘मंदिरों में आवश्यक अनुष्ठान की हो रही उपेक्षा’

अदालत ने आगे कहा कि कोविड-19 के दौरान, भक्तों को गर्भगृह में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही थी. यह निर्देश दिया कि ‘प्रथागत पुजारी और पुरोहितों को अनुष्ठान करना चाहिए क्योंकि वे अनुष्ठानों को जानते हैं और पूजा और अर्चना के विशेषज्ञ हैं.’

यह देखा गया कि, ‘नए पुजारी जरूरी अनुष्ठानों को नहीं समझते हैं. इसके व्यावसायीकरण की कोई गुंजाइश नहीं है.’

हालांकि अदालत ने कहा कि यह निर्देश नहीं दिया जा सकता है कि किस तरह के अनुष्ठान किए जाएं. उन्होंने कहा, ‘लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा इसे नियमित रूप से किया जाना चाहिए.’


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‘मसला चिंताजनक है’

अगस्त 2017 में अदालत ने शिवलिंगम के क्षरण के मुद्दे को देखने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के दो अधिकारियों और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के दो अधिकारियों की एक समिति का गठन किया था.

तब मई 2018 में अदालत ने स्पष्ट किया था कि उसने उज्जैन मंदिर में किए जाने वाले अनुष्ठानों में हस्तक्षेप नहीं किया, जबकि प्राचीन मंदिर में ज्योतिर्लिंगम की रक्षा के मुद्दे से निपटना था. यह निर्णय न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति यू.यू. ललित ने जनवरी 2019 में फिर से मंदिर का दौरा करने और लिंगम की स्थिति और किसी भी सुधार पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए विशेषज्ञ समिति को निर्देश दिया था.

इस समिति की रिपोर्ट में अब कहा गया है कि ‘अंतिम निरीक्षण के बाद शिवलिंग का क्षरण हुआ था’. पिछले महीने अदालत ने मंदिर समिति से ‘एक्शन टेकन रिपोर्ट’ के लिए कहा था.

इन दो रिपोर्टों के आधार पर अदालत ने मंगलवार को कहा, ‘यह मामला गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि लापरवाही के कारण ओंकारेश्वर मंदिर का लिंगम नष्ट हो गया’.

इस क्षरण में योगदान देने वाले विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने अब विशेषज्ञ समिति को मंदिर का दौरा करने और शिवलिंगम के क्षरण को रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर 15 दिसंबर तक एक रिपोर्ट देने को कहा है.

इसने समिति को वार्षिक सर्वेक्षण करने और अदालत में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया है.

निगरानी रिपोर्ट के अनुपालन और विचार के लिए जनवरी 2021 के दूसरे सप्ताह में इस मामले को सूचीबद्ध किया गया है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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