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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशसंसदीय समिति ने कहा- न्यायपालिका में सामाजिक विविधता, हाई कोर्ट जजों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाई जाए

संसदीय समिति ने कहा- न्यायपालिका में सामाजिक विविधता, हाई कोर्ट जजों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाई जाए

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, राज्यसभा में भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली कार्मिक मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने न्यायिक नियुक्तियों में एससी, एसटी और ओबीसी को पर्याप्त प्रतिनिधित्व न मिलने पर चर्चा की है.

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नई दिल्ली: उच्च न्यायपालिका के कामकाज और न्यायाधीशों की नियुक्ति की कोलेजियम प्रणाली पर सरकार के बढ़ते दबाव के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय मामलों की संसदीय समिति ने कहा है कि न्यायपालिका में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लोगों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व के साथ न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता को बढ़ाया जाना चाहिए. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

स्थायी संसदीय समिति के सदस्यों ने गुरुवार को हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु को मौजूदा 62 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष करने पर भी जोर दिया, जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु के बराबर होगी.

ये मुद्दे स्थायी समिति की बैठक के दौरान सामने आए, जिसे ‘न्यायिक प्रक्रियाओं और उनमें सुधार’ पर न्याय विभाग के सचिव एस.के.जी. रहाटे के विचार जानने के लिए बुलाया गया था. गुरुवार की बैठक में हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता बढ़ाने के अलावा अलावा इस विषय पर भी चर्चा हुई कि सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठों को गठित करने की क्या संभावना है.

संसदीय समिति के एक सदस्य ने अपना नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि मौजूदा समय में न्यायपालिका में एससी, एसटी और ओबीसी का प्रतिनिधित्व बहुत कम है.

उक्त सांसद ने कहा, ‘न्याय विभाग की तरफ से संसदीय समिति के साथ साझा किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2018 के दौरान—उस वर्ष 19 नवंबर तक—कुल 537 हाई कोर्ट न्यायाधीशों को नियुक्त किया गया जिसमें 424 (79 प्रतिशत) सामान्य श्रेणी से थे, और 57 (फीसदी) ओबीसी, 15 (2.8 फीसदी) अनुसूचित जाति, 7 (1.3 फीसदी) अनुसूचित जनजाति और 14 (2.6 फीसदी) अल्पसंख्यक थे. हालांकि, हाई कोर्ट के 20 न्यायाधीशों के मामले में जानकारी उपलब्ध नहीं थी.’

अपना नाम न बताने के इच्छुक सांसद ने कहा, ‘इससे पता चलता है कि अभी हाई कोर्टों में एससी, एसटी और ओबीसी का प्रतिनिधित्व बहुत ही कम है. अधिकांश सदस्यों का विचार था कि सरकार को न्यायपालिका में एससी, एसटी और ओबीसी का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना चाहिए, हालांकि न्यायाधीशों की नियुक्ति में कोई आरक्षण प्रणाली लागू नहीं है.

सांसद ने आगे बताया कि न्याय विभाग के सचिव ने समिति के सदस्यों से कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार की कोई भूमिका नहीं है क्योंकि नामों का फैसला कोलेजियम करता है. सांसद ने कहा, ‘न्यायाधीशों की नियुक्ति में कोई आरक्षण नहीं है. सदस्यों ने कहा कि कोलेजियम सिस्टम में यह देखा जाना चाहिए कि एससी, एसटी और ओबीसी का प्रतिनिधित्व कैसे बढ़ाया जाए.’

गुरुवार की बैठक में समिति के अध्यक्ष सुशील कुमार मोदी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) सांसद पी. विल्सन, ए. राजा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की वंदना चव्हाण, तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी और भाजपा के महेश जेठमलानी समेत 16 सदस्यों ने हिस्सा लिया.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि संसदीय समिति फिर से बैठक करेगी जिसमें राजनेताओं और नौकरशाहों की मौजूदा प्रणाली की तरह न्यायाधीशों के लिए भी संपत्ति घोषित करने की व्यवस्था की जरूरत जैसे मुद्दों पर चर्चा की जाएगी.

जानकारी के मुताबिक स्थायी समिति ने कोलेजियम प्रणाली पर कोई चर्चा नहीं की, जिस पर सरकार की तरफ से हमला किया जा रहा है.


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हाई कोर्ट जजों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाकर 65 वर्ष करना

माना जा रहा है कि संसदीय समिति के सदस्यों ने हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने और इसे सुप्रीम कोर्ट के जजों की मौजूदा सेवानिवृत्ति आयु के बराबर करने पर भी जोर दिया. गौरतलब है कि हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु 62 वर्ष है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश 65 वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं.

यूपीए सरकार ने 2010 में हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाकर 65 वर्ष करने का प्रस्ताव करते हुए संविधान संशोधन (114वां) विधेयक पेश किया था. लेकिन इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका और अंततः यह प्रक्रिया ठप हो गई.

मामले से जुड़े सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार हाई कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति आयु 62 साल से बढ़ाकर 65 साल करने के पक्ष में नहीं है.’

सूत्रों ने आगे कहा, ‘न्याय सचिव का विचार था कि यदि हाई कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ा दी जाती है, तो वकीलों के लिए सुप्रीम कोर्ट आने की कोई वजह नहीं रह जाएगी. वे हाईकोर्ट में रहना पसंद करेंगे. अच्छी प्रतिभाएं सुप्रीम कोर्ट नहीं आएंगी.’

इसके अलावा, सरकार की यह आशंका भी है कि इससे अपीली न्यायाधिकरणों के लिए भी समस्याएं पैदा होंगी, जिसमें हाई कोर्ट के न्यायाधीश 62 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होने के बाद आवेदन कर सकते हैं. पूर्व में उद्धृत सदस्य ने कहा, ‘सरकार का मानना है कि हाई कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष करने पर अपीलीय न्यायाधिकरणों में शीर्ष पर योग्य लोगों की कमी हो जाएगी. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश भी तब चाहेंगे कि उनकी सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाई जाए.’

कुछ सदस्यों ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालयों में वकीलों का पूल कैसे कमजोर होता जा रहा है क्योंकि अधिक से अधिक लॉ स्टूडेंट अदालतों में प्रैक्टिस करने के बजाये कॉरपोरेट लॉ फर्मों में शामिल होना पसंद कर रहे हैं.

क्या सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठों को स्थापित करना व्यावहारिक होगा

संसदीय समिति ने सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठों की व्यवहार्यता के मुद्दे को भी उठाया. पूर्व में उद्धृत सदस्य ने कहा, ‘यह न केवल सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों को निपटाने में मददगार होगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि अगर कोई सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहता है तो उसे दिल्ली न आना पड़े.’ सदस्य ने कहा, ‘डीएमके के राज्यसभा सदस्य पी. विल्सन ने कहा कि दक्षिणी राज्यों के लिए सुप्रीम कोर्ट की एक क्षेत्रीय पीठ होनी चाहिए.’

हालांकि, न्याय सचिव ने सदस्यों को सूचित किया कि मामला विचाराधीन है और अदालत में लंबित है.

विधि आयोग की 95वीं, 120वीं, 125वीं और 229वीं रिपोर्ट में पहले ही क्षेत्रीय पीठ स्थापित करने की सिफारिश की जा चुकी है.

(अनुवादः रावी द्विवेदी | संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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