पटना/नई दिल्ली : पटना हाईकोर्ट ने अपने ही एक जज को केस की सुनवाई करने से रोक दिया है, जज ने राज्य की निचली अदालत में कथित भ्रष्टाचार में सीबीआई जांच का आदेश दिया था. इस न्यायिक निर्णय में यह भी कहा कि उच्च न्यायालय में भ्रष्टाचार है यह एक ‘खुला रहस्य’ है.
एक आदेश में पटना हाईकोर्ट के 11 न्यायाधीशों की पीठ ने बुधवार को न्यायाधीश राकेश कुमार को किसी भी केस की सुनवाई करने से रोकने के लिए नोटिस जारी किया और रजिस्ट्रार को यह भी आदेश दिया कि विशिष्ट मामले को न्यायाधीश के समक्ष क्यों सूचीबद्ध किया गया था. नोटिस में माननीय न्यायमूर्ति राकेश कुमार के समक्ष सभी लंबित मामलों (सुने हुए केस और अनसुने केस) को तत्काल प्रभाव से वापस लेने का भी आदेश दिया है.
यह नोटिस महादलित विकास मिशन के करोड़ों के घोटाले की सुनवाई के दौरान जस्टिस कुमार द्वारा एक आदेश दिए जाने के बाद जारी की गयी. जिसमें तीन आईएएस अधिकारी – केपी रमैया, रामाशीष पासवान और एसएम राजू को राज्य सतर्कता विभाग द्वारा आरोप पत्र सौंपा गया है.
निचली अदालत द्वारा केपी रमैया को जमानत देने से नाराज न्यायमूर्ति कुमार ने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की व्यापकता पर ध्यान दिया. उन्होंने चार अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों का नाम बताया, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. उन्होंने पहले निचली अदालत में और फिर हाईकोर्ट को निशाना बनाया.
न्यायाधीश ने तुरंत ही मामले की गंभीरता को महसूस किया क्योंकि मुख्य न्यायाधीश अमरेश्वर प्रताप साही द्वारा बुलाई गई पीठ ने तब उनसे सभी मामलों को वापस लेने का फैसला किया. पीठ ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि न्यायमूर्ति कुमार ने ‘अदालत की प्रतिष्ठा को कम किया’ और हाईकोर्ट के न्यायाधीश के पद पर बैठे व्यक्ति से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती है.
हालांकि, किसी भी मामले को सुनने से हटाने के फैसले से अदालत के वकील नाराज हैं. पटना उच्च न्यायालय के वकील संघ के संयुक्त सचिव छाया मिश्रा ने कहा, ‘एक स्वतंत्र न्यायपालिका को बचाने के लिए, हमें एक मजबूत और निडर और निष्पक्ष न्यायपालिका को मजबूत करना होगा, हम न्यायमूर्ति राकेश कुमार का समर्थन करते हैं.’ उन्होंने यह भी लिखा कि आम आदमी क्या महसूस करता है.
यह स्थिति उस समय की भी याद दिलाती है जब कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सीएस कर्णन (सेवानिवृत्त) को कठिन समस्या का सामना करना पड़ा था. जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के बीच भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था.
फैसला जो मुसीबत का कारण बना
घोटाले पर 20 पेज का फैसला देते हुए न्यायमूर्ति कुमार ने अन्य सभी बातों के अलावा, पटना की निचली अदालत के न्यायाधीशों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में हाईकोर्ट की विफलता पर हैरानी व्यक्त की, जो कथित रूप से टीवी चैनल पर एक स्टिंग ऑपरेशन में रिश्वत लेते हुए दिखे थे.
कोर्ट ने 28 अगस्त के फैसले में कहा, ‘न्यायपालिका जिसे राज्य के अन्य इकाइयों की तुलना में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए दृढ़ माना जाता है, ने पटना जिला अदालत में स्टिंग पर अपनी चुप्पी के माध्यम से भारत के अरबों लोगों को अविश्वास और सदमे की स्थिति में छोड़ दिया है.
न्यायाधीश ने तब मामले में आरोपी को ‘जमानत देने के अनियमित तरीके’ पर निशाना साधा.
न्यायमूर्ति कुमार ने कहा, ‘जिस तरह से, एक अभियुक्त को जमानत दी जाती है, वह न्यायपालिका के खिलाफ उंगली उठाता है. निश्चित रूप से निगरानी शक्ति का इस्तेमाल हुआ.’ यह अदालत इस बात की जांच करने की हकदार है कि क्या जमानत देने की शक्ति का इस्तेमाल समझदारी से किया गया था. यह दमनकारी समाज के सदस्यों के उत्थान के लिए भारी मात्रा में सार्वजनिक राशि को जब्त करने का खुला मामला है.’
उन्होंने पटना जिला न्यायालय को निर्देश दिया कि वे जांच करें कि कैसे ‘जमानत देने की तारीख पर सतर्कता अदालत छुट्टी पर थी और क्या यह छुट्टी सही में थी या जान बुझकर ली गयी थी.’
सीबीआई जांच
कथित रूप से पटना निचली अदालत के न्यायाधीशों और कर्मचारियों को ‘अवैध घूस’ को स्वीकार करने वाले स्टिंग ऑपरेशन के संबंध में, न्यायाधीश ने इस पर नाखुशी व्यक्त की कि भले ही मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा गया था और इस मामले को एक समिति के समक्ष रखा गया था. मामले में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी हुई, जिसके कारण ‘सबूत नष्ट’ हो सकते हैं.
जज ने नोट किया, ‘पूछताछ या जांच करते समय सीबीआई को संरक्षण सहित, अगर कोई हो तो हर चीज को जांचने की आजादी होगी. उन्होंने सीबीआई निदेशक को पूरे स्टिंग ऑपरेशन की जांच का निर्देश दिया कि क्या रिश्वत के दावे सही थे.
न्यायाधीश ने अपने फैसले में चार अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों को भी नामित किया, जो भ्रष्टाचार के आरोपी थे और कहा कि उनकी भी जांच होनी चाहिए.
उच्च न्यायालय में भ्रष्टाचार एक खुला रहस्य: न्यायमूर्ति कुमार
जज ने अपने सहयोगियों का भी मूल्यांकन किया था और बताया कि उच्च न्यायालय में भ्रष्टाचार ‘एक गुप्त रहस्य’ था.
न्यायमूर्ति कुमार ने आगे कहा कि ‘न्यायपालिका के सम्मान को बचाने के लिए अदालत को भ्रष्टाचार के दोषी लोगों को जवाबदेह बनाना होगा, वरना पूरे समाज का विश्वास न्यायिक प्रणाली में समाप्त हो जाएगा.’
उन्होंने फैसले में यह भी बताया कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बंगलों के नवीकरण और रखरखाव पर कितना धन खर्च किया जा रहा था और कहा कि प्रत्येक न्यायाधीश के लिए 1 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए थे. यह देखा गया है कि कर्तव्य का निर्वहन करने के बजाय, हम विशेषाधिकारों का आनंद लेने में अधिक लिप्त हैं.
उनकी टिप्पणियां केवल पटना उच्च न्यायालय तक ही सीमित नहीं थीं. उन्होंने कहा कि यह ‘सभी को ज्ञात था’ कि चारा घोटाला के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ न्यायाधीश ने अपनी पत्नी को राज्यसभा सदस्य के रूप में नामांकित किया था. उन्होंने कहा कि एक अन्य ‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश’ जिन्होंने एक अभियुक्त को जमानत दी थी, ने मामले के लिए दूसरे न्यायाधीश से अवैध मदद मांगी थी.
जस्टिस कुमार ने आदेश दिया था कि उनके फैसले को सुप्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय कानून मंत्रालय तक पहुंचाया जाए.
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