टिकरी बॉर्डर, नई दिल्ली: जोगिंदर सिंह उग्राहन रोज सुबह 4 बजे सोकर उठते हैं और एक कप चाय पीने के साथ ही उनकी व्यस्त दिनचर्या शुरू हो जाती है. वह थोड़ी ही देर में अपनी टीम और अन्य किसान समूहों, जिज्ञासु पत्रकारों और दूसरे शब्दों में कहें तो दरवाजे पर दस्तक देने वाले हर किसी व्यक्ति के साथ दिनभर चलने वाली बैठकों में हिस्सा लेने निकल पड़ते हैं.
एक छोटे मंदिर की दीवार से लगी एक खाली गौशाला गत 28 नवंबर से उनका निवास स्थान बनी हुई है, जबसे उन्होंने अपनी किसान सेना यानी भारतीय किसान यूनियन एकता (उग्राहन) संगठन के साथ राष्ट्रीय राजधानी की टिकरी बॉर्डर पर डेरा डाल रखा है.
नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से इस साल के शुरू में लाए गए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग करने वाले 75 वर्षीय पूर्व सैनिक अपने रुख पर पूरी तरह अडिग हैं.
वह हर रोज़ सात-आठ प्रेस कांफ्रेंस करके इस पर अपना विरोध जताते हैं और वह भी हर बार उसी शिद्दत और संकल्प के साथ. हालांकि, उनसे पूछे जा रहे सवालों में ज्यादातर कृषि कानूनों के बजाये उनकी व्यक्तिगत विचारधारा और राजनीतिक झुकाव से जुड़े होते हैं.
उनके किसान संगठन ने 10 दिसंबर को पिछले कुछ वर्षों में यूएपीए जैसे कड़े कानूनों के तहत गिरफ्तार एक्टिविस्ट और बुद्धिजीवियों, जिसमें सुधा भारद्वाज, वरवर राव, उमर खालिद और शरजील इमाम व अन्य शामिल थे, के पोस्टर लगाकर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया था.
उग्राहन के मुताबिक, यह उन लोगों की याद दिलाने और स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए एक प्रतीकात्मक विरोध था जिन्हें ‘सरकार की आलोचना जैसी मामूली बातों’ के लिए सलाखों के पीछे डाल दिया गया है.
उग्राहन ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमने कोई पहली बार इस तरह का विरोध नहीं किया है. हम 2018 से ऐसा ही कर रहे हैं. अगर सरकार सिर्फ अपनी नीतियों की आलोचना करने जैसी बातों के लिए बुद्धिजीवियों को देशद्रोही करार देती रहेगी तो हम भी उनकी रिहाई की मांग उठाते रहेंगे.
उन्होंने कहा, ‘दरअसल उनकी रिहाई की मांग भी उस पत्र का हिस्सा थी जो किसान संगठनों ने अपने मांग पत्र के तौर पर नरेंद्र तोमर को सौंपा था.’
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माओवादी का ठप्पा और एकता पर सवाल
प्रदर्शन शुरू होने के तुरंत बाद केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और पीयूष गोयल के अलावा कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी इसे ‘वामपंथियों और माओवादियों की घुसपैठ वाला’ आंदोलन करार दे दिया था.
लेकिन नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान शाहीन बाग का दौरा कर चुके उग्राहन उनकी राजनीति पर अफसोस जताने के अलावा अपने ऊपर लगाए जा रहे ठप्पे से पूरी तरह बेपरवाह रहे हैं.
उग्राहन ने कहा, ‘जब हम पंजाब से चले तो उनका कहना था कि ये किसान नहीं बल्कि कांग्रेसी हैं. फिर जब दिल्ली तक आ गए तो उन्होंने हमें खालिस्तानी कहना शुरू कर दिया.
उन्होंने बताया, ‘लेकिन 5 दिसंबर को जब हम तोमर साहब से मिले तो उन्होंने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने और किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन न करने के लिए हमारा आभार जताया. और 10 दिसंबर को राजनीतिक बंदियों को लेकर विरोध जताने के बाद, हम नक्सली बन गए. हम पांच दिनों में ही किसी से संबद्ध न होने से लेकर नक्सली कैसे बन गए? यह जानबूझकर हमारी एकता में फूट डालने का प्रयास है.’
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किसान नेता का यह भी कहना है कि उनका उन एक्टिविस्ट से कोई संबंध नहीं है जिनकी रिहाई की मांग कर रहे थे और न ही उनका कोई राजनीतिक संपर्क है. वह बताते हैं कि 2017 के पंजाब चुनावों से पहले उन्होंने अपने समर्थकों से नोटा दबाने की अपील की थी, न कि किसी राजनीतिक पार्टी को वोट देने की.
गिरफ्तार एक्टिविस्ट के समर्थन में प्रदर्शन के बाद विभिन्न किसान संगठनों और एकता उग्राहन की बीच मतभेद साफ नज़र आने लगे थे. संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल अन्य किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने इस प्रदर्शन को मंच का ‘दुरुपयोग’ तक करार दे दिया.
सोमवार को एकता उग्राहन ने 31 अन्य किसान निकायों की तरफ से घोषित भूख हड़ताल का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया क्योंकि उनका दावा था कि यह निर्णय लेने से पहले उनसे सलाह नहीं ली गई थी.
इससे पहले, गृह मंत्री अमित शाह और 13 किसान नेताओं के बीच हुई बैठक में उग्राहन को शामिल नहीं किया गया था जिस बैठक पर उग्राहन लगातार आपत्ति जताते रहे थे.
हालांकि, उग्राहन इस बात को लेकर सतर्क हैं कि प्रदर्शनकारी किसानों के बीच कोई भी मतभेद पुष्ट न हो.
उन्होंने कहा, ‘हमारे बीच हमेशा कुछ मतभेद रहे हैं. लेकिन वे मेरे बड़े भाइयों की तरह हैं. अगर उन्होंने हमारे विरोध प्रदर्शन के खिलाफ कुछ कहा है तो कोई बात नहीं. मैं उनके खिलाफ कुछ नहीं कहूंगा.’
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‘सिंघु की तुलना में टिकरी ज्यादा साधारण और शांत’
कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के 31 समूहों और उग्राहन के बीच अंतर केवल उनकी राजनीति तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि विरोध करने की उनकी शैली और नज़रिया भी एकदम भिन्न है.
अन्य आंदोलनकारी संगठन जहां सिंघु बॉर्डर पर डेरा डाले बैठे हैं, उग्राहन के संगठन ने अपने विरोध स्थल के रूप में टिकरी बॉर्डर को चुना है.
उग्राहन की मीडिया टीम में शामिल एक किसान रणदीप मड्डोक का कहना है, ‘आप देखिए यहां जोरशोर से गाना बजाने वाले ट्रैक्टर नहीं हैं, बड़े-बड़े लंगर नहीं चल रहे हैं. आमतौर पर एक साधारण माहौल है.’
पिज्जा लंगर, सौलर पैनल और वाशिंग मशीन सिंघु में आम दृश्य बन गए हैं लेकिन टिकरी का माहौल एकदम साधारण सा है.
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यद्यपि सिंघु में अक्सर सेलेब्रिटी गायक और कलाकार किसानों से मिलने आते हैं लेकिन टिकरी में ऐसा कोई तामझाम नहीं होता है.
मड्डोक कहते हैं, ‘हालांकि, गायक यहां भी आते हैं लेकिन हम इसे लेकर बहुत सतर्क हैं कि मंच पर कौन-कौन जा सकता है. हम गायक के ट्रैक रिकॉर्ड की जांच करते हैं, यदि उनके गीत कुछ विवादित बोल वाले होते हैं तो हम कोशिश करके उन्हें माइक से दूर ही रखते हैं.’
टिकरी के माहौल में छाई सादगी उग्राहन की अपनी जीवनशैली को भी दर्शाती है.
एक दशक पुरानी उनकी मारुति 800 उनका घर बनी गौशाला के बाहर खड़ी धूल खाती रहती है. वह बताते हैं कि पहले भी उनकी किसी और चीज में खास रुचि और शौक नहीं हुआ करता था.
यह पूछे जाने पर कि उनके आमोद-प्रमोद का क्या साधन है, उन्होंने कहा, ‘मैं ना खाता हूं, ना पीता हूं.’
सरल जीवन शैली के बावजूद उनके अंदर एक बच्चे जैसी ऊर्जा है, जो उग्राहन को आंदोलन स्थल पर प्रदर्शनकारियों के साथ-साथ अन्य लोगों से भी जोड़े रखती है.
टिकरी में मौजूद एक किसान गढ़मेद सिंह कहते हैं, ‘वह हमारा प्रधान है, हमारा नेता है. लेकिन जिस तरह इतनी ठंड और अन्य असुविधाएं झेलकर इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे है, वह वास्तव में प्रेरणा देने वाला है. जिस तरह से वह हमसे बात करते हैं, वह वैसा ही है जैसे वह कोई युवा व्यक्ति हों, अक्सर चुटकुले सुनाते रहते हैं और हमारे साथ हंसी मजाक करते रहते हैं.
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उग्राहन के समर्थक
2002 में भारतीय किसान यूनियन एकता (उग्राहन) शुरू करने से पहले उग्राहन ने पंजाब के संगरूर जिले में अपने गांव के नाम पर अपना उपनाम रख लिया था.
तब से ही समूह ने विशाल जनसमर्थन जुटा लिया है, विशेष रूप से राज्य के मालवा क्षेत्र में जहां वह आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को सरकारी मुआवजा दिलाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं.
उग्राहन के सहयोगियों ने कहा कि विरोध प्रदर्शन शुरू किए जाने से पहले गांव में किसानों की भीड़ को संबोधित करना और उन्हें उनके अधिकारों और फायदा पहुंचाने वाली नीतियों के बारे में जागरूक करना उनकी साधारण दिनचर्या का हिस्सा था.
टिकरी में विरोध प्रदर्शन की ताकत दिन-ब-दिन बढ़ रही है— यह अब रोहतक-दिल्ली रोड पर कई किलोमीटर तक फैल चुका है.
बुधवार को संगठन ने बॉर्डर पर एक विशेष विरोध प्रदर्शन आयोजित किया जिसमें तमाम विधवाओं ने अपने दिवंगत किसान पतियों की तस्वीरें ले रखी थीं जो आत्महत्या कर चुके हैं.
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संगठन की महिला शाखा की सदस्य राजिंदर कौर कहती हैं, ‘कई परिवार ऐसे हैं जिन्होंने आत्महत्या के कारण परिवार के एक नहीं दो पुरुष सदस्यों को गंवा दिया है. विरोध यह दिखाने के लिए किया गया था कि अगर कृषि कानूनों को लागू किया जाता है तो छोटे और सीमांत किसान परिवारों के लिए स्थिति और भी खराब हो जाएगी.’
इस बड़ी और अहम शाखा का नेतृत्व पहले उग्राहन की दिवंगत पत्नी किया करती थीं जिनका 2014 में निधन हो चुका है.
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‘सेना में फिट नहीं हो पाया’
उग्राहन सेना में अपने कार्यकाल के बारे में बात करने से परहेज करते हैं और कहते हैं कि यह सब ‘बीती बात’ हो चुकी है.
वह कहते हैं, ‘हां मैं कुछ समय के लिए सेना में था. लेकिन मैं वहां फिट नहीं था इसलिए छोड़ दिया और अपने गांव लौट आया. मैं जन्म से किसान हूं. जब मुझे लगा कि सेना में फिट नहीं हूं तो मैं खेती करने वापस चला गया. फिर जब किसानों के सामने आने वाली समस्याओं को देखा तो मैंने यह संगठन शुरू किया. फिर इसका प्रदेश अध्यक्ष बन गया.’
वह आगे कहते हैं, ‘अब तो मरने की तैयारी है, चले जाएंगे.’
उग्राहन का कोई पुत्र नहीं है. उनकी दोनों बेटियों की अब शादी हो चुकी है. वह बताते हैं कि उनके पास अब लोगों को देने के लिए सम्मान और सहानुभूतिपूर्ण शब्दों के अलावा कुछ नहीं है.
वह कहते हैं, ‘मेरे पास अब देने के लिए कुछ और नहीं है. मेरे पास अपनी जीभ है और इसका समझदारी से इस्तेमाल करके लोगों को सम्मान देना और उनके साथ विनम्रता से पेश आना चाहता हूं. जल्द ही दो-तीन साल बीत जाएंगे और मैं मौत के आगोश में चला जाऊंगा. मेरी विरासत मेरे शब्द ही होंगे.’
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