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Wednesday, 9 October, 2024
होमदेश‘मीडिया हमें अच्छे से नहीं दिखा रहा’, इसलिए किसानों ने प्रिंट किया ट्रॉली टाइम्स- अपना ख़ुद का अख़बार

‘मीडिया हमें अच्छे से नहीं दिखा रहा’, इसलिए किसानों ने प्रिंट किया ट्रॉली टाइम्स- अपना ख़ुद का अख़बार

हफ्ते में दो बार छपने वाले ट्रॉली टाइम्स के पहले संस्करण में, तीन लंबे लेख, फीचर्स, फोटोज़, चित्रण, और पंजाब के अलावा दूसरे राज्यों से आने वाले आंदोलनकारियों के लिए, एक हिंदी अनुभाग भी है.

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नई दिल्ली: शुक्रवार सुबह, किसानों के आंदोलन के 23वें दिन की शुरूआत के साथ ही, राष्ट्रीय राजधानी के सिंघू और टिकरी बॉर्डर्स पर ठहरे लोगों के हाथ में, हफ्ते में दो बार निकलने वाले सूचनापत्र का पहला संस्करण आ गया, जिसे विशेषरूप से आंदोलनकारियों ने, आंदोलनकारियों के लिए निकाला था.

इनकिलाब दि तलवार विचारां दि सान ते तेज होंदी ए (इनक़लाब की तलवार विचारों की रसान पर तेज़ होती है, भगत सिंह का एक हवाला), ये एक हेडलाइन थी एक द्विभाषी सूचनापत्र की, जो चार दिन पहले एक ट्रैक्टर ट्रॉली में बैठे, कुछ कलाकारों के बीच देर रात हुई, एक बातचीत के नतीजे में निकला था. इस सूचना पत्र का उद्देश्य, दिल्ली की सीमाओं पर कई किलोमीटर लंबाई में फैले आंदोलन के, कोने कोने में पहुंचकर सुनिश्चित करना था, कि मंच के संदेश, सरकार से बातचीत की ताज़ा जानकारी, और ऐसी ही दूसरी ख़बरें, आंदोलनकारी किसानों तक आसानी से पहुंच जाएं.

ट्रॉली टाइम्स के पहले संस्करण में, गुरमुखी में तीन लंबे लेख और फीचर्स, चित्रण, और पंजाब के अलावा दूसरे राज्यों से आने वाले आंदोलनकारियों के लिए, एक हिंदी अनुभाग भी है.

‘हम 26 नवंबर को यहां आए, और जल्दी ही नेशनल मीडिया ने, हमें आतंकवादी या खालिस्तानी बुलाना शुरू कर दिया. लेकिन हम वैसे लोग बिल्कुल नहीं हैं. हम इससे बहुत जुड़े हुए हैं, कि इसे एक शांतिपूर्ण आंदोलन कैसे बनाया जाए,’ दिप्रिंट से बातचीत करते हुए, ये कहना था पटियाला के एक थिएटर कलाकार नरिंदर सिंह भिंडर का, जिनकी ट्रॉली पर इस विचार ने साकार रूप लिया.

दिल्ली की सीमाओं पर 26 नवंबर के बाद से, प्रदर्शनों में तेज़ी ही आई है, जिनमें इसी साल लाए गए तीन केंद्रीय कृषि क़ानूनों को रद्द करने की मांग हो रही है. सिंघू और टीकरी दोनों सीमाओं पर, अब क़रीब 3 लाख लोग जमा हैं, और भिंडर का मानना है कि हर किसी को, स्थिति से अवगत रख पाना मुश्किल होता जा रहा है.

भिंडर ने कहा, ‘स्टेज के सामने की ओर भारी भीड़ है, जहां बातचीत और चर्चाएं होती हैं. बहुत से लोग हैं जो हमेशा वहां नहीं पहुंच पाते, और किसी जानकारी से महरूम रह सकते हैं. वैसे भी, नेशनल मीडिया हमें अच्छे से नहीं दिखा रहा है’.

ट्रॉली टाइम्स का पहला संस्करण, 12,000 रुपए की लागत से गुड़गांव में छापा गया. क़रीब 2,000 प्रतियां छापी गईँ, जिनमें 1,200 सिंघू बॉर्डर और 800 टीकरी बॉर्डर के लिए थीं.


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ट्रॉली टाइम्स का पहला संस्करण कैसे तैयार हुआ

सोशल मीडिया और व्हाट्सएप के ज़रिए ख़बर फैलाकर, हफ्ते में दो बार छपने वाले न्यूज़ लैटर के लिए सामग्री जुटाई गई. न्यूज़ लैटर के प्रस्ताव को ‘ज़बर्दस्त सकारात्मक’ रेस्पॉन्स मिला.

एक डॉक्युमेंटरी फोटोग्राफर और लेखक गुरदीप धालीवाल ने, जो न्यूज़लैटर टीम का हिस्सा हैं, दिप्रिंट को बताया, ‘हमें कुछ 300-400 ईमेल्स मिले, और उससे भी अधिक सामग्री व्हाट्सएप पर मिली. लोग इस आंदोलन से किस तरह जुड़े हैं, उसपर हमने बहुत सारी कविताओं, गीतों, और लघु-कहानियों की समीक्षा की’. उन्होंने आगे कहा, ‘अंतिम पेज पर तो एक चित्रण भी है, जो एक कोलकाता स्थित डिज़ाइनर ने भेजा है’.

चार पन्नों की सामग्री सिर्फ गुरमुखी में ही नहीं, बल्कि हिंदी में भी है.

युवा छात्र कार्यकर्ता और फिल्म स्कॉलर नवकिरन नट्ट, जिसने सूचनापत्र के लिए हिंदी अनुवाद किया, ने कहा, ‘हमने इसे दो भाषाओं में रखा है ताकि गाज़ीपुर और शाहजहांपुर के घटनाक्रम भी शामिल किए जा सकें. इसमें कृषि क़ानूनों पर एक लेख है, जो एआईकेएम (ऑल इंडिया किसान महासभा) लीडर पुरुशोत्तम शर्मा ने लिखा है. छात्रों का दृष्टिकोण भी है जो हरियाणा निवासी, और पूर्व जेएनयू अध्यक्ष गीता कुमारी ने दिया है. एक लेख जयपुर के युवा कार्यकर्ता राहुल का भी है, जिन्होंने बताया है कि राजस्थान, हरियाणा, और गुजरात के किसान, किस तरह एक जुट हुए हैं’.

जितनी तेज़ी के साथ टीम ने पेपर के लिए सामग्री जुटाई, उतनी ही तेज़ी से मास्टहेड भी तैयार करके साझा कर लिया गया.

धालीवाल ने कहा, ‘मैंने दिल्ली में दो कलाकारों, ठुकराल और टागरा से संपर्क किया, जिन्होंने कहा कि वो न्यूज़ लैटर का मास्टहेड मुफ्त में डिज़ाइन कर देंगे. दो घंटे के अंदर उन्होंने हमें, एक एडिट करने लायक़ फाइल भेज दी, तो मैंने सारी सामग्री उसके अंदर फिट कर दी’.

टीम को गाज़ीपुर बॉर्डर आंदोलन स्थल से, कोई योगदान नहीं मिल सका, लेकिन नट्ट ने कहा कि अगले संस्करण के लिए, उनका लक्ष्य हर किसी को शामिल करना है.

गहरी नीली लिखाई और ऑफ-व्हाइट कागज़ के साथ, ट्रॉली टाइम्स का पहला संस्करण बृहस्पतिवार रात छापा गया, और देर रात उसे सिंघू और टिकरी बॉर्डर पहुंचा दिया गया. शुक्रवार सुबह उसे आंदोलनकारी किसानों के बीच बांट दिया गया.

धालीवाल ने कहा, ‘2,000 प्रतियां छापने में, हमारे 12,000 रुपए ख़र्च हुए. इसका पूरा ख़र्च समुदाय ने उठाया. हमने ये काम दिल्ली में कराया, और हमने तय किया था, कि हम अच्छी क्वालिटी का पेपर लगाएंगे’.

ट्रॉली टाइम्स की मुख-पृष्ठ की हेडलाइन में, गुरमुखी में लिखा है, ‘जुड़ांगे, लड़ांगे, जीतांगे! केंद्र से गतिरोध के चलते आंदोलन बरक़रार है, और धालीवाल व भिंडर का मानना है, कि मुख्यधारा के मीडिया में किसानों की आस्था नहीं है, और ये समाचार पत्रिका उस कमी की भरपाई करेगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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