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Monday, 3 November, 2025
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जेएनयूएसयू चुनाव: अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों के बीच जोरदार वाद-विवाद, कश्मीर और फलस्तीन का जिक्र

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(मोहित सैनी)

नयी दिल्ली, तीन नवंबर (भाषा) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के गलियारों में रविवार को दिन ढलते ही सियासी नारे गूंजने लगे और परिसर चुनावी अखाड़े में बदल गया।

जेएनयू छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) चुनाव में हर साल की तरह इस साल भी खचाखच भरे सभागार में अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों के बीच वाद-विवाद हुआ। इस दौरान मंच पर छह उम्मीदवार थे। हर कोई अपनी बारी का इंतेजार कर रहा था।

इस दौरान पिछली पंक्ति में बैठे एक शोध विद्यार्थी ने कहा, “हर बार जेएनयू चुनाव लोकतंत्र का एक तरह से अभ्यास होता है। यह हमें याद दिलाता है कि राजनीति वाद-विवाद से शुरू होती है।”

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के लिए चार नवंबर को मतदान होगा और छह नवंबर को परिणाम घोषित किए जाएंगे।

वाम गठबंधन, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), और अन्य संगठनों एनएसयूआई (एनएसयूआई), प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स एसोसिएशन (पीएसए), दिशा स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन (डीएसओ) के उम्मीदवार और स्वतंत्र प्रत्याशी एक-एक कर मंच पर आए, सभी ने दावा किया कि वे “जेएनयू की असली आवाज” हैं।

अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विद्यालय की पीएचडी शोधार्थी अदिति मिश्रा ने वाम गठबंधन का प्रतिनिधित्व करते हुए अपने भाषण की शुरुआत में जेएनयू से संबंध न रखने वाले मुद्दों का जिक्र किया।

उन्होंने कहा, “हम फलस्तीन के लिए, कश्मीर के राज्य के दर्जे के लिए, लद्दाख के पर्यावरण के लिए और सोनम वांगचुक की रिहाई के लिए अपनी आवाज़ उठाते रहेंगे।”

मिश्रा ने सत्तारूढ़ दल पर “भारत की अवधारणा पर ही हमला करने” का आरोप लगाया।

उन्होंने घरों पर बुलडोज़र चलाने, उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और “असहमति के लिए कम होती गुंजाइश” का उल्लेख किया।

उन्होंने ‘लड़कियों की टांगें तोड़ने’ संबंधी साध्वी प्रज्ञा के हालिया बयान का जिक्र करते हुए कहा, “यह दिखाता है कि इंसानियत की जगह नफरत ने ले ली है।”

उन्होंने कहा, “बेरोजगार युवाओं को नौकरी ढूंढने के बजाय मस्जिदों में मंदिर खोजने को कहा जा रहा है।”

उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी, एबीवीपी के विकास पटेल ने जेएनयू की वामपंथी राजनीति पर निशाना साधा।

उन्होंने कहा, “विश्वविद्यालय वामपंथी राजनीति से थक चुका है। 50 साल से ये राज कर रहे हैं और बरबाद कर रहे हैं।”

उन्होंने वामदलों पर पाखंड का आरोप लगाते हुए कहा, “उनकी पोलित ब्यूरो में न एक भी महिला है, न ही दलित। समानता की बातें करते हैं, लेकिन अमल नहीं करते। पूरे साल छात्रों के लिए केवल एबीवीपी ही काम करती है, बाकी तो चुनाव के समय दिखाई देते हैं।”

उन्होंने 1975 के आपातकाल को “लोकतंत्र पर काला धब्बा” बताया और कहा कि “जेएनयू प्रशासन वाम गठबंधन का चौथा साझेदार है।”

एनएसयूआई के विकास ने एबीवीपी और वाम संगठनों को निशाने पर लेते हुए कहा, “वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों ने जेएनयू के असली मुद्दों को दबा दिया है। छात्रवृत्ति, शोध निधि, छात्रावास सुरक्षा… इनपर तो बात ही नहीं होती। वामपंथ ने विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया और दक्षिणपंथ भी यही कर रहा है।”

सबसे जोशीला भाषण प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स एसोसिएशन (पीएसए) की शिंदे विजयलक्ष्मी व्यंकट राव का था। उन्होंने मंच पर ‘चीफ प्रॉक्टर ऑफिस’ (सीपीओ) के नियम-पुस्तिका की एक प्रति फाड़ दी और इसे “सुरक्षा नहीं, निगरानी का प्रतीक” कहा।

उन्होंने कहा, “कैंपस में हर जगह अवरोधक लगे हैं। आरएसएस की परेड के लिए जगह है, लेकिन विरोध के लिए नहीं। हमें अपने ही देश में द्वितीय श्रेणी का नागरिक कहा जाता है।”

राव ने अपने भाषण में बशीर बद्र का शेर पढ़ा “लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में।”

यह शेर सुनकर पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

उन्होंने राष्ट्रवाद, पर्यावरण और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर भी बात की।

राव ने कहा, “ये लोग ताबूत पर जीएसटी लगाने को मास्टरस्ट्रोक कहते हैं। व्यापारियों को ‘एक पेड़ मां के नाम’ के बहाने जंगल दे दिए जाते हैं । क्या यही वह भारत है जिसका हमने सपना देखा था?”

स्वतंत्र उम्मीदवार अंगद सिंह ने दिखावटी राजनीति पर प्रहार किया।

उन्होंने कहा, “मैं गाजा, नेपाल या बांग्लादेश की चिंता तब करूंगा जब छात्रों के ऊपर गिरती छतों की मरम्मत कर दी जाएगी।”

उन्होंने कहा, “आपकी लड़ाई कब खत्म होगी? हर समस्या का जवाब ‘प्रशासन दोषी है’ है। तो फिर आप चुनाव क्यों लड़ते हैं?”

दिशा स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन (डीएसओ) के उम्मीदवार शिरषवा इंदु ने अकादमिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, स्कूल छोड़ने वालों की बढ़ती संख्या और चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (एफवाईयूपी) ने छात्रों पर शैक्षणिक दबाव बढ़ा दिया है।

इस साल वामपंथी संगठन आइसा, एसएफआई और डीएसएफ लंबे अंतराल के बाद मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं।

वामपंथी संगठनों के उम्मीदवार अदिति मिश्रा (अध्यक्ष), कीझाकूट गोपिका बाबू (उपाध्यक्ष), सुनील यादव (महासचिव) और दानिश अली (संयुक्त सचिव) हैं।

एबीवीपी के उम्मीदवार विकास पटेल (अध्यक्ष), तान्या कुमारी (उपाध्यक्ष), राजेश्वर कांत दुबे (महासचिव) और अनुज (संयुक्त सचिव) हैं।

पिछले वर्ष आइसा के नीतीश कुमार ने अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की थी, जबकि एबीवीपी के वैभव मीणा ने संयुक्त सचिव पद का चुनाव जीता था।

भाषा जोहेब मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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