रांची, 11 नवंबर (भाषा) झारखंड उच्च न्यायालय को एक गैर-लाभकारी संगठन ने मंगलवार को बताया कि राज्य में मौजूदा व्यवस्था के अनुसार, किसी मरीज को उसके तीमारदार द्वारा दान किए गए एक इकाई रक्त के बदले उतना ही रक्त उपलब्ध कराया जाता है।
मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की पीठ हाल ही में चाईबासा और रांची में बच्चों को दूषित रक्त चढ़ाने से एचआईवी संक्रमण की घटना से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
गैर-लाभकारी संस्था ‘लाइफ सेवर्स रांची’ के सचिव अतुल गेरा ने अदालत में आरोप लगाया कि उसके आदेश के बावजूद ब्लड बैंक द्वारा रक्त उपलब्ध कराने के तरीके में कोई अहम बदलाव नहीं आया है।
गेरा ने कहा, ‘‘जब भी एक इकाई खून की जरूरत होती है, तो रक्तदाता को स्टॉक को पुनः भरने के लिए एक इकाई उपलब्ध करानी पड़ती है।’’
राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने उच्च न्यायालय को बताया कि अधिकारी रक्त भंडार बढ़ाने के लिए रक्तदान शिविर आयोजित कर रहे हैं।
अधिवक्ता ने यह भी कहा कि पीठ के पूर्व निर्देश के अनुसार चाईबासा की घटना के लिए एक रिपोर्ट तैयार कर ली गई है, जहां बच्चों को कथित तौर पर दूषित रक्त चढ़ाया गया था।
उच्च न्यायालय ने चाईबासा सदर अस्पताल में बच्चों को दूषित रक्त चढ़ाए जाने की खबर सामने आने के बाद राज्य सरकार को फटकार लगाई थी।
अदालत ने एक रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया था, जिसमें यह पता लगाया जाएगा कि बिना उचित जांच के संक्रमित रक्त कैसे चढ़ाया गया।
उच्च न्यायालय अब इस मामले की अगली सुनवाई 19 नवंबर को करेगी।
चाईबासा के सदर अस्पताल में थैलेसीमिया के मरीज पांच बच्चे इलाज के लिए आए थे और उनको अलग-अलग समय में खून चढ़ाया गया था। बाद में वे एचआईवी से संक्रमित पाए गए थे। रांची में भी इसी तरह का एक मामला सामने आया था।
भाषा धीरज प्रशांत
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