नई दिल्ली: झारखंड हमेशा से ही अपनी खनिज संपदा के लिए जाना जाता रहा है. छोटा नागपुर की पहाड़ियां आकाश से जितनी शांत नजर आती हैं, अंदर से ये उतनी ही उथल-पुथल भरी हैं. राज्य को अस्तित्व में आए दो दशक से ज्यादा हो चुके हैं और तब से सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक तौर पर झारखंड अशांत ही रहा है.
अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पेसा कानून को बने 25 साल से ज्यादा हो चुके हैं. इस कानून के तहत 10 राज्यों को पेसा नियम बनाना था लेकिन अभी भी छत्तीसगढ़ और ओडिशा दो ऐसे राज्य हैं जहां पेसा नियम नहीं बना है. मध्य प्रदेश में 2022 में जनजातीय गौरव दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नियमावली का विमोचन किया था. लेकिन पेसा नियमों की बात अभी क्यों?
ग्रामीण इलाकों में सेल्फ गवर्नेंस को बढ़ावा देने के लिए 1992 में 73वां संविधान संशोधन लाया गया था. इस संशोधन के जरिए त्रि-स्तरीय पंचायती राज संस्था को कानूनी रूप मिला, लेकिन शिड्यूल और ट्राइबल इलाकों के लिए इसमें कोई प्रावधान नहीं था. इसके लिए 1995 में भूरिया कमेटी ने सिफारिशें दी और 1996 में पेसा कानून आया जो शेड्यूल्ड एरिया को सेल्फ गवर्नेंस की शक्तियां देता है.
दो दशकों का इंतजार आखिर 26 जुलाई यानि की बुधवार को खत्म हो गया जब झारखंड के पंचायती राज विभाग ने राज्य के लिए पेसा नियम को गजट नोटिफिकेशन निकालकर सार्वजनिक किया और आम लोगों से इस पर राय मांगी.
मौजूदा ड्राफ्ट में पंचायतों के संचालन के बारे में विस्तार से नियम बताए गए हैं और इस नियमावली का नाम ‘झारखंड पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार नियमावली 2022‘ रखा गया है. झारखंड के 24 में से 13 जिले पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं और पेसा कानून अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को खुद के तौर-तरीकों से शासन व्यवस्था का अधिकार देता है जिसे संविधान भी मान्यता देता है.
ड्राफ्ट में ग्राम सभा को पारिवारिक मामलों, आईपीसी के तहत आने वाले कुछ मसलों, कानून-व्यवस्था से जुड़े मामलों की सुनवाई का अधिकार दिया गया है. साथ ही ड्राफ्ट में मुख्य तौर पर सामुदायिक संसाधनों के प्रबंधन, परंपराओं का संरक्षण और विवादों के निपटारे, विकास योजनाओं, भू-अर्जन और पुनर्स्थापन, लघु जल निकायों का प्रबंधन, लघु खनिज, मादक द्रव्यों का नियंत्रण, लघु वन उपज, बाजारों का प्रबंधन से जुड़े अधिकारों को विस्तार से बताया गया है.
पांचवीं और छठी अनुसूची में शामिल राज्यों को 1997 से पहले पेसा कानून के नियम बनाने थे लेकिन झारखंड और छत्तीसगढ़ का गठन साल 2000 में हुआ. हालांकि आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात में पेसा नियम बने हुए हैं और तेलंगाना आंध्र प्रदेश के ही नियमों का पालन कर रहा है.
पेसा नियम लंबे समय से झारखंड में राजनीति का भी मुद्दा बना रहा है और आदिवासी भी कई बार नियमों की मांग को लेकर सड़क पर उतर चुके हैं. मार्च 2023 में हेमंत सोरेन सरकार ने झारखंड विधानसभा में कहा था कि पेसा कानून को लेकर नियमावली जल्द ही जारी की जाएगी. वहीं, भाजपा लगातार सोरेन सरकार को इस मुद्दे पर घेरती रही है.
2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल 8.6 प्रतिशत आदिवासी आबादी है और 700 से ज्यादा जनजातीय समूह है. झारखंड में कुल 32 जनजातियां है जिसमें हो, खड़िया, मुंडा, उरांव, संथाल प्रमुख हैं.
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नियमावली में क्या-क्या है?
देश का आदिवासी समाज प्रथागत कानूनों से चलता है जो सदियों से उनकी परंपरा और संस्कृति के केंद्र में रहा है. ड्राफ्ट में कहा गया है कि ग्राम सभा विवादों का समाधान पारंपरिक रीति रिवाजों और प्रथागत कानून के अनुसार करेगा.
आदिवासी समाज में न्याय की भी हमेशा से अलग व्यवस्था रही है. झारखंड में इन न्यायिक व्यवस्था को मुंडा-मानकी, पड़हा, माझी-परगनैत, डोकलो-सोहोर के नाम से जाना जाता है.
ड्राफ्ट में कहा गया है कि शांति व्यवस्था के लिए ग्राम रक्षा समिति होगी जिसमें प्रभावशाली व्यक्ति होंगे जिसने कोई अपराध न किया हो. जानमाल की सुरक्षा करना, अंधविश्वास, जादू टोना, डायन बिसाही, ओझा के संभावित घटनाओं को रोकने के लिए अभियान चलाने की जिम्मेदारी ‘ग्राम रक्षा समिति’ की होगी.
साथ ही ग्राम सभा शिक्षा, न्याय, कृषि, स्वास्थ्य, आधारभूत संरचना समेत आठ विषयों पर स्थायी समिति का गठन कर सकती है. ग्राम सभा की बैठक में आम सहमति से ही समिति का गठन किया जा सकता है. इन समितियों में 50 प्रतिशत महिलाएं और 40 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के सदस्य का होना अनिवार्य होगा.
झारखंड को बिहार से अलग हुए 23 साल बीत चुके हैं और अब तक यहां पेसा को लागू करने के नियम तय नहीं हो पाए थे. इसे लेकर कई बार केंद्र सरकार की तरफ से भी फटकार लगाई गई.
इस साल जून में केंद्र सरकार के पंचायती राज विभाग ने झारखंड सरकार को रिमाइंडर भेजकर नाराजगी जाहिर की थी और कहा था कि अगर नियम नहीं बनाए गए तो केंद्र आर्थिक सहयोग रोक सकती है. केंद्र ने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि पेसा कानून के तहत लागू प्रावधानों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार आर्थिक सहयोग करती है और इसके लिए राज्यों के लिए नियम बनाने जरूरी हैं.
हालांकि आदिवासी नेताओं का कहना है कि पेसा कानून होते हुए भी आदिवासियों का शोषण होता रहा है. जसिंता केरकेट्टा की कविता इंतज़ार, इसे बखूबी बयां करती है.
वे हमारे सभ्य होने के इंतज़ार में हैं
और हम उनके मनुष्य होने के
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विवादों की सुनवाई से जुड़े कौन से अधिकार होंगे ग्राम सभा के पास?
आदिवासी समाज के भीतर मामलों की सुनवाई ग्राम सभा के जरिए होती है. ड्राफ्ट में सुनवाई से जुड़े नियम कहते हैं कि ग्राम सभा में लिखित, मौखिक और फोन के जरिए शिकायत की जा सकती है और 8 दिन के अंदर सुनवाई की तारीख निर्धारित करनी होगी. साथ ही विवाद पर सुनवाई सार्वजनिक स्थान पर प्रथागत कानूनों के अंतर्गत करनी होगी.
अपराध के गंभीर मामलों में ग्राम सभा को पास के थाना प्रभारी को तुरंत सूचनी देनी होगी. हालांकि आईपीसी के कुछ मामलों जैसे कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, अश्लील कार्य, चोरी, छल, मानहानि समेत 36 मामलों में ग्राम सभा को सुनवाई करने का जुर्माना लगाने का अधिकार दिया गया है.
ड्राफ्ट में कहा गया है कि ग्राम सभा को जेल भेजने का अधिकार नहीं होगा बल्कि वो 5000 रुपए तक का अधिकतम दंड दे सकती है.
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विकास योजनाओं के मामले में क्या होंगे ग्राम सभा के अधिकार
आदिवासियों को हमेशा से चिंता रही है कि उनकी जमीन पर गैर-कानूनी ढंग से कब्जा किया जाता रहा है. छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम के तहत आदिवासियों से गलत ढंग से ली गई जमीन वापसी का भी प्रावधान मिला है.
ड्राफ्ट में कहा गया है कि यदि कोई ग्राम सभा अपने अधिकार क्षेत्र में यह पाती है कि अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य से किसी अन्य व्यक्ति ने जमीन गैर-कानूनी ढंग से या उसकी नासमझी का फायदा उठाकर अपने कब्जे में कर ली है तो उसे वापस कराने का जिम्मा ग्राम सभा का होगा.
ड्राफ्ट के अनुसार गांव की योजनाओं और परियोजनाओं को लागू करने के लिए ग्राम सभा से मंजूरी लेनी होगी. जल-जंगल-जमीन का मुद्दा हमेशा से आदिवासियों के केंद्र में रहा है. ड्राफ्ट में छोटे जल निकायों को लेकर भी ग्राम सभा को अधिकार दिए गए हैं.
ड्राफ्ट में कहा गया है कि जल स्त्रोतों का प्रबंधन और उपयोग इस तरह हो कि सभी ग्रामीणों का इस पर बराबर अधिकार हो. साथ ही स्थानीय परंपराओं को ध्यान में रखते हुए तालाब, पोखर में मछली पकड़ने का समान अधिकार होगा और प्राकृतिक जल संसाधनों पर बंदोबस्ती नहीं होगी.
लोगों की राय जानने के लिए जारी किए गए नियमों में कहा गया है कि ग्राम सभा मिट्टी, पत्थर, बालू जैसे लघु खनिजों के उपयोग के लिए खुद निर्णय ले सकती है और खनिजों के उपयोग के लिए ग्राम सभा की मंजूरी जरूरी होगी.
आदिवासियों के बीच चावल से बनी शराब काफी प्रचलित है जिसे स्थानीय तौर पर हड़िया कहा जाता है. नियमों के अनुसार अनुसूचित जनजाति के लोग महुआ, डियंग का सामाजिक और आर्थिक समारोहों में इस्तेमाल कर सकते हैं और इसके भंडारण की अधिकतम सीमा ग्राम सभा द्वारा तय किया जाएगा.
इन नियमों को लागू करने में अगर कोई दिक्कत आती है तो नियमावली में कहा गया है कि राज्य सरकार के पास अधिकार होंगे कि वो कठिनाई को दूर करने के लिए जरूरी कदम उठा सकती है.
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