scorecardresearch
Thursday, 9 May, 2024
होमराजनीति‘अगर UCC राज्य में लागू हुआ तो NDA में नहीं रहेंगे’, मिजोरम के CM ज़ोरमथांगा की BJP को चेतावनी

‘अगर UCC राज्य में लागू हुआ तो NDA में नहीं रहेंगे’, मिजोरम के CM ज़ोरमथांगा की BJP को चेतावनी

मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने कहा कि मणिपुर से आने वाले शरणार्थियों का प्रभाव उनके राज्य पर भी पड़ा है. साथ ही सीएम ज़ोरमथांगा ने 'मिज़ो क्षेत्र के एकीकरण की वकालत’ की.

Text Size:

आइजोल: मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने गुरुवार को दिप्रिंट के साथ बातचीत के दौरान कहा कि अगर मिज़ोरम में यूनिफॉर्म सिविल कोड लगाया जाएगा तो मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथ अपने सारे संबंध खत्म कर लेगा. उन्होंने कहा, “हालांकि, बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ‘इतनी बुद्धिमान’ है और वह ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी, जो उन्हें इस तरह के फैसला लेने के लिए मजबूर करे.”

जबकि एमएनएफ 18 जुलाई को दिल्ली में एनडीए सहयोगियों की बैठक में शामिल 38 दलों में से एक था, लेकिन ज़ोरमथांगा न केवल यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) के खिलाफ बल्कि मणिपुर में जातीय हिंसा को लेकर भी केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ मुखर रहे हैं. इस मंगलवार को, उन्होंने कुकी समुदाय के लिए एकजुटता दिखाते हुए आइजोल में एक रैली का आयोजन भी किया था. क्योंकि, मिज़ोस के साथ कुकी समुदाय का गहरा जातीय संबंध है.

ये रुख एनडीए के सदस्य के रूप में एमएनएफ की स्थिति से कैसे मेल खाता है? ज़ोरमथांगा ने बताया कि एमएनएफ एनडीए को “कुछ मुद्दों” पर समर्थन देता है – “लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम एनडीए को हर मुद्दे पर समर्थन देंगे.”

उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिए, जब मुद्दा यह है कि मिजोरम में यूसीसी लागू होने जा रहा है, तो निश्चित रूप से हम एनडीए में नहीं रह सकते. लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे ऐसा करेंगे. एनडीए के नेताओं के पास निश्चित रूप से एनडीए को मजबूत करने के लिए सभी महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान देने का अनुभव होगा.”

उन्होंने कहा कि एनडीए नेतृत्व यह देखने के लिए “काफी बुद्धिमान और परिपक्व” है कि यूसीसी लागू करने से “उन्हें कोई मदद नहीं मिलेगी”.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि वे कोई ऐसा मुद्दा बनाएंगे जिससे हमें एनडीए छोड़ने की जरूरत पड़ेगी.”

जब मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के बुधवार के बयान के बारे में उनसे पूछा गया कि ज़ोरमथांगा को अन्य राज्यों के मामलों में “हस्तक्षेप” नहीं करना चाहिए, तो मिजोरम के सीएम ने कहा कि शरणार्थियों की बड़ी संख्या उनके राज्य में आ रही है जो मिजोरम को भी “प्रभावित” कर रही है. 

उन्होंने एक प्रशासन के तहत पूर्वोत्तर में सभी मिज़ो-बसे हुए क्षेत्रों के मिलाने की दोबारा पूरी मजबूती के साथ वकालत की. उन्होंने यह रेखांकित किया कि यह 1986 के शांति समझौते का एक प्रमुख मुद्दा था जिसके कारण मिजोरम में दो दशक लंबा विद्रोह समाप्त हुआ. 

‘मिज़ो-बसे हुए इलाके एक प्रशासन के अधीन होने चाहिए’

बीरेन सिंह के “हस्तक्षेप” के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर, मिजोरम के सीएम ने गुरुवार को कहा कि उनकी स्थिति वही है जो उन्होंने और एमएनएफ ने 63 वर्षों से कायम रखी है – कि मिज़ो इलाके को एक प्रशासन के तहत रखा जाना चाहिए.

उन्होंने इस बात पर जोर देकर कहा, “हमने जो दोहराया है हम उसपर तब से कायम हैं जब बीरेन सिंह का जन्म हुआ था, यानी 1961 में. जब एमएनएफ की स्थापना हुई थी. यह मणिपुर मामलों, या असम मामलों या किसी अन्य चीज़ में हस्तक्षेप के बारे में नहीं है.”

सीएम ने कहा, “यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि ‘जो’ एक जातीय समूह हैं जिसके भीतर कई जनजातियां शामिल हैं, और जिन क्षेत्रों में वे रहते हैं उन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है- मिज़ोरम में कुकी-चिन-लुशाई या मिज़ो, असम और मणिपुर में कुकी और म्यांमार में चिन के नाम से जाने जाते हैं.”

उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 3 का जिक्र करते हुए कहा, “जहां तक ​​भारत का सवाल है, एक नया राज्य बनाने की अनुमति है. नए राज्यों के गठन और क्षेत्रों, सीमाओं या मौजूदा राज्यों के नामों में बदलाव के लिए संविधान में पहले से प्रावधान है.”

उन्होंने असम राज्य से अलग किए गए मेघालय, मिजोरम और नागालैंड के साथ-साथ मध्य प्रदेश से अलग हुए राज्य छत्तीसगढ़ का उदाहरण दिया.

सीएम ने कहा, “तो संविधान के अनुसार, एक राज्य बनाया जा सकता है और एक राज्य की सीमा बदली जा सकती है. खैर, यह तो संसद द्वारा ही किया जा सकता है. यही बात हमारे शांति समझौते में भी स्पष्ट रूप से लिखी गई है और यही बात मैंने दोहराई है.”

उन्होंने कहा, “केंद्र और मणिपुर सरकार को मैतई समुदाय के साथ-साथ कुकियों से भी बातचीत करनी चाहिए. साथ ही इसका राजनीतिक रूप से हल करने का प्रयास किया जाना चाहिए. मेरे हिसाब से यही एकमात्र समाधान है.”

ज़ोरमथांगा, जिन्होंने 2018 में तीसरी बार मिज़ोरम के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला, एमएनएफ के संस्थापक लालडेंगा के करीबी सहयोगी थे, जिन्होंने भारत से अलग और एक संप्रभु मिज़ो राज्य की मांग के लिए विद्रोह शुरू किया था.

एमएनएफ ने 1966 और 1986 के बीच राज्य के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया था. अंततः 30 जून, 1986 को तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे राज्य में चल रहा संघर्ष खत्म हो गया. स्वतंत्र भारत में पहली बार देश के भीतर और भारतीय नागरिक पर भारतीय वायुसेना द्वारा बमबारी इस संघर्ष के दौरान किया गया था. यह अभी देश में एकमात्र बार किया गया है.


यह भी पढ़ें: ग्रेनो भारतीय मिडिल क्लास के सपनों का कब्रिस्तान है, घर खरीद तो सकते हैं, लेकिन अपना नहीं बना सकते


 ‘मणिपुर, मिजोरम को भी प्रभावित करता है’

ज़ोरमथंगा ने कहा कि मणिपुर में संघर्ष और लोगों के विस्थापन का सीधा असर मिज़ोरम पर पड़ रहा है.

उन्होंने कहा, “स्थिति ऐसी है कि मणिपुर में समस्या के कारण हजारों विस्थापित और शरणार्थी मिजोरम आ गए हैं, चाहे मेरी मर्जी हो या नहीं, लोग आ रहे हैं. यह हम पर थोपा गया है कि हमें उनके लिए काम करना होगा. हम इसका समाधान खोजने का प्रयास कर रहे हैं. क्योंकि यह हमें प्रभावित करता है और साथ ही यह 63 वर्षों से अधिक समय से यह हमारा प्रमुख मुद्दा रहा है.”

मुख्यमंत्री के अनुमान के मुताबिक, अब तक मणिपुर से लगभग 12,300 कुकी मिजोरम में आ चुके हैं. इसमें से लगभग 3,000 राज्य भर में 35 राहत शिविरों में रह रहे हैं, बाकी ने रिश्तेदारों और अपने परिचितों के यहां शरण ली है.

उन्होंने यह भी कहा कि वह शरणार्थियों और मणिपुर से आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को सहायता न देने के “केंद्र के रवैये से आश्चर्यचकित” है. उन्होंने कहा कि वह इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से इस मुद्दे पर निजी तौर पर ध्यान देने का अनुरोध किया है.

म्यांमार शरणार्थियों पर

बांग्लादेश के कुछ शरणार्थियों के अलावा, मिजोरम म्यांमार से आए लगभग 35,000 कुकी-चिन शरणार्थियों को भी आश्रय दे रहा है. बता दें कि म्यांमार में फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट के कारण पलायन शुरू हो गया था. यह केंद्र सरकार की मार्च 2021 की उस सलाह के विपरीत था जिसमें म्यांमार की सीमा से लगे राज्यों को देश के भीतर शरणार्थियों को आश्रय न देने की सलाह दी गई थी.

दिप्रिंट के साथ अपनी बातचीत के दौरान, ज़ोरमथांगा ने कहा कि उनकी सरकार जो कर रही है, वह 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान भारत सरकार द्वारा बनाए गए नियम के हिसाब से है. बांग्लादेश मुक्ति युद्द के दौरान लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत आए थे.

उन्होंने कहा, “मैंने तीन दिन पहले भी केंद्रीय गृह सचिव को टेलीफोन पर यह बात बताई थी.”

उन्होंने आगे कहा, “तो हम सिर्फ वही करते हैं जो केंद्र सरकार ने 1971 में किया था. अगर उन्होंने ऐसा किया है, अगर पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को आश्रय और मदद दी गई थी, तो आप इसे बर्मा (अब म्यांमार) के लोगों को क्यों नहीं दे सकते? यही फॉर्मूला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू करना होगा.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: नहीं चलेगा मोदी का करिश्मा, बघेल को हराने के लिए लोकल चेहरा चाहिए- छत्तीसगढ़ BJP का शाह को संदेश


 

share & View comments