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Thursday, 5 December, 2024
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झारखंड में बढ़ा हाथियों का आतंक, एक दशक में इंसान-हाथी संघर्ष में सैकड़ों जानें गईं

झारखंड वन विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक 2019 में ऐसी भिड़ंत में इस साल अब तक 87 लोगों की जानें जा चुकी हैं और बीते 10 सालों में यह सबसे अधिक है.

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झारखंड : झारखंड में इस समय हाथियों का आतंक मचा है. बीते 4 सितंबर को बेड़ों ब्लॉक के गांव में हाथियों के हमले के डर से एक किसान ने बिजली के तार से खेत में करंट दौड़ा दिया था ताकि उन्हें ‘सबक’ सिखाया जा सके, हुआ भी वही. देर रात खेत में एक हाथी घुसा और करंट लगने से वह चिंघाड़ता हुए गिर गया और घंटों चिंघाड़ने के बाद उसकी मौत हो गई.

इधर सीता उड़ाईन (55) जंगल में खुखरी (जंगली सब्जी) चुनने गईं थी. 3 सितंबर की सुबह उनके लिए आख़िरी सुबह साबित हुई. हाथियों और मानव के बीच सालों से चल रहे संघर्ष में फिलहाल वह सबसे ताज़ा शिकार हैं.

राजधानी रांची के बेड़ों प्रखंड के चरिमा गांव से सटे दीघा पतरा जंगल में पिछले कुछ दिनों से हाथी डेरा डाले हुए थे.

झारखंड वन विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक ऐसी भिड़ंत में इस साल अब तक 87 लोगों की जानें जा चुकी हैं. बीते 10 सालों में यह सबसे अधिक है. इसी आंकड़े के मुताबिक बीते एक दशक में कुल 674 लोगों की जानें गई हैं. यह एकतरफा नहीं है. इतने ही समय में 84 हाथियों की भी मौत हो चुकी है. इस साल अप्रैल से जून के बीच 24 लोगों की जान हाथियों के हमलें में जा चुकी है.

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गांव में गन्ने के खेत को तहस-नहस करते हाथी.

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एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल जनवरी में संसद में दिए एक प्रश्न के जवाब में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री महेश शर्मा ने बताया था कि इंसान और हाथियों के बीच संघर्ष में 2015-18 के बीच में कुल 1713 लोगों की मौत देशभर में हुई है. साल 2018 में सबसे अधिक झारखंड में 87 और असम में 86 लोगों की मौत हुई है.

वहीं इस दौरान 373 हाथियों की भी मौत हुई है. जिसमें करंट लगने से 226, ट्रेन से कट कर 62, अवैध शिकार से 59 और जहर खाने से 26 हाथियों की मौत हुई है.

बिरसा मुंडा चिड़ियाघर के पशु चिकित्सक डॉक्टर अजय कुमार का मानना है कि जनसंख्या वृद्धि और वन्य जीवों के कॉरिडोर पर इंसानी गतिविधियों के बढ़ने से मानव-हाथी संघर्ष के मामले बढ़ेंगे. गर्मी के दिनों में जिस स्थान पर हाथी लौट कर आते हैं वही स्थान उनका स्थाई निवास होता है. लातेहार ज़िले के दलमा में हाथियों का स्थाई निवास है. कुमार का कहना है कि दलमा में हाथियों के लिए अनुकूल पर्यावास (रहने की जगह) का विकास किया जाना चाहिए.

ज़ूलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया और सैटेलाइट सर्वे के आधार पर यह तथ्य स्थापित हुआ कि हाथी अपने पूर्वजों के मार्ग पर सैकड़ों साल बाद भी दोबारा अनुकूल वातावरण मिलने पर लौटते हैं. अगर मार्ग में आवासीय कॉलोनी या दूसरी मानवीय गतिविधियां मिलती हैं तो उनका झुंड उसे तहस-नहस करके ही आगे बढ़ता है.

इसमें मिट्टी और पानी की अहम भूमिका होती है. हाथियों के उग्र होने का मुख्य कारण अपने रास्ते के लिए उनका बेहद संवेदनशील होना भी है. जुलाई से सितंबर के दौरान हाथी प्रजनन करते हैं. इस समय हाथियों के हार्मोन में भी बदलाव आता है जिससे वो आक्रमक हो जाते हैं.

बीते 30 अगस्त को वन विभाग की ओर से चौंकाने वाला पत्र जारी किया गया. जिसके तहत लोहरदगा जिले के आकाशी पंचायत और आसपास के इलाकों में बीते 30 अगस्त को धारा 144 लगा दी गई. यह हाथियों से बचने के लिए लागू किया गया. ऐसा पहली बार किया गया.

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पत्र के जरिए धारा 144 लगाने की मांग की गई.

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झारखंड के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक पीके वर्मा के अनुसार देश के 11 प्रतिशत हाथी मध्य पूर्वी भारतीय क्षेत्र पश्चिम बंगाल (दक्षिण), ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड में हैं. मानव-हाथी संघर्ष के 45 फीसदी मामले इन्हीं क्षेत्रों में हो रहे हैं.

उन्होंने बताया कि पिछले दिनों रायपुर में मानव-हाथी संघर्ष पर हुई कार्यशाला में बताया गया कि 2017 की रिपोर्ट के आधार पर मध्य पूर्वी भारतीय क्षेत्र में हाथियों की संख्या 3106 हो गई है. झारखंड में जुलाई से सितंबर के दौरान छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल से हाथी आते हैं.

उन्होंने बताया कि असामान्य रूप से अकारण लोगों पर लगातार हमला करने वाले हाथियों की पहचान की जाएगी. ऐसे हाथियों को सुदूर जंगल में छोड़ा जाएगा या ज़रूरत पड़ने पर कर्नाटक के रेस्क्यू सेंटर ले जाकर छोड़ा जाएगा. हालांकि अभी तक एक भी हाथी को रेस्क्यू सेंटर नहीं भेजा जा सका है.

झारखंड में हाथियों के हमले के शिकार लोगों को सरकार की तरफ से मुआवजा भी दिया जा रहा है. इसके तहत किसी की मौत होने पर चार लाख रुपए, घायल होने पर 15 हजार से एक लाख रुपए तक देने का प्रावधान है. इसके साथ ही स्थाई अपंग होने पर दो लाख रुपए, फसल के नुकसान पर 20 से 40 हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर दिए जा रहे हैं.

एक तरफ गरीब किसान. जो शिदद्त से अपने फसलों के पकने का इंतजार कर रहे होते हैं. जंगली खाद्दान चुनने जंगलों में जाते हैं. एक-एक पैसा जुटाकर घर बनाते हैं. इधर हाथी का झुंड आया और उधर सब एक साथ तबाह.

वहीं दूसरी तरफ हाथियों के वर्षों पुराने निवास स्थान पर इंसानों ने घर बना लिए. उन्हें हाथियों के व्यवहार के बारे में उचित्त जानकारी नहीं. उन्होंने उनका रास्ता नही नहीं, घर भी अपने कब्ज़े में ले लिया है. हाथी के झुंड पर भीड़ पत्थर बरसा रही है तो कोई सेल्फी ले रहा है. ऐसे में यह संघर्ष फिलहाल तो रुकता नहीं दिख रहा.


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हाथियों के हमले में पिछले एक दशक की सबसे अधिक मौत 2018-19 में हुईं. साल दर साल इनके हमले में हुईं मौतों का आंकड़ा-:

स्रोत: झारखंड वन विभाग/ चित्रण : सोहम सेन/ दिप्रिंट

अप्रैल से जून 19 तक: 24
कुल: 674

हाथी के दौड़ने की अधिकतम स्पीड 30 से 40 किलोमीटर प्रति घंटा है जबकि मानव की अधिकतम स्पीड 37 किलोमीटर प्रति घंटा होती है. आंकड़े दिखाते हैं कि मानव हाथी संधर्ष आने वाले दिनों में बढ़ेगा ही क्योंकि मानव आबादी,हाथियों की रिहाइश से उन्हें बेदखल कर रही है.

(आनंद दत्ता स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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