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Friday, 22 November, 2024
होमदेशझरिया में ज़मीन के नीचे सौ साल से लगी है आग, फिर भी झारखंड के चुनाव में कोई इसकी सुध नहीं ले रहा

झरिया में ज़मीन के नीचे सौ साल से लगी है आग, फिर भी झारखंड के चुनाव में कोई इसकी सुध नहीं ले रहा

पूरे झरिया में पिछले 100 सालों से तो निरसा में पिछले 20 सालों से जमीन के नीचे आग लगी हुई है. ऊपर हजारों लोगों ने घर बनाए हुए हैं.

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झरिया (झारखंड): धनबाद का तापमान शुक्रवार (13 दिसंबर) को न्यूनतम 19 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम 26 डिग्री था. वहीं झरिया के लिलोरीपतरा गांव में शाम को ठीक 7 बजे दो मिनट खड़े होने के बाद तेज हवा के बावजूद पसीने छूटने लगे थे. क्योंकि ठीक सामने जमीन के नीचे से आग निकल रही थी. यह आग पिछले एक साल से इस गांव के आगे निकल रही है. वहीं पूरे झरिया में पिछले 100 सालों से तो निरसा में पिछले 20 सालों से जमीन के नीचे आग लगी हुई है. ऊपर हजारों लोगों ने घर बनाए हुए हैं.

यहां कोयला खनन बंद होने के बाद इसे बालू से उचित्त मात्रा में ढंकने के बजाए ऐसे ही छोड़ दिया गया है. देशभर में सप्लाई होने वाली कोल एनर्जी का 46 प्रतिशत हिस्सा केवल झरिया से आता है. यहां भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल), ईस्टर्न कोल लिमिटेड (ईसीएल) सहित कई अन्य कंपनियां खनन करती हैं.

लिलोरीपतरा की रागिनी पहली कक्षा में पढ़ती हैं. उसकी मां दिन-रात इसी चिंता में रहती है कि कहीं उनकी बच्ची घर के ठीक सामने गड्ढे में न खेलने चली जाए. क्योंकि कुछ माह पहले ही एक गाय वहां चरने गई जो महज कुछ सेकेंड में ही जलकर खाक हो गई. रागिनी की मां के मुताबिक बगल के गांव कजरापट्टी का एक युवक पास के ऐसे गड्ढे में गया और धीरे-धीरे जमीन के नीचे चला गया. उसके चिल्लाने पर उसके पिता बचाने आए और वह भी जमीन के नीच समा गए.

कोयला मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट

2017-18 के मुताबिक इस साल 2015-17 तक में 27 लोग गंभीर रूप से घायल हुए वहीं 15 लोग मारे गए. बीसीसीएल की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक इस इलाके से सलाना 32 मिलियन टन कोयले का उत्पादन होता है.

घरों की दीवारों से निकलता है धुंआ

आसपास के शंकरपुर, लिलोरीपतरा, कजरपट्टी, बालू गद्दी सहित कई गांवों के घरों के दीवारों से हमेशा धुआं निकलता रहता है. यह कभी भी गिर सकती हैं या फिर जमीन धंस सकती है. गांव की महिलाओं ने बताया कि उनके और उनके बच्चों की रक्षा लिलोरीमाता (गांव की देवी) करती हैं. जाहिर है ये लोग इस मुसीबत से बचने के लिए सरकार या सिस्टम की तरफ सोचने तक की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं.


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पेशे से ऑटो चालक राहुल शर्मा पास के बस्ती वालों पर चोरी से कोयला निकालने और फिर उसे बेचने का आरोप लगाते हैं. हाल ये है कि हर घर के बगल वाले घर वालों पर यही आरोप लगा रहा है. ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि यह चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बन पा रहा है.

निरसा के मड़मा बस्ती गांव में ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड (ईसीएल) नामक कंपनी कोयला खनन कर रही थी. बीते 20 सालों से खनन बंद हो चुका है. लेकिन जमीन के नीचे आग लगी हुई है. गांव के आईटीआई (फिटर) प्रशिक्षित युवक दयामय मांझी ने बताया कि पास के बाउरी टोला, भोक्ता टोला, आदिवासी टोला के हजारों लोग इससे प्रभावित हैं. कुछ माह पहले गांव के ही अमल इंदु मंडल नामक व्यक्ति गांव आ रहे थे. अचानक जमीन धंस गई और वह बाइक सहित उसमें फंस गए. हालांकि उनकी जान बच गई.

प्रत्याशियों के लिए नहीं है बड़ा मुद्दा

इस मसले पर जब चुनावी मैदान में उतरे प्रत्याशियों की राय जानी तो सबने अपनी डफली अपना राग वाली कहावत पर ही जवाब दिया. कांग्रेस प्रत्याशी पूर्णिमा सिंह कहती हैं चुनाव में भले ही यह मुख्य मुद्दा नहीं बन पाया लेकिन झरिया की आग केवल चुनावी मुद्दा नहीं है, यह हमेशा से बड़ा मुद्दा रहा है. राजनेताओं से ज्यादा खनन कंपनियां इसके लिए जिम्मेवार हैं. दुनियाभर को रौशन करके खुद झरिया आग के ढेर पर जल रहा है. उन्होंने बताया कि झरिया के आग पर रिसर्च भी किया है. अगर वह विधानसभा में चुनकर आती हैं, तो इस मसले को जोरदार तरीके से उठाएंगी.

निरसा के लगातार दो बार विधायक रहे मार्क्सवादी समन्वय समिति पार्टी के अरूप चटर्जी कहते हैं, ‘निरसा में बहुत छोटी आबादी इससे प्रभावित है. बमुश्किल 150 से 200 परिवार इसके चपेट में है. इनको खनन करनेवाली कंपनी ईसीएल निर्वासित करने जा रही है. नीति तैयार हो रही है. गांव वालों की तरफ से मैं ही कंपनी से बात कर रहा हूं. इस प्रक्रिया में अभी एक साल और लगने हैं.’

झरिया रिहैबिलिटेशन एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी की ओर से जारी मास्टर प्लान के मुताबिक कुल 79,159 परिवारों को 2021 तक विस्थापित कर बसाना था. लेकिन द गार्जियन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक संसद में दिए एक बयान में मंत्री पीयूष गोयल ने स्वीकार किया कि साल 2016 तक मात्र पांच प्रतिशत लोगों को ही विस्थापित कर बसाया गया है.

वहीं उनकी प्रतिद्वंदी अपर्णा सेन गुप्ता कहती हैं, ‘इस बार लाल झंडा यहां से साफ है. मैं विधानसभा में इस मुद्दे को उठाऊंगी. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि यह चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बन पाया.’

एक रिपोर्ट की मानें तो साल 1916 में पहली बार भौरा कोलियरी में जमीन के नीचे की आग की जानकारी मिली. क्योंकि उस वक्त सुरंग बनाकर कोयले का खनन किया जाता था. झरिया व आसपास के खदानों में 45 प्रतिशत कोयला जमीन के अंदर ही रह गया. अंदर के तापमान ने इन्हें जलने का मौका दिया. कोयला धधक उठा.

इस मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता और दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन के रिश्तेदार अनिल जैन को इस बात के लिए मार खानी पड़ी है. वह कहते हैं 13 दिसंबर को झरिया के कोइरीबांध इलाके में वह एक पर्चा बांट रहे थे जिसमें यह लिखा था कि झरिया को बचाने के लिए किसने क्या किया है और कौन क्या करेगा. इससे संबंधित सवाल जनप्रतिनिधियों और उम्मीदवारों से पूछने की अपील वह आम जन से कर रहे थे. इस बीच कुछ लोग आए और उनका सर फोड़ दिया.

डर के साए में जीने को अभ्यस्त हो चुके हैं लोग

झारखंड के पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं, ‘आग को लगे शताब्दी हो चुके हैं. लोग उसके साथ जीने को अभ्यस्त हो गए हैं. साथ ही उसे बुझाने को किसी के पास कोई उपाय नहीं है, ऐसे में यह चुनावी मुद्दा नहीं बन पाता है. वह कहते हैं कि कंपनियों को केवल कोयला निकालने से मतलब है. लोगों का पुनर्वास या खनन के बाद की सावधानियों का दबाव कंपनियों पर नहीं बनाया जाता.’

एक रिपोर्ट के मुताबिक यह आग झरिया शहर को तीन तरफ से घेर चुकी है. इसे बुझाने के लिए अब तक 2311 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं लेकिन स्थिति हर दिन बद से बदतर होती जा रही है.


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चौथे चरण में निरसा, झरिया के अलावा धनबाद, मधुपुर, देवघर, बगोदर, जमुआ, गांडेय, गिरिडीह, डुमरी, बोकारो, चंदनकियारी, सिंदरी, टुंडी, बाघमारा सहित कुल 15 सीटों पर चुनाव होने हैं. इसमें 13 सीट कोयलांचल के हैं. विधानसभा के 81 सीटों में अब तक 50 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं.

यहां प्रमुख नेताओं में अपने चचेरे भाई की हत्या के आरोप में जेल में बंद संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह (बीजेपी, झरिया), रागिनी की जेठानी और स्वर्गीय नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा सिंह (कांग्रेस, झरिया), मंत्री अमर कुमार बाउरी (बीजेपी, चंदनकियारी), मंत्री राज पलिवार (बीजेपी, मधुपुर), पूर्व मंत्री हाजी हुसैन अंसारी (मधुपुर, जेएमएम), ढुलू महतो (बाघमारा, बीजेपी), अरूप चटर्जी (निरसा, मासस) के भाग्य का फैसला होना है.

वहीं झारखंड में पांचवें और अंतिम चरण का चुनाव 20 दिसंबर को और मतगणना 23 दिसंबर को होने जा रही है.

(आनंद दत्ता स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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