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Saturday, 4 May, 2024
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IAS बनाम IA&AS- मुर्मू की सीएजी के पद पर नियुक्ति से ऑडिट करने वाले अधिकारियों में नाराज़गी

दशकों तक आईएएस के इस वर्चस्व ने आईए एंड एएस अधिकारियों को नाराज किया. अतीत में कुछ अधिकारियों ने अदालत का दरवाजा खटखटाने पर भी विचार किया.

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नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पूर्व उपराज्यपाल और भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1985 बैच के गुजरात कैडर के अधिकारी जीसी मुर्मू के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (सीएजी) बनाए जाने से इंडियन ऑडिट एवं अकांउट्स सर्विस के अधिकारियों के बीच असंतोष उभर आया है.

यह कदम शीर्ष आईए एंड एएस पोस्ट पर आईएएस वर्चस्व का नवीनतम उदाहरण है. इंडियन ऑडिट एवं अकांउट्स सर्विस के अधिकारियों ने मुर्मू के बारे में दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने पिछले साल जम्मू-कश्मीर जाने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी लेकिन अब लगभग आधा दर्जन आईए एंड एएस अधिकारियों को नजरअंदाज कर उन्हें वर्तमान जगह दी गई है.

इनमें 1983 बैच के तीन अधिकारी- डिप्टी सीएजी वी रवींद्रन और रॉय एस मथरानी और सुधा कृष्णन शामिल हैं, जिनकी अंतरिक्ष आयोग में प्रतिनियुक्ति है.

मुर्मू ने आई एंड एएस 1984 बैच के तीन अधिकारियों- डिप्टी सीएजी मीनाक्षी गुप्ता, सरोज पुन्हानी और गार्गी कौल को भी पीछे छोड़ दिया जो रक्षा मंत्रालय में प्रतिनियुक्ति पर हैं.

एक वरिष्ठ आईए एंड एएस अधिकारी ने कहा, ‘हमारी सेवा में इस तरह की कोई मिसाल नहीं है, जहां प्रतिनियुक्ति पर इतने वरिष्ठ अधिकारियों को सुपरसीड करने के बाद एक सीएजी नियुक्त किया गया है.’

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एक दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘इस बार सात साल की सीधी छलांग है जिसके कारण गुस्सा आ रहा है.’

अधिकारी ने कहा कि अंतिम सीएजी राजीव मेहरिशी, जो 2017 में नियुक्त किए गए थे, 1978 के आईएएस कैडर के थे, जबकि उनके पूर्ववर्ती शशिकांत शर्मा 1976 बैच के अधिकारी थे.

अधिकारी ने पिछली बार ऐसा होने का उदाहरण बताया जब 1972 बैच के आईएएस विनोद राय को सीएजी नियुक्त किया गया था. उन्होंने 1971 बैच के आईए एंड एएस अधिकारी भारती प्रसाद जो कि डिप्टी सीएजी थे, को सुपरसीड किया था. अधिकारी ने कहा, ‘वह सेवानिवृत्त होने तक राय के अधीन काम करती रही.’

अधिकारी ने कहा कि आई एंड एएस अधिकारियों के लिए बैचमेट के तहत काम करना मुश्किल है.

अधिकारी ने कहा, ‘आम तौर पर अगर किसी को सीएजी नियुक्त किया जाता है को उसी बैच के अन्य आईए एंड एएस अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर बाहर भेजा जाता है. हालांकि, पिछले एक या दो वर्षों में, ऐसे उदाहरण हैं जहां एक ही बैच के अधिकारी दिल्ली से बाहर स्थानांतरित होने से बचने के लिए सीएजी के तहत काम करने के लिए सहमत हुए हैं.’

अधिकारियों के मुताबिक जिनसे दिप्रिंट ने बात की, 1985 बैच के चार सेवारत आईए एंड एएस अधिकारी हैं, जो मुर्मू के ही बैच के हैं.


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आईएएस का प्रभुत्व

स्वतंत्रता के बाद से भारत में 14 ऑडिटर जनरल हुए हैं. पहले तीन सीएजी आईए एंड एएस से थे. तब एक भारतीय सिविल सेवा अधिकारी नियुक्त किया गया था. इस पद पर रहने वाले अंतिम आईए एंड एस अधिकारी ए बक्शी थे, जिन्होंने 1972 और 1978 के बीच सेवाएं दी थी.

उनके बाद आए नौ ऑडिटर जनरल आईएएस कैडर से हुए हैं.

Graphic: Soham Sen/ThePrint

दशकों तक आईएएस के इस वर्चस्व ने आईए एंड एएस अधिकारियों को नाराज किया. अतीत में कुछ अधिकारियों ने अदालत का दरवाजा खटखटाने पर भी विचार किया.

लेकिन अब कैडर के अधिकांश अधिकारियों ने खुद को इसमें ढाल लिया है.

उक्त अधिकारी ने कहा, ‘एक आईए एंड एएस अधिकारी की सामान्य आकांक्षा डिप्टी सीएजी बनने तक सीमित हो गई है… क्योंकि वह जानता है कि सीएजी आईएएस ही होगा. इतने वर्षों से यही चलन रहा है.’


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क्यों आईए एंड एएस पर आईएएस की जीत होती है

एक अधिकारी ने बताया कि आईएएस प्रभुत्व का कारण है कि ये अधिकारी ज्यादातर सरकार और मंत्रियों के नज़दीक होते हैं, यहां तक कि प्रधानमंत्री के भी.

अधिकारी ने कहा, ‘तो एक परिचय पहले से रहता है. एक अधिकारी सत्ता के करीब हो जाता है और किसी विशेष पद के लिए पसंदीदा विकल्प होता है.’

अधिकारी ने कहा कि आईए एंड एएस अधिकारी आईएएस के विपरीत फेसलेस सिविल सर्वेंट होते हैं. ‘हम शायद ही कभी सरकार के मंत्रियों के साथ बातचीत करते हैं. हम अपनी रिपोर्ट के माध्यम से काम करते हैं.’

गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी मुर्मू को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के विश्वासपात्र के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने गुजरात राज्य सरकार में उनके साथ मिलकर काम किया है.

मोदी के पीएम बनने के बाद मुर्मू को केंद्र में लाया गया. व्यय सचिव के रूप में नियुक्त होने से पहले उन्होंने वित्तीय सेवा विभाग और राजस्व विभाग में वरिष्ठ पदों पर कार्य किया.

पिछले साल एक आश्चर्यजनक कदम के रूप में, अगस्त में राज्य के विभाजन के बाद मुर्मू को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का पहला एलजी बनाया गया था.

2012 में डिप्टी सीएजी के रूप में सेवानिवृत्त हुए आईए एंड एएस अधिकारी अनुपम कुलश्रेष्ठ ने कहा कि ऑडिटर जनरल एक संवैधानिक पद है और जो भी उपयुक्त लगता है उसे नियुक्त करना सरकार का विशेषाधिकार है.

कुलश्रेष्ठ ने कहा, ‘लेकिन नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए. मौजूदा प्रक्रिया में हितों का टकराव होता है जहां पीएम, कार्यकारी प्रमुख के रूप में एक व्यक्ति को बतौर सीएजी नियुक्त करते हैं. इस तरह के टकराव से बचने के लिए सरकार सीवीसी और सीआईसी की तर्ज पर एक खोज-सह-चयन समिति का गठन कर सकती है जिसमें विपक्ष के नेता, सुप्रीम कोर्ट के जज आदि शामिल हो सकते हैं.’

हालांकि, एक सेवारत आईएएस अधिकारी ने बताया कि कैडर से अधिकारी की नियुक्ति एक संतुलनकारी कदम होता है.

उन्होंने कहा, ‘सीएजे के ज्यादातर अधिकारी ऑडिटर हैं. आईएएस अधिकारी अन्य मंत्रालयों और विभागों को बेहतर ढंग से समझता है और ऑडिटरों और अन्य सरकारी विभागों के बीच संतुलन बनाने का कार्य करता है.’


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सीएजी का महत्व

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक को ‘राष्ट्र के ऑडिटर’ के रूप में मान्यता है, एक वित्तीय निगरानीकर्ता जो सभी सरकारी राजस्व और व्यय पर नज़र रखता है.

इसे अपनी रिपोर्ट के साथ एक सर्व-शक्तिशाली एजेंसी के रूप में देखा जाता है जिसमें सरकारों को शर्मिंदा करने या गिराने की क्षमता होती है.

उदाहरण के लिए, 1989 में तत्कालीन सीएजी टी.एन. चतुर्वेदी द्वारा होवित्जर गन (स्वीडिश हथियार निर्माता बोफोर्स के विशिष्ट उल्लेख के साथ) की खरीद में अनियमितता के मामले में तैयार की गई एक रिपोर्ट राजीव गांधी सरकार के गिरने का कारण बनी.

इसी तरह, विनोद राय के नेतृत्व में आई 2जी रिपोर्ट मनमोहन सिंह सरकार के लिए एक बहुत बड़ी शर्मिंदगी बन गई, जिसके कारण नीतिगत पक्षाघात और भ्रष्टाचार के आरोप लगे जिसके परिणामस्वरूप सरकार को 2014 में सत्ता से बाहर होना पड़ा.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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