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Saturday, 21 December, 2024
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काबुल में गुरुद्वारे पर हमले के लिए जिम्मेवार आईएसकेपी भारत और विदेशों में भारतीयों के लिए बड़ा खतरा बन चुका है

भारतीय खुफिया एजेंसियों के अनुसार पाकिस्तानी आईएसआई की मदद से आईएसकेपी केरल और अन्य राज्यों से भारतीय नागरिकों की भर्ती कर रहा है.

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नई दिल्ली: काबुल के एक गुरुद्वारा पर गत सप्ताह हुए आतंकवादी हमले ने भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान में खतरे की घंटी बजा दी है क्योंकि हमले से उप-महाद्वीप में एक और ताकतवर आतंकवादी संगठन, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक़ एंड द लेवैंट– खोरासान प्रोविंस (आईएसकेपी), के उभार का स्पष्ट संदेश मिलता है.

आईएसकेपी आतंकवादियों द्वारा 25 मार्च को किए गए हमले में कम से कम 25 लोगों की मौत हो गई थी. हाल के वर्षों में ये अफगानिस्तान में सिखों पर हुआ सबसे बड़ा हमला था.

भारतीय खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के अनुसार क्षेत्र में अपेक्षाकृत नया संगठन होने के बावजूद आईएसकेपी पर करीब से नज़र रखी जा रही है.

भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आम धारणा के विपरीत आईएसकेपी इस्लामिक स्टेट का विस्तार नहीं है, बल्कि यह वास्तव में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का प्रतिनिधि संगठन है. हालांकि इसने इस्लामिक स्टेट के साथ भी संपर्क बना रखे हैं.

खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, आईएसकेपी पूरी तरह से आईएसआई के नियंत्रण में है और काबुल के गुरुद्वारे पर हमला आईएसआई की संलिप्तता की ओर इशारा करता है क्योंकि हमलावर अपने आकाओं से पंजाबी और उर्दू में बात कर रहे थे, न कि स्थानीय भाषाओं पश्तो और दरी में.

आईएसकेपी का उभार

भारत में आतंकवाद-रोधी विशेषज्ञ अब लगभग एकमत हैं कि आईएसकेपी भारत और विदेशों में भारतीयों के लिए एक बड़ा खतरा है, खासकर अफगानिस्तान और मध्य एशिया में.

भारतीय एजेंसियों द्वारा आईएसकेपी पर तैयार एक दस्तावेज़ के अनुसार, ‘वर्तमान में, इसके पास लगभग 3,000-4,000 आतंकवादी हैं और डुरंड लाइन के साथ लगे इलाकों में इसके ठिकाने स्थापित हैं. पूर्वी अफगानिस्तान के नंगरहार और कुनार प्रांतों में भी इसकी उपस्थिति है. यह अफगानिस्तान में कई हमलों को अंजाम दे चुका है और काबुल के गुरुद्वारे पर किया गया हमला इस कड़ी में नवीनतम था. इसने शिया अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर भी हमले किए हैं, जिनमें बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए हैं.’

भारतीय खुफिया एजेंसियों के आतंकवाद-रोधी विशेषज्ञों के अनुसार, आईएसकेपी का उभार आईएसआई तथा पाकिस्तान और मध्य एशिया के कुछ संगठनों द्वारा उसे वित्तीय मदद दिए जाने के साथ हुआ था. यह घटनाक्रम 2015 के बाद का है जब तालिबान आर्थिक तंगी झेल रहा था.


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आईएसकेपी कम से कम पिछले कुछ वर्षों से सालाना 20 करोड़ डॉलर से अधिक के फंड जुटा रहा है और इस कारण इसके लिए बड़ी संख्या में आतंकवादियों को आकर्षित करना आसान था. खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक, इसके पास न सिर्फ अफगानिस्तान में विभिन्न जगहों पर बल्कि विदेशों में हमले के लिए भी आतंकवादियों को हथियार एवं अन्य साजोसामान उपलब्ध कराने लायक पर्याप्त धन है.

उपरोक्त अधिकारी ने कहा, ‘ये भारत के लिए चिंता की बात है, खासकर जब गुरुद्वारे पर हमले में केरल के एक युवक की भूमिका की बात सामने आ चुकी है.’

आईएसआई और हक़्क़ानी नेटवर्क दोनों से मिली मदद

पांच वर्ष पहले जब आईएसकेपी अस्तित्व में आया तो उस समय इसे दुनिया भर के सुरक्षा प्रतिष्ठान कोई बड़ा खतरा नहीं मानते थे, लेकिन कुछ ही वर्षों के भीतर इसका सबसे घातक आतंकवादी संगठनों में शुमार होने लगा.

खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, आईएसकेपी के त्वरित उभार और बढ़ते प्रभाव के पीछे एक अहम कारण है. इसे पाकिस्तान की आईएसआई के साथ-साथ अफगानिस्तान में हक़्क़ानी नेटवर्क का भी समर्थन प्राप्त होना. माना जाता है कि आईएसकेपी हक़्क़ानी नेटवर्क के साथ बहुत निकट मिलकर काम करता है. उल्लेखनीय है कि खुद हक़्क़ानी नेटवर्क भी आईएसआई द्वारा पोषित है.

दो साल पहले आईएसआई ने लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के पूर्व कमांडर असलम फ़ारूक़ी को आईएसकेपी का प्रमुख बनवाकर संगठन पर अपनी गिरफ्त मज़बूत करने के साथ ही ये सुनिश्चित करने का काम किया कि यह पूरी तरह से उसके चंगुल में रहे. फ़ारूक़ी को इस नए दायित्व के लिए आईएसआई ने विशेष रूप से चुना था. उल्लेखनीय है कि स्वयं लश्कर भी आमतौर पर आईएसआई द्वारा ही सृजित माना जाता है.

आईएसकेपी का आरंभिक निशाना काबुल स्थित भारतीय दूतावास था

हालांकि, आईएसआई द्वारा फ़ारूक़ी को नेतृत्व की बागडोर थमाए जाने से आईएसकेपी में गुटबाज़ी पैदा हो गई थी और कई उज़बेक, ताजिक और बलूच लड़ाकों ने फ़ारूक़ी वाले धड़े से खुद को अलग कर लिया था.

इस तरह फ़ारूक़ी के नेतृत्व वाले आईएसकेपी के धड़े में शुरू में मुख्यत: पाकिस्तानी और अफगान पख्तून आतंकवादी शामिल थे, पर आगे चलकर आईएसआई ने उसके लिए भारत और अन्य देशों से आतंकवादियों की भर्ती शुरू कर दी.
काबुल के गुरुद्वारे पर हमला आईएसकेपी के फ़ारूक़ी गुट ने ही किया था, जो इस समय संगठन का मुख्य धड़ा है.


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भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘शुरू में हमले का निशाना काबुल स्थित भारतीय दूतावास था, लेकिन उसके इर्द-गिर्द कड़ी सुरक्षा के कारण आईएसकेपी ने गुरुद्वारे पर हमले का फैसला किया.’

आईएसकेपी की गतिविधियों पर नज़र रखने वाले एक तीसरे वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने कहा, ‘आईएसकेपी केरल और कुछ अन्य राज्यों से भारतीयों की भर्ती करता रहा है. भर्ती की प्रक्रिया ऑनलाइन संपर्क से शुरू होती है. इसके बाद खाड़ी के देशों में आमने-सामने की मुलाकातें होती हैं, जहां से नए सदस्य को पाकिस्तान भेजा जाता है. ये सारी कार्यवाही आईएसआई के सौजन्य से पूरी होती है.’

अधिकारी ने आगे कहा, ‘इस बात की विश्वसनीय सूचनाएं हैं कि आज़मगढ़ और भटकल मॉड्यूल से जुड़े सिमी के कई पूर्व कार्यकर्ता आईएसकेपी में शामिल हो गए हैं.’

भारत के लिए इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं क्योंकि पाकिस्तान आईएसकेपी के फ़ारूक़ी धड़े को धन के साथ-साथ प्रशिक्षण की पूरी सुविधाएं भी उपलब्ध कराता है. आईएसकेपी को मध्य-पूर्व से भी काफी आर्थिक सहायता मिलती है, जहां इसके कई प्रायोजक हैं जो इसे पांव पसारने में मदद कर रहे हैं.

(लेखक आरएसएस से संबद्ध इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र के सीईओ हैं. उन्होंने आरएसएस पर दो पुस्तकें लिखी हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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