नयी दिल्ली, छह अगस्त (भाषा) दार्शनिक एवं लेखक आचार्य प्रशांत ने हाल में हुई एसएससी परीक्षाओं में अनियमितताओं को लेकर चिंता व्यक्त की है और इसे “सांस्कृतिक पतन का एक लक्षण” बताया है।
चौबीस जुलाई से एक अगस्त तक आयोजित हुई एसएससी (कर्मचारी चयन आयोग) परीक्षा में कई समस्याएं सामने आईं, जैसे सर्वर में गड़बड़ी, प्रणाली का काम नहीं करना और परीक्षा केंद्रों का अभ्यर्थियों के घरों से 500 किलोमीटर तक दूर होना।
प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘‘ऐसी चूक अब इक्का-दुक्का घटना नहीं रह गई हैं। ये संस्कृति के पतन को दर्शाती हैं जो युवाओं के आंतरिक ताने-बाने को कमजोर कर रही है। ये विफलताएं हर साल दोहराई जाती हैं: एसएससी, नीट, रेलवे, राज्य सेवाएं। यह अब अपवाद नहीं रहा। यह अब व्यवस्था बन गई है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘एक छात्र सालों से किराए के छोटे कमरे में रहकर तैयारी कर रहा है। परीक्षा के दिन पता लगता है कि उसका प्रवेश पत्र गलत है, उसका बायोमेट्रिक फेल हो जाता है, या उसे किसी दूर के केंद्र पर भेज दिया जाता है। फिर उसके साथ क्या होता है?’’
उन्होंने आगाह किया कि इन घटनाओं के कारण छात्रों का ‘‘ज्ञान, ईमानदारी और कड़ी मेहनत’’ पर से भरोसा उठ सकता है।
आचार्य प्रशांत (47) ने कहा, ‘‘अगर सालों की मेहनत बेकार चली जाए, तो छात्र पूछता है, क्या यह देश निष्पक्ष है? क्या ईमानदारी से मुझे मदद मिलेगी, या घटिया हथकंडे और कुटिलता से? उसका आंतरिक मनोबल टूट जाता है। वह मानने लगता है कि भाग्य, संपर्क और चाटुकारिता ईमानदारी से अधिक मायने रखती है। वह सोचता है कि यदि उसकी मेहनत से कुछ हासिल नहीं होता, तो दूसरों का शोषण करना ही बेहतर है। व्यवस्था पर भरोसा करने से बेहतर है कि उसे मात दी जाए।’’
उन्होंने आगाह किया कि ऐसे छात्र सृजन या नवाचार की इच्छाशक्ति खो देते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘वे केवल एक ही चीज चाहते हैं, सुरक्षा, यानी वेतन और पेंशन वाली कोई स्थायी नौकरी। जहां डर हावी होता है, वहां रचनात्मकता मर जाती है और इसकी कीमत देश को चुकानी पड़ती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जब ईमानदार विद्यार्थियों को किनारे कर दिया जाता है और चालबाज छात्रों को आगे बढ़ाया जाता है, तो मूल्य प्रणाली ध्वस्त हो जाती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वे सोचने लगते हैं कि ईमानदारी हारे हुए व्यक्ति का गुण है, और चालबाजी ही सफलता का एकमात्र रास्ता है।’’
आचार्य प्रशांत ने कहा, ‘‘हमें पूछना चाहिए… अगर कोई छल-कपट और चालाबाजी से आगे बढ़ता है, तो क्या वह सम्मान का पात्र है? क्या हम ज्ञान, प्रयास और न्याय को सम्मान दिलाने के लिए तैयार हैं? जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे, ऐसी असफलताएं हमारे युवाओं को खोखला करती रहेंगी।’’
भाषा देवेंद्र अविनाश
अविनाश
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