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Monday, 20 May, 2024
होमदेशUCC का डर लोगों को भ्रमित कर रहा है. 'यह ब्रिटेन, अमेरिका में भी है', अल्पसंख्यक आयोग प्रमुख लालपुरा

UCC का डर लोगों को भ्रमित कर रहा है. ‘यह ब्रिटेन, अमेरिका में भी है’, अल्पसंख्यक आयोग प्रमुख लालपुरा

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा ने कहा कि समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक प्रावधान है और इससे धार्मिक पहचान को कोई खतरा नहीं है.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा के अनुसार, जनता को भ्रमित करने के लिए प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर जानबूझकर आशंकाएं पैदा की जा रही हैं.

दिप्रिंट के साथ बातचीत में, लालपुरा ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत एक यूसीसी की कल्पना की गई थी – जो कहता है कि राज्य पूरे भारत में एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा.

उन्होंने कहा, “भारत के संविधान में अनुच्छेद 44 का उल्लेख किया गया था, जिसका अर्थ है कि हमारे पूर्वजों ने 1950 में ही इस कानून की आवश्यकता की कल्पना कर ली थी. इसलिए, यूसीसी केवल हमारे संवैधानिक दायित्वों का अनुपालन है.”

उन्होंने कहा, “हालांकि, इसे लागू नहीं किया गया था. बाद में 1990 के दशक में एक अल्पसंख्यक न्यायाधीश को यूसीसी की आवश्यकता महसूस हुई. कई फैसले आए हैं जो समान नागरिक संहिता की आवश्यकता के बारे में बात करते हैं.”

लालपुरा ने अल्पसंख्यक समुदायों की उनकी विशिष्ट पहचान पर कथित ‘खतरे’ को लेकर चिंताओं पर भी सवाल उठाया.

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“इंग्लैंड में भी यूसीसी है, क्या वहां सिख या मुस्लिम समुदाय की कोई अलग पहचान नहीं है? ये आशंकाएं लोगों को भ्रमित करने के लिए पैदा की जा रही हैं. अमेरिका में, जिसे सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, यह वैसा ही है.” “अगर धर्म वहां (यूके, यूएस और फ्रांस में) समायोजित होते हैं तो वे भारत में क्यों नहीं होंगे?”

यूसीसी विवाह, तलाक और विरासत पर कानूनों के एक सामान्य सेट को संदर्भित करता है जो वर्तमान में ऐसे मामलों को नियंत्रित करने वाले समुदाय-विशिष्ट व्यक्तिगत कानूनों के बजाय धर्म की परवाह किए बिना सभी भारतीय नागरिकों पर लागू होगा.

22वें विधि आयोग ने पिछले महीने यूसीसी पर जनता और धार्मिक संगठनों से विचार मांगे, जिससे इस मामले पर बहस फिर से शुरू हो गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस जून में मध्य प्रदेश में एक रैली के दौरान सभी समुदायों के लिए समान कानूनों की जोरदार वकालत की.

लालपुरा ने कहा कि पिछले विधि आयोग ने 2018 में ही यूसीसी पर एक दस्तावेज तैयार कर लिया था. हालांकि, उन्होंने कहा, नए विधि आयोग के गठन के साथ, जनता से प्रतिक्रिया मांगी जा रही थी.

लालपुरा ने कहा, “मैं सभी को सुझाव दूंगा कि उन्हें वह पेपर पढ़ना चाहिए और अपने सुझाव आयोग को भेजना चाहिए.”


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‘विपक्ष का काम विरोध करना है’

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) सहित विभिन्न प्रमुख संगठनों ने प्रस्तावित यूसीसी पर आपत्ति व्यक्त की है, एआईएमपीएलबी ने इसे ‘राजनीतिक स्टंट’ करार दिया है.

कुछ विपक्षी नेताओं ने यह भी दावा किया है कि इस मुद्दे को उठाना 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले मतदाताओं के बीच विभाजन पैदा करने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा का एक रणनीतिक कदम है, जबकि अन्य का तर्क है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है.

लालपुरा ने कहा, “विपक्ष का काम विरोध करना है. समय इतना बदल गया है कि राजनीतिक विमर्श सचमुच कम हो गया है. हमें पता होना चाहिए कि हम व्यक्ति की आलोचना कर रहे हैं या नीति की.” “हमें विदेश जाकर वहां आलोचना में शामिल नहीं होना चाहिए.”

लालपुरा के अनुसार, भारत में यूसीसी के लिए कुछ मिसालें रही हैं.

उन्होंने कहा, “यूसीसी को 1867 से गोवा में लागू किया गया है और पुर्तगालियों ने इसे लागू किया है. वहां कोई संघर्ष नहीं है.”

एनसीएम प्रमुख ने आनंद विवाह अधिनियम की ओर भी ध्यान आकर्षित किया, जो 1909 में भारत में सिख विवाहों के पंजीकरण के लिए बनाया गया था. इसका नाम विवाह के लिए सिख धार्मिक समारोह आनंद कारज से आया है.

उन्होंने कहा, “आनंद विवाह अधिनियम 1909 में बना था लेकिन आज तक इसके लिए नियम नहीं बने. पंजाब में, जहां सिखों की संख्या सबसे अधिक है, आनंद विवाह अधिनियम अभी भी लागू नहीं है.”

पिछले नवंबर में, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी कहा था कि आनंद विवाह अधिनियम, जिसे 2016 में अधिसूचित किया गया था, अभी तक पंजाब में लागू नहीं हुआ है, हालांकि इसे कई अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया गया है.

लालपुरा ने कहा कि सिख समुदाय के पास तलाक को नियंत्रित करने के लिए अपना कोई कानून नहीं है. उन्होंने बताया, “कई सिख एक तरह से हिंदू विवाह अधिनियम का पालन करते हैं.” उन्होंने आगे कहा कि मुस्लिम और सिख समुदायों के पास भी गोद लेने का कानून नहीं है.

अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख ने विभिन्न समूहों को सलाह दी कि वे ”अपनी जो भी आशंकाएं या सुझाव हों, उन्हें विधि आयोग के साथ साझा करें.”

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना खातून)


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