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Thursday, 21 November, 2024
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योगी सरकार ने जिन फर्मों पर बाल पोषाहार में घोटाले का आरोप लगाया, उन्हीं को दिया ठेका

बच्चों और महिलाओं में कुपोषण दूर करने के लिए सरकार कंपनियों से पंजीरी बंटवा रही है, यह सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार दोनों के निर्देश का उल्लंघन है.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने सत्ता में आते ही कहा था कि बच्चों के पोषण के नाम पर चल रही योजनाओं में करोड़ों का भ्रष्टाचार हो रहा है. लेकिन सरकार ने जिस तंत्र और कंपनी की आलोचना की, वही तरीका अपनाकर यह योजना आगे बढ़ाई गई.

योगी सरकार ने 2017 में श्वेत पत्र जारी किया. इसमें कहा गया कि बाल विकास एवं पुष्टाहार अनूपूरक पोषाहार योजना में भ्रष्टाचार है. ‘पोषाहार की आपूर्ति हेतु अपारदर्शी प्रक्रिया से ठेकेदार का चयन किया गया और उसे नियम के विरुद्ध विस्तार दिया गया. अनुपूरक पोषाहार योजना के अंतर्गत ‘टेक होम राशन’ में बांटी जा रही सामग्री’पंजीरी’ से लाभार्थी असंतुष्ट थे. पोषाहार सामग्री गोदाम से आंगनबाड़ी केंद्रों तक पहुंचाने की कोई व्यवस्था नहीं हुई. अनुपूरक पोषाहार योजना के अंतर्गत हॉट कुक्ड फूड (गर्म पका भोजन) की कोई व्यवस्था आंगनबाड़ी केंद्रों पर नहीं की गई.’

राज्य सरकार ने श्वेत पत्र में पोषाहार योजना में भ्रष्टाचार की बात कबूल की और पिछली सरकारों पर आरोप भी लगाया, लेकिन इस सरकार ने भी वही तरीका अपनाया और उन्हीं कंपनियों को ठेका दिया. हालांकि, सरकार का कहना है कि वह कंपनियों को ठेका नहीं दे रही है और नियमों का पालन कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार की ओर से जारी गाइडलाइन में सभी राज्यों को निर्देश हैं कि बाल विकास पोषाहार योजना में सिर्फ स्वयं सहायता समूह और महिला मंडलों को काम दिया जाएगा. लेकिन ये तीन – चार महीने ही चला और जल्द ही ठेके 14 निजी कंपनियों को सौंपे गए जिसमें शराब व्यापारी पोंटी चड्ढा की कंपनी ग्रेट वैल्यू फूड्स शामिल थी. ग्रेट वैल्यू फूड्स को 2002 में ठेका दिया गया, उसके बाद से ही पोषाहार आपूर्ति में टिप्रिंट की जांच के अनुसार ‘कंपनी राज’ कायम है.

केंद्र सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने भी दिप्रिंट से कहा कि उत्तर प्रदेश समेत दस से ज्यादा ऐसे राज्य हैं जो इस योजना में केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट और फूड सिक्योरिटी एक्ट का उल्लंघन करके स्वयं सहायता समूह की जगह कंपनियों को ठेका दे रहे हैं. यह नियमों का उल्लंघन है लेकिन ऐसा हो रहा है क्योंकि इसमें बड़े बड़े लोगों के आर्थिक हित जुड़े हैं.

उत्तर प्रदेश के एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘सरकार ने श्वेत पत्र में आरोप लगाए हैं कि एक बिज़नेस ग्रुप को फायदा पहुंचाया गया. लेकिन अब मौजूदा सरकार ने भी उसी ग्रुप को ठेका दिया. सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि कुपोषित बच्चों एवं महिलाओं को हॉट कुक्ड मील (गर्म पका भोजन) खिलाया जाए लेकिन यह व्यवस्था पूरे राज्य में कहीं नहीं है.’

यह एक बड़ा घोटाला है

अनुपूरक पोषाहार योजनाओं में भ्रष्टाचार की बात संज्ञान में होते हुए योगी सरकार ने इसे जस का तस आगे बढ़ाया गया. पोषाहार योजनाओं से जुड़े एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘अगर सीबीआई जांच हो जाए तो चारा घोटाला इसके आगे बहुत छोटा होगा.’

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव सूर्यप्रताप सिंह ने इस बारे में कहा, ‘एक शराब माफिया, जिसकी विशेषज्ञता शराब में हो सकती है, चीनी मिल चलाने में हो सकती है, उसकी विशेषज्ञता खाद्यान्न वितरण में कैसे हो सकती है? पूरे प्रदेश का ठेका मायावती के काल में भी, मुलायम सिंह और अखिलेश के काल में भी पोंटी चड्ढा के हाथ में रहा. वर्तमान सरकार ने घोषणा की थी कि इस प्रदेश से पोंटी चड्ढा ग्रुप का सफाया कर दिया जाएगा, लेकिन वह आज भी पंजीरी वितरण करता है.’

उन्होंने कहा, ‘पंजीरी के बहुत सारे सैंपल फेल हुए हैं, लेकिन बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए प्रोटीन के सोर्स के रूप में पंजीरी बांटी जाती है. उसमें 7 प्रतिशत प्रोटीन कंटेंट होना चाहिए. लेकिन इस पंजीरी में .5 या .6 प्रतिशत प्रोटीन कंटेंट है. यह दरअसल गेहूं का आटा है जिसमें चीनी मिली होती है.’


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विभाग के सूत्रों ने पुष्ट किया कि केंद्र सरकार के निर्देश पर एक स्वतंत्र समूह द्वारा लिए गए सैंपल के आधार पर हैदराबाद लैब की रिपोर्ट में कहा गया कि इस पोषाहार में एनेर्जी, विटामिन, मिनरल और प्रोटीन कुछ भी नहीं है. फिर भी 27 साल से पंजीरी खिलाई जा रही है.

आंगनबाड़ी संघ के अध्यक्ष गिरीश कुमार पांडेय का इस बारे में कहना है, ‘मैंने अखिलेश यादव की सरकार के दौरान योजना में भ्रष्टाचार को लेकर 30 दिन की हड़ताल की थी. पंजीरी कुपोषित शिशुओं और मांओं के लिए पुष्टाहार नहीं है, यह पशुओं का आहार है. यह वितरण केंद्रों पर आपूर्ति के बाद गांवों में बिक जाती है और ग्रामीण उसे गाय भैंसों को खिलाते हैं. लेकिन सबके लिए कमीशन तय है इसलिए योजना चल रही है.’

योगी सरकार ने भी दिया 15 करोड़ का ठेका

बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार के लिए समन्वित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के निदेशालय से जनवरी में नया टेंडर जारी हुआ. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, इस टेंडर के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप, महिला मंडल और विलेज कम्युनिटी को योग्य बताया गया है, लेकिन साथ में 5,59,23,531 रुपये अर्नेस्ट मनी डिपॉजिट की शर्त भी रखी गई. नई शर्तों के मुताबिक, जो फर्म या ग्रुप 3 करोड़ अर्नेस्ट मनी और 6 करोड़ रुपये ज़मानत राशि जमा कराएंगी, वही टेंडर की प्रक्रिया में भाग ले सकेंगी.

विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ‘कौन सा स्वयं सहायता समूह, महिला मंडल और विलेज कम्युनिटी है जो इतने रुपये अर्नेस्ट मनी जमा करा सकेगा? यानी यह टेंडर फिर से प्राइवेट प्लेयर के लिए निकाला गया.’

केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘यह अर्नेस्ट मनी की शर्त ही इसलिए है ताकि सेल्फ हेल्प ग्रुप बाहर हो जाएं और कंपनी राज कायम रहे.’

2004 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा था कि आईसीडीएस में पोषाहार की खरीद में किसी भी प्रकार की ठेकेदारी नहीं होगी. इसके बावजूद, आईसीडएस में ठेका प्रथा जारी है.

विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि, ‘योगी के आने के बाद टेंडर निकला. यह दिखाने के लिए पारदर्शिता बरती जा रही है, जो सिंडीकेट थे, उन्हीं से जुड़ी दूसरे राज्यों की कंपनियों को शामिल कर लिया गया. यह सिर्फ पारदर्शिता दिखाने के लिए था. कब्ज़ा पूरी तरह अभी उन्हीं प्राइवेट प्लेयर का है और केंद्रीकृत सप्लाई अब भी जारी है.’

इस विभाग का सालाना टेंडर 2004 में 10 हज़ार करोड़ का था. इसके बाद 2013 में 12 हज़ार करोड़ का हुआ. इस बार जनवरी में हुए टेंडर में इसे बढ़ाकर 15 हज़ार करोड़ दिया गया. लेकिन अलग अलग नाम की कंपनियां वैसे ही योजना को चला रही हैं, जैसे पहले चलाती थीं. न तो फूड सिक्योरिटी एक्ट लागू हो पाया, न स्वयं सहायता समूहों को काम दिया गया और मातृ समितियों को नज़रअंदाज़ किया गया.

इसका संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने यूपी सरकार को नोटिस भेजा है और पूछा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 300 दिन तक जो भोजन उपलब्ध कराने की बात अनिवार्य की है, उसका पालन क्यों नहीं हो रहा है. इसके लिए उत्तरदायी कौन है? उत्तरदायित्व स्वीकार करने के लिए विभाग की प्रमुख सचिव मोनिका गर्ग ने जांच अधिकारी नियुक्त करने का आदेश दिया लेकिन अभी इसका पालन नहीं किया गया है. उक्त सभी तथ्यों से जुड़े कागज़ात दिप्रिंट के पास मौजूद हैं.

कंपनी, नेता और अधिकारियों की साठ-गांठ

आईसीडीएस योजना 1975 में शुरू की गई थी जिसमें 6 महीने तक के बच्चों को पोषक आहार देना है. 1992 तक यह योजना विकेंद्रीकृत थी. इसमें पंचायतें भी शामिल होती थीं. लेकिन बाद में इसे पूरी तरह केंद्रीकृत करके बिज़नेसमैन के हवाले कर दिया गया.

योजना को करीब से जानने वाले अधिकारियों का दावा है कि ‘इस योजना के लिए सरकार मुफ्त में अनाज देती है. कंपनी न्यूट्रीशन तैयार करती है और 52 रुपये प्रति किलो चार्ज करती है. कंपनी न्यूट्रीशन की लागत बढ़ाने के लिए जो न्यूट्रीशन गाज़ियाबाद में तैयार होता है उसे सोनभद्र भेजा जाता है, जो महराजगंज में तैयार होता है उसे गाज़ियाबाद भेजा जाता है. इस फालतू ट्रांसपोरटेशन से लागत बढ़ती है. यह सब आला अधिकारियों की जानकारी में होता है.’

आंगनबाड़ी संघ के अध्यक्ष गिरीश कुमार पांडेय भी इस बारे में आरोप लगाते हैं कि ‘सरकार से मुफ्त अनाज लेकर उसमें चीनी मिलाकर यह पंजीरी तैयार की जाती है. इसमें इतना मुनाफा है कि पंजीरी आपूर्ति करने वाली कंपनियों और उनसे साठगांठ करने वाले अधिकारियों और नेताओं की जेबें भरती हैं.’

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का गलत हवाला

बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की ओर से 04 अगस्त, 2016 को एक गोपनीय टिप्पणी मंत्री परिषद के लिए जारी की गई. इसमें टेंडर समाप्त होने के अगले दिन नए टेंडर में लग रहे समय का हवाला देते हुए पुराने टेंडर को तीन महीने के लिए बढ़ाने के अनुमोदन का ज़िक्र है. जनवरी, 2018 तक 2013 के ही टेंडर के आधार पर कंपनियों को बार-बार विस्तार दिया गया है. इस नोट में सुप्रीम कोर्ट का हवाला दिया गया है.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘जिस सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आड़ में कंपनी को विस्तार दिया गया, उस रिट नंबर 196/2001 के आदेश का पंजीरी के टेंडर से कोई वास्ता ही नहीं है.’

इस योजना को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की 2010 की रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया. आयोग की रिपोर्ट में पोषाहार योजना को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए थे. मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि पोषण सप्लाई का विकेंद्रीकरण किया जाए. लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ.

अब तक प्राइवेट प्लेयर्स को 55 हज़ार करोड़ से अधिक दिए गए

2004 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का ज़िक्र करते हुए विभागीय सूत्र ने नाम न बताने की शर्त पर आरोप लगाया, ‘अब तक एक प्राइवेट प्लेयर को 55 हज़ार करोड़ से अधिक रुपये दे दिए गए. 2015 में आखिरी टेंडर समाप्त हुआ, तब से 2018 तक कैबिनेट ऑर्डर के ज़रिये ठेके की अवधि को बार बार आगे बढ़ाया गया.’

फ़ूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग को राज्य सरकार ने स्वीकार तो किया, लेकिन यह प्रदेश में आज तक लागू नहीं हुआ. उत्तर प्रदेश सरकार की निगाह में सारे मर्ज, सारे रोग, कुपोषण, एनीमिया आदि सब की दवा पंजीरी है.

22 लाख बच्चे भयंकर कुपोषित

जून, 2016 में सरकार के सर्वे रिपोर्ट में पाया गया कि 15 लाख बच्चे भयंकर कुपोषित हैं. सरकार ने तय किया कि 4 महीने तक सिर्फ पंजीरी खिलाकर फिर से सर्वे किया जाएगा और प्रगति देखी जाएगी. 4 महीने तक पंजीरी खिलाकर फिर से बच्चों का टेस्ट हुआ तो भयंकर कुपोषित की श्रेणी में 22 लाख बच्चे पाए गए. यानी कुपोषण और बढ़ गया.

फूड सेक्यूरिटी एक्ट कहता है कि अगर आप किसी बच्चे को पोषण नहीं दे सकते तो हर्जाना दें. सीधे अकॉउंट में पैसे ट्रांसफर किए जाएं, लेकिन इस बारे में आजतक एक शासनादेश तक जारी नहीं हुआ.

रहस्यमय अग्निकांड

इस योजना में भ्रष्टाचार को लेकर 2015 में पीएमओ से जांच का आदेश हुआ. इसके दो दिन बाद ही लखनऊ के इंदिरा भवन स्थित बाल विकास एवं पुष्टाहार निदेशालय के कमरे में आग लग गई. दो साल बाद विभाग की सचिव डिंपल वर्मा ने 12 अप्रैल, 2017 को जांच का आदेश दिया लेकिन उनका उसी दिन ट्रांसफर कर दिया गया.

उनके आदेश में आग लगने के विषय में घोर अनियमितता, लापरवाही एवं षडयंत्र की बात कही कई थी और विभाग की ओर से एफआईआर दर्ज कराने और शासन को शीघ्र स्पष्टीकरण देने को कहा गया था. लेकिन यह ‘षडयंत्र’ प्रशासन द्वारा छिपा लिया गया. कथित घोटाले की परते खुली न किसी को सज़ा हुई

शिकायतों और सिफारिशों नज़रअंदाज़ किया गया

उतर प्रदेश के प्रांतीय बाल विकास परियोजना अधिकारी कल्याण एसोसिएशन की तरफ से 15 अप्रैल 2017 को मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा गया जिसमें अनुपूरक पोषाहार वितरण में व्याप्त भ्रष्टाचार और विसंगतियों की तरफ ध्यान दिलाया गया था.

सरकार ने इस शिकायती पत्र पर क्या कार्रवाई की, इस पर असोसिएशन के अध्यक्ष अरुण कुमार पांडेय ने कहा, ‘मैं 2012 से लगातार सरकार के सामने यह बात रखता रहा हूं कि आईसीडीएस मैनुअल का पालन हुए बगैर आप कुपोषण की समस्या दूर नहीं कर सकते. मैंने यह भी लिखा कि योजना का संचालन अवैध ढंग से हो रहा है, लेकिन सरकार की तरफ से उसका कोई संज्ञान नहीं लिया गया. मैंने पूर्व की सरकार को भी लिखा था. मौजूदा सरकार को लिखा, लेकिन कार्यवाही नहीं हुई.’

आंगनबाड़ी संघ का आरोप

यदि सरकार कुपोषण दूर करना चाहती है, विभाग चाहता है, कर्मचारियों का संघ चाहता है तो वे कौन लोग हैं जो परियोजना को वास्तविक उद्देश्य से भटकाते हैं? इस सवाल पर अरुण पांडेय कहते हैं, ‘इसे वे लोग भटका रहे हैं, जिनको इस मुहिम को भटकाने से फायदा है. उनकी दिलचस्पी करोड़ों बच्चों के स्वास्थ्य में नहीं, अपने मुनाफे में है.’

आंगनबाड़ी संघ के अध्यक्ष गिरीश कुमार पांडेय आरोप लगाते हैं, ‘मैंने इस संबंध में मुख्यमंत्री को एक दर्जन से ज़्यादा पत्र लिखे लेकिन नतीजा शून्य रहा. योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार की कभी कोई जांच नहीं हुई. आईसीडीएस में कम से कम 42 हज़ार करोड़ का घोटाला है. मैंने सीबीआई जांच की मांग की, लेकिन सरकार ने नहीं सुना.’

गिरीश ने मुख्यमंत्री को कई पत्र लिखे जिसमें 2004 से 2018 तक 42 हज़ार करोड़ के घोटाले का ज़िक्र है और सीबीआई से जांच कराने की मांग की गई है.

हज़ारों करोड़ पानी में गए

भारत सरकार की केंद्र निर्धारित योजना के अंतर्गत समन्वित बाल विकास योजना एक शीर्ष कार्यक्रम है. भारत सरकार के सहयोग से राज्य इसे संचालित करते हैं. यह योजना बच्चों, बच्चियों और महिलाओं में कुपोषण दूर करने के लिए है.

जानकार बताते हैं कि खाद्य सुरक्षा बिल और आईसीडीएस मैनुअल के अनुसार, गर्म भोजन योजना साल में 300 दिन चलनी चाहिए, लेकिन अब तक ऐसा नहीं किया गया.

पूर्व मुख्य सचिव सूर्य प्रताप सिंह ने बताया, ‘बिना टेंडर के ये ठेके दिए जाते रहे हैं. यूपी में शराब का ठेका भी कैबिनेट से पास करके पोंटी चड्ढा को दिया जाता रहा है. उसी तरह पंजीरी का भी ठेका बार बार बिना टेंडर के दिया गया.’

सूर्य प्रताप सिंह के मुताबिक, ‘उत्तर प्रदेश में 0 से 06 वर्ष आयुवर्ग के 42 प्रतिशत मेल चाइल्ड कुपोषित हैं, 47 प्रतिशत फीमेल चाइल्ड कुपोषित हैं. कुपोषण दूर करने के लिए यूपी सरकार ने जो पैसे अब तक खर्च किए हैं वे 50-55 हज़ार करोड़ रुपये पानी में गए.’

केंद्र के नियम को ठेंगा

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने इस बारे में कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि पूरे देश में पोषाहार योजना में कंपनी राज एकदम से खत्म किया जाए. लेकिन इसमें बड़े बड़े लोगों आर्थिक हित हैं जिसके चलते ऐसा नहीं हो सका. हमने 2017 में भी मैनुअल जारी किया कि पोषाहार योजना में सिर्फ महिला मंडल और स्वयं सहायता समूह होंगे, कंपनियां नहीं होंगी, लेकिन यह अब तक जारी है.’

केंद्रीय सरकार के सूत्रों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने अपने बाद के आदेश में कहा कि योजना को जारी रखने के लिए जब तक स्वयं सहायता समूह नहीं मिलते, कंपनियों को ठेका दिया जा सकता है. इस आदेश ने भ्रष्टाचार के लिए दरवाज़ा खोल दिया और कंपनी राज कायम है.

बच्चों के लिए खाना तैयार करती हुई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता. (फोटो: ब्लूमबर्ग)

उनके मुताबिक, ‘सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में कम से दस से ज्यादा राज्य ऐसे हैं जहां यह ठेका प्रथा जारी है. पूरे देश में यह इंडस्ट्री 20000 करोड़ की है. इसमें बड़े बड़े लोगों के हित जुड़े हुए हैं. इसलिए फूड सिक्योरिटी एक्ट, सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार की गाइडलाइन तक का पालन न करके यह गोरखधंधा जारी है.’

केंद्र की तरफ से कार्रवाई के सवाल पर उन्होंने कहा, हम ज़्यादा से ज़्यादा दंडात्मक कार्रवाई के तहत फंड रोक सकते हैं, लेकिन गरीब बच्चों के लिए चल रही इस योजना में हम ऐसा भी नहीं कर सकते.

दिप्रिंट के सवाल पर केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्रालय ने कहा, ‘पोषाहार योजनाएं चलाने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की है. केंद्र सरकार समय समय पर गाइडलाइन जारी करती है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर कई आदेश जारी किए हैं. यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में है, नीति आयोग और मंत्रालय में भी इस पर चर्चा चल रही है. इस संबंध में मानवाधिकार आयोग की किसी टिप्पणी की उन्हें कोई जानकारी नहीं है. वैसे भी यह मानवाधिकार का मामला नहीं है.’

मंत्रालय ने कहा, ‘केंद्रीय मंत्रालय इसका लेखाजोखा नहीं रखता कि इस योजना में राज्य किससे पोषाहार आपूर्ति करवा रहे हैं. यह पूरी तरह राज्य सरकार का निर्णय है. पोषाहार योजना में कई भ्रांतियां है जो जानबूझ पैदा की गई लगती हैं. इसके लिए अलग अलग राज्य अलग अलग तरीका अपनाते हैं. जो भी तरीके पारदर्शी हैं, वे स्वीकार्य हैं.’

क्या कहती है यूपी सरकार

आईसीडीएस के निदेशक शत्रुघ्न सिंह ने फूड सिक्योरिटी एक्ट के उल्लंघन के सवाल पर दिप्रिंट से कहा, ‘हम लोग फूड सिक्योरिटी एक्ट के आधार पर ही काम करते हैं. जो भी खाद्यान्न हम दे रहे हैं, वह फूड सिक्योरिटी एक्ट के अंतर्गत ही है.’

कंपनियों को ठेका देने के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘ठेकेदारों पर रोक लगाई गई है. हमने ठेका प्रथा खत्म कर दिया है. जो कंपिनयां हैं वे ठेकेदार नहीं हैं, रजिस्टर्ड कंपनियां हैं, या फर्म हैं. हमने ऑल इंडिया टेंडर किया था. हम गर्म पका भोजन सेल्फ हेल्प ग्रुप के माध्यम से ही दे रहे हैं.’

यह पूछने पर कि ऐसी व्यवस्था प्रदेश में कहीं नहीं है, उन्होंने बताया कि तीन दिसंबर को कैबिनेट में निर्णय हुआ है. हम 22 ज़िलों में हॉट कुक्ड फूड की व्यवस्था करेंगे जो सेल्फ हेल्प ग्रुप के माध्यम से होगा. उन्होंने यह स्वीकार किया कि इसमें कई विसंगतियां थीं, जिन्हें ठीक किया जा रहा है. उन्होंने इस आरोप से भी इनकार किया कि हम केंद्र का नियम, सुप्रीम कोर्ट के नियमों का पालन नहीं करते.

इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार की प्रतिक्रिया जानने के लिए हमने महिला एंव बाल विकास मंत्री अनुपमा जायसवाल से कई बार फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, उन्हें ईमेल भी किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. इस संबंध में हमने मुख्य सचिव से भी ईमेल के जरिये प्रतिक्रिया मांगी है. सरकार की तरफ से जो भी प्रतिक्रिया आएगी, उन्हें शामिल कर लिया जाएगा. पोंटी चड्ढा की कंपनी ग्रेड फूड वैल्यू के दिल्ली ऑफिस में हमने लिखित में सवाल भेजे थे, लेकिन उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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