ग्वालियर, चार मई (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को अमेरिकी पैटर्न के आधार पर किसानों के लिए उर्वरक सब्सिडी में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) की वकालत की और कहा की किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करते समय मुद्रास्फीति को ध्यान में रखा जाना चाहिए, जैसे कि विधायकों और सांसदों के वेतन के मामले में रखा जाता है।
ग्वालियर में राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के संकाय सदस्यों और छात्रों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने विधायकों और सांसदों के वेतन में संशोधन करते समय मुद्रास्फीति को ध्यान में रखा, तो किसानों का समर्थन करते समय क्यों नहीं? किसानों को दी जाने वाली सहायता में भी मुद्रास्फीति का ध्यान रखा जाना चाहिए।’
धनखड़ ने उर्वरक सब्सिडी में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, ‘ अमेरिका में, किसानों को प्रदान की जाने वाली सभी सहायता सीधे दी जाती है, न कि बिचौलियों के माध्यम से। जिस तरह हमारे पास भारत में पीएम-किसान योजना है, उसी तरह भारत सरकार भी उर्वरक सब्सिडी पर भारी खर्च करती है।’
उन्होंने कहा कि यदि यही पैसा सीधे किसानों को हस्तांतरित किया जाता है, तो भारत में प्रत्येक किसान परिवार को प्रति वर्ष कम से कम 30,000 रुपये मिल सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘यह राशि सीधे उन्हें दी जानी चाहिए।’
धनखड़ ने कहा कि वर्तमान में जब सरकार उर्वरक सब्सिडी प्रदान करती है, तो किसान वास्तव में इसके प्रभाव को महसूस नहीं करता है।
उपराष्ट्रपति ने कहा, ”हमें किसानों को सब्सिडी का सीधा हस्तांतरण सुनिश्चित करना चाहिए।’
उन्होंने कहा कि अमेरिका में किसान के परिवार की आय आम परिवार की आय से अधिक है।
धनखड़ ने किसानों की आय और जीवन स्तर में सुधार के लिए मूल्य संवर्धन श्रृंखला में उनकी भागीदारी के महत्व को भी रेखांकित किया।
उन्होंने कहा, ‘किसान का जीवन तभी बदल सकता है जब वह समृद्ध हो। किसान परिवारों के बच्चों को कृषि से संबंधित कार्य के नए क्षेत्रों में प्रवेश करना चाहिए। आज देश का सबसे बड़ा व्यवसाय कृषि व्यापार है।’
उन्होंने कहा, ‘बस कृषि विपणन के विशाल पैमाने को देखें। मंडियां हैं और बिचौलिए हैं। आर्थिक रूप से, यह एक खगोलीय आंकड़ा है। लेकिन क्या किसान इसमें हितधारक है? नहीं। किसान सिर्फ एक उत्पादक बनकर रह गया है। हमें इस मानसिकता को बदलना होगा। तुरंत उत्पादन और बिक्री करना विवेकपूर्ण निर्णय नहीं है।’
किसानों के लिए सब्सिडी को मुद्रास्फीति से जोड़े जाने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, ” किसानों को अप्रत्यक्ष सहायता मिलती है, जिसे हम सब्सिडी के रूप में संदर्भित करते हैं। लेकिन पहली बात यह है कि किसानों को दी जाने वाली किसी भी सहायता को मुद्रास्फीति से जोड़ा जाना चाहिए।’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसानों को प्रति वर्ष दी जाने वाली 6,000 रुपये की सहायता आज भी वही है।
उन्होंने कहा, ‘कोई भी अर्थशास्त्री आपको यह बताएगा कि जब इसे पेश किया गया था तो 6,000 रुपये की क्रय शक्ति अब पहले जैसी नहीं रही है।’
उपराष्ट्रपति ने भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने में किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।
उन्होंने कहा, ‘विकसित भारत का रास्ता हमारे किसानों के खेतों से होकर जाता है। भारत हमेशा से एक कृषि उन्मुख राष्ट्र रहा है, और अब हम एक कृषि क्रांति के कगार पर खड़े हैं जो हमारे भविष्य को आकार देगी।’
धनखड़ ने किसानों की दुर्दशा और दर्द के प्रति संवेदनशील होने के महत्व पर जोर दिया।
उन्होंने कहा, ‘हमें अपने किसानों को केवल उत्पादक से कृषि उद्यमी में बदलने की दिशा में काम करना चाहिए। जब किसान अपनी उपज के व्यापार और बिक्री में भाग लेता है, तो उन्हें मुनाफे का उचित हिस्सा प्राप्त होगा। दूसरी बात यह है कि कृषि-औद्योगिक क्षेत्र की नींव कृषि उपज है, लेकिन किसान इससे कोसों दूर रहता है। क्यों? किसान को अपने उत्पाद का मूल्य वर्धन क्यों नहीं करना चाहिए? यह कुछ ऐसा है जिस पर हमें चिंतन करना चाहिए।’
उन्होंने कहा कि आज सरकार ने बेहद सकारात्मक नीतियां अपनाई हैं, अब किसान को आगे आना चाहिए।
उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नारे ‘जय जवान, जय किसान’ को याद किया, जिसे बाद में अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘जय विज्ञान’ किया और कहा कि अब प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इसे आगे बढ़ाकर ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान’ किया गया है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों का कल्याण सुनिश्चित करने की इच्छुक है और यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस प्रयास कर रही है कि किसानों को किसी भी कठिनाई का सामना न करना पड़े।
उन्होंने छात्रों से कहा, ‘आपको किसानों के सामने आ रही कुछ चुनौतियों पर भी काम करना चाहिए।’
धनखड़ ने जल्द खराब होने वाले कृषि उत्पादों को एक बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकार किया और इस कड़ी में टमाटर का उदाहरण दिया।
उन्होंने कहा, ‘जब अधिक उत्पादन होता है, तो यह एक चुनौती बन जाता है। हमें उस दिशा में काम करना चाहिए।’
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ब्रजेन्द्र, रवि कांत
रवि कांत
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