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शुक्रवार, 13 जून, 2025
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भारत में ग्रीनहाउस गैसों का सात फीसदी उत्सर्जन औद्योगिक बॉयलर से : रिपोर्ट

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नयी दिल्ली, 14 मई (भाषा) भारत में औद्योगिक बॉयलर से हर साल औसतन 18.2 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, जो देश के कुल ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन का लगभग सात फीसदी और उद्योगों से होने वाले कुल उत्सर्जन का एक-चौथाई भाग से अधिक है। बुधवार को जारी एक नयी रिपोर्ट तो कुछ यही बयां करती है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि औद्योगिक बॉयलर से भारत के पूरे ऑटोमोबाइल क्षेत्र से कहीं अधिक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) और सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) का उत्सर्जन होता है, जिसका मुख्य कारण कमजोर उत्सर्जन मानक हैं।

खाद्य प्रसंस्करण, रसायन और कपड़ा जैसे उद्योग संचालन के लिए प्रोसेस बॉयलर में उत्पादित भाप पर निर्भर हैं।

यह रिपोर्ट पर्यावरण थिंक टैंक आईफॉरेस्ट की ओर से केंद्र सरकार के उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) तथा उत्तर प्रदेश सरकार के श्रम विभाग के साथ साझेदारी में आयोजित ‘भारत में औद्योगिक बॉयलर को हरित बनाने पर आधारित राष्ट्रीय सम्मेलन’ में जारी की गई।

प्रदूषण को कम करने और शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को हासिल करने में भारत की मदद के लिए आईफॉरेस्ट ने स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने के वास्ते ‘ग्रीन बॉयलर मिशन’ शुरू करने का सुझाव दिया है।

आईफॉरेस्ट के सीईओ चंद्र भूषण ने बताया कि भारत में लगभग 45,200 प्रोसेस और को-जनरेशन बॉयलर हैं, जो हर साल लगभग 1.26 अरब टन भाप का उत्पादन करते हैं।

भूषण के मुताबिक, इनमें से दो-तिहाई बॉयलर आठ राज्यों में हैं। उन्होंने बताया कि गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश उन पांच राज्यों में शामिल हैं, जहां सबसे ज्यादा संख्या में औद्योगिक बॉयलर का इस्तेमाल होता है।

भूषण के अनुसार, औद्योगिक बॉयलर की औसत उम्र 18 साल है और इनमें से लगभग 20 फीसदी 25 साल या उससे अधिक पुराने हैं, जिससे उनकी सुरक्षा और दक्षता को लेकर चिंताएं पैदा होती हैं।

भूषण ने कहा कि औद्योगिक बॉयलर से कुल पीएम उत्सर्जन लगभग 52 लाख टन है, जो परिवहन क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन से ज्यादा है। उन्होंने बताया कि बॉयलर में उत्पादित भाप औद्योगिक पीएम के नौ फीसदी, एसओ2 के आठ प्रतिशत और नाइट्रोजन ऑक्साइड के 17 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है तथा गुजरात, महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश इस मामले में शीर्ष तीन प्रदूषक हैं।

रिपोर्ट में पाया गया कि लगभग 40 फीसदी औद्योगिक बॉयलर कोयला, गैस या तेल जैसे जीवाश्म ईंधन से संचालित होते हैं। इसमें कहा गया है कि बायोमास को कार्बन तटस्थ माना जाता है, लेकिन लगभग आधे बॉयलर में इनका इस्तेमाल किया जाता है, जिससे वायु प्रदूषण भी होता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, छोटे बॉयलर (दो टन प्रति घंटे तक की क्षमता) ज्यादातर जीवाश्म ईंधन, खासतौर पर कोयले से संचालित होते हैं।

भाषा पारुल सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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