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Wednesday, 24 April, 2024
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‘उसे फोन दिलाने के लिए बकरियां बेच दी थीं’, साइबर अपराध में शामिल बिहार के एक ही गांव के 31 युवा कैसे पुलिस के हत्थे चढ़े

नवादा के थालपोस गांव में हरे-भरे खेतों के बीच दर्जनों युवा अपने स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर तब तक साइबर अपराध का धंधा चलाने में लगे थे, जब तक पुलिस ने वहां धावा नहीं बोला. आखिर इस रैकेट का भंडाफोड़ कैसे हुआ?

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नवादा: घर के छोटे-से आंगन में बंधी दो बकरियां उसकी संपत्ति थीं लेकिन बेटे के लिए नया मोबाइल फोन खरीदना उसका भविष्य सुनहरा बनाने के लिए एक जरूरत थी. ‘पढ़ाई कर्बू मम्मी,’ उसने अपनी मां से कहा था कि पढ़ाई के लिए फोन का इस्तेमाल करना है.

बिहार के नवादा जिले के थालपोस गांव में रहने वाली एक विधवा सर्विला देवी ने जनवरी के एक सर्द दिन अपनी कीमती बकरियां 6,000 रुपये में बेच दीं और इससे मिला पैसा अपने 19 वर्षीय होनहार बेटे गुलशन को दे दिए.

इसके ठीक एक महीने बाद उसके बेटे के हाथों में हथकड़ियां थीं.

दरअसल, गुलशन अपने नए सैमसंग स्मार्टफोन का इस्तेमाल ऑनलाइन पढ़ाई के लिए नहीं, बल्कि अनजान लोगों को ठगकर पैसे बनाने में कर रहा था. 42 वर्षीय सर्विला देवी के लिए थोड़ी राहत बस यही है कि वह गांव में यह अपमान झेलने के लिए अकेली नहीं है.

15 फरवरी को नवादा पुलिस ने छापा मारा और साइबर धोखाधड़ी के आरोप में 14 से 40 वर्ष की उम्र के 33 लोगों को गिरफ्तार किया. इनमें से कम से कम 31 थालपोस निवासी थे.

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अब, स्थिति ऐसी है कि गांव का लगभग हर दूसरा परिवार जमानत के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है, उनके चेहरे पर उदासी साफ नजर आती हैं और नजरें भी झुकी रहती हैं.

किसी अन्य बात से ज्यादा वे भ्रमित हैं और इस पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं—उन्हें लगता है कि टेक-सैवी और पढ़ने-लिखने में काफी अच्छे रहे उनके बच्चों को सफलता की नई इबारत लिखनी चाहिए थे, न कि आस-पास के गांवों में आवारा किस्म के युवाओं की जैसी कारगुजारियों में लिप्त होना चाहिए था.

यहां आखिर क्या गलत हुआ?

दिप्रिंट की ‘जेनरेशन नोव्हेयर’ सीरिज की पांचवी कड़ी में हम बिहार के दूरदराज के इलाकों में बसे गरीब परिवारों के युवाओं के साइबर अपराध की दुनिया में कदम रखने के बारे में बता रहे हैं, जिनका मुख्य हथियार स्मार्टफोन होता है.

सोच से परे ‘अपराध स्थल’—ट्यूबवेल, खेत, पेड़ों के नीचे

केवल कुछ हजार निवासियों वाले थालपोस गांव के अधिकांश लोगों को खेत-खलिहानों में छोटे-छोटे समूहों में युवाओं के जमा होने में कुछ गलत नहीं लगता था. लेकिन कम से कम एक व्यक्ति को तो लगा कि सब कुछ सही नहीं है.

यह जानकारी थालपोस थाने में तैनात 57 वर्षीय उपनिरीक्षक बैद्यनाथ प्रसाद के पास पहुंची. प्रसाद ने बताया, ‘मैंने देखा कि यहां 50 से अधिक लोग ट्यूबवेल के आसपास एकत्र होते या जो कुछ भी करते थे, उसके लिए खेतों में जुटते थे.’

इससे उनके कान तुरंत खड़े हो गए—सिर्फ कुछ संदिग्ध लग नहीं रहा था, बल्कि बहुत कुछ चल रहा था. उन्होंने कहा, ‘बाहर से पुलिस यहां आती रहती है.’

पुलिस ने इन खेतों को घेर लिया, जहां अलग-अलग जगहों से युवकों ने अपने निशाने पर बुलाया. यहां का छोटा सा सफेद कमरा ऐसा ही एक ‘कॉल सेंटर’ था | ज्योति यादव | दिप्रिंट

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दक्षिण बिहार की इस बेल्ट—जिसमें नवादा, नालंदा, गया जमुई और शेखपुरा आदि जिले आते हैं—स्मार्टफोन का इस्तेमाल करके बड़े पैमाने पर होने वाले इस तरह के छोटे-मोटे अपराध एक कुटीर उद्योग बन चुके हैं. दरअसल, इस साल के शुरू में बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई ने इन जिलों को राज्य के साइबर अपराध हॉटस्पॉट के तौर पर चिह्नित किया था.

थालपोस के लोगों का पुलिस के हत्थे चढ़ना इसके बाद लगभग तय ही हो गया था.

नवादा के पकरीबारवां ब्लॉक में कोनंदपुर पंचायत के तहत पांच गांवों में से एक थालपोस कतारबद्ध ताड़ी के पेड़ों के साथ अपनी पश्चिम सीमा वारिसलीगंज ब्लॉक के साथ साझा करता है, जो धोखाधड़ी और साइबर अपराधों के लिए कुख्यात है. पिछले दिसंबर में ही पुलिस ने यहां के एक गांव से मुखिया समेत 17 साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया था. इसके अलावा लगभग 20 किलोमीटर के दायरे में नालंदा का कटरीसराय है, जो नकली दवाओं से लेकर साइबर घोटालों तक धोखाधड़ी के केंद्र के तौर पर कुख्यात है.

अब, ऐसा लग रहा कि अपराध का एक नया केंद्र आकार ले रहा है. प्रसाद ने थालपोस में छिपे युवकों के बारे में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को सूचना दी थी, जो एक सप्ताह के भीतर हरकत में आ गए.

जांच अधिकारी (आईओ) संजीव कुमार ने बताया, ‘टीमों का गठन किया गया गया और दोपहर एक बजे के आसपास छापेमारी के लिए हॉटस्पॉट पर भेजा गया. छापेमारी के दौरान, कुछ युवकों ने तो पुलिस पर हमले की कोशिश की और कुछ भागने में सफल रहे, लेकिन 33 लोगों को हमने गिरफ्तार कर लिया.’

यह नवादा पुलिस की तरफ से की गई अब तक की सबसे बड़ी और सबसे सफल छापेमारी में से एक थी.

पुलिस ने बाइक, लैपटॉप, डोजियर, लेटरहेड, स्टैम्प और सिम कार्ड जब्त किए और कई संदिग्धों को भारतीय दंड संहिता के कई प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया—जिसमें धारा 420 (धोखाधड़ी), 419 (प्रतिरूपण), 120 बी (आपराधिक साजिश), 467 और 468 (जालसाजी) और 353 (लोक सेवक को अपने कर्तव्य के निर्वहन से रोकना के लिए हमला करना) आदि शामिल हैं.

पुलिस ने आईटी अधिनियम के प्रावधानों को भी लागू किया, जिसमें धारा 66 बी (बेईमानी से चोरी कंप्यूटर संसाधन या संचार उपकरण हासिल करना), सी (पहचान की चोरी), और डी (कंप्यूटर संसाधन का उपयोग) शामिल है.

पकड़े गए 33 लोगों में से 31 थालपोस के रहने वाले हैं. प्राथमिकी, जिसकी प्रति दिप्रिंट के पास है, दर्शाती है कि गिरफ्तार किए गए अधिकांश युवाओं की उम्र 19 से 25 वर्ष के बीच है, लेकिन 14, 15 और 16 वर्ष आयु वाले नाबालिग भी इसमें शामिल हैं.

आरोपियों में से एक 14 वर्षीय आरोपी, जो जमानत पर बाहर है, अपने घर के बाहर अपने पिता के साथ बैठता है | ज्योति यादव | दिप्रिंट

कुछ संदिग्ध फिलहाल जमानत पर बाहर हैं, लेकिन गुलशन समेत कई युवा अभी नालंदा की शेरघाटी जेल में बंद हैं. पुलिस ने अभी चार्जशीट दाखिल नहीं की है.

तथ्य यह है कि एक छोटे से गांव से इतने सारे लोगों की गिरफ्तारी को छोड़ भी दिया जाए तो भी नवादा जिले में साइबर अपराध सामान्य तौर पर बढ़े हैं. 2019-20 में नवादा पुलिस ने साइबर अपराध के 17 मामलों के सिलसिले में 28 लोगों को गिरफ्तार किया था, इसके बाद 2020-21 में 14 मामलों में 30 लोगों को गिरफ्तारी हुई. लेकिन 2022 में महज मार्च तक नवादा पुलिस ने 11 मामलों में 38 लोगों को गिरफ्तार किया है.

आईओ कुमार ने कहा, ‘कोनंदपुर पंचायत का नब्बे प्रतिशत (थालपोस जिसके तहत आता है) हिस्सा ऐसी धोखाधड़ी में शामिल रहा है.’ साथ ही जोड़ा कि ऐसे मामलों में टारगेट/पीड़ित आम तौर पर अन्य राज्यों के होते हैं.

उन्होंने कहा, ‘देश के विभिन्न हिस्सों से पुलिस फोन नंबर ट्रेस करने के साथ हमसे संपर्क साधती है…क्योंकि यहां के नंबरों का इस्तेमाल दूसरे राज्यों में धोखाधड़ी के लिए किया जाता है. धोखाधड़ी में शामिल ज्यादातर युवा सामान्य परिवारों से हैं लेकिन कम मेहनत और अधिक आसान तरीके से कमाई के लालच में आ जाते हैं.’

थालपोस, नवादा में तीन युवा शाम को अपने फोन पर स्क्रॉल करते हुए बिताते हैं | ज्योति यादव | दिप्रिंट

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कोनंदपुर पंचायत के नवनिर्वाचित मुखिया (प्रधान) 30 वर्षीय संजीत कुमार इस बात से सहमत हैं लेकिन कहते हैं कि समस्या वही पुरानी है बस तरीका बदल गया है.

संजीत कुमार ने ‘सेक्स पॉवर बढ़ाने’ और इसी तरह की चीजों को लेकर नकली दवाओं और टॉनिक से जुड़े एक चर्चित घोटाले का जिक्र करते हुए कहा, ‘यह सब एक दशक से चल रहा है. पहले वे आयुर्वेदिक दवाओं के नाम पर लोगों को ठगते थे.’

कुमार ने कहा कि यद्यपि अब चीजें बदल रही हैं, ‘नई पीढ़ी और नई तकनीक के साथ अपराध ने भी एक नया आकार ले लिया है.’

कैसे चलता था नेटवर्क

एक तरह से देखें तो कथित गिरोह के घोटालों का तौर-तरीका बहुत अनूठा नहीं था, और न ही उनके कोई निर्धारित टारगेट थे, जिसे ठगने में वो ‘सफल’ हुए.

पुलिस दस्तावेजों के मुताबिक, आरोपी ग्रामीणों ने कई लोगों के मोबाइल नंबर, बैंक खाते का ब्योरा और आईएफएससी कोड हासिल कर लिया था और इसी जानकारी का इस्तेमाल वे उनका भरोसा जीतने और ओटीपी मांगने के लिए करते थे. उदाहरण के तौर पर कुछ लोग अपने टारगेट को फोन करते डीलरशिप या इसी तरह की अन्य कार्यों के लिए प्रोसेसिंग, लाइसेंसिंग या रजिस्ट्रेशन के लिए अप्रूवल लेटर दिलाने का वादा करते और बदले में कुछ ‘फीस’ चुकाने को कहते.

आईओ कुमार ने कहा, ‘कोई हाई-टेक ग्रुप नहीं है. उनकी मूल रणनीति यही होती थी कि लोगों को फोन करों और उनसे उनका काम कराने के बदले कुछ फीस चुकाने को कहो.’

कुछ आरोपियों ने अपनी कार्यप्रणाली एकदम साधारण रखी थी. पुलिस ने बताया कि गुलशन कुमार ने अपने सैमसंग फोन और मोबाइल नंबरों की छह-पेज की एक डेटाशीट का इस्तेमाल लोगों को यह कहकर ठगने के लिए किया कि उनके यहां मोबाइल टॉवर लग जाएगा और बदले में पैसे हासिल करने की कोशिश की.

एक अन्य आरोपी 19 वर्षीय नीतीश कुमार यादव को जीफाइव मोबाइल और 40 पेज की डेटाशीट के साथ पकड़ा गया था. सौरभ कुमार, जो केवल 14 वर्ष का है, के पास एक छपी हुई डेटा शीट और एक सैमसंग मोबाइल मिला है.

19 साल के नीतीश कुमार यादव भी आरोपियों में से एक हैं | ज्योति यादव | दिप्रिंट

कुछ अन्य इस तरह की कथित जालसाली में ज्यादा गहराई से ‘लिप्त’ थे.

उदाहरण के तौर पर 25 वर्षीय आशुतोष कुमार को एक लैपटॉप, आधिकारिक लेटरहेड, केंद्र सरकार के स्टांप और कई लोगों के व्यक्तिगत ब्योरे के साथ पकड़ा गया था. उसके लैपटॉप पर कई फोल्डर थे, जिससे पता चला कि वह गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) से एक अप्रूवल लेटर दिलाने के नाम पर अपने एक टारगेट से 75,000 रुपये की मांग कर रहा था. उसके पास एक सीएनजी डीलरशिप के नाम से 1.25 लाख रुपये की रसीद भी थी.

पुलिस का मानना है कि वह हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) दिलाने के बदले 5.90 लाख रुपये ऐंठने की कोशिश में था. पुलिस ने उसके पास से भारत गैस का एक डीलर सर्टिफिकेट, एक एथर एनर्जी डीलरशिप एप्लीकेशन फॉर्म और एक इंडेन रजिस्ट्रेशन फीस फॉर्म भी बरामद किया है.

एक अन्य आरोपी 22 वर्षीय कुंदन कुमार के पास ओला इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड और एक ऑनलाइन गैस एजेंसी डीलरशिप के लिए एप्रूवल लेटर था. वह अलग-अलग लोगों से ‘प्रोसेसिंग फीस’ के तौर पर 35,000-45,000 रुपये मांग कर रहा था. उनके पास मुद्रा ऋण के इच्छुक लोगों की एक सूची भी थी.

हालांकि, जांच अधिकारी का मानना है कि इस छापेमारी में केवल छुटभैये अपराधी ही हत्थे चढ़े हैं और गिरोह के ‘मास्टरमाइंड’ अभी भी विभिन्न जगहों से अपना काम करने में सक्रिय हैं.

उन्होंने कहा, ‘वे कुछ और गांवों को अपना लक्ष्य बनाएंगे और अधिक से अधिक युवाओं को इस धंधे में शामिल होने का लालच देंगे.’

कोविड के बाद बेरोजगार-प्रवासी, स्कूली बच्चों ने अपराध का रास्ता चुना

गांव के कुछ लोगों ने बदले की किसी कार्रवाई के डर से अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि थालपोस के पूरे नेटवर्क के पीछे नालंदा के कटरीसराय निवासी सचिन कुमार का हाथ है, जो क्षेत्र में साइबर अपराधों के लिए कुख्यात है और कथित तौर पर कुछ समय के लिए जेल भी जा चुका है.

थालपोस निवासियों ने आरोप लगाया कि उसके साथियों ने गांव के आशुतोष, विक्की, कुंदन, निखिल और विवेकानंद आदि कुछ युवकों से दोस्ती गांठी और फिर उन्हें छोटे-मोटे साइबर अपराधों में शामिल होने का प्रलोभन दिया. जल्द ही कुछ अन्य लोग भी उनके झांसे में आ गए, इनमें खासकर गरीब परिवारों के लड़के और कोविड के कारण घर लौटने को बाध्य हुए प्रवासी शामिल हैं जिन्हें पैसों की बहुत ज्यादा जरूरत महसूस हो रही थी.

छोटे अपराधों के केंद्र के रूप में कुख्यात नालंदा के कटरीसराय में थाने के लिए एक संकेत | ज्योति यादव | दिप्रिंट

एक बुजुर्ग निवासी रामजी शामरा ने कहा, ‘यह एक साधारण गांव है…अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है और यहां के युवा देश के अन्य हिस्सों में पलायन कर जाते हैं.’

2020 में कोविड की मार के कारण कई प्रवासियों ने अपनी नौकरी गवां दी और उन्हें घर लौटना पड़ा. वहीं, छात्रों को भी स्कूल जाना नहीं पड़ता था लेकिन ऑनलाइन कक्षाओं की सुविधा के लिए उनके पास मोबाइल फोन थे.

पकरीबारवां ब्लॉक में तैनात एक शिक्षा अधिकारी प्रमोद कुमार झा ने कहा, ‘कोविड के बाद देश में मोबाइल हर किसी के जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका है. स्कूल बंद थे और घर पर बच्चों के पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं था. गरीब परिवारों के लड़के देखा-देखी यही करते हैं.’


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नए फोन ने समस्या बढ़ाई

थालपोस गांव में हर कोई 19 वर्षीय गुलशन कुमार को एक ईमानदार लड़के के रूप में याद करता है, जो विधवा मां को घोर गरीबी से मुक्त करा अपने कच्चे घर में सौभाग्य लाना चाहता था. सर्विला देवी ने कहा, ‘उसने हमसे एक बेहतर भविष्य का वादा किया था.’

2019 में गुलशन ने 10वीं कक्षा की परीक्षा फर्स्ट डिवीजन में पास की थी और छात्रों के लिए राज्य सरकार की योजना मुख्यमंत्री बालक बालिका प्रोत्साहन योजना के तहत 10,000 रुपये की छात्रवृत्ति जीती थी. उसने ट्यूशन के जरिये अपने परिवार—जिसमें मां और छोटा भाई शुभम शामिल है—की आय बढ़ाने की भी कोशिश की थी.

गुलशन के छोटे से घर के अंदर | ज्योति यादव | दिप्रिंट

सर्विला देवी ने गर्व के साथ बताया, ‘वह हर बच्चे से 60 रुपये चार्ज करता और हर महीने लगभग 3,000 रुपये कमाता था.’ साथ ही जोड़ा कि परिवार को उनकी विधवा पेंशन (400 रुपये) और पट्टे पर ली गई कुछ जमीन पर खेती से भी आय हुई. यह उनकी जीविका चलाने के लिए पर्याप्त थी.

हालांकि, गुलशन अपनी छात्रवृत्ति के कुछ पैसों से अपना पहला एंड्रॉइड फोन खरीदने के बाद ही अपने रास्ते से भटकने लगा था. 2021 में वह 12वीं कक्षा में फेल हो गया और उसने अपनी मां से वादा किया कि अगर वह उसे एक बेहतर मोबाइल फोन दिलाएगी तो वह पढ़ेगा और अच्छे नतीजे लाएगा. आज भी उसकी मां सर्विला देवी को लगता है कि गुलशन अपने फोन का इस्तेमाल सिर्फ पढ़ने के लिए कर रहा था और उस पर लगाया गया आरोप गलत है.

उसके जेल जाने के बाद वह अकेले ही गुजारा चलाने की कोशिश कर रही है, लेकिन आर्थिक बोझ बहुत ज्यादा है: उसने गाय खरीदने के लिए दो बार 40,000 रुपये का कर्ज लिया था और अब गुलशन को जमानत दिलाने की भी कोशिश कर रही है.

उसी गांव के रहने वाले भूषण मिस्त्री फरवरी में छापेमारी के कारण लगे सदमे से अभी तक उबर नहीं पाए हैं. उनके दोनों बेटों—19 वर्षीय रोहित और 14 वर्षीय सौरभ—को गिरफ्तार कर लिया गया था. सौरभ को तो जमानत मिल गई है, लेकिन रोहित अभी शेरघाटी जेल में ही बंद है.

मिस्त्री ने बताया, ‘रोहित ने एक एंड्रॉइड फोन मांगा था और यह उनके एक बड़े भाई ने उपहार में दिया था.’

भूषण मिस्त्री अपने बड़े बेटे, 19 वर्षीय रोहित की एक तस्वीर दिखाते हैं, जो इस समय जेल में है। भूषण का छोटा बेटा जमानत पर बाहर हैं | ज्योति यादव | दिप्रिंट

एक अन्य आरोपी, 16 वर्षीय राहुल कुमार ने अपनी गिरफ्तारी से कुछ दिन पहले ही एक वीवो मोबाइल खरीदा था. उसे 10वीं की बोर्ड परीक्षा देनी थी लेकिन वह उसमें नहीं बैठ सका क्योंकि उसे जुवेनाइल होम भेज दिया गया था.

नाई का काम करने वाले उसके 63 वर्षीय पिता भूषण ठाकुर को अपने छोटे बेटे से बहुत सारी उम्मीदें थीं. ‘मेरे सभी बेटे बढ़ई का काम करते हैं लेकिन राहुल पढ़ाई में अच्छा था.’

दिप्रिंट ने अन्य घरों का भी दौरा किया जहां युवा लड़कों को गिरफ्तार किया गया था लेकिन जमानत पर रिहा कर दिया गया. अधिकांश ने जोर देकर कहा कि पुलिस ने उनके लड़कों को गलत तरीके से फंसाया था जो गलत समय पर गलत जगह पर थे और शायद गलत संगत में थे जब 15 फरवरी की छापा मारा गया था.

जब दिप्रिंट ने गांव का दौरा किया तो आमतौर पर लोगों ने यही बात कही और जो स्वाभाविक भी थी कि ‘बाहरी लोगों’ ने लड़कों को आसानी से पैसे कमाने का प्रलोभन दिया था. कोई यह नहीं कहता है कि स्मार्टफोन के जरिये संपर्क साधने वाले ये ‘बाहरी लोग’ काम की कमी को पूरा करने के ले इसकी तुलना में किसी अधिक आकर्षक व्यवसाय की पेशकश करते हैं.

कई लोगों को अपने बच्चों की गिरफ्तारी पर गहरी शर्म महसूस होती है, तो कुछ लोगों अतीत की बातों पर जोर देते हुए कहते हैं कि उनका क्षेत्र हमेशा से इस तरह बदनाम नहीं रहा है.

गांव के एक बुजुर्ग रामजी शामरा बताते हैं, ‘एक डीएसपी हमारे ही गांव से हैं. बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिन्हा हमारे पुस्तकालय का दौरा करने आए थे और वहां डायरी में लिखा था कि यहां आने पर ‘प्रसन्नता हुई.’

जैसा होता है, जिला प्रशासन यहां के लाइब्रेरी के जरिये युवाओं का भविष्य संवारने के सपने देख रहा है.

थालपोस की लाइब्रेरी ने देखे अच्छे दिन | ज्योति यादव | दिप्रिंट

सिर्फ इंटरनेट कनेक्शन नहीं, किताबें भीं

कोविड के मद्देनजर इंटरनेट और टेक्नोलॉजी कई स्कूल और कॉलेज के छात्रों के लिए जीवनरेखा साबित हुई है, लेकिन जैसा नवादा की पुलिस अधीक्षक धूरत सायली सावलाराम कहती हैं, इसके ‘दो पहलू’ हैं.

उन्होंने कहा, ‘साइबर क्राइम दूसरा पहलू है. हालिया छापेमारी में गिरफ्तार लोगों में ज्यादातर युवा हैं.’

पूर्णिया जिले, जहां 2020 में युवाओं को कोई दिशा देने और उनका फोकस बढ़ाने के लिए एक सफल पुस्तकालय अभियान शुरू किया गया था, से सीख लेते हुए नवादा भी किताबों के जरिये बदलाव लाने की कोशिश में जुटा है.

नवादा के जिला मजिस्ट्रेट यशपाल मीणा ने कहा, ‘हमने पिछले साल पंचायतों में एक पुस्तकालय अभियान शुरू किया था ताकि हम युवाओं के हाथों में किताबें देकर उनकी ऊर्जा को एक सही दिशा दे सकें.’

उन्होंने बताया, अब तक यह प्रतिक्रिया उत्साहजनक रही है. मीणा ने कहा, ‘हम उन युवाओं को किताबें मुहैया करा रहे हैं, जो कई कारणों से रास्ता भटक जाते हैं और अपराधों की ओर रुख कर लेते हैं.’

मीणा ने आगे बताया कि इसके अलावा, प्रशासन जिला पंजीकरण सह परामर्श केंद्र (डीआरसीसी) के माध्यम से लागू की जा रही योजनाओं पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है.

इस योजना के तहत बिहार सरकार छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए क्रेडिट कार्ड (4 लाख रुपये तक क्रेडिट/लोन) प्रदान करती है. साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों को साल के लिए 1,000 रुपये प्रति माह का स्वयं-सहायता भत्ता प्रदान करती है. यही नहीं, कुशल युवा नामक 90-दिवसीय कार्यक्रम भी इसी का एक हिस्सा है, जिसमें कंप्यूटर, संचार कौशल और अंग्रेजी में 90 दिनों की ट्रेनिंग दी जाती है.

मीणा ने कहा कि उम्मीद है कि ऐसी योजनाएं कम से कम कुछ होनहार युवाओं को भटकने से रोकेंगी. उन्होंने कहा, ‘हमारे एक विचाराधीन कैदी ने जेल में रहकर ही आईआईटी की संयुक्त प्रवेश परीक्षा पास करने में कामयाबी हासिल की और उसकी राष्ट्रीय स्तर पर 54वीं रैंक रही है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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